Radha Krishna
मिसरी रूह हुस्न-ए-रोमानी है,पर्दे में मिलने आती है,
ये चांद भी उससे रोशनी पाता जब वो मुस्काती है,
सदियों का रतजगा था मैं,वो मुझे अब रोज सुलाती है,
ऐसा हूं,वैसा हूं या कैसा हूं,वो मुझे आयना दिखाती है,
मुझसे दूर रहना है उसको पर रोज़ मिलने आ जाती है,
मेरा नहीं किसी और का होना है उसे,
ये बात मुझसे ज़्यादा उसको रुलाती है,
ज़हर है कार्तिक सब बोलते हैं उसको,मुझे वो अपना अमृत बताती है,
मैं हूं शायर वो मेरी रूबाइयां गाती है,
मैं सपना हूं,वो जिसे हक़ीक़त बनाना चाहती है,
कार्तिक को कृष्ण,वो खुदको राधा बताती है।।