Description
रोटियाँ तपने दो
दो घूँट आसमान कुंठित अस्तित्व को
चखने दो
रोटियाँ तपने दो…
उपेक्षाओं के अलाव तले एक हौंसला
पकने दो….
रोटियाँ तपने दो|
चाँद की दहलीज पर धुआं चूल्हे का
बिखरने दो…
रोटियाँ तपने दो|
नभ की गुल्लक से सिक्के स्वाभिमान के
झरने दो…
रोटियाँ तपने दो|
गुमनामी को भेदती एक किरन कोनों तक
पहुँचने दो…
रोटियाँ तपने दो|
सूर्य के सीने से एक बौछार गुबार पर
बरसने दो…
रोटियाँ तपने दो|
ख़ामोशी की गूंज से नियम-औ- सिद्धांत
चटकने दो…
रोटियाँ तपने दो|
रूढ़ियों के पाषाण से एक काई
खुरचने दो…
रोटियाँ तपने दो|
About the Author
मैं अमिता सिंह एक गृहणी– —
कुछ शब्द पक गये रोटियां सेकते-सेकते
ह्रदय के अंगार पर…
उन्हीं शब्दों की हूक से आपके जिया को
पिघलाना चाहती हूँ…
एक राख अस्तित्व की गर्दिशी कोनों में
बिखराना चाहती हूँ…
अंतस की गहराइयों से सींचकर बौछारे
आपके अन्तःमन में
बरसाना चाहती हूँ…
शायद महक जाये बदबूदार वजूद,
तड़प के नीर से एक मोती सीप का
चमकाना चाहती हूँ…