बाजार ए इश्क़
बाज़ार –ए – इश्क़
अपनी निगाहों को कौनसा हतियार समझती है
और तू कौन है? जो खुदको परवरदिगार समझती है
गहने, जेवर, सूरत, हुस्न, जिस्म सारे नुस्खे पुराने है
ये पगली इश्क़ को एक बाजार समझती है.
कोई इसे कह दो की बंद करें खेल हुस्न का,
ये लड़की हर रात को शनिवार समझती है.
जिन परिंदो को तूने अपने बिस्तर मे कैद किया है
मेरी जान सच बता, तू मतलब-ए -प्यार समझती है?
ये शेर सुन के संभल जाएगी तू यही दुआ है
वरना मेरी हर बात को हमेशा तकरार समझती है.
—ARK