अग़र तू ना होता तो - ZorbaBooks

अग़र तू ना होता तो

*ग़र तू न होता*

ग़र  तू  न होता तो  क्या  होता ।
खुदा  होता  मग़र  जुदा  होता ।

साँसे  तो  चलती  रहती,  मग़र
अंदर ही  अंदर  मर  रहा  होता ।

चाँद  भी  होता,  तारे भी होते
फ़िर भी हरतरफ अंधेरा  होता ।

इंतज़ार रहता भी मुझें तो किसका,
तुझ-सा दिल में न कोई बसा होता ।

बह्र, रदीफ़, क़ाफिया, सब होता,
मग़र  ग़ज़ल  का  शेर रूठा होता ।

-Talvindra Kumar

Comments are closed.

Talvindra Kumar