*"बात कल की "* - ZorbaBooks

*”बात कल की “*



ये जो सोच है आपकी, 

आपको मुझसे अलग बनाती है, 

दुनियाँ के अँधेरे कोनों मे ले जाती है |

रगों में रंग मेरे भी लाल है, 

फिर क्यूँ मन में मलाल है ?

नयन नक्श मेरे भी समान हैं, 

फिर क्यूँ मन में सवाल हैं ?

सवाल तो आपके भी होंगे ,

ज़वाब तो आपको भी पाने होंगे !

जात पात की बुराई “आपने” बनाई, 

ऊंच नीच की कढाई “आपने” चढाई ,

फिर क्यूँ देते हो भगवान की दुहाई ?

जिंदगी का “कारीगर” एक है, 

फिर क्यूँ मत अनेक हैं ?

“उसने” तो हमे एक ही बनाया, 

भेदभाव का जाल तो हमने ही बनाया |

आओ तोड़े ये बेबुनियाद दीवारें, 

साथ में सबके अपना कल सँवारे |

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Narendra Tepan