अनल के जैसे धूं-धूं दहके है…….
अनल के जैसे धूं-धूं दहके है’
हृदय में जो द्वंद्व वेग से भड़के’
आकांक्षा ले रुप विशाल वट वृक्ष सा’
विवेक’ हृदय का रहे डर-डर के’
भ्रम का बोध नहीं होता, अंधियारे में’
चाहो प्रकाश, आना होगा उजियारे में।।
अनल ही तो है, कुत्सित विचार मन का’
जो स्वमान का हनन करेगा, प्रति पल’
चरितार्थ भी देख सकोगे, इसके होते प्रतिफल’
तुम समझ सकोगे जब तक, हो जाएगा छल’
भ्रम का बोध नहीं होता’ जो लाभ अधिक हो’
पर चेतना-वंत रहो’ पथ पर एक पथिक हो।।
अनल सा तीव्र है, क्रोध की तीव्र अति लपटें’
तुम जब भी शब्दों के घातक वार करोगे’
विवेक हृदय का’ तुम इसका ही संहार करोगे’
यह भी तो है, खुद पर खुद से ही प्रहार करोगे’
भ्रम का बोध नहीं होता, जो मन कुंठित हो जाए’
निज स्वभाव के वशीभूत अपने आग लगाए।।
अनल सा तीव्र है, अहंकार हृदय में अर्जित’
तुमको वही पाठ पढाए, जो होता है वर्जित’
निज मन का करने को’ होना होता है गर्वित’
चिन्ताएँ फिर हृदय वेधती, जो खुद का होता सृजित’
भ्रम का बोध नहीं होता, जो लोभ की फेरो माला’
पथ पर जो उलझ गए तो, पीना होता विष सारा।।
अनल सा तीव्र है, जो हो हृदय कामना कुंठित’
पथ पर छूटोगे पीछे, परिणाम दु: सह पाओगे’
गणना का बुनोगे जाल, अधिक पछताओगे’
अंधियारा जो होगा, कैसे अपनी छवि बनाओगे?
भ्रम का बोध नहीं होता, अतिरिक्त मोह के पाले’
पथिक पछताओगे, पैरो में जो पड़ जाएंगे छाले।।