अपने ज़ख्मों से दो चार कौन करें !!
अपने ज़ख्मों से दो चार कौन करें ?
बेरोजगारों के लिए सरकारों से सवालात कौन करें ?
जो पड़े हुए हैं सालों से छ: बटा पांच कमरों में
एक अदद नौकरी के लिए !!
कभी लूसेन्ट तो कभी घटनाचक्र कभी परीक्षा मंथन
तो कभी महेश वर्णवाल कभी लक्ष्मीकांत की प्रति महीनें में दुहरा लेते हैं !
भला हमारे दुःख ओ से दो चार कौन करें ?
बेरोज़गारों लिए सरकारों से सवालात कौन करें ?
ऐसा है कि घर से मिलते हैं वही महज पांच हजार रूपए
अब भला सरकारों को कैसे बताएं कि आपके लाखों
सैलरी और भत्ते से पेट नहीं भरता और हमारे इन्हीं
पांच हजार में रूम रेंट , किताब, कलम, काॅपी सब प्रबंध
करना पड़ता है !!
जो कभी अपने हक के लिए आवाज उठा दी
तो मार लाठी डंडे से चुप करा देते हैं !!
अब ऐसी लाचारी है कि अपने सवालातों को अपने
ही अंदर बार-बार दुहरा या दबा लेते हैं !!
भला अपने दुःखों से दो चार कौन करें !!
बेरोजगारों के लिए सरकारों से सवालात कौन करें ?
जानते हो हम गरीब और लाचार लोग आखिरकार
अंत में सिस्टम से थक हार जाते हैं और मन को मार
अपना जीवन यूँ ही गुजार लेते हैं !!
भला अपने दुःखों से दो चार कौन करें !!
संवेदना मर चुकी है सरकारों की
पाप पर पश्चाताप कौन करें !!