हम भी अब घर से निकल नहीं करते
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राहों में अब वो मिला नहीं करते
हम भी अब घर से निकला नहीं करते
जिन्हें बोया था बड़े सिद्दतों से
बागों में अब वो फूल खिला नहीं करते ।
दुश्मनों से भी अब हम गिला नहीं करते
ज़ख्म दिल का अब सिला नहीं करते
रक़ीब कहते हैं क़यामत है हर अदा तुम्हारी
पर उन बातों से अब हम जला नहीं करते ॥
-आशु चौधरी ''आशुतोष