पनिहारिन"लिए घट भरने को नीर...... - ZorbaBooks

पनिहारिन”लिए घट भरने को नीर……

समीक्षार्थ:-

पनिहारिन” लिए घट भरने को नीर।

अति चतुर नारी” किए सोलह श्रृंगार।

नैनन में मद भरे, ज्यों कटार धार।

मुस्कात है ज्यों खिल उठे कोमल कुसुम।

सुंदरी नव यौवना’ चलती यों अल्हड़ सी चाल।

जैसे कवि के हृदय उठे बसंत रंग डुबे राग।।

पनघट को चली सुंदरी” ताकती है डगर।

ज्यों कुमुद पर खिल उठे हो पुष्प’ लिए रंग।

अल्हड़ सी नव यौवना के रस अंग-अंग।

लगे है’ देखती राह पिया को लिए उमंग।

युवती हृदय में लिए मृदुल रस स्नेह भाव।

जैसे कवि के हृदय उठे बसंत रंग डुबे राग।।

चली भामिनी जो डगर” रस डुबे लिए अधर।

कूंजन में किलोल कर रहे ज्यों कोयल के स्वर।

युवती सहज लिए प्रेम भाव स्वर मधुर गात।

यु डगर पर करें अट्टखेलियां, फिर मुस्कुरात।

कुछ यूं घूँघट ओट लिए भामिनी करती छिपाव।

जैसे कवि के हृदय उठे बसंत रंग डुबे राग।।

पनिहारिन’ पहने हुए चूनर धानी, लाल रंग।

सितारों से जड़ी ओढनी सिर पर डाले हुए।

माटी का घट लिए लाल रंग, बांहों में संभाले हुए।

और बादलों में छिपा हो चांद” वैसे घूँघट निकाले हुए।

ऐसे पनघट को चली सुंदरी’ लिए मन उल्लास।

जैसे कवि के हृदय उठे बसंत रंग डुबे राग।।

कुमुदिनी के फूल से सहज’ नयनों में शर्मो-हया।

युवती चली जात है डगर’ देखती छिपी नजर।

अल्हड़ सी वह नव यौवना, मचल उठता डगर।

प्रेम रस धार फिर पड़े यहां-वहां, हुआ असर।

चली जात है डगर” फैलाती हुई नागिन से बाल।

जैसे कवि के हृदय उठे बसंत रंग डुबे राग।।

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मदन मोहन'मैत्रेय'