क्यों अनजान बने हम
देखी न कभी उषा की प्रथम किरण
क्योंकि आँखें बंद थी
कोयल की कूक कानों में मिश्री न घोले
क्योंकि कानों के बंद थे
डाली पर बैठी गौरैया को कौन पुकारे
क्योंकि जुबां भी बंद थी
अस्मत जब हुई तार-तार जब नारी की
तो क्यों समाज अंधा हुआ
चीख पुकार उस अबला कि कौन सुने
क्या उस पल ज़माना भी बहरा था
कौन उस अभागिन की आवाज बने
उसके लिए कानून भी गुंगा था
कटु वचन भी न बोलो कभी
मगर जुबाँ से आवाज बनो लाचार की