Description
शागिर्द
वक्त इक ऐसा था समय में जब मैं बिल्कुल अकेला था,
ब्रह्माण्ड की ना थी पहचान ना दुनिया का ये मेला था,
तब खुद से खुद को अलग कर दुनिया मैने रचाई थी,
और तुझ में मेरा अक्स है दिखता ये राज की बात बताई थी।
I separated myself from myself so that I can Love myself.
इस जहाँ की शुरुआत की वजह ही जब प्यार रही है तो मैं ऐसा समझता हूं की हमें सिर्फ प्यार
का आंचल थामे रहने की ज़रूरत है और ऐसा कर के हम जिंदगी चैन से बसर कर सकेंगे –
ये जहाँ मोहब्बत की पैदाइश है इसमें मोहब्बत बांटने के लिए,
तुम हद से गुज़र जाओगे, इक वायदा कर लो।
मुझे ऐसा लगता है की इस प्यार को मोहब्बत को हर सम्त बिखेरने की ज़िम्मेदारी सबकी है –
दुनिया में हो तो होने का हक अदा करो,
अरे भाई मोहब्बत करो, मोहब्बत करो, मोहब्बत करो।
हां, इसके लिए हमें शायद अपना ज़िन्दगी जीने का तरीका ज़रूर दुरुस्त करने की ज़रूरत है –
पहले खुद, फिर दुनिया, आखिर में रब,
इस तरह तो बहुत वक्त लग जाना है।
मुझे लगता है अगर हम खुद को आखिर में रखे तो ज़रूर कामयाब हो जाएंगे।
अंजाम को पहुंचने के लिए हमें बस अपने ही अंदर की गहराइयों मे उतरने की ज़रूरत है, खुद
से ही मिलने की, खुद से ही बात करने की ज़रूरत है –
तुम्हें बस खुद से ही मोहब्बत करनी है,
अब इसमें भी क्या कोई मसला दिखाई दे।
मुझे उम्मीद है कि इस किताब को पढ़ने के बाद आप भी अपने ही अंदर की और एक सफर
शुरू करेंगे और मेरी इस बात को दोहराएंगे –
दो जहाँ की तमाम खुशियां अब मुझको हैं नसीब,
वक्त जाया करते हैं मियां जो बाहर घूमते हैं।
नवीन “कभी कभार”
Reviews
There are no reviews yet.