"हमारा था कोई" - ZorbaBooks

“हमारा था कोई”

लहरों के विपरीत, किनारा था कोई
हर मुश्किल में एक सहारा था कोई

मौन किसी का पढ़कर ऐसा लगता है
बिना बताये हमें, हमारा था कोई..। । 😢

जितने मुँह उतनी बातों में पिसता था
उसके ख़ातिर मारा-मारा था कोई

सुबह सुहानी रो रोकर ही काट गया
हिचकी में हर रात गुजारा था कोई

लिंग, जाति, मज़हब इन सबसे ऊपर था
'वीर' तुम्हें कहता था, 'ज़ारा' था कोई

मत कहना सखियों से कल,
"तुम तन्हा थी"
तुम्हें चाहता एक बिचारा था कोई

जीत चुकी बाज़ी भी
हँसकर हार गया

एक तुम्हारे कारण
हारा था कोई…..😢😶.। ।

–©अभ्भू भइया

 

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