जीत - ZorbaBooks

जीत

क्या हुआ थक गया?

तो एक कलम और चला

और अपनी कहानी को और बहतरीन करले तू

जो दिखते आसमां में तारे

खीच उन्हें

और जिंदगी में शामिल करले तू

कानों में जो ठहाके गुंझे हैं तेरे

आग लगाकर उन्हें ईंधन सा करले तू

जितने मुँह पीछे से चलते हैं

एक दहाड़ लगाकर

उन्हें हमेशा के लिए पीछे करदे तू

गुमसुन न बैठ यूँ तू थक हार कर

पंख खोलकर ऊँची उडान भरले तू

मन को यूँ खट्टा न कर हार कर

जीत के लड्डू के लिए खुदको त्यार करले तू

हार न मानना बस इस बार बस और एक कलम घिसले तू

बस और एक कलम घिसले तू

बस और एक कलम घिसले तू..

Comments

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  1. Beautifully penned

  2. Love the way your pen weaves

  3. Aarchi Verma says:

    Thank you Anchal
    Glad you liked it

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Aarchi Verma