गुड़िया और लंगूर
उत्तराखंड के कुमाऊं और गढ़वाल की पहाड़ियों के बीच में एक छोटा सा गांव था। इस गांव में सावित्री नाम की महिला रहती थी। सावित्री के पति का स्वर्गवास हो चुका था। सावित्री की गुड़िया नाम की एक बेटी थी। सावित्री की सास यानी की गुड़िया की दादी अभी जीवित थी।
गुड़िया की दादी धार्मिक विचारों वाली महिला थी। वह पशु पक्षियों मनुष्य सभी से अच्छा और प्यार मोहब्बत का व्यवहार करती थी। गुड़िया की दादी को एक दिन मंदिर के पास एक घायल लंगूर का बच्चा मिलता है। वह उसे अपने घर ले आती है। और उसका अच्छी तरह इलाज करती है। वह लंगूर का बच्चा धीरे-धीरे उनके घर का सदस्य बन जाता है। और गुड़िया की बूढ़ी दादी प्यार से उसका नाम बाली रखती है।
गुड़िया की दादी जब सर्दियों में चारपाई बिछाकर धूप में बैठती थी, और मूंगफली खाती रहती थी, तो लंगूर का बच्चा गुड़िया की दादी को मूंगफली छील छील कर देता रहता था, और खुद भी खाता रहता था।
सावित्री ने अपने घर में एक छोटी सी बिस्कुट नमकीन मूंगफली गुड़ की पट्टी आदि सामान बेचने की दुकान खोल रखी थी। और उनका एक छोटा सीडी नुमा खेत भी था। दुकान और छोटा सा खेत उनकी रोजी रोटी के साधन थे।
बाली लंगूर सावित्री के साथ मिलकर दुकान और घर के कामों में भी उसकी मदद करता था।
गुड़िया और बाली लंगूर इतने पक्के मित्र थे कि एक दूसरे के साथ खाते पीते खेलते सोते थे। गुड़िया कहीं भी बाहर खेलने कूदने घूमने पढ़ने जाती थी, तो बाली लंगूर खुद भी उसकी चौकीदारी करने के लिए उसके साथ जाता था।
गुड़िया पांचवी कक्षा में पढ़ती थी। एक दिन उसके विद्यालय में विदेश से ओलंपिक जीतकर आई उत्तराखंड की महिला जिमनास्टिक खिलाड़ी के स्वागत के लिए विद्यालय में एक बहुत बड़ा आयोजन होता है। उस आयोजन में उत्तराखंड के खेल मंत्री जिमनास्टिक महिला खिलाड़ी का स्वागत और मान सम्मान करने आते हैं। वह महिला खिलाड़ी सिल्वर पदक विजेता थी। विद्यालय के शिक्षक विद्यालय में पर्दा लगाकर सभी बच्चों और अतिथियों को उस महिला खिलाड़ी का जिमनास्टिक जीतने वाले और पुरस्कार समारोह के दृश्य दिखाते हैं।
महिला खिलाड़ी के जिमनास्टिक जीतने और पुरस्कार मिलने के दृश्य को देखकर गुड़िया अपने मन में उस दिन ठान लेती है कि मैं भी एक दिन जिमनास्टिक की बड़ी और महान खिलाड़ी बनूंगी और अपने देश के लिए स्वर्ण पदक जीत के लाऊंगी।
गुड़िया की इस जिद की वजह से उसकी मां और गुड़िया के बीच बहुत झगड़ा होता है। यह झगड़ा रोज होने ने लगता है। गुड़िया की मां और गुड़िया की दादी गुड़िया को समझाते हैं कि हम बड़ी मुश्किल से अपना खाना पीने का गुजारा करते हैं। तुम्हें हम इतना खर्चीला जिमनास्टिक खिलाड़ी प्रशिक्षण कैसे दिला सकते हैं। हमें तो पेट भरना भी मुश्किल होता है। लेकिन गुड़िया अपनी जीद पर अड़ी रहती है।
गुड़िया की मां दादी और गुड़िया के बीच रोज के झगड़ों को बाली लंगूर बड़े ध्यान से सुनता था। और अपने मन में इस झगड़े को सुलझाने का का रास्ता खोजता रहता था।
एक दिन गुड़िया टीवी पर जिमनास्टिक के खेल को देख रही थी। और अपने कमरे में वैसे ही दृश्य करने की कोशिश कर रही थी। लेकिन वह बार-बार असफल हो रही थी।
उस दिन वाली लंगूर को समझ आ जाता है कि गुड़िया की क्या करने और क्या बनने की इच्छा है। और गुड़िया की मां दादी इनके बीच में इसी बात को लेकर झगड़ा होता है।
बाली लंगूर अपने मन में सोचता है, जिम्नास्टिक करना और गुड़िया सिखाना तो मेरे बाएं हाथ का खेल है। हम लंगूर बंदर तो जन्म से एक महान जिमनास्टिक होते हैं। उसी दिन से बली लंगूर गुड़िया को प्रशिक्षण देने के नए-नए तरीके खोजने लगता है।
पहला तरीका यह खोजता है कि जब गुड़िया सुबह अपने विद्यालय जाती है, तो बाली लंगूर एक कुत्ते को पत्थर मारकर चिड़ा देता है। और वह कुत्ता समझता है कि गुड़िया ने उसको पत्थर मारा है। वह गुड़िया के पीछे भोक भोक कर भागने लगता है। गुड़िया भी भागना शुरू कर देती है। और भागते भागते अपने विद्यालय पहुंच जाती है। दूसरे दिन फिर सुबह गुड़िया जब विद्यालय जाती है, तो बाली लंगूर उस कुत्ते को फिर छेड़ देता है। गुड़िया को कुत्ते की वजह से फिर भाग कर अपने विद्यालय जाना पड़ता है। बाली लंगूर दो तीन बार कुत्ते को परेशान करता है। उसके बाद कुत्ता जब भी गुड़िया को देखता था, तो वह उसे दौड़ा देता था। इससे गुड़िया का दौड़ने का स्टेप ना कैपेसिटी बढ़ जाती है।
गुड़िया को दूसरे तरीके से भी प्रशिक्षण देता है। एक दिन गुड़िया दादी के साथ धूप में बैठकर पढ़ाई कर रही थी। बाली लंगूर उस की पुस्तक लेकर लीची के पेड़ पर चढ़ जाता है। और पुस्तक के पन्ने फाड़ने लगता है। उस दिन गुड़िया को बाली लंगूर पर बहुत गुस्सा आता है। और वह भी पेड़ पर चढ़ जाती है। बाली लंगूर गुड़िया को पेड़ से धक्का देकर पेड़ के टहने पर लटका देता है। और खुद भी उस पेड़ के टहने से लटक जाता है। जिस तरह से बाली लंगूर पेड़ से नीचे उतरता है। उसे देखकर गुड़िया भी उसी तरह पेड़ से नीचे उतरती है।
गुड़िया जब छत पर कपड़े सुखाने जाती थी या सूख कपड़े लेने जाती थी। तो बाली लंगूर उससे कपड़े छीन लिया करता था। और गुलाटिया मारना शुरू कर देता था। जब तक गुड़िया भी उसकी तरह 10-12 बार गुलाटिया नहीं मार लेती थी, वह गुड़िया के कपड़े नहीं देता था। बाली लंगूर गुड़िया से कपड़े छीन कर जिमनास्टिक के नए-नए तरीके करवा कर तब उसे कपड़े देता था।
बाली लंगूर और नए-नए तरीकों से गुड़िया को तीन बरस तक प्रशिक्षण देता है।
गुड़िया आठवीं कक्षा में पहुंच जाती है। उन्हीं दिनों विदेश मे ओलंपिक खेलने जाने के लिए खिलाड़ियों की सूची तैयार की जा रही थी।
एक दिन दोपहर को बाली लंगूर गुड़िया की मां और गुड़िया की दादी को एक जगह बिठा देता है। और गुड़िया के सामने गुलाटिया मारने लगता है। बिल्कुल जिमनास्टिक के खिलाड़ी की तरह और गुड़िया को इशारे करता है अपने जैसा करने के लिए। उसे देखकर गुड़िया भी बाली लंगूर जैसे जिमनास्टिक करने लगती है।
गुड़िया को इतनी अच्छी जिमनास्टिक करते हुए देखकर गुड़िया की दादी गुड़िया की मां खुशी से पागल हो जाते हैं। गुड़िया की मां भागकर वाली लंगूर को सीने से लगा लेती है। और गुड़िया से कहती है कि “गुड़िया बाली लंगूर ही तेरा गुरु है। बाली लंगूर ने ही तुझे प्रशिक्षण दिया है।”
गुड़िया की दादी गुड़िया की मां गुड़िया सब बाली को उस दिन बहुत प्यार करते हैं, और उसकी पसंद का खाना बनाते हैं।
और दूसरे दिन सुबह गुड़िया की मां दादी गुड़िया बाली लंगूर सब मिलकर उत्तराखंड के खेल मंत्री के घर जाते हैं। खेल मंत्री के घर पहुंच कर गुड़िया खेल मंत्री के सामने जिम्नास्टिक करना शुरू कर देती है। खेल मंत्री गुड़िया को इतनी अच्छी जिमनास्टिक करते हुए देखकर बहुत खुश होते हैं। और वह उसी समय गुड़िया का नाम विदेश में होने वाले ओलंपिक की सूची में डाल देते हैं।
और गुड़िया बाली लंगूर के प्रशिक्षण अपनी मेहनत और लगन की वजह देश के लिए स्वर्ण पदक जीत लेती है। यह खबर टीवी समाचार पत्रों मैगजीन मीडिया में फैल जाती है कि, स्वर्ण पदक विजेता गुड़िया का गुरु वाली लंगूर है। गुड़िया की मां गुड़िया की दादी और गुड़िया बाली लंगूर को बहुत-बहुत धन्यवाद् करते हैं। गुड़िया बाली लंगूर से कहती है कि “आप मेरे गुरु हैं, गुरु जी आपको अष्टांग प्रणाम।”