Description
शास्त्रानुसार जीवन व जीवों का शरीर पाॅच तत्वों से बना है, पृथ्वी, अग्नि, वायु,जल व आकाश। पांचवा तत्व आकाश जो ईष्वर की अदृष्य् शक्तियाॅं व आत्मा है जिसे हम आध्यात्मिक जगत् के नाम से जानते है। सांसारिक जीवन के ज्ञान व अनुभवों के आधार पर इस आध्यात्मिक जगत, परमात्मा व पांचवा तत्व आकाश को समझने का एक छोटा सा प्रयास किया गया हैं जो आपके समक्ष प्रस्तुत है।
सन 1977 में जब मेरी माता जी का स्र्वगवास हुआ तब से इस जीवन को समझने की मेंरी जिज्ञासा और अधिक बढ गई। उस समय मुझे ऐसा एहसास हुआ कि इस शरीर से ऐसा क्या निकल जाता है जो यह शरीर एकदम निष्क्रीय हो जाता है जिसे शास्त्रों में आत्मा के नाम से जाना जाता है। सन 1978 में मुझे ऐसा विचार आया की जीवन एक रसायनिक क्रिया है जो न्युटन के नियम से चलती है व जिसके बन्द हो जाने से शरीर की मृत्यु हो जाती है। यह रसायनिक क्रिया सम्पूर्ण जगत में फैली है। इसे कभी नष्ट नही किया जा सकता, कभी भी इसे जलाया नही जा सकता, हवा इसे सुखा नही सकती, पानी इसे भीगों नही सकता। यह रसायनिक क्रिया केवल अपना रुप बदलती है एक जीव से दुसरे शरीर में केवल स्थानान्रित हो सकती है। किसी भी बहारी या अन्दरुनी दबाव से केवल एक स्वतंत्र जीव की रसायनिक क्रिया बन्द हो सकती है या बन्द की जा सकती है।
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About the Author
मेरा जन्म अजमेर मेरा जन्म अजमेर शहर (राजस्थान) के एक साधारण माली (सैनी)समाज में 1952 में हुआ। मेरे माता पिता कम पढे लिखे थे। मेरे पिताजी रेल्वे की टिकिट प्रिन्टिंग प्रेस में नौकरी किया करते थे। बचपन में मेरी इच्छा जीव विज्ञान विषय पढने की थी लेकिन मैं विज्ञान पढ कर पेशे से मेकेनिकल डिप्लोमा इंजिनियर बना एवं 36 वर्षो तक जन.स्वा.अभि.विभाग राजस्थान में सर्विस की। प्रकृति को समझने की मेरी इच्छा बचपन से है और मुझे पेड़ पौधो व प्रकृति से बहुत लगाव है। सन 1967-68 से मैं जीवन को समझने का प्रयास कर रहा हुॅ। इन 50 वर्षों में, मैं जीवन के बारे में केवल थोड़ा बहुत ही जान पाया हुॅ।
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