अचेतन मन में जीवन के प्रति बोध…….
अचेतन मन में जीवन के प्रति बोध।
पथ पर कंकर को चुनकर दूर करुं अवरोध।
हृदय सहज ही’ द्वंद्व का करता रहा विरोध।
निर्मलता का पालन करने को करता है अनुरोध।
अचेतन मन है विवेक कुंज’ जीवन के प्रति सभान।
वैभव” का पथ पर मोल नहीं, मिथ्या है अभिमान।।
मन ने जो आगे चल गति अश्व का पकड़ा।
मोह लालसा की’ अंतर में द्वंद्व का मचा था झगड़ा।
अभिलाषाएँ भी गति पकड़ने को करती थी रगड़ा।
जीवन पथ पर चलते-चलते लोभ उठा था तगड़ा।
अचेतन मन ने ढृढ भाव से, ढूँढा इनका समाधान।
वैभव” का पथ पर मोल नहीं, मिथ्या है अभिमान।।
समय चक्र की चाल’ चलता यह दोनों ही ओर।
व्यर्थ नहीं अहंकार का, मन में बनने देना ठौर।
किंचित दुविधाएँ प्रज्वलित होगी, तब कर लेना गौर।
जीवन पथ से विलग कहीं लगा न बैठना दौड़।
अचेतन मन पल-पल समझाए, ले लेना संज्ञान।
वैभव” का पथ पर मोल नहीं, मिथ्या है अभिमान।।
थोड़ा तो देखो दर्पण, बतलाए परछाईं ज्यों की त्यों।
तनिक फेर नहीं देखोगे, भाव-भंगिमा वही मिलेगा।
तुम मुरझाए जो मन से, सच’ छवि तेरा नहीं खिलेगा।
जो फाड़ो मृदु दुग्ध, फिर चाहो’ सिले नहीं सिलेगा।
अचेतन मन देता टकोर है, पथ पर नहीं रहो अंजान।
वैभव” का पथ पर मोल नहीं, मिथ्या है अभिमान।।
अचेतन मन ढृढ भाव से, सभान बना रहता है।
दु:सह भाव’ ग्रसित होने पर, समाधान बना रहता है।
ग्रहीत जो कर ले तीव्र वेदना, त्राण बना रहता है।
जीवन से पथ पर स्नेह साधने को संज्ञान बना रहता है।
अचेतन मन सिखलाता है, खुद का नहीं करो बखान।
वैभव” का पथ पर मोल नहीं, मिथ्या है अभिमान।।