गाँव से शहर की दूरी - ZorbaBooks

गाँव से शहर की दूरी

गाँव छोड़ शहर को चले गए सभी, 

ऐसे निकले सामान बांध,  

फिर नज़र ना आये कभी। 

खुद के घर से ज़्यादा किराए के मकान अब मन को भाने लगे हैं, 

पहले शोर हुआ करता था जिन सड़कों पर,  

अब वहाँ सिर्फ सन्नाटे नज़र आने लगे हैं। 

भाग-दौड़ भरी ज़िंदगी में यूँ मशरूफ हुआ है ज़माना, 

सुकून के बदले यहाँ चुना है सबने पैसे कमाना। 

जरूरतों तक ठीक था पर जबसे हसरतें बढ़ती गयीं, 

तबसे गाँव की गलियाँ खाली हुईं और सवारी बसों में चढ़ती गयी।

Comments

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  1. Ranjana Chaurasia says:

    Hii, is it safe to upload our poems on this website?

  2. Zorba Books says:

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Nandini Sharma