बाशिंदा हूं मैं…
बाशिंदा हूं मैं इस मिट्टी का,
मिट्टी में ही मुझे मिलना है।।
क्यों बैर करूं उस आसमान से
जिसके नीचे ही मुझे चलना है।
ग़ुरुर की क्या खाक कहूं मैं,
जब राख मुझे भी बनना है।
जीवन की इस हार-जीत में,
इक साख मुझे भी बनना है।
इस मिट्टी का ही बाशिंदा मैं,
मिट्टी में ही मुझे मिलना है।।