भीगी रात
ये जुल्फ है या मखमली रुमाल जैसा छा रहा
आंखो का नशा उफ़!नशा कहां से आ रहा?
होठ है या फूल कोई रस जरा मै पी के देखू
बूंद-बूंद सीचने को गीत कैसा गा रहा?
चांद जैसी चांदनी, धरा मै उसके बीच में
निहारता ले गोद में ,ये भोग मुझको भा रहा।
लफ्ज़ उसके होठ से नशे को यू बढ़ा रहे
गहरे गर्म सागरो में डुबकियां लगा रहा।
बदन जले बदन से लपेटता यू होश में
बिखेरता क्यू पाक इस बदन को मै क्या पा रहा?
– अल्पज्ञ