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अंत

मैंने एक कहानी का खाका दिमाग में बनाकर लैपटॉप खोला ही था तो मोबाइल की घन्टी बजी, देखा कोमल का फ़ोन था

कोमल मेरी ही क्लास में पढ़ती थी । कोमल पढ़ने में होशियार थी। रमेश या कोमल में से एक फर्स्ट, दूसरा सेकंड आता था और मैं थर्ड।

हाई  स्कूल का नतीजा वैसा ही था रमेश फर्स्ट, कोमल सेकंड और मैं थर्ड । सब अलग हो गए। कांटैक्ट नहीं  रहा । कुछ समय बाद पता लगा रमेश आरमी में कैपटिनि हो गया है, कोमल डॉक्टर और दोनों ने शादी कर ली है।

कोमल से मेरा कांटैक्ट करीब साठ साल बाद फेसबुक पर हुआ, थैंक्स टु सोशल मीडिया । हम ने फोन नंबर एक दुसरे को दिए । तीन साल बाद रमेश का देहांत हो गया । मैंने कांडोलंस मेसेज भेजा ।

कोमल के दो बेटे हैं छोटा अमरीका में रहता है बड़ा मुम्बई में। रमेश के इंतकाल के बाद कोमल अमरीका चली गयी। एक साल बाद अपने घर दिल्ली आई। मुझे लंच पर इनवाईट किया। स्कूल छोड़ने के बाद पहिली बार हमारी मुलाकात हुई। 

मैं कोमल को बता चुका था मेरी वाइफ भी दुनिया छोड़ चुकी थी और मेरी  दोनों बेटियाँ शादी शुदा हैं। हमने तीन घंटे में इतनी बातें की होंगी जो हमने एक ही किलास में पढ़ने के बावजूद छह साल में भी नहीं की होंगी । दोनों को अच्छा लगा । उस के बाद हमारी फोन पर गुफ्तगू होती रहती है।

कोमल आए दिन फोन करती है। कोमल का नाम मोबाइल पर देखते ही मैं उठा सोफे पर बैठ गया क्यूंकि पता था कोमल का फोन मतलब आधा पौना घंटा।

कोमल ने बात करना शुरू ही किया तो मेरी नज़र सामने वाली साइड टेबल के पास से बाहर आते चूहे पर पड़ी

मैं बातें कोमल से कर रहा था मगर मेरा ध्यान चूहे पर था। चूहा चल  नहीं पा रहा था, मुझे लगा वो मरने को है। मेरे देखते देखते चूहा जहां से आया था वहीं चला गया

कोमल कुछ बता रही थी, मैं हां हूं कर रहा था क्यूंकि मेरा ध्यान चूहे पर था। चूहा जैसे ही अंदर गया, मैं उठ कर चूहे को देखने आया । चूहा जिंदगी और मौत की लड़ाई लड़ रहा था। चूहा गिरता, उठता दो कदम चलता फिर गिर जाता।

मुझे डर सता रहा था कि चूहा कहीं ऐसी जगह जा कर न मर  जाए जो उसे ढूंढना मुकिश्ल हो। पता तब लगे जब कहीं से बदबू आने लगे। यह सोच मैंने कोमल से गुफतगू ख़तम की और ऐसा कुछ किया जो चूहा जियादा दूर न जा सके।  रात बहुत हो चुकी थी । चूहे ने अभी हार नहीं मानी थी। मैं बिस्तर पर आ कर लेट गया ।

चूहे को जिंदगी और  मौत की लड़ाई लड़ते देख कितने ही चेहरे मेरी आँखों के  सामने आ गए मरते, चिलाते, आँखें फटी, मुंह खुले, कानो से खून बहता हुआ पहिचान ने से दूर अर्थी पर लेटे हुए। ऐसे चेहरे भी सामने आ गए जिन की तकलीफ उनके संबंधी भी देख नहीं पा रहे थे और उनकी ज़िंदगी ख़तम करने के लिए खुदा से इल्तजा कर रहे थे ।

मेरे सामने आ गया मेरी विमला का चहिरा बिलकुलु शांत आखें बंद, मुंह भी बंद कोइ हलचल नहीं, जैसे गहिरी नीद में हो, ज़िन्दह । सोचा कुछ विमला जैसे खुशनसीब भी होते हैं जिनको शरीर छोड़ते समय कोई तकलीफ नहीं होती ।

सुबुह जैसे ही नींद खुली मैं सीधा चूहे के पास गया, देखा चूहे को कीड़े खा रहे थे ।  चूहे की टांगें ऊपर थीं मुंह खुला हुआ जैसे बचाओ बचाओ चिलाते उसकी जान निकली हो

मन में विचार आया पता नहीं मेरा अंत कैसा होगा 

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Bansi Dhameja