घर का कलह - ZorbaBooks

घर का कलह

       :- घर का कलह :-
वक़्त की मार और घर मे कलह का बाजार इस कदर हो चला था । मुझे नींद नही आती रातो में जो कलह से प्यार हो चला था। उठा जागना एक सिलसिला था और दिल मे दर्द का समंदर आर-पार हो चला था । क्या करूँ बहोत मुफिलिशि थी ये मेरी दुनिया मेरे घर का भार अब मुझ पर सवार हो चला था। 
  वक़्त की मार और घर मे कलह का बाजार इस कदर हो चला था । बहोत रोता था उदास हो सोता था मुझे मेरे ऑफिस से ही समझो प्यार हो चला था । पढ़ने में मध्य था इस लिए किताबे भी मुझ से दरकिनार हो चला था । वक़्त की मार और घर मे कलह का बाजार इस कदर हो चला था । उठा जागना एक सिलसिला था और दिल मे दर्द का समंदर आर-पार हो चला था ।

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Abhimanyu kumar