उड़कर ये मेहमान आया (कोरोना विशेषांक)
उड़कर ये मेहमान आया, हैरान-सा क्यों है,
कोरोना है नाम इसका, परेशान-सा क्यों है।
मौत खड़ी देहली पर, आखेट की तलाश में,
अनजान साया तुझ पर, मेहरबान-सा क्यों है।
धरती से अम्बर तक, बस तेरी ही हुकूमत हो,
अपने ही आशियाने में, तू मेहमान-सा क्यों है।
वक्त के आईने में, खुद को कभी संवारा नहीं,
साँसों में घुटन-सी है, फिर पशेमान-सा क्यों है।
इस दर्द की दवा नहीं, न कोई निगाहबां यहाँ,
चहकता हुआ पंछी, आज बेजुबान-सा क्यों है।
कुदरत का फरमान यहां, नज़रअंदाज़ हुआ है,
'एकान्त' में सोचना यार, नाफरमान-सा क्यों है।