युद्ध
नामंजूर होने के मसले में
बनती बात बिगड़ जाती है,
मगर बात देश के शान की हो
तो स्थिति युद्ध की बन जाती है।
जिस धरती से हमें सुख मिला
उसकी रक्षा जान से बढ़कर है,
मन में ऐसा एक जुनून तो हो
देशहित के खातिर खुद को सौंप दें।
पर हर बात बढ़कर भी जैसे
एक सरहद पर रूक जाती है,
युद्ध की परिस्थिति में भी वैसे
शांति वही सीमा बन हल दिखाती है।
बम, गोलों, बारूदों से
बंजर तो धरती बनेगी ही,
ज़रा सोंचों, सीमा पर घायल होने से
वीरान हर घर भी होगा।
यदि विजय प्राप्ति हो भी जाए
तो कई देशभक्त खो जाएँगे,
वह भी अपनों में वक्त गुज़ारने की
ख्वाहिश ले शहीद हो जाएंगे।
जिनकी आँखों से आँसू ढुलकते हैं
कभी उनसे पूछो, की वे हैं कहते क्या
माना कि हाँ में सिर मिलाया उन्होंने’
पर मजबूरी को मंजूरी कहना मुनासिब नहीं।
चार दिन ही बचे थे जीवन में
कुछ आरजू, कुछ इंतजार में बीत जाते,
पर इसका यह तो अर्थ नहीं
कि उसका कोई मोल ही नहीं था।
हर दिन जिनका खुशी में गुजरता था
जिन अपनों के बीच सुकून मिलता था,
हर परिवार ऐसे अपने के लिए
त्योहारों पर भी आँसू बहाता मिलेगा ।