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 तुमको तुम्हारी मुस्कान मुबारक।

 तुमको तुम्हारे अरमान मुबारक।

 हो तुम तोहफा ऊपर वाले का,

 तुमको ये सारा जहान मुबारक।

 बहुत कुछ कहती हैं आंखें,

 उन नजरों को ऐसी ज़ुबान मुबारक।

 लबों पर शायद गुल रहते हैं,

 उनको ये गुलिस्तान मुबारक।

 बच्चों से बोली बहुत ही भोली,

 तुमको हरकतें नादान मुबारक।

 स्वर शहद से रीसे हुए हैं,

 तुमको आवाज औ` तान मुबारक।

तुम आओ कभी “धनक” के घर,

तो कहूँ; तुमको मेरा मकान मुबारक।

-Amartya Dhanak Sfulingodgaar

 

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Amartya Dhanak Sfulingodgaar