आओ दीवारों से कुछ बात करें
वक्त ने दिए आज
फुर्सत के कुछ अनजान लम्हे
जैसे भूल गए थे हम
अपनी ही शख्सियत को
लक्ष्मण रेखा के दायरे में
आओ दीवारों से कुछ बात करें
अपनी ही परछाईयों से
बना ली हमने यहाँ दूरियाँ
हुक्म है यहाँ किसीका
अपनों को स्पर्श न करना
सूनी-सूनी तन्हाईयों में आज
आओ दीवारों से कुछ बात करें
कैद हो गयी है ज़िन्दगी
अपने ही बनाये पिंजड़े में
सागर की लहरों को भी
मिलता नहीं कोई किनारा
रेगिस्तान के बंद कमरों में
आओ दीवारों से कुछ बात