प्रकृति के साथ मानव का उदण्डतापूर्ण व्यवहार" और मौसम में अचानक ही कई प्रतिकूल बदलाव होना....और मानव पर प्रभाव..... - ZorbaBooks

प्रकृति के साथ मानव का उदण्डतापूर्ण व्यवहार” और मौसम में अचानक ही कई प्रतिकूल बदलाव होना….और मानव पर प्रभाव…..

आज “चारों तरफ क्लाइमेट चेंज” पर जोरों से चर्चा की जाती है। अनेकों अखबार’ इलेक्ट्रोनिक मीडिया और शोध पत्र के पन्ने इसी विषय से भरा रहता है। अब’ चर्चा होती है, तो यथार्थ भी इससे कुछ भिन्न नहीं है। आज’ विशाल-विशाल ग्लेशियर टूट- टूट कर धरासाई हो रहे है, क्योंकि” पृथ्वी ग्लोबल वर्मिंग का शिकार हो चुकी है। मौसम चक्र में असामान्य तरह से बदलाव हो रहा है, जो कि” विनाशकारी ही कहा जा सकता है। अभी हाल-फिलहाल गर्मी के मौसम में यूरोप महा देश में गर्मी का प्रचंड प्रकोप देखा गया, तो आज-कल में अमेरिका महा देश कोल्ड वार” से बुरी तरह त्रस्त हो रहा है।

यह जितना भी बदलाव हो रहा है, वह अचानक ही नहीं हुआ है। जबकि” जो मानव प्रकृति के इस क्रूर प्रहार को झेल रहा है, उसके ही करनी का प्रतिफल है यह। आज-कल जहां-तहां अम्ल वर्षा हो रहा है और कहीं तो बारिश बिल्कुल भी नहीं हो रहा। मतलब’ स्पष्ट है कि” प्रकृति मानव के द्वारा किए जा रहे अतिशय छेड़छाड़ से क्रुद्ध हो चुकी है और मानव जीवन को सहयोग देने बाली प्रकृति’ मानव सभ्यता के सहयोग के प्रति उदासीन होती जा रही है।

ऐसे अचानक बदलते हुए मौसम से अब भी मानव सभ्यता ने सीख नहीं लिया है और उत्तरोत्तर ही प्रकृति के साथ छेड़छाड़ में वृद्धि करता ही जा रहा है। कहने को तो ज्ञान -विज्ञान मानव जीवन के सहायक सिद्ध होने का दावा करता है। विज्ञानियों द्वारा नित-नए खोज किए जाते है और कहना भी गलत नहीं होगा कि” इन खोजो ने मानव जीवन को सुगम बनाया है। किन्तु” इन सुगमता को पाने के लिए जीव जगत को भारी कीमत चुकाना पड़ा है और अभी भी चुकाया जा रहा है। वैसे तो’ इन खोजो का सीमित उपयोग करके मानव के लिए अनुकूल होना था। परन्तु….धन-ऐश्वर्य की लालच में इन खोजो का विपरीत तरीके से उपयोग किया गया।

एक वर्ग विशेष, एक क्षेत्र विशेष अथवा राष्ट्र विशेष द्वारा इन खोजो का व्यापक स्तर पर दोहन किया गया। तरह-तरह के केमिकल युक्त पदार्थों को प्रकृति के हृदय पर अनियंत्रित तरीके से छोड़ा जाने लगा, जो अब भी जारी ही है और इसमें वृद्धि ही हुई है। इन खोजो को कहां तो नियंत्रित करके रखे जाने की जरूरत थी और कहां तो’ भौतिक वादी मानवों ने इसे अपना हित साधने का यंत्र बना लिया। अब अगर इस तरह से हम प्रकृति के साथ दुर्व्यवहार करेंगे, तो वह भी तो प्रतिकूल उत्तर देने के लिए तैयार ही होगी।

उसपर जख्म पर नमक लगाने के जैसी कई खोजे भी की गई। जो अतिशय ही विनाशकारी कहा जा सकता है। हां, बात करता हूं नाभिकिय संयंत्रों एवं घातक अस्त्रों की। जैसे’ प्रकृति के साथ दुर्व्यवहार में कमी रह गई हो’ कई राष्ट्रों द्वारा घातक अस्त्र-शस्त्र के निर्माण को प्रोत्साहन दिया जाने लगा और आज का अर्थ लोभी मानव इसकी चिन्ता किए बगैर कि” परिणाम क्या होगा? इसमें जुट पड़ा। साथ ही एअर कंडिसन सिस्टम, हवाई यात्रा के संयंत्र और अंतरिक्ष में भेजे जाने बाले संयंत्र। गिनती ही नहीं है कि” कितने तरीकों से मानव प्रकृति पर हमला कर रहा है, उसे जख्म पर जख्म दे रहा है।

स्वाभाविक ही है, जब कोई आप पर वार करेगा, तो आप प्रतिकार करेंगे, अपने बचाव की कोशिश करेंगे। यही प्रकृति भी कर रही है। वह अपने आप में अचानक ही कई बदलाव कर रही है। एक तरह से कहा जा सकता है कि” वह अपने अगणित जख्मों के उपचार के प्रयास में जुटी हुई है। परन्तु….इसके हलचल से मानव को प्रतिकूल परिणाम सहना पड़ रहा है और अब भी मानव सभ्यता नहीं चेती, नहीं संभली’ तो फिर प्रचंड विनाश को भी सहना पड़ेगा। उस परिस्थिति से दो-चार होना पड़ेगा, जब वह अपनी जान भी नहीं बचा पाएगा।

कहने का तात्पर्य यही है कि” मानव की गतिविधियाँ ही एक दिन मानव सभ्यता को ले डुबेगी। वैसे भी” कहा जाता है कि” विकास ही विनाश की जननी है। अब इसका मतलब यह भी नहीं है कि” प्रकृति में चल रहे हलचल से मानव अंजान है। हां, मानव इसके लिए मीटिंग तो करता है, बड़े- बड़े होर्डिंग लगाए जाते है और विश्व के मंच पर विश्व की संस्थाओं द्वारा इस मुद्दे को जोर-शोर से उठाया जाता है। परन्तु….परिणाम ढाक के तीन पात” ही आता है। क्योंकि” भौतिक गणित का स्वाद चख चुका मानव अपने आचरण में बदलाव ही नहीं करना चाहता। ऐसे में समृद्ध शाली समूहों द्वारा कमजोर समूहों पर दबाव बनाया जाता है कि” तुम औधौगिक’ गतिविधि को नियंत्रित करो। हम तो वही करेंगे, जो हमें फायदा पहुंचाने बाला होगा।

ऐसे में कोई योजना धरातल पर नहीं आ पाती और क्लाइमेट चेंज” का विषय और भी उलझता चला जाता है। यहां तक कि” अब मानव के शरीर पर भी इसका असर दिखने लगा है। बच्चों में भी अब हार्मोंस के स्राव देखे जा रहे है और समय से पहले ही परिपक्वता देखी जा रही है। क्लाइमेट चेंज” के दुष्परिणाम के कारण ही मानव में कई प्रकार के बदलाव होने लगे है। यह वह परिबल है, जो अनेक तरीकों से मानव को प्रभावित कर रहा है, मानो’ चेतावनी दे रहा हो कि” अभी भी समय है, संभल जाओ, अन्यथा अपने विनाश के लिए तैयार रहो।

क्रमश:-

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मदन मोहन'मैत्रेय'