चरणों में रमा रहूं प्रभु जी………
चरणों में रमा रहूं’ प्रभु जी’
राघव तेरी सेवा में लगा रहूं।
माया जगत की खींच न पाए”
रघुनंदन” ऐसा तुमसे जुङा रहूं।।२
भ्रम भाव जो जगे अहं का मन में’
भज लूं राघव तेरे नाम की माला।
तेरी कृपा का अमृत रस’ अगाध’
नाथ मेरे’ पी लूं भर-भर कर प्याला।
हानि-लाभ की गणनाओं से बनूं अछूता’
भ्रम था जो जीवन का, तेरी कृपा से टूटा।
नाथ दया तेरी है, अब कोई छल नहीं पाए’
हे राम दया के सागर’ तेरा बना रहूं।।
अभिलाषाएँ जगी हृदय, ले लूं नाम तेरा’
तुम हमारे हो’ करुं हृदय में ध्यान तेरा।
पल-पल चरणों की सेवा, हो काम मेरा’
मैं दास तुम्हारा हूं, गाऊँ गुणगान तेरा।।
हे जग प्रतिपालक राम’ कृपा दृष्टि से देखो’
मन तेरा हूं रघुनाथ, मुक्त करो हृदय के भय को।
मन लोभ के पाले फंस अब जल नहीं पाए’
हे अवध पति अवधेश, मन भजन में रमा रहूं।।
अब कृपा करो हे राघव, चंचल मन मेरा’
मैं तेरा हूं नाथ, काटना भ्रम का ये फेरा।
दास तुम्हारा हूं, रघुवर बस तेरे शहारे हूं।
अब कृपा करो हे राम, तोङो माया का घेरा।
हे राम तेरा नाम है रस अमृत का सागर’
हूं चरणों का दास, सिर राघव धर दो हाथ।
रघुनाथ थाम लो मेरा हाथ, मन तृप्त हो जाए’
तुम अपना कह दो नाथ, सरन में पङा रहूं।।