सफर सर्द रात का - ZorbaBooks

सफर सर्द रात का

ढलते सूरज के पीछे की साजिश
उगते चाँद का वो गुनाह
अँधेरी रात में सुनसान गलियों में चलता एक मुसाफिर
रास्ते में घर की खिड़की में जलते दीये का साया
,
 कुछ कह रहा था

कोहरे की चादर में लिपटे हुए पेड़ पर बैठे पंछियों की कपकपाटी हुई सर्द आवाज़
ज़ेहन में खुले आसमान के नीचे बच्चों की वो खिलोनो की ज़िद
सर्द हवा के झोंके चीरता हुआ मुसाफिर
उस मुसाफिर के चेहरे की लकीरों के सामने सब बेबस
ठण्ड में कंपकंपाते होंठो पर बुड्ढे के टपरी की गरम चाय
फिर एक बार उनका इंतज़ार कर लौट आया ये मुसाफ़िर

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Hanu yadav