*”बात कल की “*
ये जो सोच है आपकी,
आपको मुझसे अलग बनाती है,
दुनियाँ के अँधेरे कोनों मे ले जाती है |
रगों में रंग मेरे भी लाल है,
फिर क्यूँ मन में मलाल है ?
नयन नक्श मेरे भी समान हैं,
फिर क्यूँ मन में सवाल हैं ?
सवाल तो आपके भी होंगे ,
ज़वाब तो आपको भी पाने होंगे !
जात पात की बुराई “आपने” बनाई,
ऊंच नीच की कढाई “आपने” चढाई ,
फिर क्यूँ देते हो भगवान की दुहाई ?
जिंदगी का “कारीगर” एक है,
फिर क्यूँ मत अनेक हैं ?
“उसने” तो हमे एक ही बनाया,
भेदभाव का जाल तो हमने ही बनाया |
आओ तोड़े ये बेबुनियाद दीवारें,
साथ में सबके अपना कल सँवारे |