स्वपन की जयमाला - ZorbaBooks

स्वपन की जयमाला

          :-स्वपन की जयमाला:-
मैं अचंभित था, अविश था, उदास क्यो था। किसी अपने का जयमाला मैने स्वपन में देखा मैं निराश क्यो था। मैं देखता हूँ की कोई मुझे देख न ले कही मैं सपने में था मुझे इस बात का विश्वाश न था। ये जयमाला न आम था न खास था ये मेरे दिल के जो करीब थे उनका जीवन का पहला खुशी भरा एहसास था। मैं हाथ जोड़ एक कोने में खरा था। जयमाले की तैयारी में सारा हुजूम परा था। कुछ समय के लिए मेरी आँखे ओझल होती है। अगले ही समय दुल्हन और लड़कियां मंच पर होती है। इतने में दूल्हा अपने दोस्तो के साथ आता है। मुस्कुराते हुए मुझ से हाथ मिलता है। वो आँखों ही आँखों में मुझ से कह जाता है। अब तेरी वाली मेरी हो गई क्यो आँसू बहता है। मैं आँखों के आँसू को छिपता हूँ। मैं जरा हट पंडाल के पीछे जाता हूँ। मैं रोता हूँ चिलता हूँ । इतने मैं जयमाला हो जाती है और मैं निंद से उठ बैठ जाता हूँ। 

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Abhimanyu kumar