कटीले तेरे नैना” अरी ओ भामिनी……श्रृंगार रस कविता
कटीले तेरे नैना” अरी ओ भामिनी।
मदभरे चाल तेरे’ अरी ओ गज गामिनी।
मिश्री के रस’ से रसीले तेरे बोल है।
कजरारे नैना तेरे ये’ लगे अनमोल है।
अरी ओ सुंदरी’ तेरा रुप-रंग है कमाल का।
उठे जो लहर आशिकों में, बातें है बवाल का।।
कोकिल से तेरे बोल’ गुंजे जो आते-जाते।
भँवरा के हिया शूल उठा जा रहा हो जैसे।
प्रेम की पाती लिख-लिख के हारे जिया।
चढा जाए ऐसों असर, कहूं तो कहा जाए कैसे?
तू डगर चले गिराती बिजलियाँ, चित चोरनी।
उठे जो लहर आशिकों में, बातें है बवाल का।।
तू चली पनघट की डगर’ थामे हुए गगरियाँ।
अरी मतवाली सुलोचना, चली जाए तू गुजरिया।
अरी ओ मन मोहनी, तेरी जो बाली रे उमरिया।
चलूं तेरे संग में’ कह जो दे तू, प्रीति की डगरिया।
तेरे रंग-रुप का जादू चले जोर से, जल जाए जिया।
उठे जो लहर आशिकों में, बातें है बवाल का।।
एक तू है चंचला’ और एक ये शहर’ प्रेम का।
तेरे अंग-अंग रस टपके है ऐसे, ज्यों बरसे रे बदरा।
तेरे रुप का मेह” बरसे जो गरज-गरज के डगर पे।
ओ भामिनी-ओ गज गामिनी, तू ने लगाए कजरा।
उलफत’ है अरी सुंदरी’ आए न जिया में चैना।
उठे जो लहर आशिकों में, बाते है बवाल का।।
कटीले तेरे नैना’ बन हिया पे तिरछी कटारी लगे।
तेरे मदभरे अंग से मोहे ऐसों चढो रंग, खुमारी जगे।
कटे नहीं रतिया तकूँ राह भोर की, रैना भारी लगे।
कहूं तो का से भामिनी, तेरे बिन फीकी दुनियादारी लगे।
इक तो तेरी चाहते अरी सुंदरी, दूजे तू मगरूर है।
उठे जो लहर आशिकों में, बातें है बवाल का।।