कहता हू’ किंचित समाधान भी होगा……
कहता हूं’ किंचित समाधान भी होगा।
मन में ग्रसित अहंकार के ढहने से।
निखरेगा स्वभाव’ बने मौन के रहने से।
वह समुचित उत्तर’ मिले प्रश्न के कहने से।
मर्यादाएँ अब तो निर्धारित हो ही जाएगा।
तू धैर्यशील तो बन, जीवन से वर पाएगा।।
निर्णायक’ होगा जो रण’ तू उदास मत होना।
पढ लेना मर्म गीता का’ यूं ही निराश मत होना।
रण भूमि का भीषण संघर्ष, ऐसे आश मत खोना।
मर्यादा उन नियमों का’ व्यर्थ भार मत ढोना।
तेरे अंतस मन की दुविधा’ अब खो ही जाएगा।
तू धैर्यशील तो बन, जीवन से वर पाएगा।।
किंचित चमत्कार का लोभ’ आकर्षित करने को।
तुम चंचल मन’ ऐसे जो अपने पास बुलाए।
भ्रमणाए जो अभिलाषा की, लोरी तुम्हें सुनाए।
रण में हो मानव’ व्यर्थ फिर दूर कहीं ले जाए।
तुम साधे रहना ध्येय, चिन्ता नहीं पास टिक पाएगा।
तू धैर्यशील तो बन, जीवन से वर पाएगा।।
किंचित’ उपहास के भय से रण कौशल कुंद करोगे।
हे मानव जीवन पथ पर’ कैसे पद चिन्ह भरोगे?
उपमानों के लोभ फंसे जो ऐसे’ कैसे प्रश्न कहोगे?
अतिशय जो अभिलाषा होगी, कैसे भार सहोगे?
तुम बांधो मन के बांध’ जीवन रस बिखर न पाएगा।
तू धैर्यशील तो बन, जीवन से वर पाएगा।।
सत्य वचन सुन लो’ समाधान समय कर देगा।
तुम कर्तव्य निभाते जाओ’ यह तेरे अनुकूल हो लेगा।
हे मानव’ निर्मल तो हो जाओ’ द्वंद्व तेरे हर लेगा।
पुरुषार्थ के बनो रथी’ पथ पर पुष्प सहज बिखरेगा।
हे मानव’ गांडीव उठाओ’ वाण लक्ष्य भेद भी जाएगा।।
तू धैर्यशील तो बन, जीवन से वर पाएगा।।