मधुशाला - ZorbaBooks

मधुशाला

मधुशाला नाम इस कहानी का रखने का उद्देश्य हैं। यह वस्तुतः प्रेम कहानी हैं, जो मधुशाला से शुरु होती हैं। लेकिन अंजाम तक पहुंचने से पहले ही प्रेम टूट कर बिखर जाता हैं। एक तरह से अगर कहा जाए कि” यह लव स्टोरी होते हुए भी अपने-आप में सस्पेंस और थ्रील छिपाए हुए हैं, जो आधुनिकता के इस दौर में भी सामाजिक और पारिवारिक मूल्यों की अनुभूति करा दे।

मदन मोहन” मैत्रेय

भूमिका-

इस कहानी मधुशाला” को लिखने का मात्र उद्देश्य हैं कि” आज के दौर में, जब कहानियों की भरमार हो गई हैं और पाठक के मन में उबाऊ पन की भावना ने ग्रसित कर लिया हैं, ऐसे में उन्हें कुछ अलग रोचकता से परिपूर्ण सामग्री उपलब्ध करवाए। जिससे पाठकों को अलग अनुभूति हो और उनके जिज्ञासु मन को संतुष्टि मिले, उन्हें तृप्ति का एहसास हो।

एक साफ-सुथरी सामाजिक कहानी मधुशाला” जो प्रेम के इर्दगिर्द ही बुनी गई हैं और परिस्थिति ऐसा ही बनता गया हैं कि” अपने-आप ही इस कहानी में सस्पेंस क्रिएट होता चला गया हैं। रोनित’ जो कि” सभ्य और समृद्ध परिवार का लड़का हैं। उसकी अपनी मित्र मंडली हैं और वह इन मित्र मंडली के साथ खुश हैं। वह और उसका मित्र मंडली मधुशाला नाम के वियर-बार में रोज ही जाते हैं और इसी क्रम में इस कहानी का जन्म होता हैं, जिसके साथ ही सस्पेंस क्रिएट होने लगता हैं।

मैंने भरसक प्रयास किया हैं कि” इस दौर में, जब कहानियों की भरमार हैं, पाठक को कुछ अलग अनुभूति करवाई जाए। उनके सामने ऐसी सामग्री परोसी जाए, जो उनके मन:मस्तिष्क पर अंकित हो जाए। उन्हें पुस्तक के साथ बिताए गए पल सार्थक लगे। उन्होंने जो अपना कीमती समय पुस्तक को दिया हैं, वह व्यर्थ ही जाया नहीं चला जाए।

धन्यवाद

मदन मोहन” मैत्रेय

कहते है न, प्रेम का कोई प्रतीकात्मक स्वरूप नहीं होता।

यह अति सूक्ष्म है,तो वृहत विशाल भी। यह आकार लेता हुआ स्थूल स्वरूप नहीं है, लेकिन गतिवान है। यह तीव्र गति से विचरण करता है, अनंत आकाश की ओर। शायद यही प्रेम का स्वरूप नहीं होते हुए भी स्वरूप सा है। तभी तो दुनिया का हरेक इंसान इसके पीछे भागता है, इसे समझ जाना चाहता है। दुनिया में अनेको क्षेत्र है, जो देश की सीमाओं से बंधा हुआ है। लेकिन प्रेम तो वही का वही है, न इसके रंग में अंतर है और न ही स्वभाव में। हरेक देश की सीमाएँ बदलते ही भाषा बदल जाती है, संस्कृति बदल जाते है, लेकिन नहीं बदलता है तो वो है प्रेम। इसकी परिभाषाएँ, इसकी भाव-भंगिमाएँ नहीं बदलती, मानो यह देशों के सीमाओं का बंधन मानती ही नहीं हो। तभी तो अखिल विश्व में, जड़ और चेतन में सामान्य रूप से इसका साम्राज्य फैला हुआ है।

रोनित भी तो प्रेम पास में कभी जकड़ा जा चुका था, लेकिन आज उसके पास कहने को ज्यादा कुछ नहीं था। करीब बाईस शाल का रोनित स्वभाव से काफी मिलन सार था। किसी के भी सुख और दुख में शामिल हो जाना, किसी के साथ भी भेदभाव नहीं करना। आकर्षक व्यक्तित्व का स्वामी रोनित हंसमुख स्वभाव का था। लेकिन हंसते चेहरे के पीछे एक अजीब सा दर्द छिपा था, जिसके विष बुझे कांटे उसे कुरेद-कुरेद कर खाए जा रहे थे। इस वक्त वो हाजी अली गली में चक्कर लगा रहा था। अब ऐसा भी सोचना कि वो नक्कारा था, बिल्कुल गलत था। उसके पिताजी शहर के नामी बिजनेस मैन थे। उनकी खुद की चार शो रूम चलती थी। लेकिन रोनित शाम होते ही शो रूम से निकल कर इन गलियों में आ जाता था। कि शायद उसका कोई जिगरी दोस्त मिल जाए और वे दोनों मधुशाला में जाकर जाम से जाम टकरा सके।

उसकी खोजी नजर चारों तरफ ढूंढ रही थी कि कोई तो मिल जाए, जिसके साथ वह बैठ कर अपनी शाम रंगीन कर सके। उसकी कार उस गली से बाहर सड़क किनारे खड़ी थी और वो अपने किसी साथी को ढूंढ रहा था। अमूमन जैसा होता है, शाम होते ही उस गली में आने-जाने बाले की भीड़ बढ जाती है, लेकिन उसे इस सबसे कोई मतलब नहीं था, उसे तो बस अपने पुराने साथियों का इंतजार था। वैसे तो शहर में साथ बैठ कर जाम से जाम टकराने बालों की कमी न थी। परन्तु वो हर किसी के साथ बैठ तो नहीं सकता था। समय रफ्ता- रफ्ता आगे की ओर बढ रहा था,तभी उसके बिल्लौरी आँखों में चमक उभरी।

कारण उसका दोस्त राजन आता दिखा, वैसे तो उसके बहुत से दोस्त थे, लेकिन जिस तरह की कैमेस्ट्री उसकी राजन के साथ जमती थी औरो के साथ तो बिल्कुल भी नहीं जमती थी। उसे याद है कि जब वो अठारह शाल का था, काँलेज में उसका पहला दिन था। वो बौखलाया हुआ था, डरा हुआ था, ऐसे में राजन ने उसका हिम्मत बढाया था। रोनित सोच ही रहा था, तभी राजन उसके करीब आया और उसके आँखों में झांकता हुआ मुस्करा कर बोला।

क्या यार रोनित! अमा यार, कहां खोया हुआ है या फिर मुझे देख कर अंजान बनने की कोशिश कर रहा है। राजन ने बोलने के साथ ही उसके पीठ पर धौल जमाई। जिससे उसकी तंद्रा टूटी और वो अकबका कर बोला।

नहीं यार राजन! ऐसी बात बिल्कुल भी नहीं है। तुम्हें देखा तो पुराने दिनों की यादें ताजा हो गई । वैसे तू मिल ही गया है तो चल मधुशाला, वहां चल कर दो-दो जाम छलकाते है और साथ ही ढेरों बातें करेंगे।

रोनित की बातें सुनकर राजन मुस्कराया, फिर उसके आँखों में देखते हुए फिर से एक धौल जमा कर बोला। वही मधुशाला न, जो अपन दोस्तों के बीच काफी फेमस थी। राजन की बातें सुन कर रोनित धीरे से मुस्कराया, फिर उसने राजन से चलने का इशारा किया।

फिर वे दोनों चलते हुए गली से बाहर आए, इस बीच दोनों में इधर-उधर की बातें होती रही। बातों-बातों में ही कब वे कार के पास पहुंच गए, उन्हें पता ही नहीं चला। नई चमचमाती इनोवा कार, जिसे देख कर राजन मुस्कराया। वो जानता था कि रोनित को महंगे गाड़ियों का शौक है। जबकि रोनित ने ड्राइविंग साइड का गेट खोला और कार में बैठ गया,फिर हार्न बजाया। जिससे राजन की तंद्रा टूटी और वो मुस्कराता हुआ कार में बैठ गया। उसके बैठते ही रोनित ने कार श्टार्ट की और सड़क पर दौड़ा दिया।

कार श्टार्ट होते ही सड़क पर फिसलती चली गई। इस बीच दोनों के दरम्यान अलक-मलक की बातें होती रही। दोनों ही एक अरसे बाद मिले थे,ऐसे में स्वाभाविक ही था कि वे एक दूसरे के बारे में जानने को उत्सुक थे। फिर गहरी मित्रता, सबसे पहले राजन ने ही उसे बताया कि वो काँलेज से निकला,तो उसने आर्मी ज्वाइन कर ली,उसके बाद स्नेहा से शादी और ठहराव। अब वो बहुत खुश है अपनी जिन्दगी से,बोलने के बाद राजन ने रोनित की तरफ देखा,मानो पुछ रहा हो कि तुमने क्या किया।

रोनित अपनी जबान खोलने ही बाला था कि तभी गाड़ी के ब्रेक लगे। राजन ने चौंक कर शीशा से बाहर देखा,तो उसकी कार मधुशाला वियर वार के सामने खड़ी थी। बिल्कुल वैसा का वैसा ही अडिग खड़ा था मधुशाला वियर-वार, कुछ भी तो नहीं बदला था। आज भी उसकी भव्यता बरकरार थी। शाम होते ही दुल्हन की तरह सज-संवर कर जगमगा रही थी। हां इतना तबदीली जरूर हुआ था कि जब वो दो शाल पहले गया था,तो मधुशाला अकेली थी,लेकिन आज उसके चारों तरफ बहुमंजिला इमारत बन चुके थे।

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रोनित और राजन कार से बाहर निकले और बाहर आकर उन्होंने शरीर को सीधा किया। तभी उनके करीब एक सिक्युरिटी गार्ड आया, शायद वो पार्किंग का काम देखता था। उसको नजदीक आते ही रोनित ने कार की चाबी उसे थमा दी और एक नजर उठा कर मधुशाला की ओर देखा, मानों हसरत भरी आँखों से उसे समझ जाना चाहता हो।

काँलेज के दिनों में यह वियर वार उन दोस्तों के लिए खास हुआ करता था। खास कर के रोनित के लिये। उसे याद है कि जब वो पहली बार मधुशाला आया था, तो कुछ झिझक सी थी मन में। लेकिन दुल्हन सी सजी मधुशाला ने उसके मन की वो सारी झिझक दूर कर दी थी। यूं तो वो मदिरालय थी, जहां पर अमीर-गरीब के फर्क को नहीं समझा जाता था। जाम छलकने को तो सभी पैमाने से एक ही समान छलकते थे। लेकिन मधुशाला की खूबसूरती इस प्रकार की थी न कि युवा ज्यादा ही आकर्षित होते थे। शायद इस वियर वार के नाम में ही ऐसा जादू था, तभी तो इसके मालिकों ने इसका नाम चुन कर रखा था।

अमा यार! तू किस दुनिया में खो गया। राजन रोनित को झकझोर कर बोला। राजन के झकझोरने पर रोनित की तंद्रा टूटी, तो चौंक कर बोला।

नहीं यार! कुछ नहीं, बस बीते दिनों की बात याद आ गई थी। रोनित की बातें सुन कर राजन मुस्कराया, फिर धीरे से बोला।

तो क्या ख्यालों की ही दुनिया में खोया रहेगा, या फिर अंदर भी चलेगा।

क्यों नहीं-क्यों नहीं, अभी चलो अंदर। रोनित संभल कर बोला, फिर वे दोनों मधुशाला के गेट के अंदर प्रवेश कर गये।

अमूमन शाम के वक्त उस रोड पर आना-जाना न के बराबर होती थी। उस सड़क पर वे लोग ही ज्यादा नजर आते थे, जिन्हें मधुशाला से सरोकार होता था। फिर तो शाम ढल कर रात का शक्ल लेने लगी थी। रोनित और राजन ने जब हाँल में कदम रखा, तो वहां भीड़ के कारण काफी गर्दिश थी। वहां के हालात देख कर राजन का दिमाग चक्कर खाने लगा, लेकिन रोनित ने उसका हाथ पकड़ा और कोने की टेबुल की ओर बढा। जिसपर कि रिजर्व का बोर्ड रखा हुआ था। वे दोनों जब टेबुल के करीब पहुंचे, तब तक वेटर रघुवीर उनके पास पहुंच गया।

जबकि राजन का अंतरमन तो कहीं और खोया हुआ था। वो सोच रहा था कि यह वियर वार बिल्कुल भी नहीं बदला था। यह वैसे का वैसा ही था, नूतन बनकर पुरातनता समेटे हुए। वही तेज पाँप म्यूजिक की तेज धून, उस धून पर थिरकती वार बालाएं और तेज रोशनी से चकाचौंध हाँल। कहीं कोई बदलाव नहीं आया था, बल्कि यूं कहा जाए तो अधिक बढ गई थी। हां हाँल में तेज पाँप म्यूजिक बज रहा था, साथ ही वार बालाएं भद्दे डांस कर रही थी। या यूं मानों कि अपने कूल्हे बेढंगे तरीके से मटका रही थी। हां यह जरूर यहां बढ गया था कि वहां हाँल में छलकते जाम के साथ ही चरस का धुआँ भी फैलने लगा था, जो वहां के वातावरण को रहस्यमय बना रहा था।

राजन एवं रोनित ने कुर्सी संभाल ली, तब तक वेटर उनके करीब पहुंच चुका था। उसे अपने पास आया देख कर रोनित ने दो बोतल व्हिस्की और स्पेसल नमकीन की डिश का आँडर दिया। आँडर लेकर वेटर चला गया, तब रोनित राजन के आँखों में एकटक देखने लगा। उसे यूं एकटक देखता पाकर राजन हकबका गया। उसे समझ ही नहीं आ रहा था कि रोनित उसे इस प्रकार से क्यों देख रहा है। इतना तो वो जानता था कि रोनित ऐसे ही नहीं उसे देख रहा, जरूर कोई न कोई बात है। लेकिन क्या! इसी में राजन उलझ गया।

उसे उलझा हुआ देख कर मुस्कराया, फिर धीरे से बोला। तुम्हें याद है न राजन, पहली-पहली बार की हमारी दोस्ती। मैं घबड़ाया हुआ था और तुम मेरे पास आए थे। इसके बाद तुमने मेरी ओर दोस्ती का हाथ बढाया था और मैं ने तुम्हारा हाथ थाम लिया था। इसके बाद? बोलने के साथ ही रोनित मौन हो गया और इंतजार करने लगा राजन के उत्तर का। उसकी बातें सुन कर राजन मुस्कराया और रोनित के कंधे पर धौल जमा कर बोला।

याद है मुझे वो दिन! तुम बहुत ही घबड़ाये हुए थे और काँलेज में कोई भी तुमसे दोस्ती नहीं करना चाहता था। ऐसे में मैं ने रैगिंग से तुम्हें बचाया था और तुमने दोस्ती कर ली थी।

इतना ही या और कुछ भी? रोनित राजन के आँखों में देख कर मुस्कराता हुआ बोला। बदले में राजन उत्तेजित होकर बोला।

और-और फिर मैं ने तुमको उसी दिन मधुशाला वियर वार लेकर आया, फिर हम लोगो ने खुब मस्ती की थी। राजन के बोलते ही रोनित ने उसका हाथ थामा और मुस्करा कर बोला।

मुझे विश्वास था कि तुमको वे दिन जरूर याद होंगे। साथ ही मुझे यह भी मालूम है कि तुम से अच्छा पैग बनाने बाले बिरला ही होगा।

यह तो सही बात है, अपनी फ्रेंण्ड मंडली में मुझ से अच्छा पैग बनाने बाला कोई न था। राजन अपनी मूँछों पर ताव देकर बोला। उसकी बातें सुन कर रोनित चहक कर बोला।

अमा यार! तो फिर आज का जाम तू ही बनाएगा।

बोलने के बाद रोनित राजन के आँखों में देखने लगा। जबकि राजन उसकी ओर देख कर मुस्कराया मानो कि मौन सहमति दे रहा हो। तभी वेटर आँडर सर्व कर गया। आँडर सर्व होते ही राजन पैग बनाने में जूट गया, जबकि रोनित होंठों को गोल करके शिटी बजाने लगा। आज चेहरे से लग रहा था कि वो बहुत खुश था। उसने शिटी बजाते हुए हाँल में एक नजर डाली। चारों तरफ फैला हुआ चरस का गाढा धुआँ और हाँल में तीव्र नीली रोशनी। माहौल को मादक और रहस्यमय बना रहे थे। अचानक से उसके दिल में खयाल आया कि शराब कितनी बुरी चीज है कि जिसे अपना बना लेती है, वो फिर चाह कर भी किसी और का नहीं हो सकता।

उसकी नजर एक दो बार स्टेज की ओर भी गई, जहां पर वार बालाएं अल्लहड़ डांस कर रही थी। परन्तु उसका इसमें कोई दिलचस्पी नहीं था। तभी राजन ने उसे टोका, पैग तैयार हो चुकी थी और राजन उसे बताना चाहता था। बस फिर क्या था, रोनित चौंका और फिर सामान्य होकर उसने पैग उठा लिये।

फिर तो एक पैग-दो पैग और इसके बाद तो दोनों पैग पर पैग गले में उड़ेलते चले गए। इसके बाद तो असर होना ही था न, नशा दोनों को चढ चुकी थी। तब रोनित मुस्करा कर राजन की ओर बाईं आँख दबा कर बहकते हुए बोला।

अमा यार राजन! ए-एक बात ब-ब-बताओ कि लोग शराब क्यों पीते है? राजन उसकी बातें सुन कर एक पल को मौन हो गया, फिर संभल कर बोला।

नशा करने के लिए, और किस लिये। लेकिन राजन की बातों से शायद रोनित सहमत नहीं हुआ और इनकार में बहुत देर तक सिर हिलाता रहा। फिर बरी मेहनत से बोला।

गलत है दोस्त! ल-लोग श-श-शराब इसलिये पीते है कि उसे श-श-शराब के साथ यारी निभानी-निभानी। आगे का शब्द रोनित बोल न सका और बेसुध हो गया। उसे इस स्थिति में देखकर राजन का सारा नशा काफूर हो गया था।

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अनिरुद्ध बिला, अपने आप में भव्यता समेटे हुए। दक्षिणी दिल्ली में द्वारका के करीब पड़ता था। यह बंगला काफी क्षेत्रफल में फैला हुआ था, साथ ही विशाल भी था। आखिर हो भी क्यों नहीं, यह बंगला अरब पति बिजनेस मैन अनिरुद्ध सहाय का था। उनकी शहर में तूती बोलती थी, रुपये-पैसे और शोहरत से। शाम ढल चुकी थी और चारों तरफ अंधेरा घिर आया था।

वैसे तो यह इलाका पाँस कालोनी में आता था, यहां एक कतार से अमीरों के बंगले थे। लेकिन अनिरुद्ध बिला इन सबसे बढत रखता था। शाम के आठ बज चुके थे और गेट के चौकीदार चेंज हो चुके थे। बंगले के अंदर हाँल में अनिरुद्ध सहाय सोफे पर बैठे हुए थे और सेंटर टेबुल पर विदेशी शराब की बोतल रखी थी। साथ ही पैग तैयार हुआ रखा था, लेकिन लग रहा था कि उनका अभी पीने का इरादा नहीं हो।

अनिरुद्ध सहाय, बिजनेस टाइकून के नाम से पूरे दिल्ली में फेमस थे। दो-दो केमिकल फैक्टरी, चार बड़े-बड़े शो रूम। अरब पति अनिरुद्ध सहाय चेहरे से आकर्षक थे, बिल्लौरी आँखें, सुते हुए लंबे नाक। लंबी कद काठी और भरावदार शरीर। उनका व्यक्तित्व काफी आकर्षक था। गोरे रंग के चेहरे पर उदासी के बादल छाए हुए थे और चश्मे के पीछे उनकी आँखें आंसू छिपा पाने में असमर्थ हो रही थी।

कहने को उनके पास क्या नहीं था, दौलत का अंबार लगा था। नौकर-चाकर की पूरी फौज थी जो दिन-रात उनकी सेवा में तत्पर रहती थी। साथ निभाने को सुन्दर सुशील और धर्म परायण स्त्री थी। साथ ही दो बच्चे भी थे, लड़की आरुषी की उन्होंने शादी कर दी थी और लड़का रोनित। जो कि शादी के नाम से ही दूर-दूर भागता था। पचपन वर्ष के अनिरुद्ध सहाय को बस यही शूल की भांति चुभता था। कहां तो वे सपने पाल रहे थे कि उनके घर पोते-पोती की फौज होगी और कहां तो रोनित उनके इच्छाओं पर तुषारापात कर रहा था।

बस बात इतनी सी होती, तो वो शायद चिंतित नहीं होते। आजकल के युवाओं में शादी को लेकर सपने होते है, लेकिन वे जानते थे कि रोनित का मामला दूसरा है। वे समझ रहे थे कि कुछ तो है, जो रोनित के अंदर टूट रहा है। वो भले ही कितनी ही कोशिश कर ले खुश दिखने की, लेकिन वे तो उसके पिता थे। वे जानते थे कि कुछ तो है जो रोनित को अंदर से खाए जा रहा है। बस यही टीस उन्हें अंदर से उठती थी।

अनिरुद्ध सहाय ने एक नजर उठा कर हाँल में चारों तरफ देखा। भव्य और विशाल हाँल, जहां की साज-सज्जा विदेशी ढंग से की गई थी। साथ ही वहां विदेशी समान को करीने से सजा कर रखा गया था। उसपर हाँल में नीली रोशनी चारों ओर फैला हुआ था, जो वहां के सुन्दरता को और अधिक बढा रहा था। चारों ओर एक नजर डालने के बाद उन्होंने लंबी सांस ली और पैग उठा कर एक ही सांस में गटक गए। फिर गिलास टेबुल पर टिका कर लंबी सांस लेने लगे।

आज के हालात में उनको अपनी संपत्ति, अपना रुतबा और ये शान-ओ-शौकत काटने को दौड़ता था। उफ ये जिन्दगी! काश कि उनके पास उनका खुशहाल बेटा होता, भले शान-ओ-शौकत नहीं होती। वे अपने पैतृक गांव लौट जाते, नमक रोटी खाते, लेकिन खुशहाल जीवन जीते। आज उनको यह शहर नुकीले कील सा चुभने लगा था। वे जानते थे कि रोनित रात के दस बजते-बजते बेसुध हालात में लौटेगा। नहीं-नहीं उसे लौटना नहीं कहते, वो तो पूर्ण रूप से बेसुध होकर आएगा। लेकिन उसके साथ आने बाला दोस्त कौन होगा, यह तय नहीं। उसमें भी होश में रहा तो थोरा-बहुत खाएगा, नहीं तो भूखा ही सो जाएगा।

सोचते-सोचते उन्होंने दीवाल घड़ी की ओर नजर डाली, जो रात के सवा नौ बजने की घोषणा कर रहा था। समय देखते ही उनके दिल की धड़कन बढ गई। काश कि उनकी पत्नी यहां होती, तो उनका हौसला बढाती। लेकिन पुत्र के लिये मानता ले कर वो बद्री विशाल को चली गई थी। ऐसे में उनको परिस्थिति को संभालना दुष्कर सा प्रतीत हो रहा था। वे हालात से जैसे हारने लगे थे, टूट कर बिखरने लगे थे। वे इसी स्थिति में थे कि उनका नौकर राकेश हाँल में आया । वो अभी किचन से निकला था, वो रात का भोजन तैयार कर चुका था और अब वो अनिरुद्ध सहाय के लिये करारे-करारे क्रिस्पी पकौड़े तल कर लाया था।

उसने नास्ते की प्लेट सेंटर टेबुल पर रख कर उनके सामने खड़ा हो गया। उसे सामने देख कर अनिरुद्ध सहाय ने उसके आँखों में ऐसे देखा, मानो पुछना चाहते हो कि क्या है। राकेश बहुत ही समझदार था, साथ ही उसने इस परिवार के साथ अपनी आधी जिन्दगी गुजार दी थी। वो मालिकों के इशारे समझता था, इससे तुरंत ही तत्पर होकर बोला।

मालिक! मैं ने भोजन तैयार कर दिया है और आपके लिये नाश्ता लेकर आया हूं।

तो ठीक है, एक काम करो कि तुम लोग खाना खा लो। मुझे जब भूख लगेगी, तो खा लूंगा। अनिरुद्ध साहब ने धीरे से कहा और फिर अपना पैग बनाने में जुट गए। राकेश समझ चुका था कि मालिक अब बात नहीं करना चाहते, इसलिये वो वहां से चला गया।

जबकि अनिरुद्ध साहब ने अपना पैग तैयार किया और होंठों से लगा कर गटक गये। कड़वाहट से उनका मुंह कसैला हो गया, तो उन्होंने पकौड़े उठा कर मुंह में रखा। लेकिन उनका मुंह का स्वाद तो कहीं खो सा गया था। आजकल तो उन्हें अपना जीवन भार रूप लगने लगा था। वे आजकल समझ ही नहीं पा रहे थे कि जिन्दगी किस पटरी पर जा रही थी। वैसे तो वे लगभग शराब से दूर ही रहते थे, लेकिन जब से रोनित की जिन्दगी उलझी थी, वे भी उलझ कर रह गये थे।

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मधुशाला वियर वार, रात के नौ बज चुके थे। हाँल के अंदर काफी गहमा-गहमी थी, चारों तरफ मदहोशी और एक अजीब सा शोर। साथ में वार बालाओं का अल्लहड़ सा नृत्य, लगभग स्वप्न लोक सा लग रहा था। लेकिन राजन का नशा लगभग काफूर हो चुका था, उसे अंदाजा नहीं था कि रोनित इस तरह से होश खो देगा। वो तो समझता था कि रोनित पहले बाला ही होगा, लेकिन नहीं, वो तो बिल्कुल बदल चुका था। उसे लगने लगा था कि रोनित अंदर से काफी कमजोर हो चुका है।

राजन विकल हो उठा, उसे शुरू से ही रोनित से एक अलग प्रकार का लगाव था। राजन सोच ही रहा था कि तभी वेटर आ गया। राजन ने बील पेय करने के लिये बील मांगा, तो वेटर ने बतलाया कि रुपये तो अग्रिम रूप से जमा है। साथ ही वेटर ने बतलाया कि सर! रोनित साहब अकसर रातों को इसी हालत में होते है और कभी इनका दोस्त, तो कभी हम लोग इन्हें इनके घर पहुंचा देते है।

वेटर की बातें सुनकर राजन को झटका सा लगा। उसने आँखों से वेटर को जाने का इशारा किया और जब वेटर चला गया तो वो उठ कर खड़ा हुआ। उसने खुद को संभाला और फिर रोनित को उठाया और अपने पीठ पर लाद लिया। वैसे तो उसने भी अधिक पी ली थी, लेकिन वो खुद को संभाल चुका था। फिर वो रोनित को लादे-लादे हाँल से बाहर निकला। तब तक सिक्युरिटी गार्ड इनोवा कार को गेट तक ले आया था।

सिक्युरिटी गार्ड ने कार का गेट खोल कर रखा हुआ था, इसलिये राजन को ज्यादा तकलीफ नहीं हुई। उसने रोनित को पिछली शीट पर लिटाया और फिर कार का दरवाजा लगा कर ड्राइविंग साइड का दरवाजा खोला, ड्राइविंग शीट पर बैठा और कार श्टार्ट कर के सड़क पर दौड़ा दी। कार मधुशाला के गेट से निकलते ही रफ्तार पकड़ ली और फुल स्पीड से सड़क पर दौड़ने लगी। साथ ही उसी रफ्तार से राजन के दिमाग में हलचल दौड़ने लगा।

कहां तो उसने सोचा था कि रोनित की जिन्दगी खुशहाल होगी। वो जब उससे मिलेगा, तो वे दोनों खुब मस्ती करेंगे। लेकिन उसे कहां पता था कि जब वो रोनित से मिलेगा तो, वो अंदर से खोखला होगा। उसे यह अंदाज हो चुका था कि वो जिस रोनित से मिला है, वो अलग है। वो उसका पहले बाला रोनित तो बिल्कुल भी नहीं था। पहले बाला रोनित तो हंसमुख, चंचल और शरारती था। उसे तो किसी बात की चिन्ता होती ही नहीं थी। फिर आखिरकार बीच के इन दिनों में आखिर रोनित के साथ क्या घटित हुआ कि वो इस तरह से बदल गया।

राजन के लिये यह गूढ़ प्रश्न था, वो समझना चाहता था इन प्रश्नों को। वैसे तो वो रोनित से दो वर्ष के लंबे अंतराल के बाद मिला था। बस इस अंतराल में आखिर ऐसा क्या घटित हुआ था कि रोनित अंदर से इस कदर टूट गया था। उसे इन प्रश्नों को ढूंढना था, साथ ही इसका हल भी निकालना था। क्योंकि उसे रोनित से खास लगाव था और वो उसे ऐसे इस हालात में नहीं छोड़ सकता था ।

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राजन मन ही मन सोचता हुआ ढृढ प्रतिज्ञ हो रहा था। लेकिन उसे यह समझ नहीं आ रहा था कि आगे क्या करना है। ऐसे में उसने मिरर में देखा, तो रोनित बेसुध पिछली शीट पर लेटा हुआ था, दिन-दुनिया से बेखबर हो कर। ऐसे में राजन के हृदय में हूक सी उठी, कितना मासूम लग रहा था रोनित। फिर आखिर ऐसी क्या बात हुई कि वो अंदर से इस कदर टूट गया।

राजन ने मन ही मन सोचा कि चाहे जो भी हो जाए, वो मालूम करके रहेगा कि रोनित के हृदय में किस बात का फांस चुभा हुआ है। फिर उससे जितना संभव हो सकेगा, वो उसे दूर करने की कोशिश करेगा। वो ऐसे तो उसे छोड़ नहीं सकता न, आखिर रोनित उसका जिगरी दोस्त है। राजन सोच ही रहा था कि उसके पांव ब्रेक पर जोर से पड़े। अचानक ब्रेक लगने से कार दूर तक घिसटती चली गई। जिसके कारण राजन को तीव्र झटका लगा। साथ ही इस अप्रत्याशित झटके के कारण रोनित भी कुनमुनाया, लेकिन फिर से बेसुध हो गया।

कार अनिरुद्ध बिला के गेट पर पहुंच चुकी थी, इसलिये ही तो उसने तीव्रता से ब्रेक मारे थे। वहां पहुंच कर राजन ने कलाईं घड़ी की ओर देखा, जो रात के सवा दस होने की उद्घोषणा कर रही थी ।राजन ने जबतक समय देखा, बिला का गेट खुल चुका था। बस फिर क्या था, राजन ने कार को अंदर ले लिया और पोर्च की ओर ले गया। कार जब तक पोर्च में पहुंची, बंगले का मेन गेट खुला और उसमें से अनिरुद्ध सहाय निकले।

राजन ने कार का इंजन बंद किया और कार से उतरा फिर दरवाजा लगा कर पीछे की ओर बढा। तब तक अनिरुद्ध साहब कार के करीब पहुंच चुके थे, उन्हें करीब आया देख कर राजन ने झुक कर उनके पांव छू लिये। जबकि उसे देख कर अनिरुद्ध साहब के आँखों में हर्ष और आश्चर्य के भाव उभरे। आज बहुत दिनों बाद उनके चेहरे पर मुस्कान की हल्की रेखा खिची थी। राजन की अनुभवी आँखें वहां के हालात देखते ही समझ गई कि यहां सबकुछ ठीक नहीं चल रहा।

लेकिन उसने अपने मन के भावों को दूर ढकेला और कार का दरवाजा खोलने लगा। उसके इस काम में अनिरुद्ध साहब मदद कर रहे थे, जबकि दरवाजा खुलते ही उसने रोनित को कंधे पर उठाया और बंगले की ओर बढ गया। अनिरुद्ध साहब भी उसके पीछे- पीछे चल पड़े । राजन को तो उस बंगले का पूरा भूगोल मालूम था, इसलिये वह रोनित को लेकर सीधा उसके बेडरूम की ओर बढा।

जबकि अनिरुद्ध साहब आगे की ओर लपके, उन्होंने रोनित के बेडरूम की लाइट जलाई, तब तक राजन ने भी अंदर प्रवेश कर लिया था। उसने रोनित को बेड पर लिटाया जबकि अनिरुद्ध साहब आगे बढ कर उसके जुते उतारने लगे। फिर दोनों ने रोनित को सही से लिटा कर उसके उपर लिहाफ डाल दिया। उसके बाद दोनों बाहर निकले और चलते हुए ड्राईंग हाँल में आ गए। इस बीच दोनों के दरमियान किसी प्रकार की बातचीत नहीं हुई। लेकिन हाँल में पहुंचते ही अनिरुद्ध साहब बोले।

राजन बेटा! बैठो। अनिरुद्ध साहब की बातें सुन कर राजन सामने बाले सोफे पर बैठ गया, तब अनिरुद्ध साहब भी बैठ गए।

लेकिन उनके बीच किसी प्रकार की बातचीत की शुरूआत नहीं हुई। दोनों ही बातें करने के लिये विषय ढूंढ रहे थे, लेकिन उन दोनों को ही कोई शब्द नहीं मिल पा रहा था, जिससे कि बातों का दौर शुरु कर सके। जिसके कारण वहां अजीब सी खामोशी पसर गई। जो कि अतिशय गंभीर रूप ले चुका था। इस समय वहां पर इतनी शांति पसरी हुई थी कि सुई भी गिरे तो जोरदार धमाका हो। परिस्थिति ऐसी हो चुकी थी कि दोनों असहज हो चुके थे। ऐसे में ज्यादा समय तक तो नहीं चल सकता था, किसी न किसी को तो बात की शुरूआत करनी ही थी। साथ ही राजन यह भी समझ चुका था कि अनिरुद्ध साहब ने भोजन नहीं किया है। इसलिये वो मुस्करा कर उनसे बोला।

अंकल! खाना बना हो, तो मंगवा लीजिए, मुझे तो जोरों की भूख लगी है। राजन के बोलने भर की देर थी, अनिरुद्ध साहब को बात करने का मौका मिल गया।

हां बेटा, जरूर-जरूर अभी मंगवाता हूं। वैसे तुम कब आए, आज ही मिले हो। उनकी बातें सुनकर राजन मुस्कराया, फिर बोला, आया तो आज ही था और आज ही रोनित से मिलने आया था, वैसे अभी इन बातों को छोर दीजिए और खाना मंगवाईए, अभी तो खाना खाते है। वैसे आप भी तो भूखे ही होंगे।

राजन की बातें सुन कर ऐसा लगा कि अनिरुद्ध साहब के अंदर का सारा लावा निकल कर बाहर आ जाएगा। लेकिन उन्होंने खुद को संभाला और बेल बजा दिया। उनके बेल बजाते ही हाँल में बहुत ही मधुर संगीत गूंज उठा। फिर तो पलक झपका नहीं कि राकेश हाजिर हो गया। उसके आते ही अनिरुद्ध साहब ने निर्देशित किया कि डिनर की तैयारी करें। राकेश के जाते ही राजन ने उनकी ओर देखा और गंभीर होकर बोला।

एक बात बताइए अंकल! रोनित को हुआ क्या है और कब से उसकी ऐसी हालत है। राजन की बातें सुनकर अनिरुद्ध साहब ने थोरी राहत महसूस की, इसके बाद वे उसकी ओर देख कर बोले।

राजन बेटा! उसे आखिर हुआ क्या है, इसकी जानकारी मुझे भी नहीं है। अगर मुझे वो अपना तकलीफ बतलाता, तो शायद मैं किसी प्रकार की कोशिश करता। लेकिन वो तो अंदर से घुटता रहता है। हां मैं यह बतला सकता हूं कि वो करीब-करीब दो साल से इसी स्थिति में है। या यूं कहो कि दिनों दिन वह अंदर से ज्यादा ही टूटता जा रहा है। बोलने के बाद अनिरुद्ध साहब ने मौन साध लिया, तब राजन गंभीर होकर बोला।

कोई बात नहीं अंकल! मैं कल सुबह आता हूं, फिर देखता हूं कि क्या किया जा सकता है। बोलने के साथ ही राजन ने अपना हाथ आगे बढा कर उनके हाथों पर रख दिया। अपनत्व एवं स्नेह का स्पर्श पाकर अनिरुद्ध साहब के आँखों से आंसू छलक गये।

तब तक राकेश ने डायनिंग टेबुल पर सारी तैयारी कर दी थी। बस फिर क्या था, दोनों उठे और डायनिंग टेबुल के पास की कुर्सी संभाल ली। इसके बाद तो वे दोनों भोजन करने में जुट गए। आज अनिरुद्ध साहब थोरा सा बेफिक्र से लग रहे थे, क्योंकि उन्हें विश्वास था कि राजन आ गया है, तो जरूर कोई न कोई हल निकलेगा। दोनों ने भोजन किया, इस दरमियान उन दोनों के बीच किसी प्रकार की बातचीत नहीं हुई।

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रात के एक बज चुके थे, आश-पास का इलाका बिल्कुल शांत था। रोहिणी सेक्टर नौ, राजन अभी-अभी अनिरुद्ध बिला से अपने बंगले पर आया था। अनिरुद्ध साहब ने उसे अपने कार के द्वारा भिजवा दिया था, राजन ने कार को वापस कर दिया था और अपने बंगले में प्रवेश कर गया था। वैसे तो उसका बंगला ज्यादा विशाल नहीं था, लेकिन इतना तो जरूर था कि उसके रईसी का सबूत दे रहा था। उसने ड्राईंग हाँल में कदम रखा और हाँल की सारी लाइट जला दी। आज वो खुद को काफी थका-थका सा महसूस कर रहा था, इसलिये उसने सोचा कि आज वो ड्राईंग हाल में ही सो जाएगा। इसलिये उसने दरवाजा लाँक किया एवं आगे बढ कर सोफे पर धम्म से बैठ गया। उफ! इतना शक्तिहीन तो वो पहले कभी नहीं हुआ था, चाहे परिस्थिति कैसी भी हो वो ऊर्जा से लबरेज रहता था। लेकिन रोनित से मिलने के बाद से जैसे तो लगता था कि धीरे-धीरे वो कमजोर होता जा रहा है।

ऐसा क्योंकर हो रहा है, उसे समझ ही नहीं आ रहा था, काश कि आज श्रेया उसके साथ होती, तो शायद बेहतर होता, वो उसे संबल प्रदान करती। श्रेया उसके पत्नी का नाम था, जो कि अपने मायके गई हुई थी। श्रेया सुन्दर और सुशील थी, तीखे नैन-नक्श ,लंबा चेहरा एवं भरावदार गोरा बदन। उसके सुन्दरता पर ही तो लटूँ होकर उसने शादी की थी। एवं श्रेया ने उसके विश्वास को प्राण दे दिए थे, वो धर्म परायण थी। एक अच्छी पत्नी में जितने सारे गुण चाहिए, वे सारे के सारे श्रेया के अंदर विद्यमान थे। ऐसे में स्वाभाविक ही था कि उसे श्रेया की कमी खल रही थी। आज अगर श्रेया उसके पास होती, तो शायद वो अपने आप को इतना कमजोर कभी महसूस नहीं करता। वो बहुत बुद्धिमान थी, जरूर कोई न कोई रास्ता निकाल ही देती।

उफ्! यह जिन्दगी, न जाने किस मोड़ पर कैसे सवाल बन कर उपस्थित हो जाए, इंसान को मालूम कहां होता। वो तो बस समय के हाथों की कठपुतली बना होता है, समय उसे जैसे नचाती है, नाचता है, बस नाचता जाता है। राजन ने अपने उपर हावी हो रहे विचारों को झटक कर फेंका और सोफे पर पसर कर सोने की कोशिश करने लगा। लेकिन उफ्! आज नींद भी आँखों से कोसो दूर थी। वो जिन विचारों को झटक कर फेंकना चाहता था, वही विचार बार-बार आकर उस पर हावी हो रहे थे। उसे समझ ही नहीं आ रहा था कि वह ऐसा कौन सा उपाय करें कि उसके आँखों में नींद आ जाए। लेकिन अफसोस! नींद तो नहीं आ रही थी, हां आंखों के सामने बार-बार रोनित का चेहरा जरूर आ रहा था। ऐसे में उसने करवट बदल कर भी प्रयास कर लिये, पर नींद को नहीं आनी थी, तो नहीं आई।

इस तरह से काफी समय बीत गया, अब उसे काफी की तलब महसूस हो रही थी। इसलिये वो उठा और किचन की ओर बढा और किचन में घुस कर अपने लिये काँफी तैयार करने लगा। लेकिन यहां भी विचारों के झंझावात उसका पीछा नहीं छोड़ रहे थे। वो काफी परेशान हो चुका था, खैर उसने जैसे-तैसे अपने लिये गरमा-गर्म काँफी बनाई और मग में डाल कर फिर से ड्राईंग हाँल में आ गया और सोफे पर बैठ कर धीरे-धीरे काँफी पीने लगा। साथ ही सोचने लगा कि आखिर बात क्या है, रोनित इतना मुरझा क्यों गया है। आखिर उसके साथ घटित क्या हुआ कि हर पल चहकने बाला रोनित शांत और गंभीर कैसे हो गया है।

राजन सोच रहा था, गहन मंथन कर रहा था इन सारी बातों पर, लेकिन उसे इसका कोई ताग नहीं मिल पा रहा था। इस बीच उसकी काँफी खतम हो चुकी थी और उसने कप सेंटर टेबुल पर टिका दिये थे। अब वो सोच रहा था कि श्रेया को काँल करें, नहीं-नहीं अभी काँल करना उचित नहीं होगा। वो अभी सो रही होगी, साथ ही बेबी बंप भी तो है, ऐसे में इस वक्त उसे परेशान करना उचित नहीं होगा। लेकिन नहीं, वो बात तो करके ही रहेगा, आखिर वो उसकी धर्म पत्नी है। साथ ही शाम से उसने एक बार भी तो श्रेया को फोन नहीं किया है, परेशान हो रही होगी। श्रेया ने शाम से ही उसे तीन-चार बार फोन काँल किया था, लेकिन आज वो इस तरह से उलझा कि उसके फोन काँल काटने पड़े।

राजन ने मन ही मन सोचा कि श्रेया के साथ उसका बात कर लेना ही अच्छा रहेगा। इसलिये उसने मोबाइल निकाले और समय देखा, रात के दो बज चुके थे। एक बार फिर से उसके हृदय ने कहा कि इस समय बात करना ठीक नहीं रहेगा। लेकिन मन तो मन ही होता है, हृदय की बातों को कहां मानता है। राजन ने श्रेया को काँल लगा दिया। घंटी बजने लगी, एक या दो ही रींग बजे होंगे कि काँल उठ गया। उधर से उनींदी आवाज आई, उसके बाद तो राजन श्रेया से बात करने लगा। बहुत देर तक इधर-उधर की बातें करता रहा। लेकिन उसका हिम्मत नहीं हुआ कि वो वह बात करें, जिसके लिये फोन किया है।

कुछ देर तक बातें करता रहा, लेकिन वो समझ चुका था कि श्रेया नींद से बोझिल है और ज्यादा देर तक उसे परेशान करना ठीक नहीं। इसलिये उसने फोन डिस्कनेक्ट कर दिया और फिर से सोने की कोशिश करने लगा। लेकिन आज तो ऐसा लग रहा था कि नींद उससे रूठ गई थी। वो तो आज नींद की आराधना कर रहा था, लेकिन वो उससे दूर-दूर भागती जा रही थी। वो बस रोनित के तकलीफ के व्यूह में ही उलझा हुआ था। शायद यही कारण भी था कि आज उसके आँखों से नींद दूर-दूर भाग रही थी। वह रोनित नाम के सवाल में उलझ कर रह गया था। बार-बार उसके आँखों के सामने रोनित का मासूम चेहरा उभर आता था।

उसकी और रोनित की दोस्ती काँलेज में मिसाल हो चुकी थी। वैसे तो वो रोनित का सीनियर था , लेकिन परिस्थिति ऐसी बनी कि उसका और रोनित का दोस्ती हो गया। काँलेज के दिनों में पूरे काँलेज में राजन का दबदबा था। काँलेज में किसी की हिम्मत नहीं थी कि सीधे मुंह उससे टक्कर ले सके। जबकि रोनित ने जब काँलेज में प्रवेश किया, तो बिल्कुल शर्मीले स्वभाव का था। संकोची और शांत, ऐसे में डरे सहमें रोनित को उसने रैगिंग से बचाया था। सोचते-सोचते रोनित बीते दिनों में खो गया।

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सुबह के दस बजे थे, काँलेज कैंपस में काफी हलचल थी।

के. आर. नारायणन काँलेज एण्ड इंस्टिट्यूट, काफी फेमस नाम था। यहां दिल्ली ही नहीं बल्कि देश के विभिन्न भागों से अभ्यार्थी पढाई करने आते थे। दिन के दस बजते ही काँलेज का कैंपस गुलजार हो गया था, छात्र-छात्राएँ आपस में गुट बना कर बातें करने में तल्लीन थे। इसी समय काँलेज के गेट से राजन ने अपनी नई बूलेट पर बैठ कर प्रवेश किया। आकर्षक चेहरा और रुआबदार शरीर, पूरे काँलेज में उसके नाम का दबदबा था, किसी कि हिम्मत ही नहीं होती थी कि उससे आकर उलझे। वैसे राजन की प्रकृति अलग प्रकार की थी, वो किसी से यूं ही उलझना पसंद नहीं करता था, साथ ही दोस्तों के लिये वो राजा के समान था। काँलेज के छँटे हुए लड़कों से उसकी दोस्ती थी, इसी कारण जब उसकी बूलेट गेट से अंदर हुई, लड़कों की झुंड उसकी ओर लपक पड़ी।

राजन ने अपनी बाईक-बाईक स्टैण्ड में लगाया और बिल्डिंग की ओर बढा, तब तक सभी लड़के उसके पास पहुंच चुके थे। उसने मुस्करा कर सभी लड़कों को हैल्लो किया, जबाव में सभी लड़के एक साथ बोल पड़े। जिससे तेज शोर काँलेज कैंपस में गूंज उठा, लेकिन उस ओर किसी ने ध्यान नहीं दिया। सभी को पता था कि राजन के सभी दोस्त अवारा टाइप के है, ऐसे में यह शोर तो रोज ही होता है। राजन खुद भी कभी-कभी अपने इस फ्रेंण्ड मंडली से परेशान हो जाता था। लेकिन वो अच्छी तरह से जानता था कि इस विषय में कुछ भी नहीं कर सकता। कभी-कभी तो अपने इन मित्र मंडली के कारण उसे प्रोफेसर साहब के कोप का भाजन भी बनना परता था, लेकिन वो इन सब को इग्नोर करके चलता था।

आज भी इशारे से उसने सभी को शांत होने का निर्देश दिया और स्टडी रूम की ओर बढा। कहते है न कि भेड़ों में यह नियम होता है कि जिधर उनका मुखिया जाएगा, सभी उधर को ही जाएंगे, चाहे कुआँ में ही क्यों नहीं गीर जाए। राजन के दोस्त भी वैसे ही थे, जैसे ही राजन स्टडी रूम की ओर बढा, सभी उसके साथ हो लिये। चलते-चलते राजन ठिठक गया, उसकी नजर दूर पेड़ के नीचे गई, जहां कुछ लड़के एक लड़के को परेशान कर रहे थे। राजन समझ गया कि वो लड़का शायद काँलेज में नया है और उसके सीनियर उसका रैगिंग कर रहे है। राजन की दोस्ती भले ही कैसी भी हो, वो स्वभाव से अलग था। उसने अपने साथ के लड़कों पर नजर डाली, उसकी मित्र मंडली समझ गई कि आखिर वो चाहता क्या है। बस तीन-चार लड़के उस पेड़ की ओर बढे, उन्हें अपनी ओर आता देख सभी बदमाश छात्र भाग गये। तब उन लोगों ने उस नये लड़के को लाकर राजन के सामने खड़ा कर दिया।

राजन ने एक नजर उसके पूरे शरीर पर डाली, उसे अंदाजा हो गया था कि अमीर घराने का लड़का है। साथ ही उसने महसूस किया कि शायद वो डरा और घबराया हुआ भी है। राजन ने सबसे पहले पानी मंगवा कर उसे पिलाया और जब वो शांत हुआ, तब धीरे से पूछा।

कौन हो तुम? और तुम्हें वे लोग घेरे हुए क्यों थे? राजन के प्रश्न सुन कर उस लड़के के सुन्दर चेहरे पर असमंजस के भाव उभड़े। तब तक राजन ने उसे एक बार फिर गौर से देखा। गठा हुआ कसरती शरीर, तीखे नैन-नक्श, गोरा रंग उसपर महंगे लिबास। राजन को अपनी ओर देखता पाकर वो हकबका कर बोला।

मेरा नाम रोनित सहाय है और मैं बिजनेस मैन अनिरुद्ध सहाय का लड़का हूं। वे लड़के मुझे परेशान कर रहे थे, क्योंकि काँलेज में मेरा पहला दिन है न। वैसे आप यह सब क्यों पुछ रहे हो? उसकी बातें सुन कर राजन मुस्कराया, वो समझ चुका था कि रोनित नाम का लड़का सच में ही मासूम है और उसे भी रैगिंग करने बाला ही समझ रहा है। थोरी देर तक मुस्कराने के बाद रोनित की तरफ देखा और गंभीर होकर बोला।

मिस्टर रोनित! अब घबराने की जरूरत नहीं है, तुम जैसा सोच रहे हो, वैसे हम लोग नहीं है। वैसे तुम्हारी जानकारी के लिये बता दूं कि मैं राजन सारस्वत हूं और अब तुम बेफिक्र होकर अपने क्लास में जाओ। साथ ही जब तुम्हें कोई परेशान करें तो मेरा नाम बोल देना। बोलने के बाद राजन वहां रुका नहीं और स्टडी रूम की ओर बढ गया। बस फिर क्या था, सारे लड़कों ने उसका अनुसरण किया।

जबकि रोनित वहीं खड़ा रहा, बहुत देर तक लह राजन को स्टडी रूम ओर जाते देखता रहा। फिर वह पार्किंग की ओर बढा और एक बेंच पर बैठ गया। समय धीरे-धीरे आगे की ओर बढता रहा। समय के बढने के साथ ही सूर्य देव आसमान की ओर चढने लगे। लेकिन मानों कि रोनित को कहीं जाने की जल्दी नहीं थी। उसने अपना मोबाइल निकाल लिया था और उस पर गेम खेलने लगा। समय आगे बढते-बढते दोपहर हो गई, लेकिन रोनित अपनी जगह से हिला भी नहीं।

दिन के तीन बज चुके थे, तभी उसकी नजर स्टडी रूम की ओर पड़ी, देखा तो राजन अपने ग्रुप के साथ निकल रहा था। बस रोनित अपनी जगह से उठा और राजन की ओर लपका। इस वक्त उसमें गजब की फुर्ती दिख रही थी। बस फिर क्या था, वो दो फलांग में ही राजन के सामने पहुंच गया। स्टडी रूम से निकलते राजन की नजर उस पर पड़ी, उसे सामने देख कर वो चौंका और प्रश्न भरी निगाहों से उसे देखा। जबकि उसे अपनी ओर ऐसे देखता पाकर रोनित बिना लाग-लपेट के बोला।

आप मुझसे दोस्ती करोगे? उसकी बातें सुनकर राजन एक पल को भौचक्का रह गया। उसे एक पल तो समझ ही नहीं आया कि वह लड़का ऐसा क्यों बोल रहा है। फिर वो कुछ पल बाद बोला।

लेकिन तुम मुझसे दोस्ती क्यों करना चाहते हो? हमारे सोहबत के लड़के अच्छे नहीं है, फिर तुम्हें ऐसा क्या दिखा कि मुझसे दोस्ती करना चाहते हो। फिर मैं तो तुम्हारा सीनियर भी हूं। राजन की बातें सुनकर रोनित एक पल मौन होकर सोचता रहा, फिर मुस्करा कर बोला।

लोग चाहे जो बोले आपके सोहबत को, परन्तु आप एक अच्छे इंसान हो। ऐसे में आपसे दोस्ती करना फायदेमंद है। वैसे भी आपने मुझ अंजान को बिना जाने ही सुरक्षा दी, यह क्या कम है। आपसे दोस्ती करने के लिये मैं तैयार हूं, अब आप को क्या करना है। बोलने के बाद रोनित ने अपना दायाँ हाथ गर्मजोशी के साथ आगे बढाया।

एक पल को तो राजन हक्का-बक्का रह गया। उसे समझ ही नहीं आ रहा था कि उस लड़के को क्या उत्तर दे। उसका दिमाग बोल रहा था कि अमीर घर का लड़का है, उससे दूर ही रहना चाहिये। लेकिन दिल बोल रहा था कि वो अमीर है तो क्या है, मैं कौन सा गरीब हूं। वैसे लड़का अच्छे संस्कारों बाला है, तो दोस्ती करने में हर्ज ही क्या है। बस उसने मन ही मन फैसला कर लिया और मुस्करा कर हाथ आगे बढाया और रोनित के हाथों को थाम लिया, फिर मुस्करा कर बोला।

लेकिन हमारे ग्रुप का नियम है, शाम को हम लोग वियर वार नियमित जाते है,तो दोस्त बनोगे तो जाना परेगा। राजन की बातें सुनकर रोनित ने सहमति में सिर को जूम्बीस दी, बोला नहीं।

इसके बाद रोनित भी उस झुंड में शामिल हो गया। उस ग्रुप के सभी लड़के नये मेंबर जुड़ने से काफी खुश थे। उन्हें मालूम था कि लड़का अमीर घराना का है,तो फायदा ही होगा। वैसे भी तो वे लोग राजन के पीछे इसलिये ही लगे रहते थे। इसके बाद वे लोग काँलेज कैंपस में घूमते रहे, समय अपनी गति से घूमता रहा। इस बीच राजन रोनित से उसके परिवार के बारे में पुछता रहा और रोनित सहर्ष बतलाता रहा।

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शाम हो चुकी थी, राजन काँलेज से अपने बंगले पर आकर तैयार हो रहा था। राजन वैसे तो दिल्ली में अकेला ही रहता था, उसके पिताजी आर्मी में कर्नल थे। इसलिये उन्होंने राजन को दिल्ली में बंगला खरीद कर दिया हुआ था। पैसे की कोई कमी थी नहीं, इसलिये राजन आजाद जिन्दगी जीता था। आज भी वो वियर वार जाने के लिये तैयार हो रहा था। लेकिन आज एक तबदीली हुई थी और वह यह कि रोनित उसके साथ ही उसके बंगले पर आ गया था। राजन ने तैयार होते हुए अपनी कलाई घङी पर नजर डाली, जो शाम के छ: बजने की उद्घोषणा कर रहा था। बाहर हल्का धूंधलका घिरने लगा था, ऐसे में राजन को चिन्ता हुई। उसने रोनित की ओर देख कर पुछा।

क्या रोनित! तुम लेट से घर आओगे, इसकी जानकारी घर पर दिए हो कि नहीं। उसकी बातें सुनकर रोनित ने सहमति में सिर को हिलाया, बोला कुछ भी नहीं।

ऐसे में राजन ने उसकी ओर गौर से देखा, तो पाया कि वो तो लीविंग रूम में सोफे पर बैठा हुआ मोबाइल में गेम खेल रहा था। उसके इस हरकत पर राजन को बहुत खीज हुई, लेकिन तभी उसके फ्रेंण्ड मंडली ने कमरे में कदम रखा। उन लोगों को आया देख कर राजन ने अपने गुस्से को दबा लिया। फिर वे लोग बाहर निकले, राजन ने बाहर निकलते ही बंगले को लाँक किया। फिर सभी रोनित की कार में ठूंस कर भर गये। वे कुल ग्यारह हो रहे थे और इनोवा में आठ के ही बैठने की जगह होती है। उन लोगों के हरकत पर रोनित मुस्कराया, फिर ड्राइविंग शीट पर बैठ कर कार श्टार्ट की और सड़क पर दौड़ा दिया।

वो कार चला रहा था, जबकि राजन उसे इंडिकेट कर रहा था। बाकी के धमाल मस्ती कर रहे थे। ऐसे में रोनित ने हिमेश रेशमिया का गाना लगा दिया और कार को फूल स्पीड में दौड़ाने लगा। बाकी के लड़कों का तो यह रोज का ही काम था, लेकिन रोनित रोमांच महसूस कर रहा था। उसके लिये यह सब कुछ नया-नया था, एकदम अलग से और रोमांच कारी। उसके कई दोस्त थे, लेकिन वह जिस सोसाइटी में रहता था, वहां कोई किसी से इतना खुला हुआ नहीं था। रोनित अपने मन में इन्हीं बातों को सोचता जा रहा था, तभी राजन ने उसे रुकने का इशारा किया।

रोनित का ध्यान भंग हुआ, उसने तेजी से ब्रेक लगाये और जब बाहर देखा, तो चौंक उठा, कारण सूनसान इलाका था। जबकि कार रुकते ही सभी लड़के फटाफट उतर गये। तब राजन ने उसे कार को पार्किंग में लगाने का इशारा किया। बस फिर क्या था, रोनित ने कार आगे बढा कर पार्क की और उतर कर दरवाजा लाँक किया। उधर उससे पहले राजन उतर चुका था, रोनित ने कार से उतरते ही देखा कि वह बहुत ही सुन्दर जगह पर खड़ा है और उसके आगे एक बिल्डिंग है। रोनित की नजर जब बिल्डिंग पर गई तो चौंक उठा। वह विशाल इमारत था, जो काफी क्षेत्रफल में फैला हुआ था। साथ ही उसपर एक बोर्ड लटका था, जिसपर लिखा था “मधुशाला” साथ ही उसे दुल्हन की तरह सजाया गया था।

रोनित अचंभित सा मधुशाला को देखता रहा, वह आश्चर्य कर रहा था। वैसे तो वो कितनी ही बार वियर वार जा चुका था। लेकिन उसने ऐसी भव्यता किसी वियर वार की नहीं देखी थी। आस-पास का इलाका वैसे तो अंधेरे में डूबा था, क्योंकि जहां मधुशाला वियर वार था, वहां काफी वीराना था। रोनित आश्चर्य भरी नजरों से मधुशाला वियर वार को देख रहा था, तभी राजन ने उसका हाथ पकड़ कर आगे बढा। बस रोनित की तंद्रा भंग हो गई, उसे लगा कि वो अभी स्वप्न लोक में आया हो। तंद्रा टूटने पर उसने देखा कि बाकी लड़के वियर वार के अंदर जा चुके थे। शायद इसलिये ही राजन उसे तेज चलने का इशारा कर रहा था।

फिर वे दोनों आगे बढे और गेट से हाँल के अंदर प्रवेश कर गये। विशाल हाँल, जहां पर नीली रोशनी बिखरी हुई थी। चारों तरफ टेबुल और कुर्सियां सजी हुई थी, जहां बैठ कर बहुत से लोग जाम का मजा ले रहे थे। रोनित ने चारों तरफ नजर फेर कर देखा, तो उसे समझ आया कि वहां पर अधिकांश युवा ही थे, जो अमीर घर से ताल्लुक रखते थे। रोनित को ऐसे आश्चर्य चकित होकर हाँल को देखता पाकर राजन मुस्कराया और उसका हाथ पकड़ कर आगे हाँल के कोने में बढा। जहां उसका ग्रुप मेंबर पहले ही एक टेबुल पर कब्जा जमा चुके थे। इस वक्त हाँल में पाँप म्यूजिक बज रही थी, साथ ही स्टेज पर वार बालाएं अल्लहड़ डांस कर रही थी।

जब तक वे दोनों टेबुल के पास पहुंचते, उसमें से एक लड़का जो महेश था, जोश में बोला। राजन भाई, मैंने सारा आँडर दे दिया है, आज पार्टी मेरी तरफ से। क्योंकि आज रोनित हमारे ग्रुप में शामिल हुआ। उसकी बातें सुन कर राजन और रोनित के चेहरे पर मुस्कान उभर आई। वे दोनों जब तक कुर्सी पर बैठते, वेटर आँडर सर्व कर चुका था। बस फिर क्या था, वे लोग जाम बनाने और पीने पर टूट पड़े। लेकिन राजन ने रोनित को समझा दिया, कि वो सिर्फ वियर ही पीये।

जैसे-जैसे उन लोगों के हलक में जाम जा रही थी, वे लोग मस्ती में आते जा रहे थे। जबकि रोनित वियर की चुस्की ले रहा था और आश्चर्य से वहां के माहौल को देखता जा रहा था। उसे यहां पर आकर स्वप्न लोक की अनुभूति हो रही थी। इससे पहले न तो उसने ऐसा वियर वार देखा था और न ही ऐसा फ्रेंण्ड ग्रुप। आज तो सब कुछ अजीब था, अद्भुत सा लग रहा था उसे आज तो। बार-बार उसकी नजर स्टेज की ओर जाती थी, जहां वार बालाएं अल्लहड़ डांस कर रही थी। उसका जी चाह रहा था कि वो भी स्टेज पर चढ कर उन वार बाला के साथ जम कर थिरके। लेकिन उसे डर लग रहा था कि कहीं राजन उसकी बातों का बुरा न मान जाए।

इस बीच उसने राजन की नजर बचा कर अपने प्याले में व्हिस्की उड़ेल ली थी और धीरे-धीरे चुस्की रहा था। इसी बीच राजन की नजर उस पर पड़ी और वो उसके मनोभाव को समझ गया। रोनित का मनोभाव समझ कर उसके होंठों पर प्यारी सी मुस्कान थिरक उठी। बस फिर क्या था, वह अपनी शीट से उठा और रोनित का हाथ पकड़ कर उठाया, फिर स्टेज की ओर बढ गया। उन दोनों को स्टेज की ओर बढता देखकर बाकी के लड़के हुर्रे मचाने लगे। उसके बाद तो रोनित और राजन ने वार बालाओं के साथ जमकर गजब का डांस किया। उन दोनों के डांस पर हाँल में से मोर अगेइन- मोर अगेइन के शोर उठने लगे।

बहुत देर तक उन दोनों ने वार बालाओं के साथ डांस किया। इसके बाद जब थकावट महसूस की, तो अपनी शीट पर आकर बैठ गये। फिर तो इसके बाद फिर से पीने-पिलाने का दौर शुरू हो गया। हाँल में तो मदहोशी फैल ही चुकी थी, उन लोगों पर भी मदहोशी छाने लगी थी। ऐसे में वे लोग अपनी-अपनी शीट से उठे और बाहर की ओर निकलने के लिये बढ चले। जबकि महेश नाम का लड़का बील पेय करने के लिये कैश काउंटर की ओर बढ चला।

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दो महीने बीत चुके थे, इस दरमियान रोनित और राजन के बीच घनिष्ठता बढ चुकी थी। अब तो अकसर ही दोनों साथ-साथ होते थे। ज्यादातर साथ-साथ ही खाना भी खाते थे। राजन को इतना तो समझ आ चुका था कि रोनित बहुत ही अच्छा लड़का है। उसका व्यवहार अच्छा है और घमंड तो उसमें लेशमात्र भी नहीं। इस दरमियान राजन कितनी ही बार रोनित के घर जा चुका था, जहां उसे भरपूर सम्मान और प्यार मिलता था। उसे कभी भी महसूस नहीं होता था कि उन लोगों के अंदर ईगो जैसा कुछ भी हो। सबकुछ मजे से चल रहा था, रोज काँलेज की पढाई और शाम को मधुशाला वियर-वार में फूल मस्ती। अब तो रोनित खुल चुका था, वो काफी बोल्ड हो चुका था, पहले जैसा शर्मीला तो वो बिल्कुल भी नहीं रहा था। अब तो वो राजन के साथ बैठ कर जी भर कर जाम छलकाता था, पहले-पहल तो राजन को यह अजीब सा लगता था। वो नहीं चाहता था कि रोनित को शराब की लत लगे, लेकिन धीरे-धीरे वह उसे टोकना बंद कर दिया था। वह समझता था कि अमीर घर का लड़का है, मौज कर रहा है। जिस दिन जिम्मेदारी बढेगा, सब भूल जाएगा।

लेकिन इसी बीच कर्नल साहब ने उसके शादी की बात चला दी। वैसे तो राजन अभी शादी-ब्याह के लिये बिल्कुल नहीं तैयार था। अभी तो वो मात्र इक्कीस शाल का हुआ था। अभी तो उसने ठीक से दुनिया को समझा भी नहीं था। अभी तो उसके खेलने खाने के दिन थे और वो इस समय को फुल एंज्वाय करना चाहता था। लेकिन उसके पिता ने नाक पर मक्खी बैठने नहीं दी और राजन को झुकना पड़ा । वह जानता था कि उसके पिता रिटायर्ड मिलिट्री आँफिसर है, अगर उसने ज्यादा ना-नुकुर की, तो उसके जेब पर असर परेगा। वह यही तो नहीं चाहता था, उसके सारे मौज-शौक पिता के द्वारा ही पूरा किए जा रहे थे। इसलिये उसने तनने की बजाये झुक जाने में ही भलाई समझी।

राजन अब तक नहीं जानता था कि उसकी शादी किसके साथ होने बाली है। वह थोरा भयभीत भी था, उसके पिता ने जिस लड़की को पसंद किया है, उसे पसंद नहीं आया तो। यह प्रश्न उसे उलझा रहा था, तब रोनित ने ही उसे दिलाशा दिया था और लड़की देखने भी वही साथ गया था। श्रेया, सुन्दर और चुलबुली लड़की, एक ही नजर में भा गई थी। सुन्दरता की मूर्ति, ऐसी श्रेया को देखकर राजन ने अपना करार खो दिया। साथ ही रोनित ने भी ओके कर दिया, अब तक शादी से ना-नुकुर करने बाला राजन, उसे संडीले के लड्डू भाने लगे थे। अब तो उसके सिर पर श्रेया की दीवानगी हावी हो चुकी थी, वो तो चाहता था कि कल शादी होगा सो आज ही हो जाए। वह तो श्रेया के आगोश में डूब कर दुनिया भूल जाना चाहता था। उसके आँखों में श्रेया की शर्मीली छवि बस सी गई थी, जिसमें वो हमेशा खोया- खोया रहता था।

उसके इस हालात पर उसके ग्रुप के लड़के उसकी चुटकी लेने लगे थे। लेकिन रोनित ऐसे समय में उसके साथ खड़ा था। उसने उसका हौसला बढाया और उसके चैन के लिये संदेश वाहक बना। उसने चतुराई के साथ श्रेया का मोबाइल नंबर राजन को उपलब्ध करवा दिया। फिर तो चैन, राजन के दिलो दिमाग को राहत और सुकून पहुंचा। श्रेया और राजन में घंटों प्यार की बातें होने लगी। रोनित उन दोनों के प्यार का हनुमान बना, वह दोनों के मिलन के लिये अरेजमेंट भी करने लगा। इसी बीच कर्नल साहब मेरठ से दिल्ली बंगले पर आए और आते ही राजन की हालत देख कर सारा मजमून समझ गये। आखिर उनके भी जवानी के दिन थे और उन्होंने भी अपने जवानी के दिनों में गुल खिलाये थे।

वह राजन के दिल की हालत समझ चुके थे, आखिर वह उसके पिता थे। उन्होंने समझ लिया था कि अब देर करना उचित नहीं, अब तो चट-मंगनी, पट ब्याह का आयोजन करना परेगा। कर्नल साहब ने दिल्ली से मेरठ लौटते ही सबसे पहले यही काम किया कि श्रेया के पिता से मिले। मिलते ही सगाई और शादी की डेट फिक्स कर दी। समाचार सुनते ही राजन खुशी से फुला नहीं समा रहा था, लेकिन वह दोस्तों के साथ ऐसा व्यवहार कर रहा था, जैसे कोई बात ही नहीं। लेकिन रोनित उसके दिली हालत को जानता था, वह जानता था कि राजन इस ब्याह के लिये किस हद तक बेकरार है। खैर जो हो, राजन एण्ड मंडली मेरठ के लिये रवाना हुई, दोस्तों के दिल में पार्टी का धूम मचाने की खुशी थी तो राजन के मन में मावा के लड्डू फूट रहे थे। बह बहुत ही रोमांच महसूस कर रहा था अपने नये जीवन में प्रवेश को लेकर।

फिर तो सगाई सेरेमनी, उसके बाद शादी का माहौल। सभी के चेहरे पर हर्ष और खुशी, लेकिन राजन थोरा नर्वस था आने बाले पल को लेकर। यह बात रोनित से छुप नहीं सकी, उसने राजन का हौसला बढाया। इधर भी फौजी परिवार-उधर भी फौजी परिवार, काफी धूमधाम से शादी का रस्म निभाया गया। शादी का आयोजन ही इस प्रकार से किया गया था कि यादगार रह जाए। जब राजन ब्याह कर अपनी दुल्हनिया लाया, तो घर के सभी लोग दुल्हन में उलझे थे। लेकिन राजन परेशान था, उसने सुहागरात के बारे में बहुत किस्से सुन रखे थे। वह खुद इन बातों का अनुभव करना चाहता था, लेकिन दुल्हनिया मेहमानों से आजाद हो तब ना। इसी बीच सुहाग रात को लेकर रोनित ने उसे कई खास बात बतलाये, जो वो याद करता रहा।

समय यूं ही आगे की ओर बढता रहा, रात का आलम गहराता रहा। इसी के साथ राजन की बेचैनी भी बढती जा रही थी। वो अपनी नई नवेली दुल्हन से मिलने को बेकरार हुआ जा रहा था। लेकिन उसकी सुने कौन, घर जो मेहमानों से अटा हुआ था। राजन की बेचैनी को रोनित अच्छे से समझ रहा था, उसकी ऐसी हालत देख कर रोनित के होंठों पर मुस्कान उभर आई थी। उसे ऐसे मुस्कराता देख कर राजन चिढ रहा था। जबकि वो अच्छी तरह से समझता था कि दुल्हन को तो मेहमान घेरे हुए होंगे ,ऐसे में वह कुछ भी तो नहीं कर सकता तड़पने के अलावा।

राजन बरामदे में कुर्सी पर बैठा हुआ समय की घड़ियों को गिन रहा था। जबकि रोनित सोफे पर आराम से पसर गया था। गांव का माहौल होने के कारण चारों तरफ सन्नाटा पसर चुका था। जबकि उसके घर में मेहमानों के कारण अभी तक काफी चहल-पहल थी। राजन ऐसे बैठा-बैठा ऊब गया, तो उसने अपने कलाईं घङी पर नजर डाली। रात के ग्यारह बज चुके थे, अचानक ही उसके मुंह से निकल पड़ा, उफ! यह मेहमान भी न। लेकिन आगे का शब्द वो बोल नहीं सका, क्योंकि परोस की भाभी उसे बुलाने आ गई। वो तो जल्दी में ही था, इशारा मिलते ही तेजी से उठा और दुल्हन के कमरे की ओर बढ चला।

वह जब अपने सुहाग कक्ष में पहुंचा ,तो भाभी ने दरवाजा बाहर से बंद कर दिया। आज उसे भाभीयों के हरकतों पर मजा आ रहा था। प्यारी सी मुस्कान उसके होंठों पर फैल गयी थी, वो अपने दिलों में ढेरों हसरत पाले सुहाग सेज की ओर बढा। तभी खिड़की पर सुतली बम फटी।

धड़ाम-धड़ाम ।

आवाज सुन कर दुल्हन के साथ ही वह भी उछल पड़ा।

*******

धड़ाम की आवाज हुई और राजन सोफे पर से लुढ़क कर जमीन पर गीर पड़ा। साथ ही उसके मुंह से तेज चीख निकली। उई-ई मां, मर गया रे, लेकिन तुरंत ही वह सचेत हुआ और फर्श पर ही पलथी मार कर बैठ गया। तब उसे भान हुआ कि वह नींद में सोफे पर से नीचे लुढ़क गया है। रात को वह रोनित के बारे में सोचते-सोचते ही सो गया था और अपने बीते दिनों की छवि उसके भटकते मन ने देख ली थी। तभी तो अचेतन अवस्था में उसके मन ने फटाके की आवाज महसूस की और वह सोफे से नीचे टपक गया। सोच कर उसके होंठों पर प्यारी मुस्कान फैल गई, उसे याद है कि उसके सुहागरात के दिन रोनित ने ही सुतली बम फोड़ा था। जिसके कारण नव दंपति डर गये थे, लेकिन बाद में श्रेया और वो मिलकर काफी हंसे थे। सच सुहागरात यादगार दिन होता है और इस दिन अपना कोई शरारत कर दे न, यादगार बन जाता है।

अपने मन में उभर आए इन विचारों को राजन ने झटका और अपनी कलाईं घड़ी देखी। सुबह के पांच बज चुके थे और यही टाइम था उसके उठने का। वह फटाक से उठ कर खड़ा हुआ और होम थियेटर पर अनुप जलोटा के कृष्ण भजन लगा कर वाथरुम की ओर बढ गया। होम थियेटर चालू होते ही भगवान का सुमधुर भजन पूरे बंगले में गूंज उठा। जबकि राजन वाथरुम से फ्रेश होकर निकला, तो उसे काँफी की तलब लगी। श्रेया तो अपने मायके में थी, ऐसे में वो जानता था कि काँफी उसे खुद ही बनानी है। इसलिये वो किचन की ओर बढ गया, लेकिन रोनित को लेकर उसके मन में विचार थम ही नहीं रहे थे।

उसे समझ ही नहीं आ रहा था कि वह ऐसा क्या करें कि इन विचारों से दो पल की मुक्ति मिले। लेकिन नहीं, वह जब से रोनित से मिला था, तब से उसी में उलझ कर रह गया था। किंचित शायद यह इसलिये भी था, कि वह आत्मिक तौर पर उससे बंधा हुआ था। खैर वह किचन में पहुंच कर अपने उन विचारों को झटका और गैस पर काँफी बनाने के लिये रख दिया। साथ ही उसे याद आया कि उसने तो श्रेया से बात ही नहीं की थी कल शाम से। रात को उसने काँल लगाया भी था, तो श्रेया उनींदी अवस्था में थी। ऐसे में उसे मन मार कर काँल को डिस्कनेक्ट करना पड़ा था। लेकिन दिल ही तो है जनाब, जिस से लगाव हो, अगर जी भर कर बातें न हो सबकुछ खाली-खाली सा लगता है।

बस राजन ने अपना मोबाइल निकाला और श्रेया के नंबर पर डायल कर दिया। रींग जाने लगी, इसी के साथ उसके मन में विचार उठा कि कहीं श्रेया अभी तक सोई तो नहीं होगी। नहीं-नहीं ऐसा नहीं हो सकता, राजन खुद से बड़बड़ाया। उसे श्रेया की दिनचर्या मालूम था, वो सुबह-सवेरे उठती थी और स्नानादी कर्मों से निवृत्त होकर सूर्योदय से पूर्व ही भगवान की पुजा अर्चना कर ही लेती थी। राजन सोच ही रहा था कि उधर से काँल उठाया गया और श्रेया की खनकती आवाज उभड़ी।

हैल्लो।

हैल्लो! राजन झट से बोल पड़ा ,श्रेया की खनकती बोली सुनकर उसका हृदय खिल उठा था। फिर तो वो श्रेया से इधर-उधर की बातें करने लगा। इस बीच काँफी तैयार हो चुकी थी, तो उसने काँफी कप में डाला और हाँल में आ गया। इस बीच उसकी बातें लगातार होती रही, एक विषय खत्म होने से पहले ही दूसरी तरफ बातों की डोर मूड जाती थी। राजन बातों में इस कदर तल्लीन था कि उसे पता ही नहीं चला कि काँफी कब खतम हुई।

करीब उन लोगों की बात आधा घंटे तक होती रही, लेकिन लगा कि उधर से श्रेया इन लंबी बातों से उकता चुकी हो। उसने फोन रखने को बोला तो राजन को मन मसोस कर फोन रखना पड़ा। वैसे तो अभी उसका मन भरा ही नहीं था बातों से, लेकिन वह अच्छे से जानता था कि श्रेया की लाइफ स्टाइल अलग है। फोन डिस्कनेक्ट होते ही वह सोचने लगा, उसका सौभाग्य है कि उसे ऐसी पत्नी मिली है। जो जीवन पथ पर कदम से कदम मिला कर चलती है। सुन्दर, सुशील और समझदार, सुन्दर तो ऐसी कि अप्सरा सामने पड़े, तो शर्मा जाए। समझदार ऐसी कि उसके छोटी से छोटी जरूरतों की लिश्ट भी उसके पास मौजूद थी।

सुंदर से खयाल आया कि कहीं रोनित श्रेया के प्यार में ही तो पागल नहीं। राम-राम कहीं ऐसा हुआ, तो अनर्थ बाली बात होगी। फिर तो वो हालात पर कैसे काबू पाएगा। नहीं-नहीं, ऐसा तो कदापि नहीं हो सकता, क्योंकि अगर ऐसा होता तो उसे पहले ही मालूम पड़ जाता। माना कि श्रेया बहुत ही सुन्दर है, तो रोनित भी तो समझदार है, उसे जीवन की अच्छी समझ है। फिर तो उसके शादी में अगर सबसे ज्यादा खुशी रोनित को ही हुई थी। ऐसे में ऐसा विचार करना भी गलत ही होगा। लेकिन संभवतः रोनित किसी न किसी के प्यार में ही गिरफ्त है। तभी तो उसकी ऐसी हालत हुई, अन्यथा ऐसी स्थिति सामान्य मानव की नहीं हो सकती।

वो किस कारण से इस स्थिति में पहुंचा है, ऐसा कौन सा कारण है जो उसके हृदय में शूल बन कर चुभा है। आखिर बात क्या है, यह तो रोनित ही बता सकता है, लेकिन वह बतलाएगा तब न। राजन मन ही मन सोच रहा था और खुद पर ही खीज रहा था। उसने जब से नौकरी ज्वाइन की, उसने एकबारगी भी रोनित से बात नहीं की। शायद वह खुदगर्ज हो गया था, उसके पास मोबाइल भी थी, समय भी था। लेकिन वह अपने परिवार में उलझ गया कि रोनित को भूल बैठा। उसका तो रोनित के साथ आत्मीय संबन्ध था, उसे बार-बार उसको काँल करने चाहिए थे। पर वह अपने जिम्मेदारी को निभा नहीं सका। ऐसे में क्या रोनित उसपर विश्वास कर पाएगा, उससे अपने दिलों के बोझ साझा करेगा।

राजन मन ही मन शंकित था, उसे खुद से ही ग्लानि महसूस हो रही थी। वह पहले तो ऐसा नहीं था, फिर इतना खुदगर्ज कैसे बन गया। उसने मन ही मन सोचा कि चाहे जो हो जाए, इस प्रश्न को तो उसे सुलझाना ही परेगा। राजन ने अपने हाथों से अपना कान पकड़ कर उमेठा और हृदय में संकल्प दुहराने लगा। अब तक जो भूल की है, उसे अब कभी नहीं होने दूंगा। साथ ही अपनी गलती को सुधारने की कोशिश करूंगा। ऐसा करने के बाद वह शांत चित होकर भगवान के भजन सुनने लगा। तभी उसकी नजर खिड़की से बाहर गई। बाहर चारों तरफ उजाला फैल चुका था और लग रहा था कि कुछ ही देर में सूर्यदेव अवतरित होंगे।

राजन ने कलाईं घड़ी की तरफ नजर डाली, सुबह के छ: बज चुके थे। उसे याद आया कि उसे तो तैयार होकर अनिरुद्ध बिला जाना है। बस फिर क्या था, वो उठा और वाथरुम की ओर बढ गया। लेकिन होम थियेटर बजता रहा और भगवान के सुमधुर भजन बंगले में गुंजता रहा। साथ ही समय आगे की ओर भागता रहा, निरन्तर अबाध गति से। उसे मानव के सुख-दुख, उसके मनोभाव से कोई मतलब नहीं होता। करीब बीस मिनट बीते होंगे कि राजन वाथरुम से निकला, इस वक्त वो तैयार हो चुका था। फिर वो बंगले से बाहर निकला और गेट को लाँक किया, फिर पार्किंग की ओर बढा। पार्किंग में उसकी सेंट्रा कार थी।

*****–***

राजन ने पार्किंग में पहुंचते ही कार का डोर ओपन किया और ड्राइविंग शीट पर बैठ कर कार श्टार्ट की और सड़क पर दौड़ा दिया। कार बंगले के गेट से निकली और सड़क पर सरपट दौड़ने लगी। तब तक सूर्यदेव पूर्वांचल में उदित हो चुके थे और अब धीरे-धीरे उपर की ओर चढ रहे थे। राजन ने उदित हो रहे सूर्यदेव को नमस्कार किया और फिर ड्राइव करने में तल्लीन हो गया। साथ ही उसने म्यूजिक प्लेयर में अदनान सामी के गीत लगा दिया और गीत पर झूमने लगा।

उसको संगीत सुनने की आदत बचपन से ही थी, या यूं कहा जाये कि संगीत उसके दिनचर्या में शामिल था। सुबह होते ही दिल्ली की धड़कन दौड़ने लगी थी। इंसान इधर-से उधर भागने लगे थे, सभी को जल्दी भी थी मंजिल तक पहुंचने की। सड़क पर जिधर भी देखो, भीड़ बस भीड़, चाहे आदमी का हो या फिर गाड़ियों का। राजन कार चलाते वक्त इन्हीं भीड़ को देख रहा था और सोच रहा था। शहर की जिन्दगी कितनी व्यस्तता भरी होती है, कि इंसान दो पल सुकून की सांस भी नहीं ले सकता। वह सोच ही रहा था कि अनिरुद्ध बिला के पास उसकी कार पहुंच गई। उसने कार को तेजी से बिला के गेट की ओर मोड़ा। गेट का दरबान उसे दूर से ही आते देख लिया था, इसलिये वह पहले से ही गेट खोलकर तैनात था। उसने कार तेजी से अंदर ली और पोर्च की ओर बढा दिया, एवं कार खड़ी करने के बाद उतरा। तभी उसकी नजर गार्डेन की ओर गई, जहां अनिरुद्ध साहब बेंत की कुर्सी पर बैठ कर अखबार पढने में तल्लीन थे।

राजन उनकी ओर तेजी से बढा, अनिरुद्ध साहब ने भी उसे आते देख लिया था। उन्होंने पेपर को साइड में रख कर तत्पर हो गये उसके स्वागत के लिये। जबकि राजन ने उनके करीब पहुंचते ही उनके पांव छूए और सामने बाले चेयर पर बैठ गया। फिर दोनों एक पल तक एक दूसरे के चेहरे को देखते रहे, बोला किसी ने भी नहीं। आखिरकार अनिरुद्ध साहब ही मुस्करा कर उसकी ओर देख कर बोले।

और बताओ राजन बेटा, कैसे हो?

मैं तो ठीक हूं, आप अपनी सुनाइये? राजन के प्रश्न सुनकर अनिरुद्ध साहब एक पल को मौन हो गये। मानो कि बोलने के लिये शब्दों को ढूंढ रहे हो, लेकिन उन्हें कोई भी शब्द नहीं मिल रहा हो। फिर लंबी श्वास छोड़ कर बोले।

अब क्या बताये राजन बेटा! क्या अच्छा और क्या बुरा। अब तो आदत सी हो गई है दोनों को एक ही समान समझने की। तुम्हें कैसे अपने हृदय के दर्द समझाऊँ कि जब से रोनित अंदर से घुंटा-घुंटा सा रहने लगा है। जिन्दगी बोझ के समान बन गई है, ऐसे में समझ ही नहीं आता कि इससे कैसे बाहर निकलूं। बोलने के बाद अनिरुद्ध साहब उदास हो गये और राजन के चेहरे की ओर एकटक देखने लगे। उन्हें इस तरह से देखकर राजन हकबका गया, उसे समझ ही नहीं आ रहा था कि क्या बोले। फिर भी उसने अपने अंदर हिम्मत समेटा और बोला।

वो तो है अंकल, लेकिन जीवन है तो जीना तो परेगा ही। वैसे इंसान को परिस्थिति से डट कर सामना करना चाहिये, न कि भागना चाहिये। वैसे आप बतला सकते है कि उसकी यह हालत कैसे हुई और वह कब से ऐसा व्यवहार कर रहा है। उसकी बातें सुनकर अनिरुद्ध साहब एक पल को सोचने लगे, फिर गंभीर होकर बोले।

राजन बेटा! मुझे यह तो पता नहीं कि उसके साथ ऐसा कौन सा हादसा हुआ कि वह इस तरह के व्यवहार करने लगा। हां मैं तुमको इतना जरूर बतला सकता हूं कि वह इस तरह के व्यवहार करीब एक शाल से कर रहा है। बोलने के बाद अनिरुद्ध साहब ने चुप्पी साध ली। उनकी बातें सुनकर राजन के दिल को राहत पहुंची। अब वो निश्चिंत हो चुका था कि रोनित की ऐसी हालत श्रेया के कारण नहीं ही था। अब वह कौन से कारण था कि वह अंदर से टूट चुका था, राजन को बस वही कारण मालूम करना था। थोरे पल तक कुछ सोचने के बाद उसने अनिरुद्ध साहब की तरफ देखकर बोला।

अंकल! अभी इन बातों को छोड़िये और बतलाइए कि रोनित कहां पर है अभी।

होगा कहां! सुबह से ही तैयार होकर आँफिस की ओर निकल चुका है। राजन की बातें सुनकर अनिरुद्ध साहब गंभीर होकर झट बोल पड़े। उनकी बातें सुनकर राजन उठा और बोला।

अंकल! मैं अभी चलता हूं, आँफिस में ही रोनित से मिल लूंगा और उसके बारे में जानकारी भी इकट्ठी करनी है। अनिरुद्ध साहब बोलना चाहते थे कि बेटा काँफी तो पीते जाओ, लेकिन वे बोल नहीं पाये। जबकि राजन आगे बढा और अपनी कार के पास पहुंचा, कार का दरवाजा खोला, बैठा और श्टार्ट करके गेट से बाहर निकला।

बिला से बाहर आते ही उसकी कार ने रफ्तार पकड़ लिया। कार जिस प्रकार से सड़क पर सरपट दौड़ रही थी, उसी प्रकार से उसके दिमाग में विचारों के झंझावात भी सरपट दौड़ रहे थे। वह सोच रहा था कि वह किस प्रकार से रोनित नाम के सवाल को सुलझाये। सवाल तो काफी गंभीर था और उसे हल करना था, लेकिन उसे मालूम नहीं था कि इसकी जड़ें कहां है और तना कहां है। बस सवाल सामने आकर खड़ा हो गया था और चुनौती बन गया था। अब उसे निर्धारित करना था कि वह ऐसा क्या करें कि यह सवाल अपने मूल रूप में सुलझ जाए। लेकिन उसे यही तो समझ नहीं आ रहा था कि शुरूआत कहां से करें।

इसी उधेड़बुन में वो कार को भगाये जा रहा था, साथ ही अपने दिमाग पर भी जोर दे रहा था कि कोई रास्ता समझ आ जाये। लेकिन वह सही निर्णय नहीं कर पा रहा था, लेकिन तभी वो चौंका। उसके चौकने का कारण यह था कि उसकी कार मंजूला हाँश्पीटल के पास से गुजरी। बस उसके दिमाग में तेजी से एक विचार कौंधा। उसने कार के ब्रेक तेजी से लगाये, गाड़ी फुल स्पीड में थी, एकाएक ब्रेक लगने से कार के टायर दूर तक घिसटते चले गये। चक्का के घिसटने से तेज आवाज उभरी और उसे झटके भी लगे। फिर उसने कार को बैक गियर में डाला और कार को पीछे करके हाँश्पीटल के सामने ले लिया। फिर सड़क के किनारे कार खड़ी करके नीचे उतरा और हाँश्पीटल गेट की ओर बढने लगा।

लेकिन तभी उसके हृदय में खयाल आया कि पहले काँल कर ले। फिर अंदर जाना ठीक रहेगा, नहीं तो कहीं वह हाँश्पीटल अभी तक नहीं आई हो। उसने कलाईं घङी की ओर नजर डाली, जो सुबह के सात बज कर तीस मिनट की सूचना दे रही थी। उसने सोचा कि सौम्या अभी तक आई होगी कि नहीं। दरअसल सौम्या उसकी अच्छी दोस्त थी और उसने मेडिकल की पढाई की थी। उसे मालूम था कि वो मनोरोग विशेषज्ञ बन चुकी है। हलांकि दो शाल हो गये थे, लेकिन इस दरमियान उसकी सौम्या से बात नहीं हुई थी। उसे याद था कि सौम्या ने उसे एक दिन अपना मोबाइल नंबर दिया।

उसने अपना मोबाइल निकाला और कार के ही सहारे खड़ा होकर उसमें सौम्या के नंबर को ढूंढने लगा। उसे काफी मशक्कत करनी पड़ी सौम्या के फोन नंबर को ढूंढने में और जब नंबर मिला, तो वह खुशी से उछल पड़ा, अब देर किस बात की थी, उसने नंबर डायल कर दिया। घंटी जाने लगी और उसी के साथ उसके दिल की धड़कन भी बढ गई। वो आशंकित था कि न जाने कौन फोन उठाये और गलत डायल हुआ तो। वो इसी उधेड़बुन में था कि उधर से काँल रिसीव हुआ और सौम्या कि आवाज उभड़ी। राजन तो लाखों में उसके आवाज को पहचान सकता था। सौम्या की आवाज आते ही वो सबसे पहले अपने बारे में बतलाने लगा।

*********

राजन डाँ. साहिबा से बातें कर रहा था, जबकि सौम्या उसे पहचान चुकी थी। अतः उधर से उसकी खनकती आवाज उभड़ी।

अरे राजन! तुम हो कहां पर अभी। उसकी बातें सुन कर राजन रोमांचित होकर बोला। यार सौम्या! मैं होऊँगा कहां, तुम्हारे हाँश्पीटल के सामने हूं और तुम से मिलना चाहता हूं। उसकी बात सुनकर एक पल को उधर खामोशी छा गई, लेकिन दूसरे पल ही फिर से खनकती आवाज उभड़ी।

क्या कोई विशेष बात है राजन! या ऐसे ही।

हां बात तो विशेष ही है, वैसे मैं तुम से मिलना चाहता हूं। राजन ने अधीरता से बोला, जबाव में उधर से सौम्या की आवाज उभड़ी।

तो ठीक है, या तो मेरे बंगले पर चले आओ, या वहीं हाँश्पीटल में मेरा इंतजार करो। मैं अभी तैयार होकर आती हूं।

नहीं यार सौम्या! इस समय तो मैं तुम्हारे बंगले पर नहीं आ सकता। वैसे में यहीं पर तुम्हारा इंतजार करता हूं। राजन गंभीर होकर बोला। जिसके जबाव में सौम्या का स्वर उभड़ा।

कोई बात नहीं! तुम एक काम करो कि हाँश्पीटल के अंदर चले जाओ, मैं हाँश्पीटल स्टाफ को फोन कर देती हूं और जल्द ही तैयार होकर आती हूं। बोलने के बाद सौम्या ने उधर से फोन डिस्कनेक्ट कर दिया।

फोन डिस्कनेक्ट होने के बाद राजन ने अपने चारों ओर देखा, तो उसे हाँश्पीटल के दाईं ओर चाय की दुकान दिखी। उसने मन ही मन सोचा कि हाँश्पीटल के वेटिंग रूम में बैठने से अच्छा होगा कि वह चाय की दुकान पर ही एक-दो कप चाय पी ले। यही सोच कर वह चाय के दुकान की तरफ बढा। उसके वहां पहुंचते ही दुकानदार ने मधुर शब्दों में उसका स्वागत किया। वहां पहुंचने के बाद राजन ने चारों ओर नजर डाली, तो उसे एक भी ग्राहक नहीं दिखा। तब वह एक खाली टुल लेकर बैठ गया, तब तक दुकानदार उसके सामने चाय की प्याली रख चुका था।

राजन ने प्याली उठा कर अभी दो ही घूंट पिया था कि उसने देखा कि मारुति स्वीफ्ट कार तेजी से आई और हाँश्पीटल गेट में प्रवेश कर गई। राजन कार अंदर जाते देख कर फटाफट उठा, दुकानदार की ओर पैसे बढाया और खुल्ले लेने के लिये नहीं रुका। वह तेजी से आगे बढा और हाँश्पीटल के अंदर प्रवेश कर गया। राजन को मालूम था कि उसे कहां जाना है। वो इस हाँश्पीटल के जर्रे-जर्रे को पहचानता था, इसलिये तेजी से आगे बढा। एवं एक आँफिस के सामने रुका, तभी अंदर से आवाज आई। अंदर आ जाओ, दरवाजा खुला हुआ है।

आवाज सुनकर राजन रोमांचित हो उठा, वही आवाज की खनक, हां अंदर सौम्या ही थी। आवाज सुनकर राजन तेजी से अंदर प्रवेश किया और देखा। सामने खड़ी थी सुन्दरता की प्रतिमा, ऐसी सौम्या। गोरा रंग, गुलाबी होंठ, सुता हुआ नाक, नीली आँखों की पुतली, लंबा चेहरा और कसा हुआ वदन। उसे एक नजर कोई भी देख ले, तो मोहित हुए बिना नहीं रह सके, ऐसी कामिनी अप्सरा सी थी वो। उसपर उसने डाक्टर का लिबास पहना हुआ था, जिसमें वो और भी सुन्दर लग रही थी। राजन की नजर जब उसपर पड़ी, तो बस उसे अपलक देखता ही रह गया। सौम्या, चुलबुली और शोख, उसके न रूप-रंग में बदलाव हुआ था और न ही उसके अदाओं में तबदीली आई थी।

राजन को इस तरह से अपलक अपनी ओर देखते पाकर सौम्या मुस्कराई। वो आगे बढी, उसने राजन को अपने आगोश में भर लिया और धीरे से उसके कान में फुसफुसाई। अमा यार राजन! तुम रत्ती भर भी नहीं बदले। वही खा जाने बाली नजरों से देखना और लार टपकाना। बोलने के बाद सौम्या खनकती हंसी-हंसी। जबकि उसके द्वारा आगोश में लिये जाने पर राजन को बिजली का तेज झटका लगा। वह चिहुंक कर उछल पड़ा, फिर सौम्या की ओर देखने लगा। सौम्या इतना तो समझ चुकी थी कि उसके द्वारा आगोश में लेने पर राजन असहज हो चुका है। इसलिये वो उससे अलग हुई और चलती हुई अपनी शीट के पास पहुंच कर बैठ गई और राजन से भी बैठने के लिये इशारा किया।

तब तक राजन पूरी तरह संभल चुका था। वह आगे बढा और सामने बाली कुर्सी पर बैठ गया और एक नजर आँफिस में चारों तरफ नजर डाली। फिर मुसकुरा कर सौम्या से बोला।

वैसे तो बदली तुम भी तो नहीं, वही चंचलता, वही शोख अदाएँ। हमेशा से ललचाती रही, लेकिन कभी भी हाथ नहीं लगी। राजन की बातें सुनकर सौम्या खिलखिला कर हंस उठी और बोली।

ऐसा तुम बोल रहे हो, ओए छोरे, मैं तो पलक पावड़े बिछाये बैठी रही, परन्तु तुम ही कभी आगे बढने को राजी न हुए। वैसे तुम्हारे लिये अभी भी निमंत्रण खुला हुआ है, चाहो तो आजमाईस कर लो। सौम्या की बातें सुनकर राजन हकबका गया, फिर संभल कर कान पकड़ते हुए बोला।

तौबा-तौबा, सौम्या! तुम तो जानती ही हो कि मैं अब किसी और का हो चुका हूं। ऐसे में तुम्हें चखना मेरे सौभाग्य में नहीं। बोलने के बाद राजन अपनी बातों का रूख पलटते हुए बोला। वैसे मैं तुमसे एक हैल्प मांगने आया हूं। उसकी बातें सुनकर सौम्या गंभीर हो गई।

उसने इशारा किया अपनी बात बतलाने के लिये। फिर तो राजन रोनित के बारे में, उसके व्यवहार के बारे में विस्तार से बतलाने लगा। सौम्या उसकी बातों को ध्यानपूर्वक सुन रही थी। जबकि राजन ने रोनित में आए बदलाव, उसके परिवार की परेशानी को उसे बतलाता रहा। कई बातें, कई अनछुए पहलू, जो उसके और रोनित के मध्य थे। राजन जब अपनी बात खत्म कर चुका, तो सौम्या उसकी तरफ देखते हुए मुस्करा कर बोली।

बेल! तो तुम मुझसे चाहते क्या हो, मतलब इसमें मैं क्या हैल्प करूं। उसकी बातें सुनकर राजन एक पल मौन रहा, फिर उसके चेहरे पर देखते हुए गंभीर होकर बोला।

सौम्या! तुम तो समझती ही हो मुझे, लेकिन निजी जीवन में मैं उलझ कर थोरा स्वार्थी सा हो गया था। अपने फ्रेंण्ड सर्किल को ही भूल बैठा था। लेकिन जब उससे मिला, तो मुझे समझ आया कि मैं ने गलती की है। बोलने के बाद राजन मौन हो गया और सौम्या के चेहरे को देखने लगा। उसे ऐसे देखते पाकर सौम्या गंभीर हो गई और उसकी ओर देख कर बोली।

तो मुझसे चाहते क्या हो? यह तो बताओ। सौम्या की बातें सुनकर राजन थोरा भावुक हो गया, उसने अपना हाथ आगे बढा कर सौम्या के हाथों पर रख दिया और धीरे से बोला।

तो मैं चाहता हूं कि उसके जिन्दगी को तुम फिर से पटरी पर ला दो। तुम तो अच्छी तरह से जानती हो कि दोस्तों में वह मुझे सब से प्रिय है। ऐसे में एक तुम ही हो जो मेरी मदद कर सकती हो, उसके जीवन के प्रश्न सुलझाने में। आखिर में बोलते-बोलते राजन का गला रूंध गया, वह इसके आगे नहीं बोल सका। सौम्या उसके मनोभाव को अच्छी तरह से समझ चुकी थी, इसलिये उसने अपने हाथों से राजन के हाथ को कसकर दबाया और गंभीर होकर बोली।

ठीक है मेरे स्वप्न के मिस्टर पुरुष! लेकिन पहले तुम उसे मेरे पास लाओ तो सही, फिर देखती हूं कि क्या करना है। उसने जान बुझ कर इस तरह से बोला था कि राजन मुसकाये बिना नहीं रह सके। उसके इस हरकत का सकारात्मक परिणाम भी निकला, राजन के होंठों पर मुस्कान फैल गई। तब सौम्या फिर बोली। तो मिस्टर! तुम नाश्ता तो करके नहीं निकले होगे।

नहीं तो। राजन मासूमियत से बोला। जबाव में सौम्या धीरे से बोली।

तो फिर यहीं नाश्ता मंगवा लूं , या फिर बाहर चलोगे। बोलने के बाद सौम्या ने जोर से राजन के हाथों को दबा कर बोली। उसकी बातें सुनकर राजन अपनी बाईं आँख दबाकर बोला।

मिस सौम्या! मेरे विचार से हम लोगो को बाहर ही चलना चाहिये। उसकी बातें सुनकर सौम्या ने सिर हिलाकर सहमति दे दी। फिर वे लोग कुर्सी पर से उठे और बाहर की ओर निकल पड़े।

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दक्षिणी दिल्ली का इलाका, चारों ओर ऊँची-ऊँची बिल्डिंग और बड़े- बड़े शो रूम। श्रेयांस आँटोमोबाइल एवं शो रूम, काफी विशाल भू-भाग में फैला हुआ। इस वक्त रोनित अपने आँफिस में बैठा हुआ फाइलों में उलझा था। सुबह का समय होने के कारण अभी शो रूम में ग्राहक का आना नहीं के बराबर था। हां शो रूम के स्टाफ अपने कार्य में लगे हुए थे। काम करते-करते रोनित को थकावट सी महसूस हुई। शायद उसे भूख लगी थी, उसने बंगले से निकलते वक्त नाश्ता नहीं किया था। हलांकि अनिरुद्ध साहब ने कहा था, लेकिन वो किसी कारण बस रुका नहीं। दूसरे वो रात को इतने नशे में था कि भूखे पेट सो गया।

अपनी भूख महसूस करके उसने दीवाल घङी की ओर नजर डाली। दस बज चुके थे, बस उसने बेल बजाया। बेल की सुमधुर ध्वनि पूरे शो रूम में गूंज उठी। फिर क्या था, आँफिस ब्वाय आलोक दौड़ कर आया और उसके सामने खड़ा हो गया। उसे देख कर रोनित मुस्कराया और उसे दो प्लेट नाश्ता लाने के लिये बोला। बस आदेश देना भर था, आलोक पलटा और आँफिस से बाहर निकल गया। उसे जाते देख कर रोनित सोचने लगा। वाह जिन्दगी, तेरे क्या कहने! किसी के पास इतनी दौलत है कि वो दोनों ही हाथों से खर्च नहीं कर सकता । तो किसी के पास मजबूर जिन्दगी है कि रोजी-रोटी के लिये दूसरे की सेवा करनी पड़ती है। नहीं तो आलोक गबरू जवान है, स्मार्ट भी है और थोरा पढा लिखा भी। अगर ऐसे में उसके पास मजबूरी नहीं होती, तो वह उसकी चाकरी क्यों करता।

रोनित इन्हीं बातों को सोच रहा था कि आलोक नाश्ता लेकर आ गया और टेबुल पर सजा दिया। गर्म-गर्म समोसे और जलेबी देख कर रोनित के मुंह में पानी छलक पड़ा, दूसरे उसे जोर की भूख लगी थी। उसने आलोक से इशारा किया बैठने के लिये। यह तो उसका दैनिक कार्य था, उसके अपने कर्मचारियों के साथ आत्मीय संबन्ध थे। तभी तो उसके सभी कर्मचारी खुश रहते थे। बस फिर क्या था, आदेश मिलते ही आलोक उसके सामने बाली चेयर पर बैठ गया। फिर वे दोनों नाश्ता की प्लेट पर टूट पड़ा लेकिन कहावत है न कि बिना बातचीत के खाना, वास्तव में खाना होता ही नहीं। दूसरे आज उसके मन में कुलबुल हो रहा था, इसलिये वो आलोक से पूछ बैठा।

क्या आलोक! आज तक तुमने किसी से प्रेम किया है कि नहीं। अप्रत्याशित प्रश्न सुनकर आलोक हकबका गया। उसे समझ ही नहीं आ रहा था कि क्या बोले, बड़ी कठिनाई से उसके मुंह से बोल फूटे।

नहीं सर! अभी तक ऐसा कुछ भी नहीं है। इस बारे में अभी तक मैं ने सोचा ही नहीं, या यूं कहें सर यह सब सोचने का मौका नहीं मिला। आलोक की बातें सुनकर रोनित फिर से बोला।

दोस्तों की लंबी फ़ेहरिस्त होगा तुम्हारे पास?

नहीं सर! ज्यादा कोई नहीं है, एक-दो दोस्त है। लेकिन हम लोग अपने-अपने जीवन में उलझे है, ऐसे में मिले तो महीनों हो जाते है। रोनित के प्रश्न सुनकर आलोक तपाक से बोला। जबकि उसकी बातें सुनकर रोनित खाते हुए सपाट लहजे में बोला।

तो फिर दोस्ती में विश्वास रखना भी नहीं, न ही किसी के साथ आत्मीय संबन्ध स्थापित करना। क्योंकि दोस्ती तो एक भ्रम का नाम है। हां एक काम करना कि जब किसी लड़की से प्यार करो तो तपाक से अपने प्यार का इजहार कर देना। नहीं तो बाद में बहुत पछताओगे, रोनित आगे बोलता, इससे पहले ही उसकी नजर गेट पर पड़ी ।

वो फ्रीज होकर रह गया, उसके हाथ जहां थे, वहीं रूक गये। उसे समझ ही नहीं आया कि यह क्या हो गया। उसने तो कल्पना ही नहीं की थी कि एकाएक वह गेट पर प्रगट हो जाएगा। जी हां, उसने देखा कि राजन गेट पर खड़ा है और मुस्करा रहा है। उसे अचानक से देखकर रोनित झेंप गया। उफ! यह क्या हो गया, रोनित ने अपने मन में सोचा। इतना तो वो समझ ही चुका था कि राजन ने उसकी बातें सुन ली है। इसलिये ही वह इतने अर्थपूर्ण मुसकान को चेहरे पर सजाये है। जबकि दूसरी तरफ राजन के हृदय में भी उथल-पुथल मची थी। उसे समझ ही नहीं आ रहा था कि आखिर उसने गलती कितनी बड़ी की है। परन्तु उसे मालूम था कि उससे गलती हुई है। अब गलती का आकार कितना बड़ा था, यह तो तभी समझ सकता था।

राजन आगे बढा और मेज के करीब पहुंचते ही आलोक को इशारा किया। बस फिर क्या था, वह तो नाश्ता की प्लेट लेकर उठा और बाहर निकल गया। उसके बाहर निकलते ही राजन ने आँफिस का दरवाजा बंद किया और आगे बढा। रोनित उसके इस हरकत को नहीं समझ सका, वह बस आश्चर्य से देखता रहा और समझने की कोशिश करता रहा कि आखिर राजन क्या करने बाला है। जबकि राजन आगे बढा, उसके पास पहुंचा और घुटनों के बल उसके पास बैठ गया। फिर उसकी आँखों में देखकर उसके हाथों को थाम लिया एवं गंभीर होकर बोला।

मित्र! माना कि गलतियां होती है, इंसान है,तो स्वाभाविक ही गलती करेगा। परन्तु इसका मतलब यह तो कदापि नहीं हो सकता कि उन गलतियों के लिये माफी ही नहीं हो। रोनित उसके अटपटे बातों को सुनकर चौंका, उसे समझ ही नहीं आ रहा था कि वह क्या बोले। फिर बड़ी ही मुश्किल से वह बोला।

लेकिन बात क्या है, वह तो समझाओ? जब तक संदर्भ नहीं समझाओगे, प्रश्नों के उत्तर कैसे दे पाऊंगा। रोनित की बातें सुनकर राजन तपाक से बोला।

तुम समझते हो मित्र! परन्तु अंजान बन रहे हो। बोलने के बाद राजन एक पल रुका, बोलते समय उसका गला रूंध गया था। फिर वह धाराप्रवाह बोलता चला गया। रोनित! माना कि मैं ने गलती की है, अपने जीवन में ऐसा उलझा कि सभी को भूल गया, खास कर तुमको। लेकिन ऐसा तो बिल्कुल भी मत समझना कि तुम्हारे लिये प्रेम कम था। हां गलती तो हुई है, मुझे तुमसे हमेशा बात करते रहना चाहिये था, परन्तु मैं अपने धर्म को नहीं निभा सका। लेकिन तुम भी तो निष्ठुर हो गये कि तुमने कभी भी फोन नहीं किया और न ही मित्रता के धर्म की याद दिलायी। बोलने के बाद राजन मौन हो गया। रोनित ने देखा कि राजन के आँखों से आंसू छलक रहे थे। उसने राजन को बांह पकड़ कर उठाया और कुर्सी पर बिठाया, फिर पीने को पानी दिया। जब राजन थोरा सा शांत हुआ, तब रोनित गंभीर होकर उसके आँखों में देखते हुए बोला।

अब छोड़ो भी बीती बातों को और उन गीले-शिकवों को। बस अब तुम आ गये हो हाल-चाल जानने के लिये। मेरे लिये यही बहुत है।

तो ठीक है, चलो मेरे साथ घूमने के लिये। मैं भी आज फ्री हूं और तुम भी फ्री हो जाओ। आज फिर से हम दोनों दोस्त शहर के गलियों की खाक छानेंगे। राजन ने रोनित की आँखों में देखते हुए तपाक से बोला। उसकी बातें सुन कर रोनित मुसकरा उठा, उसे वह दिन याद आ गये। जब वे दोनों बिना कारण के ही शहर की गलियों की खाक छानते फिरते थे। सच बहुत मजा आता था, जब बिना मतलब के वे दोस्तों के झुंड में घूमते थे।

रोनित इन्हीं बातों को सोच रहा था कि राजन ने मुसकरा कर उसके आँखों में देखा और इशारे से पुछा कि क्या इरादा है। बस फिर क्या बात थी, रोनित ने सहमति में सिर हिला दी। फिर वे दोनों उठे और बाहर की ओर निकले। बाहर निकलते ही रोनित की नजर आलोक पर पड़ी, उसने आलोक को निर्देश दिया। फिर वे दोनों शो रूम से बाहर निकले और पार्किंग की ओर बढे, जहां पर राजन की कार पार्क खड़ी थी।

*********

कार सड़क पर अपनी रफ्तार से भागी जा रही थी। दिन के ग्यारह बजे थे, इसलिये सड़क पर भीड़ नाम मात्र की थी। सड़क के दोनों ओर बहुमंजिला इमारत, और दुकान, जिसे राजन गंभीर नजरों से देख रहा था। जबकि रोनित कार ड्राइव करने में तल्लीन था, उसे बाहर की दुनिया से मानो कि कोई मतलब ही नहीं हो। हां उसे मालूम था कि राजन को गीत सुनने का शौक है, इसलिये उसने म्यूजिक प्लेयर को आँन कर दिया था। समय यूं ही बीत रहा था, अपनी रफ्तार से। एक समय ही तो है, जो कभी भी नहीं थकता, निरन्तर गति से आगे की ओर बढता जाता है। लेकिन रोनित को यह चुप्पी खलने लगा, वह ऐसा तो बिल्कुल भी नहीं था, कि ज्यादा देर तक चुप रहे। उसने राजन की ओर देखा और गंभीर होकर बोला।

अमा यार राजन! इतना तो बता कि जाना किधर है, मैं एक घंटे से बस यूं ही इस सड़क से उस सड़क पर कार को भगाए जा रहा हूं। उसकी बातें सुनकर राजन पहली बार मुसकाया और बोला।

अच्छा! तो ठीक है, तुम एक काम करो, कार को डाँ, तनेजा के क्लिनिक पर ले-लो। उसकी बातें सुन कर रोनित चौंका। उसे समझ ही नहीं आया कि राजन ऐसा क्यों कह रहा है। उसे अच्छी तरह से मालूम था कि डाँ. तनेजा एशिया स्तर पर यौन रोग के विशेषज्ञ डाँ .थे। उसने आश्चर्य से राजन की ओर देखा और बोला।

लेकिन डाँ. तनेजा से तुम्हें क्या जरूरत आन पड़ी? उसकी बातें सुनकर राजन मुस्कराया, फिर उसकी आँखों में देख कर बोला।

अमा यार रोनित? तुम बहुत सवाल करते हो। तुमने मुझसे वादा किया है कि तुम मुझे को-आँपरेट करोगे। फिर यह सवाल किसलिये, बस तुम मेरा साथ दो। राजन की बातें सुनकर रोनित हकबका गया, उसे समझ नहीं आया कि क्या बोले।

ऐसे में उसने राजन की बातों का पालन करना ही उचित समझा। उसने कार का रूख डाँ. तनेजा के क्लिनिक की तरफ कर दिया। काफी विशाल क्षेत्रफल में फैला हुआ क्लिनिक, मशहूर होने के कारण वहां काफी भीड़ थी। लेकिन राजन ने पहले ही नंबर लगवा लिया था,

सौम्या के द्वारा। जब दोनों कार पार्किंग करके रिसेप्सन पर पहुंचे, तो रिसेप्शनिस्ट ने डाँ. साहब के रूम की ओर इशारा किया। फिर क्या था, राजन ने रोनित का हाथ पकड़ा और तेजी से चलता हुआ डाँ. साहब के रूम में प्रवेश कर गया। डाँ. तनेजा, वृद्धत्व की ओर जाता शरीर, लेकिन चेहरे पर चमक बरकरार थी। लंबा एवं भरावदार शरीर, स्वभाव से मृदुल। डाँ. तनेजा दोनों के परिवार के घनिष्ठ थे, अतः उनके वहां पहुंचते ही मुस्करा कर स्वागत किया। फिर गौर से रोनित का चेहरा देखने के बाद बैठने के लिये इशारा किया।

रोनित इस समय खुद को असहज महसूस कर रहा था, लेकिन वह विवश था। उसने राजन को वचन दे दिया था। ऐसे में दोनों आगे बढ कर कुर्सी पर बैठ गये। तब तनेजा ने रोनित की रूटीन चेकिंग की और फिर लेटर पैड पर टेश्ट लिखने लगे। इसके बाद तो कई टेश्ट किए गये। रोनित लैव के चक्कर लगा कर थक सा गया था। साथ ही उसे बोरियत भी महसूस हो रही थी। उसका जी कर रहा था कि राजन को खींच कर जोरदार लाफा मारे। लेकिन ऐसा वो कर नहीं सका, क्योंकि दोस्ती के कारण मजबूर था। राजन भी उसके मनोभाव को अच्छी तरह से समझ रहा था।

उसको हृदय के अंदर हंसी के अस्फुटन की अनुभूति हो रही थी। लेकिन ऐसा वो कर नहीं सकता था, कहीं रोनित नाराज हो गया, तो उसके सारे किए-कराये पर पानी फिर सकता था। इसलिये उसने अपने उफनते भावनाओं पर अंकुश लगाया। जब सभी टेश्ट हो चुके, तो दोनों क्लिनिक से बाहर की ओर निकले। वे दोनों पार्किंग की ओर बढे, तब राजन से नहीं रहा गया। वह गंभीर होकर रोनित की आँखों में झांककर बोला।

अमा यार रोनित! अब अपनी मुराद पूरी कर लो। उसकी बातें सुनकर रोनित ने उसकी तरफ देखा, जबकि राजन आगे बोला। अब क्लिनिक के अंदर लाफा मारते, तो दुनिया देखती। अब मारोगे, तो कोई भी नहीं देखेगा। उसकी बातें सुनकर रोनित झेंप गया, जबकि राजन ने उसे बांहों में भर लिया और बोला।

मैं समझ सकता हूं तुम्हारी परेशानियों को, तुम्हारे अंदर घुमड़ते हुए मनोभाव को। लेकिन अमा यार रोनित! करूं क्या, दिल है कि मानता नहीं। तुम्हें ऐसे हालात में देख नहीं सकता, आखिर दोस्त हूं न। राजन बोलकर चुप हुआ, तबतक रोनित सामान्य हो चुका था। उसने राजन से खुद को अलग किया, फिर बोला।

तो हो गया न तुम्हारे मन की, अब बोलो क्या इरादा है। अब किधर को चलना है, या और भी कोई टेश्ट बाकी है। रोनित के बोलने के तुरंत बाद ही झट से राजन बोला।

नहीं-नहीं, आज अब कुछ और नहीं। अब तो हम लोग किसी होटल में चलते है। बोलने के बाद राजन ने कलाईं घङी की ओर देखा और फिर बोला। वैसे भी अब दिन के दो बज चुके है। मुझे जोरों की भूख लगी है, तो तुम्हें भी लगा होगा। पहले होटल चलकर खाना खाते है, फिर यूं ही दिल्ली की खाक छानेंगे, उसके बाद शाम को मधुशाला वियर वार। राजन जब धाराप्रवाह बोलकर चुप हुआ, तो हाँफने लगा था।

जबकि रोनित ने उसकी तरफ देखकर मुसकाया, बोला कुछ भी नहीं। फिर वे दोनों कार में बैठे और कार श्टार्ट करके आगे बढा दिया। कार हाँश्पीटल गेट से निकल कर सड़क पर दौड़ने लगी। इस बीच उन दोनों में किसी प्रकार की बातचीत नहीं हुई। हां म्यूजिक प्लेयर चलता रहा, जिसमें अलताफ राजा के गाने बज रहे थे। इसके बाद उन दोनों ने आहना होटल में रूक कर लंच लिया। इसके बाद फिर से वही सफर, सड़क पर कार ऐसे ही बेवजह दौड़ती रही, साथ ही दोनों के हृदय में विचारों के झोंके चलते रहे। दोनों ही सोच रहे थे कि किस विषय पर बात की शुरूआत की जाए। आखिरकार राजन से नहीं रहा गया, वो बोल पड़ा।

अमा यार रोनित! एक बात सच-सच बतलाओगे?

उसकी बातें सुनकर रोनित चौंका, फिर उसकी आँखों में देख कर बोला। ऐसा क्यों? राजन! तुम्हें ऐसा क्यों लगता है कि मैं तुमसे झूठ बोल सकता हूं। तुम्हें जो भी पुछना है, बेहिचक पुछ लो।

तो सही-सही बतलाना कि तुम्हारे मन में ऐसा कौन सा फांस चुभा है, जो तुम होकर भी लगते हो कि नहीं हो? रोनित की बातें सुनकर राजन तपाक से बोल पड़ा । जबकि रोनित उसकी बातें सुनकर सकपका गया, फिर उसने बात ही पलट दी।

छोड़ो न इन बातों को राजन! वैसे तुम यह बताओ कि तुम अकेले आए हो? या भाभी भी साथ आई है। बोलकर रोनित मौन हो गया, उसका चेहरा बिल्कुल सपाट था, बिना किसी भाव के। राजन उसके चेहरे को देखकर समझ गया कि वह बीती बात बताने के मूड में नहीं है। राजन यह अच्छी तरह समझ चुका था कि उसे ज्यादा उकेरना परेशानी का सबब बन सकता है। इसलिये उसने रोनित की आँखों में देखा और धीरे से बोला।

नहीं, तुम्हारी भाभी तो मायके गई है। मैं अभी बिल्कुल अकेला ही हूं। राजन की बाते सुनकर रोनित ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी, तभी उसकी नजर कलाईं घङी पर गई। शाम के पांच बज चुके थे, रोनित ने कार के शीशे से बाहर देखा, शाम ढलने को आई थी। उसने मन ही मन सोचा, यह शहर भी न, कब सुबह होता है और कब शाम, पता ही नहीं चलता। फिर वह राजन की ओर देखकर बोला।

तो क्या इरादा है, चलें।

किधर? रोनित की बातें सुनकर राजन धीरे से बोला। जबाव में रोनित मुसकाते हुए बोला।

और कहां! मधुशाला चलते है, वही पर दो-दो जाम छलकाएंगे। सुनकर राजन ने सहमति में सिर को हिलाया। फिर क्या था, रोनित ने कार का रूख मधुशाला की ओर मोड़ दिया। कार अपने रफ्तार भागती रही, समय अपने रफ्तार से आगे भागता रहा।

कार चलती रही, लेकिन इस दरमियान उन दोनों के बीच बातचीत नहीं हुई। कार आखिरकार मधुशाला के प्रांगण में पहुंच गई। फिर रोनित ने कार पार्क की ओर लिया। कार पार्क करके दोनों मधुशाला के गेट की ओर बढ गये थे। बाहर शाम ढल चुकी थी और अंधेरा घिर आया था। लेकिन मधुशाला दुल्हन की तरह सजी हुई रोशनी से जगमग कर रही थी। जब उन दोनों ने हाँल में कदम रखा, तो देखा, हाँल में जाम का दौर चल रहा था। शाम होने के साथ ही हाँल भर चुकी थी, साथ ही वेटर ग्राहकों की सेवा में तत्पर थे। लेकिन दोनों को इन बातों से कोई मतलब नहीं था। उनका टेबुल रिजर्व था, वे अपने टेबुल की ओर बढ चले।

********

रोनित केमिकल एण्ड फर्टिलाइजर, कंपनी रोहतक रोड पर दिल्ली से सटा हुआ था। काफी विशाल भू-भाग में फैला हुआ कंपनी केमिकल उत्पादन में अग्रणी स्थान रखे हुए थे। इस वक्त दिन के दो बज रहे थे, और इसी के साथ कंपनी स्टाफ की शिफ्ट चेंजिंग हो रही थी। लेकिन इस सब से दूर अनिरुद्ध साहब अपने आँफिस में बैठे हुए बिना मतलब के ही फाइलों को उलट रहे थे। अनिरुद्ध साहब कंपनी के एम. डी. थे, जबकि चेयरमैन उनकी पत्नी थी। जो कि दिल्ली हेड आँफिस में बैठती थी। लेकिन अभी वह छुट्टी पर चल रही थी। इसलिये उनकी जिम्मेदारी बढ चुकी थी।

लेकिन उनको अपने जिम्मेदारी से ज्यादा रोनित की चिन्ता खाये जा रही थी। आखिर में उन्होंने इतना बड़ा अम्पायर खड़ा किया था, रोनित को ही तो संभालना था। लेकिन वह तो जिन्दगी से ही हारता जा रहा था। ऐसे में उनका यह विशाल साम्राज्य, क्या होगा यह लेकर। इसलिये ही इस वक्त वह आँफिस में बैठे बेचैन थे। फाइल तो उनके सामने थी, लेकिन उनका ध्यान वहां नहीं था। उनका आँफिस आधुनिक साधनों एवं सुख सुविधा से सुसज्जित था। इस वक्त वो कहीं खोये हुए से लग रहे थे, तभी तो उनका जनरल मैनेजर एस. सारथी ने जब आँफिस में प्रवेश किया, तो वो चौंक उठे। जबकि वो उनके सामने आकर खड़ा हो गया, एवं विनम्र स्वर में बोला।

प्लीज सर! टूगेदर मीटिंग के लिए देर हो रहा है। अब आपको मीटिंग हाँल में चलना चाहिए। सुनकर अनिरुद्ध साहब तत्काल तो नहीं बोले, लेकिन एक मिनट बाद शब्दों को तौल कर बोले।

एक काम करिए मिस्टर सारथी, आप ही मीटिंग अटेन्ड कर ले। आज मैं किसी कारण बस आपके साथ नहीं आ सकता। सुनकर एस. सारथी ने मुस्करा कर प्रतिक्रिया दी।

अफकोर्स सर! बोलने के बाद एस. सारथी पलटा और आँफिस से बाहर निकल गया।

तभी अनिरुद्ध साहब के मोबाइल ने वीप दिया। वो तो बस इसी इंतजार में थे, मैसेज खोलकर देखा, लिखा था” मिशन सक्सेसफुल”। फिर क्या था, वो तेजी से उठे और आँफिस के बाहर निकले। आँफिस के सामने ही उनकी कार, स्कोडा खड़ी थी। वो जब तक आँफिस की सीढी उतरते, ड्राइवर गेट खोल कर मुस्तैद था। उनके बैठने के साथ ही ड्राइवर ने ड्राइविंग शीट संभाल ली। और उनकी तरफ देखा, मानो पुछ रहा हो कि किधर चलना है साहब।

उन्होंने धीरे से कहा, डाँ तनेजा के क्लिनिक पर ले लो। बोलने के बाद अनिरुद्ध साहब लैपटाप पर खो गये। जबकि ड्राइवर ने कार श्टार्ट की और आगे बढा दिया। कार ने श्टार्ट होते ही रफ्तार पकड़ लिया और धनुष से निकले तीर की तरह कंपनी के मेन गेट से निकल गई। लेकिन अनिरुद्ध साहब का ध्यान उधर तो था ही नहीं, वे तो आए हुए इ-मेल का जबाव देने में व्यस्त थे। कार सड़क पर सरपट दौड़ती हुई दिल्ली के अंदर प्रवेश कर गई। सड़क के दोनों ओर ऊँची-ऊँची इमारत, और इसके बीच से भागदौड़ करता शहर। सभी को जल्दी थी, अपने मंजिल को पहुंचने की।

अनिरुद्ध साहब तब चौंके, जब कार झटके से रूकी। यूं तो ड्राइवर एक्सपर्ट था, दूसरे महंगी कार, झटका का सवाल ही नहीं था। लेकिन कार एकाएक डाँ तनेजा के क्लिनिक की ओर मुड़ी, लेकिन दरबान जल्दी में गेट खोल नहीं पाया था। इसलिये ड्राइवर ने तेजी से ब्रेक दबाये, जिससे कार झटके से रूकी। झटका लगते ही अनिरुद्ध साहब सजग हुए और बाहर देखा। गंतव्य आया देख कर उन्होंने कलाईं घङी की तरफ नजर डाली, जो शाम के चार बजे की सूचना दे रही थी। बस अनिरुद्ध साहब कार से उतर गये, जबकि ड्राइवर कार को पार्किंग की ओर ले गया।

जबकि अनिरुद्ध साहब कार से उतर कर उस ओर बढ गये, जहां डाँ तनेजा विश्राम लेते थे। वे आगे बढते जा रहे थे, विभिन्न राहदारियों से होकर । क्लिनिक के स्टाफ उन्हें देख कर सलाम कर रहे थे, लेकिन उनके तरफ से किसी प्रकार की प्रतिक्रिया नहीं मिल रही थी। वे बस अपनी धून में आगे की ओर बढते जा रहे थे। चलते-चलते वे आखिरकार वहां पहुंच ही गये, जहां डाँ तनेजा थकावट महसूस होने पर रेस्ट करते थे। जब वे उस रूम के दरवाजे पर पहुंचे, तो अंदर से प्रभावशाली स्वर उभड़ा।

रुके क्यों हो सहाय! अंदर आ जाओ, दरवाजा खुला है और मैं तुम्हारा ही इंतजार कर रहा हूं।

बस फिर क्या था, अनिरुद्ध साहब धड़धड़ा कर रूम के अंदर प्रवेश कर गये। अंदर पहुंचते ही देखा कि डाँ तनेजा सोफे पर बैठे हुए प्याले में रखी शराब को चसक रहे थे। जबकि सेंटर टेबुल पर बोडका की बोडका और भूने हुए काजू प्लेट में रखा हुआ था। उनको देखकर डाँ तनेजा ने उन्हें सामने बाली सोफा पर बैठने का इशारा किया और उनके लिये पैग बनाने लगा। जबकि अनिरुद्ध साहब सामने बाली सोफे पर बैठ कर गंभीर स्वर में बोले।

तनेजा! मेरे लिये अभी मत बनाओ, अभी मेरा लेने का बिल्कुल भी इरादा नहीं है, अभी तो तुम यह बतलाओ, जिसके लिये मैं आया हूं। उनकी बातें सुनकर तनेजा मुसकरा कर बोले।

सहाय! तुम भी न, अब टेंशन छोड़ो भी। बातें तो होती ही रहेगी, पहले दो-दो पैग हो जाए। बोलने के साथ ही तनेजा ने पैग उनकी ओर बढाया। जिसे उन्होंने थाम लिया, इसके बाद चियर्श का स्वर रूम में गूंजा। फिर दोनों शराब की चुस्कियां लेने लगे, तब फिर से अनिरुद्ध साहब बोले।

तनेजा! अब वह रिपोर्ट भी बतला दो, जिसके लिये मैं आया हूं। उनकी बात सुनकर तनेजा के होंठों पर मुस्कान उभड़ी और वे बोले।

घबराओ नहीं सहाय, तुम्हारा बेटा जिस्मानी तौर पर पूरी तरह से तंदुरुस्त है। इसलिये इस तरफ से बेफिक्र रहो और आगे की सोचो। इसके बाद तनेजा अनिरुद्ध साहब को रिपोर्ट के बारे में समझाने लगे। अनिरुद्ध साहब उनकी बातों को ध्यानपूर्वक समझ रहे थे। जब डाँ तनेजा ने अपनी बात खत्म की, तो अनिरुद्ध साहब ने उनके आँखों में देखते हुए बोला।

तनेजा! तो फिर इसके आगे क्या? अब तुम्ही कोई रास्ता दिखलाओ। क्योंकि मैं एक सफल बिजनेस मैन तो हूं, लेकिन एक सफल पिता तो हरगिज नहीं। उनकी बातें सुन कर तनेजा मुस्करा कर बोले।

सहाय! इसको तुम्हें समय के सहारे छोड़ देना चाहिए और विश्वास रखना चाहिए सौम्या और राजन पर। मेरे विचार से दोनों काफी सुलझे हुए है, वे दोनों जरूर कोई न कोई रास्ता जरूर निकाल लेंगे।

उनकी बातें सुनकर अनिरुद्ध साहब ने सहमति में सिर हिलाया। फिर सोफे से उठकर डाँ साहब से विदा लेकर रूम से निकल पड़े । वो जब क्लिनिक के गेट पर पहुंचे, तो कार वहीं खड़ी थी। उनके कार में बैठते ही कार क्लिनिक गेट से निकली और सरपट सड़क के सीने पर दौड़ने लगी। आज अनिरुद्ध साहब के चेहरे पर खुशी की हल्की झलक थी। उन्हें आज जल्द ही बंगले पर पहुंचना था और डिनर की तैयारी करवानी थी। उन्हें राजन ने विश्वास दिलाया था कि वह रोनित को होश में ही लेकर आएगा। फिर वे तीनों साथ ही डिनर लेंगे, राजन ने कहा था। जब राजन ने कहा था, तो उन्हें पूर्ण विश्वास था।

उन्होंने अपनी कलाईं घङी की ओर देखा, शाम के छ बज चुके थे। आज अनिरुद्ध साहब को बंगले पर पहुंचने की जल्दी थी। आज बीतता हुआ एक-एक पल उन्हें सदियों सा प्रतीत हो रहा था। आखिर में उनकी कार ने बिला में प्रवेश किया और पोर्च में रूकी। कार का रुकना और अनिरुद्ध साहब तेजी से कार से उतरे और लीविंग रूम की ओर बढे। आज ऐसा लग रहा था कि उनके पैर में पर लग गये हो। लीविंग रूम में पहुंचते ही उन्होंने बेल बजा दिया। बेल बजते ही पूरे बिला में मधुर संगीत गूंज उठा। फिर क्या था, पलक झपकते ही राकेश वहां आ गया और यंत्रवत खड़ा हो गया उसे सामने देखकर अनिरुद्ध साहब के होंठों पर मुस्कान उभर आया

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मधुशाला वियर वार, दिल्ली का फेमस वियर वार। रात बढने के साथ ही महफिल में रौनक आ गई थी। चारों तरफ चरस का धुआँ और उसपर छलकता शराब का जाम। हर कोई मदहोश था, पीने-पिलाने का दौर चल रहा था। तो स्टेज पर वार बाला अर्ध नग्न कपड़ों में पाँप म्यूजिक पर अपने कूल्हे मटका रही थी। कुल मिलाकर माहौल मदहोशी का था और सभी मदहोशी के बांहों में समा जाने को आतुर थे। राजन और रोनित अपने रिजर्व टेबुल पर अड्डा जमा चुके थे। इसी के साथ रोनित ने उम्दा दारू की आँर्डर भी दे दी थी। लेकिन उनका आँर्डर अभी तक सर्व नहीं हुआ था। ऐसे में दोनों के पास ही टाइम पास करने के अलावा कोई कार्य नहीं था। राजन परिस्थिति को समझता था, इसलिये उसने रोनित का हाथ पकड़ा और उसके आँखों में झांककर बोला।

देखो रोनित! तुमने मुझसे वादा किया है कि ड्रींक्स इतना ही लोगे, जिससे होश में रहो। तुम्हें अपना वादा याद है न, कि हमें अंकल के साथ डिनर भी लेना है। उसकी बातें सुनकर रोनित मुसकाया और सहमति में सिर को जूम्बीस दी, बोला नहीं।

तबतक वेटर आँडर सर्व कर चुका था। आँडर सर्व होने के बाद रोनित पैग बनाने में जुट गया। जबकि राजन ने हाँल में नजर फेरा, देखा तो कोई शराब के प्याले को होंठों से लगाये था, तो कोई चिलम फुंक रहा था। अजीब सा मादक माहौल था, सभी मदहोशी में थे। अगर यह पुछा जाए कि स्वप्न लोक कैसा होता है, तो कहना अतिस्योक्ति नहीं होगा कि ऐसा ही होता है। चारों तरफ मदहोशी का आलम, उसपर गूंजता पाँप साँन्ग और थिरकती वार बाला। वो शायद इसी तिलिस्म में उलझा रहता, अगर रोनित ने उसे टोका न होता।

कहां खो गये राजन! पैग तैयार हो चुकी है। आवाज सुनकर राजन चौंका और रोनित की तरफ पलटा। फिर दोनों ने पैग उठाया और एक दूसरे से जाम टकरा दिया।

चियर्श!

चियर्श मेरे दोस्त! राजन भी प्रति उत्तर में बोला। इसके बाद जाम होंठों से लगाकर दोनों हलक में उड़ेल गए। फिर उसके बाद दोनों पीने में व्यस्त हो गये। महफिल पूरी तरह जम चुकी थी, करीब-करीब वहां पर मौजूद हरेक शख्स नशे के गिरफ्त में समा चुका था। लेकिन तभी राजन के आँखों में चमक उभड़ी, विजयी चमक। उसने मधुशाला के गेट से सौम्या को आते देख लिया था। पहले तो उसे अपने आँखों पर विश्वास नहीं हुआ। उसने तो सौम्या को अपनी परेशानी बतलाया था। उसे विश्वास था कि सौम्या जरूर उसकी मदद करेगी। लेकिन इतनी जल्दी, उसे विश्वास नहीं हो रहा था।

जबकि सौम्या ने वियर वार के अंदर प्रवेश किया। इस वक्त वो ब्लू कलर की कोट सूट पहने थी, जिसमें वो कयामत की लग रही थी। उसने वियर वार के अंदर कदम रखते ही खुद को थोरा असहज महसूस किया। ऐसा नहीं था कि वो पहले-पहल इस वियर वार में आई थी। काँलेज टाइम में कितनी ही बार वो अपने दोस्तों के साथ आ चुकी थी। लेकिन जब से उसने डाक्टरी के पेशे को संभाला था, वो यहां कभी नहीं आई थी। उसने अपने आप को संभाला और आगे बढी, लक्ष्य था रोनित का टेबुल। वो मदमस्त चाल चलते हुए वहां पर पहुंची और उसने रोनित की तरफ हाथ बढाया।

हैल्लो फ्रेंण्ड!

आवाज सुनकर रोनित ने सिर उठाया और अप्सरा रूप सौम्या को देखकर बोला।

हैल्लो! वैसे मैंने आपको पहचाना नहीं और यूं ही पास आने का मतलब?

मतलब क्या मिस्टर! मतलब से क्या होता है। मैं तनहा, तनहा रात और मदहोशी का आलम। ऐसे में अकेली हूं तो आपके पास चली आई। सौम्या ने मुस्कान होंठों पर सजाकर बोला। जबाव में रोनित धीरे से बोला।

तो आपको कंपनी चाहिये? वैसे मैं आपका नाम जान सकता हूं। उसकी बातें सुनकर सौम्या मुसकाई और धीरे से बोली।

सौम्या नेहवाल! वैसे मैं आपके पास बैठ सकती हूं और आपने अपना नाम नहीं बताया। सौम्या अपनी हंसी बिखेर कर बोली। जबाव में रोनित ने उसे बैठने के लिये इशारा किया। फिर मुस्करा कर बोला।

मैं रोनित सहाय और यह राजन। रोनित ने अपना नाम बताने के बाद राजन की ओर इशारा किया। तो सौम्या ने राजन की ओर हाथ बढाया। राजन ने भी हाथ बढ़ाकर मिलाया और मुस्कराया। फिर सौम्या खाली कुर्सी पर बैठ गई, उसके बाद उसने भी अपने लिये पैग बनाया। फिर तीनों ही पीने में व्यस्त हो गये। जब पीने-पिलाने का दौङ शुरू हुआ, तो सौम्या रोनित की तरफ मुस्करा कर बोली।

वैसे रोनित! मुझे ऐसा लगता है कि आप भी तनहा हो, मैं भी तनहा। अपनी तो जोड़ी खुब जमेगी, सौम्या खनकते हुए आवाज में बोली।

उसकी बातें सुनकर रोनित हकबका गया, उसे समझ ही नहीं आया कि क्या बोले। उसने काफी सोच विचार किया उसके बाद गंभीर होकर बोला। मैं ने आपके बातों का मतलब समझा नहीं। आप कहना क्या चाहती है। रोनित ने सौम्या की तरफ देखकर बोला। उसकी बातें सुनकर राजन ने समझ लिया कि कहीं बात बिगड़ न जाये। इसलिये वह तपाक से बोल पड़ा।

रोनित! तुम भी न बाल की खाल निकालते रहते हो। इनका कहने का मतलब यही है कि आज रात हम लोगों के बीच खुब जमेगी।

इसके बाद राजन हंस पड़ा, जबकि रोनित यह न समझ सका कि यह सब उसकी ही प्लानिंग है। वह भी मुस्करा उठा। फिर वे पीने में व्यस्त हो गये, साथ ही हाँल में गूंजता पाँप म्यूजिक। गाने के धुन पर सौम्या थिरकना चाहती थी। जब तीनों नशे में आ चुकी, तो सौम्या उठ खड़ी हुई। उसने रोनित का हाथ पकड़ कर उठा लिया और लगभग खिचती हुई डांस फ्लोर की ओर बढी। राजन यह देखकर मुसकाया। यह तो उसकी ही प्लानिंग थी, ऐसे में वो जाम को चसकते हुए देखता रहा कि आगे क्या होता है। जबकि रोनित को खींच कर सौम्या डांस फ्लोर पर ले गई और डांस करने लगी। रोनित का डांस करने का बिल्कुल भी इरादा नहीं था। लेकिन जब सौम्या थिरकने लगी, तो रोनित से नहीं रहा गया। वो भी डांस करने लगा, सौम्या के ताल में ताल मिलाने लगा।

फिर क्या था, पूरा हाँस सीटी के शोर से गूंज उठा। वन्स मोर-वन्स मोर के शोर हाँल में गूंजने लगे। सौम्या और रोनित कदम से कदम मिला कर नाच रहे थे। उनका लय ताल में लिया हुआ हरेक स्टेप महफिल की उत्तेजना बढा रही थी। जबकि राजन शराब को चसकते हुए मुसकरा रहा था। अब उसे विश्वास हो रहा था कि उसकी योजना सफल हो जाएगी। उसने सोच लिया था कि जैसे भी हो, रोनित को डिप्रेशन से बाहर लाना है।

वो अपनी सफलता पर मुस्करा रहा था, तभी रोनित और सौम्या डांस फ्लोर से उतरे। शायद वह थक चुके थे, इसलिये वे अपनी जगह पर आकर बैठ गये। उसके बाद उन्होंने दो-दो पैग पिया और उठ कर हाँल से बाहर निकलने लगे।

सौम्या हाँल से बाहर आते ही अपने कार की ओर बढ गई। जबकि राजन और रोनित अपनी कार की ओर बढे। आज रोनित अपने पूरे होशो हवास में था और यही राजन समझ रहा था कि उसके लिये जीत है। वे दोनों कार में बैठे, इंजन श्टार्ट किया और आगे बढा दिया। कार मधुशाला के गेट से निकली और निकलते ही रफ्तार पकड़ लिया। हलांकि कार ड्राइव रोनित खुद ही कर रहा था और उसे मालूम था कि राजन को साँन्ग प्रिये है। इसलिये उसने म्यूजिक प्लेयर आँन कर दिया और अपनी नजर ड्राइविंग पर जमा दी। जबकि रोनित गाने के स्वर पर झूमता रहा और मन ही मन मुस्कराता रहा।

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कार अपनी रफ्तार से सड़क पर भागी जा रही थी। रात के नौ बज रहे थे। ऐसे में सड़क पर गाड़ियों की भीड़ कम हो गई थी। धीरे-धीरे वातावरण शांत होता जा रहा था, तो स्वाभाविक ही था कि राजन शांति की ओर बढते दिल्ली की सुन्दरता को देखे। राजन कार के शीशे से बाहर का नजारा देख रहा था, जबकि रोनित अपनी धून में कार ड्राइव कर रहा था। कार के अंदर बजते गानों के धून, राजन गाने को सुनकर झूमता भी जा रहा था। साथ ही उसके मन में अनेको प्रकार के खयालात उभर रहे थे, जिससे उसके होंठों पर मुस्कान की रेखा फैल जाती थी। समय यूं ही आगे की ओर बढता रहा, एकाएक राजन रोनित की ओर मुखातिब होकर बोला।

यार रोनित !एक बात पुछूं, सच-सच बतलाओगे। राजन की बातें सुनकर रोनित चौंका, फिर सहज होकर बोला।

पुछो! क्या पुछना चाहते हो, तुम्हें विश्वास होना चाहिए कि कभी भी तुम्हारे प्रश्न हो, और मैं उत्तर दूं। तो वह बिल्कुल ही सही होगा। रोनित की बातें काफी गूढ़ थी, एक पल को राजन को यही समझ नहीं आया कि आगे क्या बोले। फिर उसने खुद को सामान्य किया और रोनित की आँखों में झांक कर बोला।

अमा यार रोनित! सवाल विश्वास का नहीं है, सवाल है जीवन का, उससे जुड़ा हुआ। इसलिये आशान्वित होकर तुमसे पुछ रहा हूं। राजन ने बोलने के साथ ही नजर रोनित के चेहरे पर टिका दी। जबकि रोनित उसकी बात सुनकर एक पल सोचता रहा, फिर बोला।

राजन! सवाल चाहे जिस संदर्भ में हो, सही जबाव दूंगा, पुछो, जो पुछना चाहते हो।

तुमने अपनी पढाई बीच में ही क्यों छोड़ दी, ऐसा क्या हुआ कि तुम शिक्षा के क्षितिज से जीवन के कठोर धरातल पर उतर गये। राजन ने बोलने के साथ ही अपनी नजर रोनित के चेहरे पर टिका दी। जबकि रोनित एक पल को असहज हुआ, उसकी भाव-भंगिमा बदली। लेकिन दूसरे ही पल सहज होकर बोला।

बस यूं ही, आगे पढने की इच्छा ही नहीं रही और फिर पापा के बिजनेस को भी तो संभालना था। बोलने के बाद रोनित ने मौन धारण कर लिया। राजन के लिये बस इतना ही समझना काफी था कि वो आगे नहीं बतलाना चाहता। इसलिये विषय परिवर्तन करके बोला।

अच्छा छोड़ो उन बातों को, इतना तो बता। मधुशाला में जो मिली थी, डाँ सौम्या। कैसी है? आई मिन तुमको कैसी लगी।

कैसी लगी से मतलब? राजन तुम पुछना क्या चाहते हो। अरे वो अच्छी है, पढी लिखी और सुशिक्षित है। इसके आगे मैं ज्यादा तो जानता नहीं। रोनित सपाट लहजे में बोला, तो राजन फिर से बोल पड़ा।

तुम्हें कल मेरे साथ डाँ सौम्या के क्लिनिक पर चलना है। बह जब बोलकर चुप हुआ, तो रोनित चौंक उठा। उसके चेहरे पर एक साथ कई रंग आकर चले गये। रोनित उसके शब्दों के प्रति उत्तर में बोलना चाहता था। लेकिन वह रूक गया, क्योंकि अनिरुद्ध बिला आ चुका था।

रोनित ने तेजी से कार को टर्ण लिया, गेट पर खड़ा दरबान पहले से ही मुस्तैद था। गेट खुला था, तो कार सरसराती हुई गेट के अंदर प्रवेश कर गई। रोनित ने कार को सीधे पोर्च में ले जाकर खड़ा किया। तब दोनों कार से नीचे उतरे और दरवाजा बंद किया। फिर बंगले के मेन गेट की ओर बढ चले। लेकिन कार की आवाज सुनकर अनिरुद्ध साहब बाहर आ चुके थे। आज उन्होंने रोनित को पूरे होशो-हवास में देखा, तो उनके दिल को सुकून पहुंचा। तब तक राजन और रोनित उनके करीब पहुंच चुके थे। फिर तीनों ही लीविंग रूम में प्रवेश कर गये। आज रोनित को सही स्थिति में देखकर अनिरुद्ध साहब के खुशी का ठिकाना नहीं था। उन्होंने हाँल में पहुंचते ही बेल बजा दिया। सुमधुर संगीत ध्वनि पूरे बंगले में गूंज उठी और इसी के साथ राकेश जिन्न की तरह प्रगट हुआ और हाथ जोर कर खड़ा हो गया।

उसे सामने देखकर अनिरुद्ध साहब मुस्करा उठे। उन्होंने उसे इशारा किया, जबाव में राकेश यंत्रवत बोला। मालिक! डिनर टेबुल तैयार है। सुनकर वे तीनों डायनिंग रूम की ओर बढ चले। डायनिंग रूम से इत्र की खुशबू आ रही थी। राकेश ने पूरी तन्मयता से डायनिंग टेबुल की सजावट की थी। वहां पहुंचते ही तीनों ने कुर्सी संभाल ली और डायनिंग टेबुल के दोनों ओर बैठ गये। जबकि राकेश उन लोगों को भोजन सर्व करने लगा। वैसे ही राकेश के हाथों में जादू था, वो जो भी बनाता था, होटल से बेहतर होता था। दूसरे रोनित बहुत दिनों बाद डिनर टेबुल पर बैठा था। उसे जोरों की भूख लगी थी, इसलिये वो भोजन पर टूट पड़ा। उसे खाते देखकर अनिरुद्ध साहब के होंठों पर मुस्कान थिरक उठी। उसे ऐसे ही तो मस्त देखना चाहते थे वे।

अनिरुद्ध साहब और राजन ने भी खाना चालू कर दिया। हलांकि अनिरुद्ध साहब चाहते थे कि राजन कोई बात छेड़े, जिससे वे अपने मन की बात ,रोनित से कर सके। बहुत दिन हो गया था उन्हें रोनित से बात किए। वह उसके दिल की बात जानने को उत्सुक थे, लेकिन डरते थे कि कहीं उन्होंने बोला और रोनित उठकर चला गया तो। उन्हें उचित अवसर की तलाश थी कि कब बात छिड़े और कब वह उसके मन की जान सके। लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ, जबकि वे लोग अपना भोजन पूर्ण कर चुके थे।

ऐसा नहीं था कि राजन उनके मनोभाव को समझता नहीं था। लेकिन वह अभी मानसिक तौर पर तैयार नहीं था। पहले वह अपनी योजना को फुलप्रूफ कर लेना चाहता था। वह डरता था कि कहीं उसकी योजना धरातल पर आने से पहले ही दम न तोड़ दे। भोजन खत्म होने के बाद तीनों लीविंग रूम में आए, तब राजन ने सुबह आने को बोल कर उन लोगों से विदा ली और बाहर की ओर निकल पड़ा। बंगले के गेट से निकल कर वह सीधे पोर्च में आया। हलांकि अनिरुद्ध साहब उसे सी-आँफ करने आए, इस आशा के साथ कि वह कुछ बोलेगा। लेकिन राजन ने मानों चुप्पी साध ली थी, वह कार में बैठा और इंजन श्टार्ट करके आगे बढा दी। कार झटके से आगे बढी और बिला के गेट से निकली।

फिर से वही सफर, लेकिन विचार नये। उसने म्यूजिक प्लेयर आँन कर दिया था और नजर ड्राइविंग पर जमा दी। लेकिन दिमाग में विचारों का घमासान मचा हुआ था। वह सोच रहा था कि उसने जो प्लान कार्यान्वित किया है, वह सही से इंप्लान्ट होगा, या नहीं। रोनित को- आँपरेट करेगा या विरोध। कहीं उसकी योजना गलत दिशा में तो नहीं जा रही। ऐसे ढेरों सवाल थे, जो उसके दिमाग में गूंज रहे थे। राजन आज तक जीवन में कभी न उलझा था, जो अब उलझा था। उसे यह भी ज्ञात था कि इस उलझन को उसे खुद ही सुलझाना है। वह इन्हीं विचारों में ऐसा उलझा कि उसे पता ही नहीं चला कि कब उसका बंगला आ गया।

कार झटके से रूकी, तो वो चौंका। वह कार से उतरा और बंगला के गेट को खोला। फिर कार को अंदर लेकर पार्क किया और बंगले का मेन गेट खोल कर हाँल में प्रवेश किया। हाँल में कदम रखते ही उसने सबसे पहले लाइट आँन की, उसके बाद किचन की ओर बढा। उसकी आदत थी, रात को सोने से पहले एक कप काँफी पीना। तलब तो लग रही थी, इसलिये उसने काँफी बनने के लिये रख दिया। तभी उसे ध्यान आया कि अमोल से बात करनी है। फिर उसने मोबाइल निकाला और नंबर डायल कर दिया। पहली बार तो घंटी ऐसे ही बजती रही, कोई रिस्पांस नहीं मिला। लेकिन दूसरी बार जब उसने नंबर डायल किया, तो काँल उठा।

काँल लगते ही वह बात करने लगा, पहले तो इधर-उधर की बात। फिर राजन ने रोनित के बीते दिनों की जानकारी चाही। अमोल जब बोलने लगा, तो उसके बात ही खत्म नहीं हो रहे थे। ऐसे में राजन ने उसे अगले दिन दो बजे आहना रेस्टोरेंट में मिलने के लिये बोला। फिर उसने काँल डिस्कनेक्ट कर दिया। तब तक काँफी तैयार हो चुकी थी, जिसे काँफी मग में डालकर वह वापस लीविंग रूम में आ गया। फिर सोफे पर बैठकर आराम से काँफी पीने लगा और साथ ही सोचने लगा कि कल क्या-क्या करना है।

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सुबह-सुबह अनिरुद्ध बिला में काफी चहल-पहल थी। खुद अनिरुद्ध साहब चारों तरफ की साफ-सफाई और गार्डेणिंग करवा रहे थे। जबकि रोनित अपने बेडरूम में सोया हुआ था। दिन-दुनिया से बेखबर होकर वह ऐसे सो रहा था, कि मानों घोड़ा बेच कर आया हो। रोनित वैसे ही सुन्दर और स्मार्ट था, लेकिन नींद के आगोश में समाया वह बहुत ही मासूम लग रहा था। हलांकि दो बार उसके रूम में अनिरुद्ध साहब आकर जा चुके थे। लेकिन उनका मन नहीं हुआ कि नींद के आगोश में समाये रोनित को जगा दे। वैसे वे उसके साथ बहुत-ढेर सारी बातें करना चाहते थे, अपनी सुनाना चाहते थे और उसके दिल की सुनना चाहते थे। परन्तु सोते हुए रोनित को देखकर उनकी इच्छा ही नहीं होती थी, कि जगा दे।

तभी बिला के गेट से राजन की कार ने एँट्री ली। अनिरुद्ध साहब अपना काम छोड़ कर उसकी ओर लपके। तब तक राजन कार खड़ी कर के उतर चुका था और बंगले के गेट की ओर बढ चुका था। उसकी चाल में तेजी थी, इससे अनिरुद्ध साहब ने अनुमान लगाया कि वो रोनित के रूम में जा रहा है। वह वहां पहुंचेगा, तो निश्चित ही रोनित को जगा देगा। वे इसलिये राजन को रोकना चाहते थे, लेकिन अपने प्रयास में सफल नहीं हो सके। वे जब तक राजन को रोक पाते, राजन रोनित के बेडरूम में पहुंच चुका था। उसने जब रोनित को घोड़े बेचकर सोते देखा, तो मजाक में उसकी टांग पकड़ कर खींच दी। लेकिन कोई हरकत नहीं हुई, तो उसने दुबारा वही हरकत दुहरा दी।

फिर क्या था, रोनित कुनमुनाया और नींद से जग गया। आँखें बंद किए ही जोर से चीखा, अबे कौन है बे। ऐसे टांग खींच रहा है, जैसे दुश्मनी निकालनी हो। बोलने के बाद रोनित ने अपनी आँख खोल दी। आँख खोलते ही जब राजन पर नजर पड़ी, मुस्कराया और उठ कर बैठ गया। उसकी हंसी और राजन के होंठों पर भी मुस्कान छा गई। जबकि रोनित ने उसे बेड पर बैठने का इशारा किया और खुद बेड से उठकर वाथरुम में चला गया। उसके वाथरुम में जाने के बाद राजन वही बेड पर बैठ गया और सोचने लगा। रोनित मजाकिया है, हंसमुख है और मस्ती खोर भी है। परन्तु संगीत से उसका लगाव नहीं के बराबर है। वो सोच ही रहा था कि रोनित वाथरुम से निकला और राजन की ओर देखा। मानों कि पुछना चाहता हो कि अब।

अब क्या! चलो साथ, तुम्हें तो रात को ही बोला था कि सुबह डाँ सौम्या के क्लिनिक पर चलना है। उसके मनोभाव को समझ कर राजन तपाक से बोल पड़ा । उसकी बातें सुनकर रोनित शंकित होकर बोला।

लेकिन इस वक्त? राजन ! तुम तो समझते हो कि अभी तो सूर्य की पहली किरण ही धरती पर आई है। ऐसे में तुमको लगता है कि डाँ अभी क्लिनिक पर मौजूद होगी। उसकी बातें सुनकर राजन चिढ गया, वह तनिक रुष्ट होकर रोनित से बोला।

अबे! तुमको इससे क्या मतलब कि डाँ होगा या नहीं।

मतलब क्यों नहीं होगा, मेरे पास समय की कमी है। मैं ज्यादा देर तक डाँ के क्लिनिक पर समय नहीं दे पाऊँगा। राजन की बातें सुनकर रोनित सपाट लहजे में बोला। उसकी बातें सुनकर राजन समझ गया कि उसकी बातें रोनित को नागवार गुजरी है। वह जानता था कि उसकी नाराजगी फायदेमंद नहीं है, इसलिये अपनी बातों को संभालता हुआ बोला।

नहीं-नहीं ऐसी कोई बात नहीं है, तुम तो खा-म-खा ही टेंशन ले रहे हो। तुमको वहां ज्यादा देर देना नहीं होगा। डाँ सौम्या वहां पर सुबह से ही मौजूद है और हम लोगों का ही इंतजार कर रही है। बोलने के बाद राजन एक पल रुका, फिर अपना मोबाइल निकाल कर रोनित को दिखाते हुए बोला। अमा यार! तू भी न, मेरा अभी थोरी देर पहले ही डाँ सौम्या से बात हुआ है। राजन तो बोल गया, लेकिन उसे बाद में महसूस हुआ कि वो गलत बोल गया है। जबकि रोनित आगे बढा, राजन के कंधे को पकड़ कर हिलाया और मुसकरा कर बोला।

तो डाँ सौम्या कल रात मेरे पास ऐसे ही नहीं आई थी, बल्कि वह तुम्हारा प्लानिंग था। अब मैं समझा, नहीं तो पहली ही मुलाकात में ऐसे कैसे कोई नजदीक आएगा। रोनित बोला, तो राजन की नजर झुकी हुई थी, उसकी चोरी पकड़ी जो गई थी। फिर भी वह हौसला करके बोला।

अमा यार! छोड़ो भी न इन बातों को, जो बीत गई सो बात गई। बोलने के साथ ही वह उठ खड़ा हुआ और रोनित का हाथ पकड़ कर लगभग खींचता हुआ रूम से बाहर निकला।

फिर बंगले के गलियारों से गुजर कर दोनों लीविंग रूम में पहुंचे। लीविंग रूम में अनिरुद्ध साहब खड़े होकर दोनों का इंतजार कर रहे थे। उन दोनों को आते देखकर उनके चेहरे पर मुस्कान फैल गई। जबकि रोनित नित्य नियमानुसार आते ही उनके चरण स्पर्श किए। दिल से दुआ निकल पड़ा उनके, काश भगवान तुम्हारे जीवन में खुशियों के फूल भर दे। फिर उन्होंने रोनित को हृदय से लगा लिया और बोसे ली। इसके बाद तीनों डायनिंग रूम की ओर बढे। डायनिंग रूम में राकेश सुबह के नाश्ता की तैयारी कर चुका था। तीनों बैठ गये नाश्ता करने के लिये, तभी अनिरुद्ध साहब बोले।

रोनित बेटे!

हां पापा! उनकी बातें सुनकर रोनित तपाक से बोल पड़ा । जबकि उसकी बातें सुनकर अनिरुद्ध साहब ने एक पल सोचा, फिर धीमे से बोले।

रोनित! अब तुम शादी के लायक हो चुके हो, तो शादी क्यों नहीं कर लेते? अनिरुद्ध साहब बोलने को तो बोल गये। वैसे इस समय ऐसी बाते अपेक्षित नहीं थी, इससे राजन और रोनित, दोनों के चेहरे के भावों में परिवर्तन हुआ। इस तरह से परिवर्तन, अनिरुद्ध साहब की आत्मा कांप उठी। जबकि रोनित उखड़े शब्दों में बोला।

पापा! आप भी न, कभी-कभी बहकी बातें करने लगते है। मैं ने तो आपको कहा हुआ हूं कि जब कोई पसंद आएगी, तो बतला दूंगा। फिर इस समय, ऐसी चर्चा किसलिये? रोनित जब बोलकर चुप हुआ, तो राजन समझ चुका था कि रोनित को उनकी बातें नागवार गुजरी है। इसलिये वह बातों को संभालने के उद्देश्य से बोला।

अब तुम भी न रोनित! बिना मतलब के बातों को पकड़ कर बैठ गये। छोड़ो इन बातों को और जल्द नाश्ता करो। हमें बाहर भी निकलना है, वहां कब से हमारा इंतजार हो रहा होगा।

राजन ने बोलने के साथ ही नाश्ता करने में तेजी कर दी। बात आई गई हो गई, रोनित भी नाश्ता करने में जूट पड़ा । जबकि अनिरुद्ध साहब ने राहत की सांस ली, जो मामला संभल गया था। इसके बाद वहां पूर्ण रूप से शांति छा गई, हां घङी की सुई टीक-टीक कर आगे बढती रही। जल्दी-जल्दी उन लोगों ने नाश्ता निबटाया और सबसे पहले अनिरुद्ध साहब निकल पड़े ,क्योंकि उन्हें आँफिस जाना था। जबकि रोनित और राजन निकले, आज राजन ड्राइविंग शीट पर बैठा, जबकि रोनित उसके बगल में। उसके बाद कार श्टार्ट होकर गेट से निकली और सड़क पर फिसलती चली गई।

कार जिस रफ्तार से सड़क पर भागी जा रही थी, उसी रफ्तार से दोनों के दिमाग में विचार भागे जा रहे थे। रोनित जहां सोच रहा था कि आखिर राजन चाहता क्या है। वह उसे उस क्लिनिक से इस क्लिनिक, क्यों चक्कर लगवा रहा है। आखिर उसकी योजना क्या है और इसके पीछे मंशा क्या है। जबकि राजन सोच रहा था कि अंकल ने तो सारी बात ही बिगाड़ दी थी। वह तो उसने समय रहते ही बाजी संभाल ली, अन्यथा क्या होता, उसे भी मालूम न था। दोनों सोच रहे थे, जबकि कार के खिड़की से आती सुबह की ताजी हवा उन दोनों के चेहरे से टकरा रहा था। सुबह का समय होने के कारण चारों ओर खुशगवार माहौल था। फिर उन दोनों के बीच चुप्पी भी छाई थी, शायद दोनों ही बात नहीं करना चाहते थे। लेकिन उनके मनोभावों से कार को क्या, कार तो दौड़ती हुई क्लिनिक के गेट पर पहुंच गई।

**********

मंजूला हाँश्पीटल, सौम्या अपने केबिन में बैठी फाइलों से उलझी हुई थी। उसने दरवाजे पर नो-डिस्टर्ब का बोर्ड लगा दिया था और फाइलों में उलझ गई थी। अभी सुबह के सात ही बजे थे, ऐसे में जल्दी हाँश्पीटल आना, उसे अजीब सी फीलिंग हो रही थी। वह तो राजन ने बोला था, इसलिये इतनी जल्दी वह हाँश्पीटल आ गई थी, अन्यथा उसका काम दिन के दस बजे से शुरू होता था। इस वक्त वो अपने पेंडिंग रखे हुए कार्यों को निपटाने के उद्देश्य से फाइल लेकर बैठी थी। लेकिन फाइलों में दिमाग लगा कहां, वह तो बीते दिनों की बातें सोचने लगी। जब काँलेज में सभी उसे हाँट और बोल्ड बोलते थे।

लेकिन उसकी ये हौटनेस- बोल्डनेस फीकी पर जाती थी। जब वो चाहकर भी राजन को अपनी ओर आकर्षित नहीं कर पाती थी। ऐसा तो बिल्कुल भी नहीं था कि वे दोनों अंजान जैसे व्यवहार करते थे। वे दोनों अच्छे दोस्त थे, ज्यादातर साथ भी होते थे। उनके दोस्ती को लेकर शिगूफे भी छोड़े जाते थे। परन्तु यह सब व्यर्थ था, जो होना चाहिये था, वह था ही नहीं। सौम्या बोल्ड थी, हाँट भी थी और सुन्दर भी। ऐसे में वो चाहती थी कि राजन उसके हुस्न के जादू में कैद हो जाए। उसके जुल्फों से खेले और उसका ही होकर रहे। अब ऐसा भी नहीं था, कि वह राजन से प्यार करती थी। वह तो आजाद लड़की थी, ओपन रिलेशनशिप सीप में विश्वास रखती थी। लेकिन राजन उसकी ओर कभी आकर्षित ही नहीं हो पाया, ऐसे में उसके हृदय की कोमल भावनाएँ हृदय में ही रह गई। एक वो दिन और आज का दिन।

सौम्या को जब अपने ही विचार बोझ लगने लगे, तो उठी और खिड़की के पास आकर खड़ी हो गई। उसने खिड़की खोला, तो सुबह की ताजी हवा के साथ सूर्य की पहली किरण ने उसके चेहरे को छूआ। ऐसे में उसने खुद को तरोताजा महसूस किया। फिर झटक कर बीते हुए दिनों के खयालों को अपने से दूर किया। लेकिन ऐसा संभव कहां हो पाता है, हमारे बीते हुए पल हमेशा हमारे पीछे लगे रहते है। सौम्या लाख चाह रही थी कि वह राजन के खयालों को अब छोड़ दे। लेकिन वो ऐसा कर ही नहीं पा रही थी, तभी तो उसके एक काँल पर इतनी सुबह को अपने डियूटी पर आ गई थी।

मैडम! लीजिए आपकी गरमागरम काँफी।

तभी रूम में स्वर उभरा। स्वर सुनकर उसकी तंद्रा टूटी, पलट कर देखा। तो नंदा हाथों में काँफी का कप लिये खड़ी थी। उसे देखकर सौम्या पलटी और अपनी शीट पर आकर बैठ गई। इसके बाद उसने नंदा को इशारा किया कि कप मेज पर रख दे। नंदा चालीस के उम्र की विधवा औरत थी और इस हाँश्पीटल में आँफिस का काम करके अपना गुजारा चलाती थी। उसने अनुमति मिलते ही कप टेबुल पर रखा और रूम से निकल गई। उसके जाने के बाद सौम्या ने काँफी का मग उठाया और चुस्कियाँ भरने लगी। लेकिन दिमाग था कि मानता ही नहीं था, अभी भी दिमाग में विचारों के प्रवाह चल रहे थे।

आज भी सौम्या राजन को देखती थी, तो खुद को बहुत मुश्किल से नियंत्रित कर पाती थी। आज भी उसको देखकर सौम्या के मन में अनुराग जग उठते थे। दिल में कोमल-कोमल कपोल अंकुरित हो जाते थे और हृदय में प्रबल वेग से एक धारा धसमस करने लगती थी। वो जानती थी कि ऐसा सोचना भी गलत है, क्योंकि राजन शादीशुदा है। पर उसका हृदय यह मानने को तैयार ही नहीं था। शायद यह उसके चूक का नतीजा था, नहीं तो शायद उसने हिम्मत की होती, तो राजन उसका होता। परन्तु समय अपने अक्ष पर आगे बढ चुका था और वो खाली दामन लिये रह गई थी। लेकिन इसके लिये वो किसी को भी दोष नहीं दे सकती थी।

शायद वह इसके लिये खुद ही जिम्मेदार थी, उसका बोल्डनेस कसूरवार था। उसने तो कभी भी लड़की जैसा व्यवहार किया ही नहीं था, ऐसे में क्या हो। कौन उसके भावनाओं को समझे और उसके करीब आए। सौम्या सोच के समंदर में इस कदर डूब-उतरा रही थी, कि उसको पता ही नहीं चला, काँफी कब खत्म हुआ। वह तो भला हो कि बेल बजा, आवाज सुनते ही वो चौंकी। देखा तो खाली कप को होंठों से चिपकाये बैठी थी। उसने कप मेज पर रखा और सोचा कि शायद राजन और रोनित आ चुके है, इसलिये आवाज दी। दरवाजा खुला है! अंदर आ जाओ। उसका अंदाजा सही था, आँफिस के बाहर राजन और रोनित ही खड़े थे। जो उसका आदेश मिलते ही अंदर आ गए।

दोनों को अंदर आते देखकर सौम्या प्रसन्न हो गई। वैसे तो सुबह कब की हो चुका था, परन्तु उसकी सुबह अब हुई थी। उसने दोनों की ओर देखा और मुस्करा कर बैठने के लिये इशारा की। फिर बेल बजा दिया, शायद दोनों के लिये काँफी मंगवाना चाहती थी। उसके बाद वह राजन के चेहरे पर नजरें गड़ा दी। राजन उसका आशय समझ चुका था, इसलिये अब तक के घटना क्रम को बतलाता चला गया। सौम्या ध्यान पूर्वक उसकी बातें सुन रही थी और कभी-कभी रोनित के चेहरे पर भी नजर डाल लेती थी। राजन सौम्या को रोनित के स्वभाव में बदलाव को, उसके हरकत और दैनिक गतिविधि के बारीकियों को विस्तार पूर्वक बतला रहा था।

और जब राजन चुप हुआ, तो सौम्या की नजर रोनित के चेहरे पर अटक गई। वो रोनित को समझना चाहती थी, उसके मनोभाव को पढना चाहती थी। लेकिन तभी नंदा काँफी की ट्रे लिये वहां आ गई। इससे थोरा व्यवधान पहुंचा, जबकि नंदा ने तीनों को काँफी सर्व किया और खाली प्याला लेकर चली गई। उसके जाते ही सौम्या ने राजन से काँफी शीप करने का इशारा किया, फिर क्या था, तीनों काँफी पीने लगे। तभी अचानक सौम्या रोनित से मुखातिब होकर बोली।

मिस्टर रोनित! मैं आपको असिस्ट करूं, आपका डाँ बनूँ, तो आपको परेशानी तो नहीं। उसकी बाते अप्रत्याशित थी, काँफी पीता हुआ रोनित अचानक चौंका और राजन की ओर देखा। राजन उसकी बातें समझ गया और सहमति में सिर हिला दी। फिर क्या था, रोनित सौम्या की ओर देखकर बोला।

अफकोर्स सौम्या! आप मेरी डाँ बन सकती हो। परन्तु इसमें मेरी कुछ शर्तें है, जो आपको पालन करनी होगी। रोनित बोलने के बाद अपनी नजर सौम्या के चेहरे पर गड़ी दी, वह देखना चाहता था कि उसके बातों की कैसी प्रतिक्रिया होती है। जबाव में सौम्या मुसकाई और उसकी ओर देखकर बोली।

अफकोर्स मिस्टर रोनित! आप अपने शर्तों को बतलाइए। मैं नोट कर लेती हूं, आगे ध्यान रखूंगी। बोलने के बाद सौम्या मौन होकर उसकी ओर देखने लगी, जबकि रोनित गंभीर होकर बोला।

शर्त ज्यादा नहीं है, बस आपको ध्यान रखना है कि आप मुझसे डाक्टरों बाले व्यवहार नहीं करेंगी ;हमेशा दोस्त की तरह ट्रीट करेगी। दूसरा आप मुझपर ज्यादा प्रेशर नहीं डालेगी। तीसरा, हम लोगों की बातें कभी हमारे माता-पिता के आगे शेयर नहीं करेगी। बोलो मंजूर है आपको। बोलने के बाद रोनित चुप हो गया और सौम्या के चेहरे पर अपनी नजर गड़ा दी।

उसकी बातें सुनकर राजन ने राहत की सांस ली। उसने रोनित के मुख से जब शर्तों का नाम सुना था, उसके हौसले पस्त हो गए थे। वो डर गया था कि कहीं रोनित ऐसी शर्त न रख दे, जो सौम्या के लिये असंभव हो जाए। ऐसे में उसे अपना सारा का सारा प्लान गर्त में जाता दिख रहा था। लेकिन जब रोनित की बातें सुनी, तो उसने राहत की सांस ली और उसने भी सौम्या के चेहरे पर नजर गड़ा दी। वह भी जानना चाहता था कि रोनित के शर्तों को सुनकर सौम्या क्या करती है। जबकि सौम्या रोनित के बातों को सुनकर मुसकाई। तबतक उन लोगो की काँफी खतम हो चुकी थी और उन लोगों ने खाली कप मेज पर रख दिये थे। तब सौम्या रोनित को देखकर बोली।

मिस्टर रोनित! आपका शर्त मैं स्वीकार करती हू्ं। लेकिन आपको भी मेरी एक शर्त माननी पड़ेगी, बोलो क्या बोलते हो। सौम्या बोलने को तो बोल गई, फिर राजन की ओर देखा, जबकि रोनित बोला नहीं, बस सहमति में सिर को जूम्बीस दी। तब सौम्या फिर से बोली। तो मिस्टर रोनित! मैं जब भी चाहूं, आपको समय देना होगा।

सौम्या की बातें सुनकर रोनित सोच में डूब गया। जिस कारण से राजन के दिल की धड़कन एकाएक तीव्र गति से बढने लगी। सौम्या ने भी उत्सुकता बस अपनी नजर रोनित के चेहरे पर जमा दी। बहुत अंत: मंथन के बाद रोनित ने सहमति में सिर को जूम्बीस दी। फिर क्या था, सौम्या उसके लिये फिजिकल टेश्ट लिखने लगी। जबकि राजन रोनित के सहमति प्रदान करने से खुश हो चुका था। तभी उसे याद आया कि उसे कहीं और भी जाना है। तब उसने कलाईं घङी पर नजर डाली, जो दिन के दस बजने के संकेत दे रहा था। वह अपनी शीट से उठा और सौम्या से विदा लेकर बाहर निकल गया।

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आहना रेस्टोरेंट, नाम के ही अनुरूप सुंदर और व्यवस्थित। वैसे तो यह रेस्टोरेंट बहुत ही कम क्षेत्रफल में बनाई गई थी। लेकिन साज-सज्जा इसकी बेहतर थी, इसके इंटिरियर की सजावट विदेशी ढंग से की गई थी। दूसरे यहां पर चार्ज भी दूसरे रेस्टोरेंट की अपेक्षा कम लिया जाता था। तभी तो यहां खुलने से लेकर बंद होने तक अच्छी-खासी भीड़ लगी रहती थी। यही तो खासियत था आहना का, तभी तो अमोल और राजन को यह अतिशय प्रिय था और इस वक्त भी अमोल रेस्टोरेंट के कोने में सजे टेबुल पर बैठा था। अमोल, बाईस शाल का, हट्टा-कट्ठा शरीर, भूरी आँखें और रुआबदार चेहरा।

यह कहा जा सकता था कि वो ज्यादा सुन्दर नहीं था, लेकिन आकर्षक व्यक्तित्व का स्वामी था। इस वक्त वो अपनी पढाई छोड़ कर यहां आया था, क्योंकि राजन ने उसे बुलाया था। वह राजन जो उसके टीम का मास लीडर था। चाहे कहीं घूमने का प्लान हो, कहीं पार्टी करनी हो या ग्रुप में नया मेंबर शामिल करना हो। यह सब जितने भी फैसले थे, राजन के सहमति से होते थे। अमोल कल भी डरता था राजन से और आज भी डरता है। ऐसा नहीं है कि राजन के दबंग स्वभाव से डरता है, बल्कि वह उसकी इज्जत करता है। तभी तो वह अपनी पढाई छोड़ कर उसके एक काँल पर यहां आकर उसके इंतजार में कब से बैठा हुआ है।

सोचते-सोचते अमोल की नजर अपने कलाईं घङी की ओर गई, जो दिन के डेढ बजा रही थी। उफ्! यह इंतजार भी न, बहुत ही तकलीफ देह होता है, जब खुद को करना पड़े । वह एक बजे ही यहां आ गया था और तब से राजन के इंतजार में बैठा है। इस बीच उसने टाइम पास करने के लिये एक कप काँफी भी पी डाली। परन्तु अभी तक राजन नदारद है और अभी उसके आने के आसार भी नहीं दिख रहे। बेचैन होकर अमोल ने सोचा और वेटर को बुला कर एक कप काँफी और लाने को कहा। फिर वेटर के जाने के बाद विचारो के लपेटे में उलझ गया।

अहो! वह भी क्या काँलेज के दिन थे, जब राजन उसका मास लीडर था। रोनित के आने से पहले वही तो राजन के सबसे करीब था। चाहे जो भी फैसले लेने हो, राजन उससे पुछता जरूर था। वह भी क्या दिन थे, दिन भर मस्ती और जब जी किया, क्लास रूम। साथ ही साथ मधुशाला वियर वार के चक्कर रोज शाम को जरूर लगने ही थे। उस समय काँलेज में कोई भी उन लोगों से उलझना नहीं चाहता था। पूरे काँलेज में उन लोगों की तूती बोलती थी। लेकिन जब से रोनित उसके ग्रुप में आया, अमोल को लगने लगा कि उसकी कीमत कम हो गई है। अब राजन के अधिकांश फैसले रोनित के इशारे पर ही होते थे। ऐसे में कभी-कभी उसे लगता था कि ग्रुप में वह उपेक्षित सा हो गया हो।

सहसा ही अमोल के विचारो की धारा टूटी, देखा तो वेटर काँफी लिये खड़ा था। उसने इशारा किया और वेटर काँफी उसके टेबुल पर रखकर चला गया। वेटर के जाते ही उसने काँफी का कप उठाकर होंठों से लगाया और सोचने लगा। काश वह दिन फिर से वापस लौट कर आते, लेकिन राजन ने शादी की और दो शाल पहले नौकरी करने चला गया। उसके बाद तो उसका ग्रुप बिखर गया था, सभी दोस्त अलग-अलग हो गये थे। दूसरी तरफ रोनित ने भी राजन के जाने के बाद कुछ दिनों बाद काँलेज छोड़ दिया। उसके बाद से सारी रौनक लुप्त हो गई। उसके बाद का दिन और आज का दिन, आज दो शाल बाद राजन उससे मिल रहा था।

क्या सोच रहे हो अमोल! स्वर उसके कानों से टकराया।

आवाज सुनकर अमोल चौंका, देखा तो राजन उसके सामने खड़ा था। वह विचारों के ताने-बाने ऐसे बुन रहा था कि उसे पता ही नहीं चला कि कब राजन उसके सामने आकर खड़ा हो गया। उसे सामने देखकर अमोल के चेहरे पर मुस्कान फैल गई। फिर क्या था, वह अपने शीट से उछल कर खड़ा हो गया और राजन को बांहों में भर लिया। बांहों में ही नहीं भर लिया, अपितु धीरे से उसके कानों में फुसफुसा कर बोला।

अमा यार राजन! तुम भी बहुत कमीने हो। जब से शादी कर के गये, अपने दोस्तों को भूल ही गये। कभी न फोन काँल और न सपनों में ही याद। तभी तो मैं सोचता रहता था कि शाला आजकल हिचकिया भी क्यों नहीं आती। अमोल बोल कर जब चुप हुआ, तो राजन ने उसे खुद से अलग किया। लेकिन वो अपने मनोभाव को कैसे रोकता। अमोल के वे शब्द, जो एक दोस्त के लिये स्नेह से भीगे हुए थे, उसके हृदय में बरछी बनकर उतर गये थे। ऐसे में स्वतः ही उसके आँखों से आँसू छलक पड़े।

राजन से जब अमोल अलग हुआ ,तो उसकी नजर उसके आँखों के अश्रु कण पर गई। वो चौंका, राजन तो कभी ऐसा नहीं था, वह कभी भी भावना के प्रवाह में नहीं बहता था। लेकिन आज उसके आँखों में आँसू, अमोल को एहसास हुआ कि उसे ऐसे शब्द नहीं कहने चाहिए थे। इसलिये वो बातों को संभालने के उद्देश्य से बोला।

अमा यार! तू तो लड़की से भी गया गुजरा हो गया। मैं ने तो मजाक किया और तू आँखों से आँसू बहाने लगा। अमोल बोलकर राजन की ओर देखने लगा, जबकि उसकी बातें सुनकर राजन मुसकाया। फिर उसकी ओर देखकर बोला।

अमोल! ये आंसू दुःख के नहीं है, यह तो खुशी के आंसू है। जो तुमसे मिला, तो स्वतः ही छलक गए। वैसे बैठ, मैं आज न, तुमसे बहुत सारी बातें करने आया हूं।

तो बैठ न, मना किसने किया है। अमोल ने प्रतिक्रिया दी।

उसके बाद दोनों टेबुल के आमने-सामने की कुर्सी पर बैठ गये। तब राजन ने वेटर को बुलाया और खाने के आँडर दिया। वेटर चला गया तो वह अमोल की ओर मुड़ा और उसकी आँखों में देखने लगा। साथ ही सोचने लगा कि बात कहां से शुरू करें। दूसरी तरफ अमोल भी यही सोच रहा था कि बात की शुरूआत वो करें। या राजन करेगा, अगर वह बातों का सिलसिला चालू करता है, तो किन शब्दों से करें। दोनों सोचते जा रहे थे और समय आगे की ओर बढता जा रहा था। यह सही बात ही है न, समय तो अपनी गति से बढता ही जाएगा। यह न कभी रुका है और न रुकेगा। यह तो आपके उपर है कि आप समय का सदुपयोग करते है, या दुरुपयोग। आखिर कार इस चुप्पी से राजन थक चुका था, इसलिये वह अमोल से मुखातिब होकर बोला।

अमोल! अब छोड़ो भी पुरानी बातों को, माना कि मैंने जब अपनी जिन्दगी संभाली, सब को भूल गया। परन्तु अब मुझे अब अपनी भूल का एहसास हो चुका है। तो सत्य वचन समझो कि अब कभी ऐसी गलती नहीं करूंगा। राजन बोलने के बाद एक पल के लिये चुप हुआ और अमोल की तरफ देखा और फिर बोला। वैसे तुम यह बताओ कि रोनित के साथ ऐसा क्या हुआ कि उसने अपनी पढाई बीच में छोड़ दी।

वैसे तो मैं ज्यादा जानता नहीं, लेकिन वो कुछ दिनों से परेशान रहने लगा । फिर एकाएक एक दिन आकर हम लोगों से आकर बोला कि अब और काँलेज नहीं कर सकता। इसके बाद चला गया, वह दिन और आज का दिन, उससे मुलाकात नहीं हुई। राजन की बातें सुनकर अमोल तपाक से बोला। उसकी बातें सुनकर राजन ने उसके चेहरे पर नजर गड़ा दी और गंभीर होकर बोला।

तो फिर! अमोल, इस मैटर में कौन हमारी मदद कर सकता है।

तो फिर चलो काँलेज, शायद वहीं से कोई रास्ता निकले। अमोल तपाक से बोल कर राजन की ओर देखने लगा, जबाव में राजन ने सहमति में सिर को हिलाया।

तब तक उनका दिया आँडर वेटर सर्व कर चुके थे। दिन के दो बज चुके थे, ऐसे में उन दोनों को जोरों की भूख लगी थी। इसलिये दोनों ही खाने पर टूट पड़े, लेकिन खाना खाने के दौरान दोनों ही मौन रहे। इस बीच न तो अमोल ने कुछ भी बोला और न ही राजन बोलने के मूड में था। समय आगे की ओर भागा जा रहा था, निरन्तर गति से। फिर जब खाना समाप्त हुआ, तो राजन हाथ पोंछते हुए बोला।

तो चलें।

कहां चलना है? अमोल चौंक कर बोला।

वही पर, काँलेज! तुमने ही तो बोला। राजन ने मुस्करा कर जबाव दिया।

उसके बाद वे दोनों कैश काउंटर की ओर बढे, राजन ने बील चुकाया और रेस्टोरेंट से बाहर निकले। बाहर पार्किंग में राजन की कार खड़ी थी, दोनों आगे बढे और कार में बैठे। कार श्टार्ट की और सड़क पर दौड़ा दिया।

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दिन के बारह बज चुके थे, मंजूला हाँश्पीटल, हाँश्पीटल के सभी स्टाफ अपने कार्य को संपादन करने में व्यस्त थे। इधर सौम्या अपने आँफिस में बैठी रोनित के टेश्ट रिपोर्ट को पढ रही थी। जबकि रोनित फिजिकल टेश्ट के लिये लैव में गया हुआ था। उसके कुछेक रिपोर्ट आ चुके थे, जो इस समय सौम्या के हाथों में थे। वह उस रिपोर्ट में आँब्जेक्ट ढूंढ रही थी। लेकिन अब तक जितने भी रिपोर्ट आए थे, सभी नार्मल थे। ऐसे में स्वाभाविक ही था कि वो परेशान थी, उसे समझ ही नहीं आ रहा था कि आखिर रोनित को समस्या किस बात की है।

वो फाइलों में उलझी थी, तभी आँफिस में रोनित ने कदम रखा। शायद उसका चेकअप पूरा हो चुका था और अब वो फ्री हो चुका था। जबकि उसे आया देखकर सौम्या चौंकी, उसने रोनित को शीट पर बैठने के लिए इशारा किया और फिर अपने काम में बीजी हो गई। तब रोनित आगे बढा और सामने बाली कुर्सी पर बैठा, एवं अपनी नजर उसके चेहरे पर जमा दी। ऐसे ही थोरा समय निकल गया, तब सौम्या ने अपना ध्यान फाइल से हटा कर उसकी ओर किया। मुस्करा कर एकबार उसके चेहरे को देखा और फिर गंभीर होकर बोली।

मिस्टर रोनित! अब बताइए कि आप कैसा फील कर रहें है ?

मैडम सौम्या! मेरे फील करने न करने से क्या होगा। आप बतायें कि आपको क्या लगा। आपके सामने तो करीब- करीब रिपोर्ट आ चुका होगा। रोनित सौम्या की बातें सुनकर तपाक से बोला। उसकी बातों ने सौम्या के चेहरे पर मुस्कराहट ला दी। वो एक पल सोचती रही और फिर रोनित की ओर देखकर बोली।

मिस्टर रोनित! नहीं, आपके कुछ टेश्ट अभी आने बाकी है। परन्तु मुझे नहीं लगता कि शारीरिक स्तर पर कोई भी प्राँबलम है। ऐसे में आप ही बतलायें। सौम्या अपनी बातें बोलकर रोनित की ओर देखने लगी, मानो कि उसके जबाव का उसे इंतजार हो। तब रोनित सौम्या के आँखों में आँखें गड़ा कर बोला।

वही तो सौम्या मैडम! वही तो मैं ने राजन को बोला कि मैं बिल्कुल ही स्वस्थ हूं। पर वह मेरी बातें माने तब न, बिना मतलब के ही क्लिनिक के चक्कर लगवा रहा है।

नहीं मिस्टर रोनित! आप शायद गलत है। मैं ने आपको बोला कि आप फिजिकल स्तर पर स्वस्थ है, लेकिन मानसिक तौर पर। मानसिक तौर पर जरूर ऐसी कोई बात है, जो आपको चुभी हुई है। इसलिये ही मैंने बोला कि अब आप बतलाएंगे। सौम्या झट रोनित के बातों को काट कर बोली। इसके बाद थोरी देर वो रूकी, फिर आगे बोली। मैं डाक्टर हूं और जब तक आप अपनी बात बताएंगे नहीं, मैं कुछ भी नहीं कर सकती ।बोलकर सौम्या ने रोनित के चेहरे पर नजर गड़ा दी और अपने बातों की प्रतिक्रिया देखने लगी। जबकि रोनित मुस्कराया ,एक पल उसकी ओर देखा और फिर सिर झुकाकर बोला।

मैडम सौम्या! आप व्यर्थ के प्रयास कर रही है। मैंने तो आपको साफ शब्दों में बतला दिया कि मैं बिल्कुल स्वस्थ हूं। अब मैं आपको किन शब्दों में समझाऊँ कि आप समझ जाए। बोलने के बाद रोनित जमीन की ओर देखने लगा। उसे ऐसा करते देखकर सौम्या मुस्कराई, वो समझ गई कि रोनित आसानी से अपनी बात बतलाने बाला नहीं। उसके साथ तालमेल बिठाना परेगा, तभी वो अपने उद्देश्य में सफल हो सकती है। इसलिये वो अपनी शीट से खड़ी हो गई और रोनित से बोली।

मिस्टर रोनित। छोड़िए अभी इन बातों को। चलिए मेरे साथ हाँश्पीटल के कैंटिन में। मुझे बहुत जोरों की भूख लगी है,तो स्योर आपको भी भूख लगी होगी। बस फिर क्या था, सौम्या के बोलने भर की देर थी, रोनित तेजी से उठा।

फिर वे दोनों आँफिस से निकल कर गलियारों में चल पड़े । जो कि कैंटिन की ओर जाती थी। वे दोनों इस वक्त साथ तो चल रहे थे, लेकिन इस समय उनमें किसी प्रकार की बातचीत नहीं हो रही थी। रोनित ऐसे में सोच रहा था कि सौम्या बातों का सिलसिला चालू करेगी। जब कि सौम्या उसे समझने की कोशिश कर रही थी। चलते-चलते दोनों कैंटिन में पहुंचे, तो वहां इस वक्त भीड़ न के बराबर थी। कैंटिन में पहुंचने पर सौम्या ने रोनित का हाथ पकड़ा और कोने के टेबुल की ओर ले गई। वे दोनों बैठे, तब तक आँफिस ब्वाय उनके टेबुल पर उनके लिये डिश सजा दिया।

खाने की डिश सामने आते ही दोनों खाने पर टूट पड़े । एक तो खाना स्वादिष्ट था, दूसरे उन दोनों को जोरों की भूख लगी थी। ऐसे में उन दोनों का खाने की थाल पर टूट पड़ा। स्वाभाविक ही था। हां खाने के दरमियान भी उन लोगों के बीच किसी प्रकार की बातचीत नहीं हुई। हां समय की सुई आगे की ओर निरन्तर आगे बढता रहा। फिर तो उन दोनों ने खाना समाप्त किया और टेबुल से उठे और फिर से आँफिस की ओर बढे। आँफिस में पहुंचने पर सौम्या अपने शीट पर बैठ गई और रोनित को भी बैठने के लिए इशारा किया।

रोनित भी सामने बाली कुर्सी पर बैठ गया, जबकि सौम्या रोनित के नये आए हुए रिपोर्ट को देखने लगी। वो ध्यान पूर्वक रोनित के रिपोर्ट को पढ रही थी, जबकि रोनित उसकी ओर ही देख रहा था। रोनित के आँखों में जिज्ञासा के भाव थे, वो सोच रहा था कि अगले पल सौम्या क्या बोलती है। समय की सुई धीरे-धीरे आगे की ओर बढता रहा। स्वाभाविक ही है, रोनित की नजर घङी की ओर गई थी। दिन के दो बज चुके थे और राजन का अभी तक पता नहीं था। ऐसे में रोनित के चेहरे पर बेचैनी के भाव परिलक्षित होने लगे थे।

सौम्या तब तक उसके सारे रिपोर्ट को पढ चुकी थी। उसने अपना सिर उठाकर देखा और देखते ही समझ गई कि रोनित थोरा परेशान हो रहा है। शायद राजन के कारण, लेकिन राजन अभी तक आया क्यों नहीं। वो रोनित की परेशानी समझ चुकी थी, इसलिये अपने शीट से उठी और उसके करीब आ गई। उसके करीब आकर उसके सामने टेबुल पर बैठ गई और अपनी नजर उसके आँखों में गड़ा दी। फिर अपने शब्दों में मिठास घोलकर बोली।

मिस्टर रोनित! शायद आप राजन के नहीं आने से परेशान हो रहे है।

अ-हां, हां मैडम सौम्या! शायद आपने नोट नहीं किया कि उसको गये कितना समय हो चुका है। दिन के दो बज चुके है, परन्तु वो हमें यहां फंसाकर गया सो अभी तक आया नहीं। रोनित उकताहट भरे शब्दों में बोला। उसकी बातें सुनकर सौम्या मुसकाई और उसकी आँखों में झांककर बोली।

मिस्टर रोनित! आप ऐसा क्यों महसूस करते है कि आप यहां आकर फंस चुके है। मैं आपकी डाक्टर हूं और आप मेरे पेशेन्ट। आप राजन को छोड़िए और मुझसे बातें कीजिए।

वह बात नहीं है मैडम सौम्या! बात ये है कि शाम होने जा रही है और राजन नहीं आया। रोनित थोरा बेचैन होकर बोला। उसकी बातें सुनकर सौम्या समझ गई कि आखिर वो कहना क्या चाहता है। इसलिये उससे मुसकुरा कर सौम्या बोली।

कोई बात नहीं मिस्टर रोनित! आप टेंशन फ्री हो जाइए , मैं आपकी सेवा में हूं न, मैं आपको लेकर मधुशाला। बोलने के बाद सौम्या थोरी देर चुप रही, फिर बोली। वैसे आप मुझे बता सकते हैं कि आपके दिल में ऐसा क्या चुभा है , जो आप परेशान है। सौम्या बोली, लेकिन उसकी बातों का जबाव रोनित ने नहीं दिया।

ऐसे में सौम्या उसके और अधिक करीब हो गई। तब रोनित बोला। ऐसा नहीं है मैडम सौम्या, मैं बिल्कुल ही ठीक हूं, तंदुरुस्त हूं और आपके सामने हूं। वो तो मेरे घरवालों को और राजन को लगता है कि मुझे प्राँबलम है। रोनित ने सौम्या को जब अपने अधिक करीब पाया, तो नजरें झुका कर बोला।

तो फिर आप रोज ही शाम को मधुशाला क्यों जाते है? सौम्या ने सीधा प्रश्न किया। जबाव में रोनित तनिक रुष्ट होकर बोला।

मैडम सौम्या! आप भी न, बिना मतलब के बातें करती हो। मैं ने आपको बताया न कि बस शौक है। बोलने के बाद रोनित ने चुप्पी साध ली। सौम्या समझ चुकी थी कि रोनित उसके प्रश्नों के जबाव अभी तो किसी हाल में नहीं देगा। इसलिये उठकर खड़ी हो गई और बोली।

मिस्टर रोनित! छोड़िए इन बातों को, चलिए घूमने चलते है। वहीं से समय होने पर आपको मधुशाला लेकर चलूंगी। सौम्या के बोलते ही रोनित भी उठ खड़ा हुआ, उसके बाद आँफिस से निकले और गलियारे से होते हुए पार्किंग की ओर बढे। पार्किंग में सौम्या की कार खड़ी थी, सौम्या और रोनित कार में बैठे, कार श्टार्ट की और बाहर की ओर दौड़ा दी।

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सूर्य देव अस्ताचल में जाने को आतुर हो रहे थे। अक्टूबर का प्रथम दिवस होने के कारण वातावरण में हल्का सा ठंढा पन आ रहा था। लेकिन शाम के आगमन होने के साथ ही दिल्ली का दिल दौड़ने लगा था। सड़क पर गाड़ियों की भीड़ बढने लगी थी, ऐसे में राजन सावधानी पूर्वक कार चला रहा था। जबकि अमोल बगल बाली शीट पर बैठा हुआ मोबाइल में उलझा था।

रेस्टोरेंट से निकल कर वे दोनों इस बीच अलग-अलग जगहों पर गए थे और अब काँलेज की ओर उनकी कार जा रही थी। कार अपनी रफ्तार से सड़क के हृदय पर फलांगे भरती जा रही थी। समय अपनी रफ्तार से आगे की ओर भागता जा रहा था। जबकि राजन अजीब सा महसूस कर रहा था, वह बहुत दिनों बाद काँलेज जा रहा था। ऐसे में उसके फीलिंग में परिवर्तन हो, स्वाभाविक ही था। वह चाहता था कि अमोल ऐसे समय में उससे बातें करें, लेकिन अमोल तो मोबाइल की दुनिया में खोया था। इधर राजन सोच रहा था कि वह बहुत दिनों बाद काँलेज जा रहा है। ऐसे में सहपाठियों का व्यवहार उसके साथ कैसा होगा? प्रिंसिपल साहब उसके साथ कैसे पेस आएंगे। ऐसे बहुत से प्रश्न थे, जो उसे परेशान कर रहे थे, उसे उलझा रहे थे। ऐसे में उससे रहा नहीं गया और वो अमोल की ओर मुखातिब होकर बोला।

अमोल! किस दुनिया में खोए हुए हो?

अ-आं, क्या बोला, अमा यार तुमने अभी कुछ बोला क्या। अमोल चौंका और तपाक से बोला, साथ ही उसने अपना मोबाइल साइड में रख दिया। जबकि राजन उसकी हरकत देखकर मुस्कराया और धीरे से बोला।

जब इस दुनिया में रहोगे, तब न कोई बात सुनाई देगा। तुम तो दूसरी दुनिया में खोये हुए थे, ऐसे में मेरी बात कैसे सुनोगे।

नहीं दोस्त! बात ऐसी नहीं है। तुम कार ड्राइव में बीजी थे, तो मैं ने सोचा कि मोबाइल चला लूं। अमोल ने उत्तर दिया। सुनकर राजन मुस्कराया, बोलना चाहता ही था कि काँलेज का बिल्डिंग दिखा। राजन ने कार को काँलेज गेट की ओर मोड़ा, गेट खुला ही था सो कार अंदर प्रवेश कर गई। राजन ने कार को पोर्च की ओर लिया और पोर्च में कार पहुंचते ही इंजन बंद कर दिया।

फिर दोनों कार से उतरे, अमोल जहां कार से उतरते ही अपनी पीठ सीधी करने लगा, जबकि राजन ने उतरते ही एक बार भरपूर नजर काँलेज के चारों ओर बिल्डिगों एवं कंपाउन्ड पर डाली। कुछ भी तो नहीं बदला था यहां, वही पुरानी बिल्डिगों की श्रृंखला और हरियाली से अक्षादित कंपाउन्ड। वो जब इस काँलेज को छोड़ कर गया था, तब से अब तक करीब दो वर्ष का लंबा फासला गुजर चुका था। लेकिन राजन को लग रहा था कि जैसे वह कल ही काँलेज से निकला हो। कंपाउन्ड से आती पक्षियों की सुमधुर संगीतमय कलरव, मानों कि काँलेज उसे बुला रहा हो और उसके आने पर खुशियां मना रहा हो।

अमा यार राजन! किस दुनिया में खो गये। अमोल ने उसे विचारों में खोया देखा, तो आवाज दी।

कहीं नहीं, बस यूं ही बीते दिनों की याद आ गई थी। राजन झेंपकर बोला। जबाव में अमोल बोला।

इसी तरह बीते दिनों की याद आती रही, तो यहीं अंधेरा हो जाएगा और जिस काम के लिये आए हो, शायद हो न सकेगा, समझे न।

अमोल की बातें जायज थी, शाम ढल चुकी थी और कभी भी अंधेरे की चादर घिर सकती थी। राजन ने अमोल के बातों पर सहमति में सिर को हिलाया। फिर वे दोनों कैंटिन रूम की ओर बढे, कैंटिन रूम में अमोल तो काँफी आँडर करके पीने लगा। जबकि राजन अपने पुराने साथियों से गले मिलने लगा। अजीब से हर्ष का वातावरण कैंटिन रूम में बनने लगा था। वे सभी लड़के, जो कि राजन को आदर्श मानते थे। बहुत दिनों बाद उससे मिलने पर उत्साहित हो रहे थे। उत्साहित तो राजन भी था, उन लोगों से बहुत दिनों बाद मिलने पर । बहुत देर तक वो उन लोगों से इधर-उधर की बातें करता रहा, फिर अपने मूल उद्देश्य पर आ गया। वह जिसके लिये काँलेज में आया था, उसने उन लोगों से रोनित के बारे में जानना चाहा। परन्तु उन लोगों ने भी उतना ही बतलाया, जितना कि अमोल पहले बतला चुका था।

ऐसे में राजन निराश होकर वहां से निकला और प्रिंसिपल आँफिस की ओर बढ गया। उसे बाहर निकलता देखकर अमोल भी उठा और उधर ही लपका। इस बीच अमोल ने कलाईं घड़ी में समय देख लिया था, रात के आठ बज चुके थे। ऐसे में अमोल के मन में भावनाएँ प्रबल हुई कि राजन जिस तरह से पूछताछ कर रहा है, रात के दस पक्का हो जाएंगे। लेकिन वो राजन को छोड़ भी तो नहीं सकता था, इसलिये साथ लगा रहा। चलते -चलते वे प्रिंसिपल आँफिस के करीब पहुंच चुके थे। तब राजन ने एकबार उसकी ओर पलट कर देखा और आँफिस में प्रवेश कर गया। फिर क्या था, अमोल ने उसका अनुसरण किया।

प्रिंसिपल आँफिस, इस वक्त आँफिस की लाइट जल रही थी। आँफिस में काँलेज की प्रिंसिपल सुचित्रा मैडम, फाइलों में उलझी हुई थी। औसत कद काठी, हिप्पी कट कटे बाल, गोल चेहरा और आँखों पर सुनहरे फ्रेम का चश्मा। वो पूरे काँलेज में खड्डुस बुढ़िया के नाम से मशहूर थी। जब राजन और अमोल वहां पहुंचे, तो वो चौंकी, सिर उठाकर देखा, राजन को सामने देखकर हर्ष सहित स्वागत किया। सामने बाली कुर्सी पर बैठने का इशारा किया। जब दोनों बैठ गये, तो आने का कारण पुछा। फिर से वही बात और वही जबाव, राजन के प्रश्न का उत्तर वो ज्यादा नहीं दे सकी। जितना अमोल को ज्ञात था, वे भी उतना ही जानती थी।

राजन वहां पर थोरी देर तक इधर- उधर की बातें करता रहा। मैडम ने उससे इस बीच काँफी के लिये पुछा भी, पर राजन ने मना कर दिया। इसके बाद उसने मैडम से जाने की अनुमति मांगी और अपनी शीट से उठकर बाहर की ओर निकला। अमोल ने बस उसका अनुसरण किया, दोनों प्रिंसिपल आँफिस से निकले और पोर्च की ओर बढे। कार के पास पहुंच कर कार में बैठे और कार श्टार्ट करके बाहर की ओर दौड़ा दी। काँलेज से निकलने के बाद उसकी नजर रेस्टोरेंट को ढूंढने लगी। इस समय उसे भूख लगी थी और बंगले पर भोजन मिलने की उम्मीद ही नहीं थी। उसने एक बार जरूर सोचा कि अमोल के घर चला जाये। पर नहीं, इस समय उसका मन किसी के भी घर जाने का बिल्कुल भी नहीं था।

वो थकावट महसूस कर रहा था और सोच रहा था कि किसी रेस्टोरेंट में जाकर पेट भरने के बाद बंगले पर जाकर आराम करेगा। कार दिल्ली की सड़कों पर भागी जा रही थी, तभी उसकी नजर जय देव रेस्टोरेंट पर गई। उसने साइड में कार खड़ी की, उसके बाद अमोल और राजन ने वहां पेट भर के वहां खाना खाया। उसके बाद फिर कार में सवार हो गये और कार दौड़ पड़ी । इस बार कार अमोल के घर की ओर जा रही थी। राजन ने उसे उसके घर पर ड्राँप किया, फिर कार लेकर निकल पड़ा । अब वो कार में अकेला था, इसलिये म्यूजिक प्लेयर आँन कर दिया और ध्यान ड्राइविंग पर लगा दी।

तभी उसे ध्यान आया कि उसने तो रोनित को सौम्या के पास छोड़ कर आया था। उसके वहां से आने के बाद आगे क्या हुआ होगा। यह सवाल उसके दिमाग में कौंधा और इसके जबाव सौम्या ही दे सकती थी। बस फिर क्या था, उसने सौम्या को काँल लगा दिया। लेकिन काँल जाती रही, किसी ने रिसीव नहीं किया। ऐसे में राजन ने दुबारा कोशिश की, लेकिन परिणाम वही निकला। काँल रिसीव नहीं होना था, सो नहीं हुआ। फिर तो राजन ने बौखला कर कितनी ही बार कोशिश की, लेकिन परिणाम वही ढाक के तीन पात।

राजन ऐसे में खुद को रोक नहीं सका, उसने कार का रूख सौम्या के बंगले की ओर मोड़ दिया। साथ ही उसके हृदय में कई प्रकार के विचार उठने लगे, लेकिन वो निश्चिंत था, क्योंकि उसे खुद पर विश्वास था। खैर उसकी कार सफर करके सौम्या के बंगले के सामने पहुंच गई। राजन ने समय देखा, रात के ग्यारह बज रहे थे। वह कार से उतरा और सौम्या के बंगले की डोर बेल बजा दी। पलक भी झपका नहीं होगा कि बंगले का गेट खुला और सौम्या सामने नजर आई। काले रंग की जालीदार नाइटी पहने हुए वो अप्सरा लग रही थी। इस वक्त उसकी आँखें चढी हुई थी, शायद उसने फूल्ली ड्रिंकिंग किया हुआ था। नाइटी पहन कर वो सोने की ही तैयारी कर रही थी कि राजन आ धमका था। उसने राजन को देखा, तो हर्ष और आश्चर्य से भर गई। उसने राजन का हाथ पकड़ा और अंदर खींच ली, एवं बंगले का दरवाजा बंद कर दिया।

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सौम्या ने राजन को तेजी से अंदर खींचा और बंगले के मेन दरवाजे की छिटकनी चढा दी। एक तो सौम्या फूल्ली नशे में थी, दूसरे उसका बोल्डनेस स्वभाव। राजन को लगा कि वो सौम्या के आगोश में समा जाएगा। बड़ी मुश्किल से उसने खुद को संभाला और सौम्या के पकड़ से खुद को जुदा किया। जबकि सौम्या दरवाजा बंद कर जब पलटी, तो उसने मादक नजरों से राजन की ओर देखा। इस वक्त ऐसा लग रहा था कि उसके नजरों में शराब का नशा घुल गया हो। वो नशा, जो ऋषि -मूनी के तपस्या को भी भंग करने की शक्ति रखता हो।

राजन तो फिर भी इंसान था, एक पल के लिये उसका धैर्य जाता रहा। उसकी इच्छा जागृत हुई कि आगे बढे और सौम्या को अपने मजबूत बाजुओं में थाम ले। आखिर गलती उसकी तो नहीं है, वो खुद ही उसे निमंत्रित कर रही है। वो तो मर्द है, उसका तो स्वाभाविक गुण है कि अगर सजा-सजाया भोजन का थाल मिले तो टूट पड़ना । लेकिन दूसरे ही पल राजन ने अपने बहकते हुए मनोभाव को नियंत्रित किया। नहीं-नहीं, मैं भले ही मर्द हूं, लेकिन मेरी ब्याहता श्रेया है। मैं ने उसके साथ अग्नि के सात फेरे लिये है, ऐसे में उसके विश्वास को नहीं तोड़ सकता ।माना कि सौम्या उससे टूटकर मुहब्बत करती है, लेकिन अब बहुत देर हो चुकी है। अब वो अगर उसके प्रणय निमंत्रण को स्वीकार करेगा, तो उससे बड़ा कोई और मक्कार नहीं होगा। राजन इन्हीं बातों को सोचते हुए खुद को संभाला और सौम्या की ओर देखा। सौम्या ने उसकी ओर देखा और मुस्करा कर बोली।

ओ तपस्वी! अपनी तपस्या छोड़ो और अंदर चलो। अब बातें करने आए हो, तो अंदर ही बातें होगी। बोलने के साथ ही सौम्या खिलखिला कर हंस पड़ी । हा- हा- हा। उसकी मदमस्त हंसी राजन के पूरे शरीर में सिहरन बन कर उतर गई। वो उसके हंसी का मतलब न निकाल सका, जबकि कोशिश तो उसने बहुत की। तब वह बड़ी मुश्किल से सौम्या की ओर देखकर बोला।

मैं तुम्हारे इन बातों का मतलब नहीं समझ सका सौम्या।

तुम अगर मेरी बातों का मतलब समझ ही सकते, तो कब के हम दोनों एक हो गये होते। खैर छोड़ो इन बातों को और तुम अंदर चलो। सौम्या अर्थपूर्ण शब्दों में बोली और मुस्करा कर राजन के आँखों में देखा और उसके हाथ पकड़ कर अंदर हाँल की ओर बढ गई।

राजन तो जैसे मंत्रित कर दिया गया हो, उस तरह से उसके पीछे खिचा चला गया। आज राजन खुद को जितना लाचार महसूस कर रहा था, शायद पहले कभी भी न था। खैर लीविंग रूम में पहुंचने पर सौम्या ने उसे सोफा पर बिठाया और किचन की ओर बढ गई। राजन उसे जाते हुए देखता रहा, वह यंत्रवत जैसे हो चुका था। वह बस सौम्या के गतिविधि को देखता जा रहा था। तबतक सौम्या किचन से लौट चुकी थी, वो इस वक्त खाली नहीं थी। इस वक्त उसके हाथों में जीन वाईन और दो गिलास, साथ में नमकीन की प्लेट। वह नजाकत से संभाले हुए इन चीजों को ला रही थी।

राजन बस उसे आते हुए देखता रहा, उसके हरकतों को देखता रहा। वह सौम्या के हाव-भाव को समझने की कोशिश कर रहा था। जबकि सौम्या उसके करीब पहुंची। सेंटर टेबुल पर उसने सारी वस्तुओं को सजाया। फिर उसके करीब ही बैठ गई और जाम बनाने लगी। जबकि दूसरी तरफ राजन के दिलों की धड़कन यूं ही बढ गई थी, उसके करीब बैठने से। सांसे तेज-तेज चलने लगी, वह लाख कोशिश कर रहा था खुद को संभालने की। परन्तु उसकी सारी कोशिशें व्यर्थ होती जा रही थी। यह तो स्वाभाविक ही था कि अगर आग के पास मोम रख दिया जाये, तो वह पिघलेगा ही।

लो पीओ! सौम्या ने पैग उठाकर उसकी ओर बढाया।

अ-आं! राजन चौंका ।

लो पीओ! सौम्या धीरे से बोली। उसकी बातें सुनकर राजन ने पैग थाम लिया। तब सौम्या ने भी पैग उठाया, दोनों ने चियर्श किया। फिर दोनों ने एक दूसरे को देखा और शराब हलक में उड़ेल गये। तब सौम्या फिर से बोली। राजन! तुम किस दुनिया में खोए थे। सौम्या सीधे-सपाट स्वर में बोली। जबकि उसके बातों का जबाव राजन के पास नहीं था। वो हकला कर बोला।

क-क-कुछ नहीं सौम्या! तुम तो खा-म-खा ही शक करती हो।

मैं शक नहीं करती! खैर छोड़ो और पैग पीओ। मैं जानती हूं कि तुम खाकर आए हो, इसलिये ही इसे ही ले आई। सौम्या शांत स्वर में बोली और फिर पैग बनाने लगी।

इसके बाद तो सौम्या और राजन ने दो-दो पैग और पी लिया। इस बीच सौम्या राजन के और करीब हो चुकी थी, इतनी करीब कि सांसे टकराये। सौम्या के इतने करीब होने के कारण राजन खुद को नियंत्रित नहीं कर पा रहा था। उसे अजीब सी फीलिंग महसूस हो रही थी। वह शादीशुदा था, ऐसे में स्वाभाविक ही था कि सौम्या उसके करीब आए और वो बहकने लगे। वह बहक रहा था, लाख कोशिश करने के बाद भी वो अपने आप को नियंत्रित नहीं कर पा रहा था। सौम्या की लहराती रेशमी जुल्फें जब उसके लवों से टकराती थी, उसके भावनाओं को हवा दे जाती थी। वह अंदर ही अंदर डर भी रहा था कि कहीं बहक कर वो ऐसी कोई हरकत न कर दे। जिस से बाद में खुद से ही नजरें न मिला सके।

इसी बीच सौम्या फिर से पैग बनाने लगी, तो राजन ने उसे रोक दिया और बातों को दूसरी ओर मोड़ने के लिये रोनित के बारे में पुछा। जबाव में सौम्या आज के दिन क्लिनिक में जो भी हुआ था, बताने लगी। राजन ध्यान से उसकी बातों को सुन रहा था। तभी सौम्या ने उसके होंठों पर अपनी अंगुली रखी और फेरने लगी। आग सी लग गई राजन के जिस्म में, उसे लगा कि उसका जिस्म भट्टी में तप रहा हो। अब वो लाख चाह कर भी अपने कोमल भावनाओं पर नियंत्रण नहीं रख पा रहा था। ऐसे में उसे अच्छी तरह यह बात समझ में आ चुका था कि वह ज्यादा देर तक यहां रहा, तो खुद को रोक नहीं पाएगा। आखिर वह भी तो इंसान ही है, भूलें करना स्वाभाविक ही है, इसलिये उठकर खड़ा हो गया और सौम्या से अलग होकर बोला।

सौम्या! रात बहुत हो चुकी है, ऐसे में लगता है कि मुझे चलना चाहिए।

क्या बात है राजन! क्या यहां सुविधा की कोई कमी है। उसे खड़ा हुआ देखकर सौम्या भी खड़ी हो गई और निराश नजरों से उसकी ओर देखकर बोली। उसकी बातें सुनकर राजन बातें संभालता हुआ बोला।

नहीं ऐसी बात नहीं है सौम्या! बात दरअसल ये है कि मैं बिवाहीत हूं और तुम लड़की हो। ऐसे में मेरा ज्यादा देर तक रुकना ठीक नहीं रहेगा। रातें ज्यादा हो चुकी है, ऐसे में तुम सो जाओ। मैं तुमसे कल सुबह बातें कर लूंगा। वह बोल कर सौम्या की ओर देखने लगा, तब सौम्या बोली, उसके शब्दों से निराशा दृष्टिगोचर हो रहा था।

जब तुम ही राजी नहीं हो, तो कोई बात नहीं। अब तुम जा सकते हो, लेकिन घर पहुंचने पर फोन की घंटी जरूर घुमा देना।

सौम्या से इजाजत मिलते ही वह बंगले से निकला, अपनी कार की ओर बढा और कार में बैठते ही इंजन श्टार्ट करके आगे बढा दी। वह महसूस कर रहा था कि सौम्या की नजरें जैसे उसका पीछा कर रही हो। उसे धोखा हो गया था जिन्दगी से, या शायद वो काँलेज लाइफ में सौम्या को सही से समझ ही नहीं सका। नहीं तो उसके लिये तो वह दिल में एक साँफ्ट काँर्नर जरूर रखता था। पर नियति को शायद कुछ अलग ही मंजूर था, नहीं तो ऐसा कदापि नहीं होता। भले ही उसे श्रेया जैसी सुन्दर, सुशील और समझदार जीवनसाथी मिली थी। परन्तु एक कसक, जो उसे पूरी उम्र सालता रहेगा।

राजन ने अपना ध्यान दूसरी ओर डालने के लिये म्यूजिक प्लेयर आँन कर दिया। लेकिन ये विचार, जो शायद जीवन की गंभीर भूल थी, बार-बार उसका पीछा कर रहे थे। खैर उसके विचारों से कार को क्या लेना-देना। कार उसके बंगले के पोर्च में जाकर रूक गई। वह कार से उतरा, बंगले का दरवाजा खोला और अंदर प्रवेश कर गया। उसने बंगले की लाइट जलाई और किचन की ओर बढ गया, काँफी बनाने के लिये। इस बीच उसने सौम्या को सुचित कर दिया कि पहुंच गया है। फिर अमोल को काँल जोड़ कर अगले दिन के प्लान के बारे में समझाने लगा।

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सुबह की ताजगी भरी हवा और झरोखे से आती प्रभात किरण जब राजन के चेहरे पर पड़ी, तो वह कुनमुनाया। नींद आँखों से कब की जा चुकी थी, उसने सोफे पर लेटे-लेटे ही शरीर को सीधा किया और उठ कर खड़ा हो गया। तभी उसे रात का वाकया याद आ गया और उसे शरमिंदगी महसूस होने लगी। शायद वो सचेत न होता, तो न जाने रात को क्या हो जाता।

राजन सोफे से उठकर खड़ा हुआ और किचन की ओर बढा, तभी डोर बेल बजी। इतनी अहले सुबह कौन हो सकता है। उसने सोचा और आगे बढ कर दरवाजा खोला। दरवाजे पर अमोल और मंजीत खड़ा था। दोनों को देखकर वह आश्चर्य चकित हुआ, जबकि अमोल ने उसे बताया कि हम लोग जो मधुशाला वियर वार जाने बाले है पूछताछ के लिये। इसलिये मंजीत को साथ ले लिया। अमोल की बातें सुनकर राजन मुस्कराया वह मंजीत को अच्छी तरह से जानता था। मंजीत, दुबला- पतला और लंबा, मध्यम रंग का। कोई खास आकर्षक नहीं, काँलेज में सभी उसको मिस्टर दब्बू कह कर पुकारते रहते थे। वैसे लड़का था बहुत नेकदिल और उसके ही ग्रुप का मेंबर था।

राजन ने दोनों को मुस्कराकर स्वागत किया, हाँल में अंदर ले जाकर सोफे पर बिठाया और खुद किचन की ओर बढ गया। उसको किचन में जाते ही मंजीत ने टीवी का रिमोट उठाया और टीवी आँन करके न्यूज चैनल लगा दी। मंजीत की एक खासियत थी कि उसे न्यूज सुनने का बहुत शौक था। साथ ही हाथों द्वारा वैसे ही हरकत करने लगता था, जिस प्रकार न्यूज में दिखाया जाता था। उसके इस अजीब से आदत से उसके दोस्त परेशान रहते थे और कोई भी उसके साथ रहना पसंद नहीं करता था। लेकिन कहते है न कि गरज हो, तो लोग गदहा को भी बाप कहते है।

मंजीत इस समय भी अपने उन्हीं हरकतों को दुहरा रहा था। जिससे अमोल को परेशानी हो रही थी। लेकिन बेचारा करता भी क्या, उसे जरूरत थी, सो बर्दाश्त कर रहा था। तभी राजन किचन से ट्रे में काँफी के कपों को सजाये हुए निकला और उन लोगों की ओर बढा। उसे आता देखकर अमोल तो सावधान होकर बैठ गया, जबकि मंजीत अपने हरकतों में तल्लीन रहा। उसे इस प्रकार से हरकतें करता देख राजन मुस्कराए बिना नहीं रह सका। ऐसा नहीं था कि वो उसके हरकतों को जानता नहीं था। वह उससे अच्छी तरह से वाकिफ था, इसलिये ट्रे सेंटर टेबुल पर रखी और सामने बाले सोफे पर बैठते हुए अमोल से बोला।

अमोल! इसकी पुरानी आदत अभी तक नहीं गई, न्यूज देख कर वैसा ही अभिनय करना। राजन तो बोल गया, अमोल ने सुनकर चिढ कर जबाव दिया।

शाला! एक नंबर का कमीना है, ऐसे में इसकी आदत जाएगी कैसे। वैसे यार, मैं ने इसे बोला भी था कि न्यूज ऐंकर की नौकरी कर ले, तुम पर फबेगा। लेकिन शाला कमीना, सुने तब न। अमोल के बोलने भर की देर थी, मंजीत के हरकतों पर ब्रेक लग गये। वो तनिक रुष्ट हुआ और राजन से बोला।

देखो राजन! इसे बेइज्जती ही करनी थी, तो मुझे लेकर आया क्यों? मैं तो मरा नहीं जा रहा था इसके साथ आने के लिये। अब जो मुझे पसंद है, वो तो करूंगा ही। अब नहीं पसंद है,तो बोल दो, वापस चला जाता हूं। मंजीत की बोली से लग रहा था कि वो रुष्ट हो चुका है। ऐसे में राजन ने टीवी आँफ किया और बाजी संभालने के उद्देश्य से अपने शब्दों में शहद घोलकर बोला।

अमा यार मंजीत! तू भी न, बिना मतलब की बातों में उलझ गया। अब छोड़ो भी इन बातों को, अमोल ने तो ऐसे ही बोल दिया था, तुम्हें चिड़ाने के लिये। बोलने के बाद राजन ने काँफी का कप अमोल और मंजीत की ओर बढाया, फिर बोला। वैसे तुम दोनों काँफी पीओ और बताओ कि मेरे हाथ की काँफी लगी कैसी।

राजन के हाथों से अमोल और मंजीत ने काँफी का कप ले लिया। फिर वे तीनों काँफी पीने में व्यस्त हो गये। समय धीरे-धीरे आगे की ओर बढता रहा। काँफी खतम करने के बाद तीनों ने कप सेंटर टेबुल पर रखा, फिर मंजीत बोला।

राजन यार! तुम अमोल को बोल दो। कि मुझे इस तरह से परेशान नहीं करें, अन्यथा मैं तुम्हारा साथ नहीं दे पाऊँगा। मंजीत के बोलने भर की देरी थी कि अमोल चिढ कर बोला।

अबे मंजीत! धमकी किसे दे रहा है, तुमको जाना है,तो जा सकते हो। बस फिर क्या था, अमोल की बातें सुनते ही मंजीत सोफे से उठा और कुछ बोले बिना ही बाहर की ओर निकल गया। उसे जाता देखकर राजन परेशान हुआ , तो अमोल मुसका कर धीरे से बोला। अमा यार राजन, खा-म-खा परेशान न हो। मैं जानता हूं मंजीत को, अभी गया है और अभी वापस आएगा। फिर यही बोलेगा, नहीं यार राजन, मैं इससे परेशान तो हूं, लेकिन तुम्हारा काम है। तू मेरा दोस्त है और दोस्त ही तो दोस्त के काम आते है। ऐसे में मेरा मन नहीं माना और तुम्हारे पास लौट आया।

अमोल धारा प्रवाह बोलकर एक पल के लिये चुप हुआ, राजन ने उसे गंभीर नजरों से देखा। तभी मंजीत लौटकर वापस आया और फिर से सोफे पर बैठकर वही बात बोला। जो थोरी देर पहले अमोल ने राजन को बतलाया था। मंजीत की बातें सुनकर राजन के होंठों पर मुस्कान फैल गई। वह सोफे पर से उठा और दोनों को बतलाया कि थोरी देर इंतजार करें। इसके बाद वाथरुम में घुस गया। जबकि आदत के अनुरूप फिर से मंजीत ने न्यूज चालू कर लिया और फिर से उसी प्रकार के हरकत करने लगा। उसकी वही हरकत, जो किसी को भी पसंद नहीं था। उसके हरकतों को देख-देख कर अमोल कूढता जा रहा था, समय अपनी रफ्तार से आगे की ओर भागी जा रही थी।

ऐसे में अमोल चाह रहा था कि राजन जल्द से तैयार होकर निकले कि वे लोग अपने मिशन पर निकल सके। वैसे मंजीत को झेलना उसके बुते की बात नहीं थी। अमोल ने अपने ध्यान को मंजीत से हटाने के लिये वाथरुम के दरवाजे पर नजरें गड़ा दी। तभी राजन वाथरुम से निकला, फिर तो वे लोग बंगले से बाहर आ गये। बंगले से निकलते ही राजन ने लाँक किया, फिर कार में बैठे और कार सड़क की ओर बढा दिया। कार जैसे ही बंगले के पोर्च से निकल कर सड़क पर आई, अमोल तपाक से बोला।

अमा यार राजन! मधुशाला ही चलना है न। अमोल के बोलने की देर थी, राजन बोलता उससे पहले मंजीत बोल पड़ा ।

अब्बे अमोल! तू भी अजीब है, कार ड्राइव राजन कर रहा है और पुछ तू रहा है।

तो क्या हुआ, प्लानिंग भी तो इसकी ही है। इसलिये ही तो पुछा कि मधुशाला चलना है। मंजीत की बातें सुनकर अमोल चिढ कर बोला। जबकि उन दोनों की बातें सुनकर राजन के होंठों पर मुस्कान छा गई। वह अच्छे से जानता था कि उसके जितने भी दोस्त है, भले दिखावा जो भी करें, एक दूसरे की इज्जत बहुत करते है।

इसलिये उसने अपना ध्यान ड्राइविंग पर पिरोया, बोला कुछ भी नहीं। सुबह का समय, दिल्ली की सड़क दौड़ती हुई सी प्रतीत हो रही थी। दूसरे राजन ने म्यूजिक प्लेयर चालू कर दिया। कार ने सफर तय किया और मधुशाला के प्रांगण में पहुंची। मधुशाला, जो कि रात में दुल्हन की तरह सजती थी, इस समय सुनसान सा प्रतीत हो रहा था। मधुशाला के प्रांगण में पहुंचते ही राजन ने कार को पार्किंग में खड़ा किया, फिर वे लोग कार से उतर कर मधुशाला के गेट की ओर बढे। उन लोगों ने जब हाँल में प्रवेश किया, वहां सन्नाटा पसरा हुआ था।

राजन वहां के सभी स्टाफ से अच्छी तरह से परिचित था। उसने अपनी नजर हाँल में फेरा, देखा तो कैश काउंटर खुला था और वहां पर रात के कैश कलेक्शन की गिनती हो रही थी। राजन उधर काउंटर की ओर बढ गया, जबकि अमोल और मंजीत हाँल में पड़े कुर्सियों पर ही बैठ गये। एक तो मदिरालय, उसमें भी उन लोगों की फेवरिट्, मंजीत के मुख से लार टपकने लगे। उसके मन में होने लगा कि काश पीने को जाम मिल जाए, तो दो पैग कम से कम गटक ही ले। अमोल उसके मन की बातों को समझ गया। उसने-उसके हाथों दबा कर इशारा किया कि अपने भावनाओं को नियंत्रित करें। फिर अपनी नजर उधर टिका दी, जिधर राजन खड़ा था। उसने देखा कि राजन “मधुशाला “के स्टाफ के साथ बिल्डिंग के अंदरूनी भाग में जा रहा है। अमोल बस अपनी नजरों से वहां हो रहे हरकतों को नोट करता रहा।

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रोनित इस वक्त श्रधा रेस्टोरेंट में बैठा हुआ था। दिन के दो बजे थे, ऐसे स्वाभाविक ही था कि उसे भूख लगे और वो यहां अपनी भूख मिटाने ही आया था। रेस्टोरेंट तो बहुत थे, परन्तु रोनित को यहां का भोजन बहुत अच्छा लगता था। यहां भोजन में सादगी होती थी, साथ ही रेस्टोरेंट सड़क से दूर भी था, ऐसे में शोर-शराबा नहीं होता था।

उसने रेस्टोरेंट में आते ही वेटर को पंजाबी थाली का आँर्डर दे दिया था और अब आँडर सर्व होने का इंतजार कर रहा था। लेकिन दिमाग में कितने ही सवाल कीड़े बन कर कुलबुला रहे थे। उसे राजन का हरकत बिल्कुल भी समझ नहीं आ रहा था। यह लड़का आखिर चाहता क्या है? पहले तो दो शाल तक न कोई पाती, न ही कोई संपर्क। लेकिन आते ही उसकी इतनी केयर करने लगा। आखिर बात क्या है, कहीं वो उसके राज तो नहीं जान गया।

इतनी बातें जेहन में आते ही रोनित पसीने से भीग गया। उसके सभी अंग एक साथ पसीना छोड़ने लगे, फिर वह खुद से बुदबुदाया। नहीं-नहीं ऐसा तो कदापि नहीं हो सकता, क्योंकि उसके राज तो सिर्फ वही जानता है। उसने आज तक अपनी परछाईं को भी अपनी बात नहीं बतलाई, तो राजन जान ले, संभव ही नहीं। लेकिन उसने डाक्टर सौम्या को उसके पीछे फिर क्यों लगा दिया। बात तो जरूर है कोई, अन्यथा सौम्या को उसके पीछे लगाना बेवजह तो नहीं।

सहसा ही रोनित के विचारों पर ब्रेक लगे, क्योंकि वेटर आँडर लेकर आ गया था और अब सलीके से सेंटर टेबुल पर सजा रहा था। वेटर को देखकर सहसा ही उसके दिल में भाव जगे। यह वेटर कितना खुश है, नौकरी करता है और खुशी से रहता है। वैसे अमीर होना भी अभिशाप ही तो है, दिलों का चैन छिन जाता है। और भी न जाने क्या-क्या विचार उसके जेहन में भटकते, लेकिन वो चौंक उठा। उसका चौंकना भी वाजिब ही था, उसने सौम्या को जो रेस्टोरेंट के अंदर आते देख लिया था। उसने अपने आप से पुछा कि इस वक्त सौम्या यहां क्यों आई होगी। तब तक सौम्या उसके करीब पहुंच चुकी थी, वो उससे मुस्करा कर बोली।

क्या मिस्टर रोनित! मैं आपको कहां-कहां नहीं ढूंढा। लेकिन आप यहां आकर छिप कर बैठे हो। सौम्या ने बोलने के साथ ही खाली कुर्सी खींचा और सामने बैठ गई और अपनी नजर उसके चेहरे पर टिका दी। जबकि सौम्या की बातें सुनकर और उसकी हरकत देखकर रोनित एक पल सोचता रहा कि क्या बोले। फिर बड़ी कठिनता से शब्दों को तौल-तौल कर बोला।

मुझको ढूंढने में आपको परेशानी हुई, इसके लिये क्षमा चाहता हूं। वैसे अब तो आप आ ही गई हो, आपके लिये लंच का आँडर करता हूं। वैसे आपको यहां का भोजन पसंद नहीं आएगा, फिर भी आप मेरी मेहमान है। लास्ट के शब्द बोलते वक्त रोनित के स्वर में शर्मिंदगी के भाव थे। उसकी बातें सुनकर सौम्या मुस्करा कर बोली।

कोई बात नहीं मिस्टर रोनित! आपको पसंद है, तो मुझे भी अवश्य ही पसंद होगा। वैसे आपको दिक्कत न हो, तो आपके साथ आपके थाल में ही खा सकती हूं। सौम्या ने सहजता से बोला और रोनित के चेहरे की ओर देखने लगी। वो देखना चाहती थी कि उसकी बातें सुनकर रोनित के चेहरे पर क्या भाव आते है।

उसकी बातें सुनकर रोनित को अटपटा सा लगा। लेकिन वो ऐसा नहीं था कि मना कर देता। वह बोला नहीं, परन्तु सिर को सहमति में जूम्बीस दी। फिर क्या था, दोनों एक ही प्लेट में खाने लगे। वैसे रोनित को इस समय अटपटा सा लग रहा था, लेकिन वो अपने भावनाओं को इस समय व्यक्त नहीं कर सकता था। जबकि सौम्या खाने में तल्लीन हो चुकी थी, उसे खाते देख कर रोनित ने राहत की सांस ली। वे दोनों खाना खा रहे थे और वेटर उन दोनों की सेवा में तत्परता से खड़ा था। जबकि रोनित खाते हुए सोच रहा था कि उसे अगर मालूम होता कि सौम्या लंच पर आएगी। वो किसी दूसरे रेस्टोरेंट में गया होता।

खैर दोनों ने खाना समाप्त किया और उठकर रेस्टोरेंट से बाहर आ गये। तब रोनित ने सहज ही सौम्या से पुछा कि आगे क्या इरादा है। जबाव में सौम्या ने मुस्करा कर इंडिया गेट पर चलने की इच्छा जाहिर की। उसकी बातें सुनकर रोनित का मन हुआ कि एकबारगी मना बोल दे। परन्तु वह ऐसा नहीं कर सकता था, क्योंकि उसका स्वभाव ऐसा बिल्कुल भी नहीं था। वैसे उसे शो रूम पर बहुत से काम निपटाने थे, दीवाली नजदीक आ गई थी। लेकिन वो सौम्या को मना न कर सका और सहमति में सिर को जूम्बीस दी। तब सौम्या ने उसे अपनी कार की ओर चलने का इशारा किया। रोनित तो बस हुक्म का गुलाम बना अपनी कार वही पर छोड़ कर सौम्या के कार की ओर बढा।

दोनों कार के नजदीक पहुंचे, कार के पास पहुंच कर सौम्या ने ड्राइविंग शीट संभाला, जबकि रोनित बगल में बैठा। फिर कार श्टार्ट करके रेस्टोरेंट के गेट से निकली और सड़क पर दौड़ने लगी। दोपहर का समय होने के कारण सड़क पर भीड़ नहीं के बराबर थी। कार भागी जा रही थी, लेकिन कार के अंदर इस वक्त शांति व्याप्त थी। जो कि सौम्या के स्वभाव के विपरीत थी। वो झट रोनित से मुखातिब होकर बोली।

मिस्टर रोनित! आपसे एक बात पुछनी थी, आप बतलायेंगे तो पुछूँ।

आपको जो पुछना है पुछिये। रोनित सहज ही बोला। तो सौम्या तपाक से बोल पड़ी ।

आपने किसी से प्यार किया है कि नहीं?

सवाल सीधा सा था, लेकिन चुभता हुआ था। रोनित एक पल सोचता रहा, फिर सपाट स्वर में बोला। मिस सौम्या! आप के ऐसे प्रश्न मुझे पसंद नहीं है। प्लीज आप ऐसे प्रश्न न ही करो, तो अच्छा है।

रोनित बोल कर चुप हुआ, तो सौम्य समझ गई कि उसकी बातें शायद रोनित को चुभ गई है। वो नहीं चाहती थी कि रोनित नाराज हो, इसलिये उसने बात का रूख दूसरी तरफ घुमा दिया । फिर दोनों के बीच इधर-उधर की बातें होती रही। बातों का सिलसिला इस तरह से चला कि दोनों को पता ही नहीं चला कि उनकी कार इंडिया गेट पहुंच चुकी है। वो तो ब्रेक लगने के बाद सौम्या चौकी, चौका तो रोनित भी। इसके बाद सौम्या ने कार को पार्किंग में खड़ा किया। फिर वे दोनों कार से उतर कर इंडिया गेट की ओर बढे।

इंडिया गेट, हिन्दुस्तान के भव्यता की गवाही देता हुआ अट्टालिका सा खड़ा । यहां का दृश्य काफी मनोहारी होता था। वह भी शाम के समय तो यहां सारी भव्यता सिमट कर आ जाता था। यहां देश- विदेश के पर्यटक घूमने आते है। आज भी जैसे-जैसे दोपहर शाम की ओर अग्रसर हो रहा था, वहां पर लोगों का जमावड़ा बढता जा रहा था। सौम्या और रोनित भीड़ से जरा सा हट कर चल रहे थे। अमूमन तो रोनित को प्रकृति के रूपों से कोई लगाव नहीं था। परन्तु सौम्या, उसे प्रकृति के विभिन्न रंग बहुत ही लुभाते थे। उसे जब भी समय मिलता था, वो यहां पर चली आती थी, उसे यहां मन की प्रसन्नता महसूस होती थी।

मिस सौम्या! आप मोमोज खाना पसंद करती हो। चलते- चलते रोनित की नजर चाट के ठेले पर पड़ी, तो वह सौम्या से मुखातिब होकर बोला।

अफकोर्स मिस्टर रोनित! मुझे भी इन छोटे दुकानदारों के पास खाने में प्रसन्नता मिलती है। सौम्या झट उसके बातों के प्रति उत्तर में बोली।

फिर दोनों उस ठेले की ओर बढे, जहां ताजा-ताजा मोमोज बन रही थी। चलते-चलते एकाएक सौम्या ने पुछा कि आप मेरे साथ डेट पर चलोगे? रोनित असमंजस में पड़ गया, एक तो त्योहारों का सीजन, दूसरे डेट पर जाना। अंजान लड़की के साथ डेट पर जाना मुश्किल काम होता है। लेकिन वो मना भी तो नहीं कर सकता था, इसलिये सहमति में सिर को जूम्बीस दी। उसकी रजामंदी और सौम्या के आँखों में चमक उभर आई। तब तक वे दोनों मोमोज के ठेले पर पहुंच चुके थे। वहां पर रखे बेंच पर दोनों बैठ गये, तब रोनित ने तीखे-चटपटे दो प्लेट मोमोज के आँडर दिये।

उसके बाद दोनों एक दूसरे के चेहरे को देखने लगे। जहां सौम्या रोनित को देख कर सोच रही थी कि कितना मासूम है। इसमें अमीर होने का तनिक भी घमंड नहीं, दूसरों के मान एवं भावों के लिये सजग। भला ऐसे में इसे किस प्रकार की मानसिक उलझन हो सकती है। माना भी इसे उलझन है, तो किस प्रकार की है और कैसे ज्ञात करूं। उधर सौम्या के विपरीत रोनित सोच रहा था कि अजीब चालू लड़की है। सीधे-सीधे कब्जा ही जमाना चाहती है। चालू ही नहीं स्मार्ट भी है लड़की, ऐसे नहीं पीछा छोड़ेगी। इसके लिये तो प्रयास करने होंगे, प्रयास भी ऐसे कि किसी को तकलीफ न हो। दोनों की सोचते-सोचते नजर मिली और मुस्करा पड़े ।

**********

दिन के एक बज चुके थे और समय शनै- शनै आगे की ओर ही बढता जा रहा था। अमोल और मंजीत सुबह के आठ बजे से ही हाँल में बैठकर राजन का इंतजार कर रहे थे। लेकिन राजन, जो मधुशाला के पिछले भाग में गया, सो अब तक नहीं लौटा। घंटों का लंबा इंतजार, अमोल और मंजीत के चेहरे से थकावट स्पष्ट परिलक्षित हो रही थी। दूसरा और कोई समय होता, तो अमोल के अंदर का गुस्सा ज्वार-भाँटा बन कर बाहर आ चुका होता। लेकिन यहां, मधुशाला वियर वार में ताकत दिखाना। तौबा-तौबा, सोच कर भी उसका रूह कांप उठा। लेकिन यह अजीब जगह है और अजीब है यहां के लोग। सुबह से दोनों बैठे है, लेकिन मजाल कि किसी ने पानी के लिये भी पुछा हो, खाना खिलाना तो दूर की बात है।

अमोल यह सोच-सोच कर परेशान था कि आखिर राजन गया, तो गया कहां। जबकि मंजीत विदेशी शराब और वियर की केन देखकर कितनी ही बार लार टपका चुका था। सच में उसका बस चलता, तो वो अब तक शराब की बोतलों को हलक में उतार चुका होता। लेकिन करें तो क्या, अमोल ने अंकुश लगा रखा था। परेशान तो दोनों हो चुके थे, राजन का इंतजार करते- करते, लेकिन वो तो गदहें के सींग की मानिंद गायब हुआ सो अब तक नहीं आया।

अमूमन तो अमोल बिंदास स्वभाव का था, उसे किसी का इंतजार करना बिल्कुल भी नहीं जमता था। लेकिन आज वो बुरा फंसा था, यहां तो वो अपने गुस्से को प्रदर्शित भी नहीं कर सकता था। आज उसे राजन पर बहुत ही गुस्सा आ रहा था। शाला! एक नंबर का कमीना है, हमेशा उलटी-सीधी हरकत करता रहता है। भगवान कसम! अगर अभी सामने आ जाये, तो आगे के दोनों दांत तोड़ दूं, ऐसा अमोल सोच रहा था। तभी उसकी नजर आते हुए राजन पर पड़ी। राजन को आता देख एक पल में ही अमोल का गुस्सा उड़न छू हो गया। होंठों पर मुस्कान सज गये। जबकि उसे आता देखकर मंजीत सजदे में खड़ा हो गया।

राजन उन लोगों के करीब आकर मुसकाया, वो समझ चुका था कि दोनों मन ही मन उसे गाली दे रहे होंगे। शाला! दोस्त कमीना होता ही है, अब सामने हिम्मत नहीं है, तो क्या। राजन उन दोनों के मन की बात समझ कर मुसकाते हुए उन लोगों को वहां से चलने के लिये बोला। फिर क्या था, तीनों मधुशाला से निकल कर कार के पास आ गये, कार में बैठे और श्टार्ट करके आगे बढा दी। कार आगे बढी, तो राजन उन दोनों से मुखातिब होकर बोला।

तुम दोनों ने आज मन ही मन मुझे जी भर कर गाली दिया होगा, है न।

नहीं-नहीं, तुम गलत सोचने लगे, भला हम लोग तुम्हें गाली क्यों देंगे। अमोल के बोलने से पहले ही मंजीत मुंह बनाकर बोला, फिर एक पल चुप रहा। दोनों के चेहरे देखता रहा, फिर बोला। अमा यार राजन! मैं तो तुमको कभी गाली दे ही नहीं सकता, हां इस कमीने अमोल ने दिया हो, इसकी कोई गारंटी नहीं।

अबे साले! तू दूध का धुला है और मैं कमीना। अमोल मंजीत की ओर गुर्राया। उसकी गुर्राहट सुनकर मंजीत ने खिंसे निपोड़ दी, जबकि राजन गंभीर होकर बोला।

मैं जानता हूं कि गाली तुम दोनों ने ही जी भर कर दिया होगा। कमीना यार है न, कभी किसी के इंतजार की आदत नहीं। वैसे में तुम लोगों को लंबा इंतजार करना पड़ा, वह भी बिना चाय काँफी के, खाली पेट। राजन ने बोल कर अपनी नजर ड्राइविंग पर जमा दी, लेकिन तिरछी नजर दोनों के चेहरे पर।

हां राजन! तू क्या कम कमीना है, शाला हम लोगों को भूखा-प्यासा छोड़ कर न जाने कहां गुम हो गया था। फिर तो शाला वह मधुशाला बाले, साले पक्के हरामी है। हम लोग इतनी देर तक वहां बैठे रहे, सालों ने एक गिलास पानी के लिये भी नहीं पुछा। अमोल राजन की बातें सुनकर तपाक से बोल गया। उसकी बातें, मानों दिल की सारी भड़ास शब्दों में आकर सिमट गई हो। उसकी बातों ने राजन के होंठों पर मुस्कान ला दी। उसे मुस्कराता देखकर मंजीत और अमोल भी मुस्करा पड़े । तब राजन ने उन लोगों की ओर देखकर बोला।

ठीक है-ठीक है, जानता हूं कि तुम लोग भूखे जानवर बन रहे हो, इसलिये हम सीधे आहना रेस्टोरेंट चलते है। साथ ही तुम लोगों को इंतजार करना पड़ा है,तो आज शाम मधुशाला की पार्टी हमारी तरफ से।

जय-जय हो राजन सरकार की, जय हो तुम्हारी। मंजीत हर्षित होकर बोला। मधुशाला की बातें सुनकर अभी से उसके होंठों से लार टपकने लगे।

फिर राजन ने कार की रफ्तार बढा दी और म्यूजिक प्लेयर आँन कर दिया। इस बीच उन लोगों में किसी प्रकार की बातचीत नहीं हुई। कार ने पलक झपकते ही लंबा सफर तय कर लिया और आहना रेस्टोरेंट के पोर्च में रूकी। कार से उतर कर वे लोग रेस्टोरेंट के अंदर गये, वहां पेट भर कर अपनी भूख मिटाई। उसके बाद फिर से कार में आकर बैठ गये। तब अमोल ने राजन से पुछा कि अब किधर चलना है। जबाव में राजन मुसकाया, उसने अपनी कलाईं घड़ी देखी, जो दिन के ढाई बजने की घोषणा कर रहा था। फिर उन लोगों की ओर देखकर अपने शब्दों में मिठास घोलकर बोला।

अब हम लोग इंडिया गेट चलते है।

लेकिन क्यों? क्या राजन, पूरे दिन हम लोगों को दिल्ली के ही चक्कर लगवाएगा। मंजीत तपाक से बोला, उसकी बातों से साफ स्पष्ट हो रहा था कि वो सफर से थक चुका है। जबकि उसकी बातों से अमोल चिढ गया और कूढ कर उसकी ओर मुखातिब होकर बोला।

अब्बे साले मंजीते! तुम इतना ही थक गये हो, तो इसमें बड़ी बात क्या है, तुम उतर कर घर चले जाओ।

अमा यार राजन! देख लो-देख लो इसे, मुझे जाने के लिये बोल रहा है। ऐसा है तो मैं चला जाऊंगा, फिर मत कहना। मंजीत ने अपनी शब्दों में उत्तेजना घोलकर बोला और राजन की ओर देखने लगा।

अबे साले! धमकी किसे दे रहा है, तुम्हें जाना है,तो जाओ न। राजन के बोलने से पहले ही अमोल तपाक से बोल पड़ा । उन दोनों की बातें सुनकर राजन मुसकाया, फिर धीरे से बोला।

तुम लोग आपस में लड़ना छोड़ो और ध्यान से सुनो। मैं तुम लोगों को वहां इसलिये चलने के लिये बोल रहा हूं कि वहां पर रोनित और सौम्या पहले से मौजूद है। उसकी बातें सुनकर दोनों एक साथ चिहुंक कर बोले।

क्या?

हां दोस्तों सही बोल रहा हूं। राजन ने अपनी बात दुहरा दी।

अमा यार राजन! तू कै अंतर्यामी है। उसकी बातें सुनकर मंजीत तपाक से बोला। जबकि उसकी बातें सुनकर अमोल ने बुरा सा मुंह बनाया और राजन से मुखातिब होकर बोला।

राजन! तुम तो कार बढाओ, इसकी बातों पर ध्यान मत दो। यह तो शाला शुरू से ही कमीना है, ऐसे ही अनाप- सनाप बकता रहेगा।

उसकी बातें मानों मंजीत को बरछी की तरह लगी। उसने मुक्का बांधकर हाथ आगे बढाया अमोल को मारने के लिये, लेकिन एकाएक रूक गया। जबकि राजन ने कार श्टार्ट किया और आगे बढा दी। वह जानता था कि अमोल और मंजीत में ऐसे ही नोक-झोक चलता रहेगा। इसलिये उधर ज्यादा ध्यान देना ही गलत होगा। ऐसा सोच कर उसने म्यूजिक प्लेयर आँन कर दिया और नजर ड्राइविंग पर जमा दी। गाने की आवाज में मंजीत और अमोल के शोर दब गये, इसलिये उन लोगों ने भी चुप्पी साध ली।

कार सरपट दौड़ी जा रही थी, दिल्ली के सड़कों का सीना रौंदते हुए। शाम होने को आई थी, इसलिये सड़क पर भीड़ भी बढ गई थी। तभी राजन ने कार की स्पीड पर ब्रेक लगाये, क्योंकि इंडिया गेट आ चुका था। तब राजन ने कार को साइड में पार्क किया और दरवाजा खोल कर बाहर आया। बस फिर क्या था, उन दोनों ने भी उसका अनुसरण किया। जबकि राजन की नजर तो रोनित और सौम्या को ढूंढ रही थी। तभी उसकी नजर रोनित और सौम्या पर गई और दोनों को मोमोज खाते देखकर उसके आँखों में हर्ष के आंसू छलक गए, जिसे वो छिपा गया।

मन में उसके आत्मविश्वास ने करवट लिया, आँखों में आशा की किरण जगमगा उठी। काश कि दोनों एक दूसरे को समझ ले, एक दूसरे के करीब आ जाए। तो वह समझ लेगा कि उसका गंगा स्नान हो गया। क्योंकि रोनित के मानसिक तकलीफ खत्म हो जाएंगे और सौम्या के जीवन को ठहराव मिल जाएगा। राजन सोच रहा था कि काश ऐसा हो जाए, तो वह जो आत्मग्लानि महसूस करता है, उससे मुक्ति मिल जाएगी। संभव है कि ऐसा ही हो, तो परम पिता की असीम अनुकंपा होगी। राजन मन ही मन सोच रहा था,तभी मंजीत उससे मुखातिब होकर बोला।

अमा यार राजन! किस दुनिया में खोया है। आगे बढो, देखो वहां पर रोनित और सौम्या मोमोज खा रहे है। मंजीत इस तरह से बोला कि स्पष्ट झलक मिल रही थी कि उसकी भी इच्छा मोमोज खाने की है।

जबकि अमोल की नजर जैसे ही सौम्या और रोनित पर पड़ी । उसके दिल में एक हूक सी उठी, चेहरा उदास हो गया। उसके चेहरे से ऐसा प्रतीत हुआ कि उस पर वज्रपात हुआ हो। परन्तु वह तुरन्त ही संभल गया, उसने अपने मनोभाव को छिपा लिया। जबकि मंजीत की बातें सुनकर राजन उसकी ओर पलटा और बोला। तो चले अमोल। लेकिन अमोल जबाव में बोला नहीं, सिर्फ सिर को जूम्बीस दी। फिर वे तीनों उधर बढे, जिधर रोनित और सौम्या मोमोज खा रहे थे।

*********

विशालता लिये हुए वह हाँल, चारों तरफ टीन के शेड से घिरा हुआ था। लगता था कि इसे गोडाउन के लिये बनवाया गया था। लेकिन अभी तक इसका उपयोग नहीं किया गया था, इसलिये पूरा हाँल इस वक्त खाली था। हां हाँल में रोशनी की पर्याप्त व्यवस्था की गई थी। हाँल इस समय खाली जरूर था, लेकिन हाँल के अंदर ही बने केबिन नुमा आँफिस में काफी हलचल थी। वहां हलचल होने का कारण वह शख्स था, जो कंप्यूटर पर कार्य कर रहा था। शायद नहीं, वह कार्य नहीं कर रहा था, अपितु किसी के आने का इंतजार कर रहा था।

चेहरे से वो छँटा हुआ बदमाश लग रहा था ।हट्टा-कट्ठा शरीर, गोरा-चिट्टा रंग और बिल्लौरी आँखें। चेहरे से कमीना पन स्पष्ट दृष्टि गोचर हो रहा था। लेकिन चेहरे का आकर्षण ऐसा कि किसी को भी अपनी ओर आकर्षित कर ले। इस समय वह कुछ बेचैन सा था, शायद उसे किसी का इंतजार था। आँखें बार-बार कलाईं घड़ी की ओर चली जाती थी, फिर समय देखते ही वह लंबी सांस लेता था। कंप्यूटर पर अंगुली तो वो सिर्फ अपना समय निकालने के लिये कर रहा था।

तभी शटर के उठने की आवाज हाँल में गूंज उठी। आवाज सुनते ही खुद से वो बड़बड़ाया, जरूर वही आया होगा। अन्यथा शाम के छ: बजे इस वीरान गोडाउन में कोई क्या करने आएगा। दिमाग में इतनी बात आते ही वो अपनी कुर्सी से उठकर खड़ा हो गया और नजर आँफिस के गेट पर जमा दी। उसके दिमाग में जो तूफानी विचारों के कीड़े थे, हृदय में ही दफन कर लिया और आने बाले के स्वागत में तत्पर हो गया।

बाहर पदचाप उभड़ा और उसके कान सतर्क हो गये, स्वतः ही हाथ रिवाल्वर पर चला गया। तभी दरवाजा खुला और आँफिस में उम्र दराज व्यक्ति ने प्रवेश किया। उसके सारे बाल सफेद हो चुके थे, कमर थोरी झुक गई थी। लगता था कि उम्र का प्रभाव उसपर होने लगा है। लेकिन आँखों में चमक बरकरार थी, चेहरे पर झुर्रियां नाम मात्र का भी नहीं था। उसने इस वक्त काले रंग की ओवर कोट पहन रखी थी, जिसमें उसका पूरा बदन ढका हुआ था। उसपर सिर पर पहना हुआ ब्लू हैट, उसका व्यक्तित्व काँफी जानदार था। उसने आते ही वहां मौजूद शख्स को एक नजर उपर से नीचे की ओर देखा और फिर सपाट स्वर में बोला।

राघवन! बाँस ने तुमको मैसेज भेजा है।

लेकिन क्या? बह तो बताओ बांके श्री। वह शख्स जो वहां पहले से मौजूद था और जिसका नाम राघवन था, गंभीर होकर बोला।

बाँस ने बोला है कि तुमको किसी की रेंकी करनी है और उसके पल-पल के रिपोर्ट को बाँस को बताना है। बुढा शख्स फिर से सपाट लहजे में बोला। इसके बाद उसने खाली पड़ी कुर्सी खींची और बैठ गया। उसे बैठा देखकर राघवन ने भी अपनी कुर्सी संभाल ली। फिर बैठने के बाद वह बुढे से मुखातिब हुआ।

ठीक है-ठीक है बांके, तुम मुझे पूरे डिटेल समझाओ। फिर देखता हूं कि आगे क्या करना है। राघवन ने बुढे की आँखों में देखकर बोला। उसकी बातें सुनकर बुढा एक पल कुछ सोचता रहा, लेकिन उसकी आँखों में चमक बरकरार रही। फिर जैसे उसने अपने मन में कोई निर्णय कर लिया हो, उससे मुखातिब हुआ और धीमे स्वर में बोला। इस बार बोलते समय उसके लहजे में बदलाव था।

तुम्हें मधुशाला जाना है, वहां ऐसे जाना है, जैसे ग्राहक जाता है। फिर वहां तुम्हें रोनित सहाय की रेकिंग करनी है। लेकिन इस बार जरा संभल कर, इस बार उसके साथ एक तेज-तर्रार लड़का है। उससे जरा बचकर रहना और हो सके तो उसके सामने मत आना।

लेकिन फिर से रोनित की रेकिंग की जरूरत बाँस को क्यों आन पड़ी । राघवन ने बुढे की बात बीच में काटकर तपाक से बोला। वह बोल चुका, तो बुढे की आँखें गुस्से से आग उगल रही थी। बुढे ने अपने गुस्से की अधिकता को दबाते हुए बोला।

राघवन! तुम ज्यादा स्मार्ट न बनो, इसी में तुम्हारी भलाई है। अन्यथा इस काम को करने के लिये और भी बहुत से लड़के है। बस तुम इतना ही करो, जितना कि बाँस द्वारा कहा जाए। आगे का फैसला बाँस द्वारा होगा। अब तुम बताओ कि तुम्हें काम करना है या नहीं।

वो तो मैं कर लूंगा, लेकिन तुम पेमेंट लेकर आए हो। बांके की बात खतम होने से पहले राघवन बोला। उसकी बातें सुन कर बांके के होंठों पर मुस्कान फैल गई। उसने एकबार राघवन को उपर से नीचे तक देखा, फिर अपने शब्दों को चबाता हुआ बोला।

बड़े उतावले हो रहे हो पैसे के लिये। तुम्हें कहा न कि बाँस तुम्हें दे देंगे। तुम समझदार हो, इसलिये कहता हूं, अपना काम निपटाओ।

नहीं बांके! ऐसा बिल्कुल भी नहीं हो सकता। राघवन ने सपाट लहजे में बोला, फिर एक पल रुका, उसके बाद बोला। तुम अच्छी तरह जानते हो बांके कि मैं दो नंबर के काम सिर्फ पैसे के लिये करता हूं। ऐसे में बकाया राशि, नहीं मुझे स्वीकार नहीं।

तो फिर अपना गूगल पे नंबर दो, अभी डलवाता हूं। बांके इस बार नम्र स्वर में बोला।

लेकिन क्यों? क्या कैश नहीं लाये हो। राघवन तपाक से बोला। उसकी बातें सुनकर बांके मुसकाया और फिर बोला।

राघवन! बच्चे की तरह जिद्द मत करो, हालात को समझो। आज कैश नहीं था, नहीं तो लेकर ही आता। परन्तु तुम्हें क्या, तुम्हें तो पैसा मिल रहा है न।

बांके की बातें सुनकर राघवन सहमत हुआ, उसने अपना गूगल पे नंबर उस बुढे को दिया। बुढे ने कहीं फोन काँल लगाये और दस मिनट बाद ही राघवन के मोबाइल पर दस लाख रुपये के ट्रांजेक्सन का मैसेज आया। रुपये अपने अकाउंट में देखते ही राघवन के चेहरे पर संतुष्टि के भाव चमक उठे। तब उस बुढे ने राघवन से विदा ली और जैसे आया था, वैसे ही चला गया।

उसके जाते ही राघवन उठा, आँफिस से बाहर निकला, आँफिस लाँक की और हाँल से बाहर आ गया। बाहर आकर उसने गोडाउन के शटर डाउन किए और अपने कार की ओर बढा। उसकी मर्सिडीज कार, ब्लू कलर की, उसे महंगे गाड़ियों का शौक था। इसलिये ब्रांडेड कंपनियों के कई कार उसके पास थे। लेकिन ब्लू कलर की यह मर्सिडीज उसे बहुत पसंद थी। राघवन कार में बैठा, इंजन श्टार्ट की और सड़क पर दौड़ा दिया। शाम का अंधेरा घिर चुका था, ऐसे में दिल्ली की सड़कों पर गाड़ियों की भीड़ बढ गई थी। ऐसे में राघवन सावधानी से कार ड्राइव करने लगा और म्यूजिक आँन कर दी।

कार दिल्ली की सड़कों को रौंदती हुई मधुशाला के प्रांगण में पहुंच गई। राजन ने सजी-धजी मधुशाला पर नजर डाला और एक साथ ही कई विचार उसके जेहन में उछल-कूद करने लगे। लेकिन वो राघवन ही क्या, जो भावनाओं को अपने उपर हावी होने दे। उसने उन सारे विचारों को झटक दिया, कार पार्किंग में खड़ी की और मधुशाला के गेट की ओर बढा। हाँल में प्रवेश करने से पहले राघवन के चाल में बदलाव हो चुका था। इस समय वो नवाबी अंदाज में चल रहा था।

चरस का गाढा धुआँ और शराब की तेज बदबू उसके हाँल में कदम रखते ही उसके नाकों से टकराई। स्वभावतः ही उसने नजर उठाकर हाँल में चारों ओर फेरा। चारों तरफ धुआँ, शराब में झूमता हरेक शख्स, टकराता हुआ जाम और हाँल में फैली नीली रोशनी। अजीब से रहस्यमय माहौल का निर्माण कर रहा था। राघवन ने एक नजर स्टेज पर डांस करती वार बालाओं को देखा। फिर अपनी नजर को हाँल में चारों ओर दौड़ाने लगा। वह जिस काम के लिये आया था, उसे पूरा करने के लिये पूरी तरह तैयार हो चुका था।

राघवन की खोजी नजर हाँल में घूमते -घूमते रोनित पर जाकर ठहर गई। उसने देखा कि रोनित के साथ एक लड़की और तीन लड़के भी बैठे थे। लेकिन इससे उसे क्या, वो तो जिस काम के लिये आया है, वो पूरा करेगा। राघवन ऐसा सोच ही रहा था कि बांके की दी गई चेतावनी उसे याद आ गई। बस फिर क्या था, वो सजग हो गया। उसने ऐसा टेबुल चुना अपने बैठने के लिये, जो रोनित के टेबुल से अच्छी-खासी दूरी पर हो।

साथ ही उसने साथ ही इस बात का खास ध्यान रखा कि वो इस प्रकार से बैठे कि रोनित एण्ड ग्रुप पर उसकी नजर खड़ी रह सके। वह अच्छे से जानता था कि उसकी थोरी सी भूल उसके सारे किए-कराये पर पानी फेर सकता था। इसलिये उसने बैठते वक्त इन बातों को ध्यान में रखा। तभी वेटर उसके पास आया, तो उसने व्हिस्की की बोतल, काजू फ्राय और गिलास लाने के लिये बोला। वेटर के चले जाने के बाद उसने अपनी नजर रोनित के ग्रुप पर जमा दी। उसने देखा कि वे लोग ड्रिंकिंग करने में मशगूल थे। लेकिन उसे इससे बिल्कुल भी मतलब नहीं था, उसका तो उद्देश्य था कि वो उसके नजरों से ओझल नहीं हो। राघवन काईंया इंसान था और उसे इस काम में तो महारत हासिल थी।

*********

मधुशाला, रात के नौ बज चुके थे। राजन और रोनित ने लिमिट में ही शराब पी थी। जबकि अमोल और मंजीत पी कर टुल्ली हो गया था। सौम्या ने तो उन लोगों की बात रखने के लिये दो पैग पी लिये थे। हाँल का माहौल इस वक्त नशीला हो चुका था, जिसे देखो वही मतवाला होकर झुम रहा था। ऐसे में राजन ने रोनित की तरफ देखा, मानो पुछना चाहता हो कि और पीनी है, या चलना है। उसका आशय समझ कर रोनित अपनी शीट से उठ खड़ा हुआ। उसे खड़ा देख बाकी लोग भी खड़े हो गये।

लेकिन मंजीत, उससे खड़ा हुआ नहीं जा रहा था। राजन ने स्थिति को समझा और उसे सहारा देकर उठाया। जबकि अमोल नशे में झूमता हुआ बोला। स्सा- साला मंजीते, जब सबर ही नहीं है पीने में, तो पीता का-का -हे को बे ।स्सा-साला ऐसा भी पीना किस काम का, कि होश ही नहीं-ही रहे। हिच्च-इसको इतनी नशा-शा हो चुकी है, परन्तु पिलाने पर और पीएगा।

अमोल धारा प्रवाह बोलता जा रहा था, ऐसे में परिस्थिति को संभालने के लिये राजन ने उसको चुप रहने का इशारा किया। फिर मंजीत को संभाल कर हाँल से बाहर निकलने लगा। वह अच्छी तरह से जानता था कि नशे में किया गया नोक-झोंक बखेरा खड़ा कर सकता है। राजन जब हाँल से निकला, तो बाकी सभी ने उसका ही अनुसरण किया। वे लोग जब हाँल से बाहर आ गये, तो मंजीत खुद से सीधा खड़ा हो गया और बड़बड़ाने लगा।

अमा-म-मा यार रा-रा-राजन यहां आस-पास कोई तो है, ज-ज-जो हमारी रेंकी कर र-र-रहा है। हलांकि मंजीत फूल्ली नशे में था, लेकिन जिस तरह आत्म विश्वास के साथ बोल रहा था। सभी चौंक उठे, सभी ने आस-पास देखा और दूर-दूर तक किसी को नहीं देखा। जब आस- पास कोई नहीं दिखा, तो अमोल फिर से बोल पड़ा।

यार राजन! ये स्याला मंजीते एक नंबर का कमीना है। बस नशा करने में अव्वल रहेगा, फिर बकवास करेगा। अमोल की बात सुनकर मंजीत की त्योरियाँ चढ गई। लेकिन तभी रोनित बोल उठा।

अमोल! तू भी न पेट्रोल मत छिड़का कर आग पर। वैसे ही ठंढी आ रही है, सेंकने बालों की कमी नहीं रहेगी। रोनित की बातें सुनते ही अमोल ने चुप्पी साध ली। तब राजन ने मंजीत और अमोल को सौम्या की कार में बिठाया और खुद अपनी कार की ओर बढा।

रोनित भी उसकी ही कार की ओर बढा, फिर वे दोनों कार में बैठे। उसके बाद दोनों कार श्टार्ट हुई और तेजी के साथ मधुशाला के गेट से निकल कर सड़क पर दौड़ने लगी। राजन ने जान-बुझ कर दोनों कार के फासले को बढने नहीं दिया। साथ ही उसने म्यूजिक प्लेयर आँन कर दिया, ध्यान ड्राइविंग में लगा दी। जबकि रोनित की नजर राजन के चेहरे पर जमी हुई थी। वो राजन से बात करना चाहता था, लेकिन उसे अवसर नहीं मिल पा रहा था। राजन भी अच्छी तरह से उसके मनोभाव को समझ रहा था। लेकिन इस वक्त उसके दिमाग में दूसरी ही गुन धुन चल रही थी।

वह सोचने को मजबूर हो गया था, मंजीत की बातों को लेकर । वह अच्छे से जानता था, कि भले मंजीत कितने ही नशे में हो, उसका सिक्स्थ सेंस बहुत काम करता है। मंजीत बहुत ही चालाक है, वो ऐसे ही किसी बातों को नहीं बोलता। तो क्या वास्तव में उन लोगों की रेकिंग हो रही है। रेंकी हो रही है, तो आखिर किस की, मंजीत की, अमोल की, सौम्या की, उसके खुद की या फिर रोनित की । किस की रेंकी हो रही है और आखिर किस लिये। कौन है जो उन लोगों के बारे में जानना चाहता है और क्यों? ऐसे बहुत से सवाल थे, जो उसके दिमाग में चक्कर काट रहे थे।

तभी रोनित ने उसके कंधे पर हाथ रख कर मुसकाया, फिर बोला। यार राजन! किस दुनिया में खोये हुए हो, अनिरुद्ध बिला आ चुका है। राजन रोनित की बातें सुनकर चौंका, उसकी तंद्रा टूटी। तंद्रा टूटते ही उसने देखा कि कार को वह अनिरुद्ध बिला के सामने खड़ा किए हुए है, जबकि सौम्या की कार उसके सामने ही बिला में प्रवेश कर गई। रोनित के टोकने पर राजन झेंप गया, उसने कार आगे बढाया और बिला के अंदर ले लिया। कार के बिला में प्रवेश करते ही उसे वहां चहल-पहल महसूस हुआ।

वह समझ गया कि टुर से मालती आंटी लौट आई होगी। तभी तो बंगले में इतनी चहल-पहल है। बस फिर क्या था, उसने कार पोर्च में खड़ी की, फिर दोनों कार से उतर कर हाँल की ओर बढ चले। हाँल में कदम रखते ही राजन के होंठों पर मुस्कान फैल गई। कारण लीविंग रूम में मालती देवी मुस्कराती हुई उन लोगों के स्वागत में खड़ी थी। राजन ने आगे बढ कर उनके पांव छूए, जबकि रोनित आगे बढकर उनके गले लिपट गया। एक पल के लिये हाँल में हर्ष का माहौल बन गया, तब अनिरुद्ध साहब ने खांसी करके मालती देवी का ध्यान अपनी ओर खींचा।

मालती देवी उनके इशारे समझ गई, उन्होंने सभी को डायनिंग हाँल में चलने को कहा। थोरी देर बाद वे सभी डायनिंग टेबुल के चारों ओर बैठे थे और राकेश तत्परता से उनकी सेवा में लगा था। लेकिन मालती देवी की नजर बार-बार सौम्या पर जाकर टिक जाती थी। वैसे तो मालती देवी बाकी सभी को अच्छे से जानती थी, लेकिन सौम्या को। सौम्या से तो वह पहली बार ही मिल रही थी, इसलिये कुतूहल बस उसकी ओर देख रही थी। राजन की तेज नजर ने उनकी दुविधा समझ ली, उसने मुस्करा कर सौम्या से उनका परिचय करवाया।

उसके बाद वे सभी डिनर करने में बीजी हो गये। लेकिन सौम्या उन लोगों से बात करना चाहती थी, लेकिन समझ नहीं पा रही थी कि कहां से शुरूआत करें। लेकिन बात तो करनी थी, समय धीरे-धीरे आगे की ओर बढ रहा था। ऐसे में उसने मन ही मन निश्चय किया और अनिरुद्ध साहब से मुखातिब होकर बोली।

अंकल! आपकी इजाजत हो, तो एक बात बोलूं।

क्यों नहीं-क्यों नहीं बेटा, आपको जो भी कहना है कहिए। अनिरुद्ध साहब जल्दबाजी में बोले।

अंकल मैं रोनित को डेट पर ले जाना चाहती हूं। सौम्या खाते हुए बिना लाग-लपेट के बोली। उसकी बातें सुनकर अनिरुद्ध साहब का चेहरा हजार वाट के बल्ब की मानिंद चमका। चमक तो राजन के चेहरे पर भी आ गई, जबकि अमोल ने अंदर ही अंदर चुभन महसूस की। दूसरी ओर मालती देवी के चेहरे पर असमंजस के भाव थे। जबकि सौम्या ने कोई उत्तर न पाकर फिर से बोला। आपने उत्तर नहीं दिया अंकल।

उत्तर क्या देना है बेटा, यह तो तुम जवान लोगों की बातें है। अब मेरी तरफ से पुछते हो, तो हां ही है। सौम्या की बात पूरी होने से पहले ही अनिरुद्ध साहब तपाक से बोले। तभी मालती देवी गंभीर होकर बोली।

लेकिन सौम्या बेटा! इस समय डेट पर जाना, संभव नहीं लगता। तुम तो जानती ही हो तीन दिनों बाद दीवाली है, तो शो-रूम में बहुत काम होगा। मैं ऐसा नहीं कहती कि मत जाओ, पर आगे चले जाना, फिर कभी। मालती देवी बोल कर चुप ही हुई थी कि अनिरुद्ध साहब फिर से बोल पड़े।

मालती! तुम भी न, किस तरह की बातें करती हो। बच्चे है, डेट पर जाना चाहते है,तो जाने दो। इनकी उम्र है, ये अब नहीं जाएंगे, तो कब जाएंगे। रही बात शो रूम की, तो शो रूम के कार्य मैं देख लूंगा। बोल कर अनिरुद्ध साहब ने मालती देवी की ओर देखा और जब नजर मिली तो दाईं आँख दबा दी।

मालती देवी समझ गई, उन्हें अपने भूल का एहसास हो चुका था। जबकि राजन ने राहत की सांस ली। आंटी ने तो उसके पूरे प्लान पर पानी फेर दिया था। वो तो भला हो अनिरुद्ध साहब ने पलटती बाजी संभाल ली थी। जबकि सहमति मिलते ही सौम्या प्रसन्न हो गई। हां ये बात और थी कि इस बात ने अमोल के हृदय को आघात पहुंचाया था। परन्तु वह भी अजीब मिट्टी का बना था, चेहरे पर शिकन तक न आने दी। फिर तो उन लोगों ने डिनर समाप्त किया और बाहर आ गये। फिर से कार की सफर, सौम्या तो अपने कार से निकल गई। लेकिन राजन को तो उन दो कमीनों को भी ड्राँप करना था।

राजन कार को तेजी से सड़क पर दौड़ाए जा रहा था। उसी रफ्तार से दिमाग में उसके विचार भी दौड़ रहे थे। वह इसी उलझन में उलझा था कि उसका प्लान परवान चढेगा ,या नहीं। कहीं बीच में विघ्न आ गया तो, तो ये दोनों किस दिन काम आएंगे। ऐसा सोच कर राजन ने पीछे देखा। पिछली शीट पर अमोल और मंजीत बेसुध होकर सो रहे थे। एक बार तो उसका जी हुआ कि दोनों को ही जगा दे, लेकिन फिर उसने अपने विचार त्याग दिये। उसने धीमी आवाज में म्यूजिक प्लेयर आँन किया और नजर ड्राइविंग पर जमा दी। कार तेज रफ्तार से दिल्ली की सड़क पर फिसलती चली गई।

********

सुबह-सुबह ही रोनित तैयार होकर लीविंग रूम में आकर बैठ चुका था। ऐसा तो बिल्कुल भी नहीं था कि वो अपनी इच्छा से तैयार हुआ था। अनिरुद्ध साहब सुबह के चार बजे से ही उसे पींच कर रहे थे, उसके उपर प्रेशर बना रहे थे। हार कर वो तैयार हुआ था और अब लीविंग रूम में टीवी के सामने बैठा था, या यूं कहे कि सौम्या का इंतजार कर रहा था।

जबकि अनिरुद्ध साहब एवं मालती देवी उसके लैगेज को तैयार करने में लगे थे। उन दोनों के चेहरे की चमक ही बता रही थी कि रोनित का डेट पर जाना, मानों मुंह मांगी मुराद मिल गई थी। समय अभी सिर्फ सुबह के छ: बजे थे। तभी काम करते अनिरुद्ध साहब को गेट के शीशे से बाहर नजर पड़ी । उन्होंने देखा कि सौम्या की कार लाँन के पोर्च में रूकी। अनिरुद्ध साहब अपनी खुशी दबा नहीं सके, वे बाहर की ओर लपके। लेकिन तब तक सौम्या हाँल में कदम रख चुकी थी। उसने आते ही देखा कि रोनित तैयार हुए बैठा है, प्रसन्न हो गई। जबकि उसे देख कर रोनित खड़ा हुआ और सपाट स्वर में बोला।

तो सौम्या मैडम! अब चलें।

अरे कैसे! तुम भी न रोनित, अजीब बात करते हो। सौम्या इतनी सुबह आई है, काँफी तो पीने दो। मालती देवी राजन की बात सुनकर मधुर स्वर में बोली और किचन की ओर बढ गई। जबकि उनके जाते ही अनिरुद्ध साहब ने दोनों को बैठने के लिये इशारा किया।

वे तीनों वहां रखे सोफे पर बैठ गए और नजर टीवी पर जमा दी। तभी मालती देवी ने काँफी का ट्रे लिये हाँल में कदम रखा। आते ही उन्होंने ट्रे सेंटर टेबुल पर रखा और सोफे पर बैठ गई। इसके बाद उन्होंने तीनों को कप थमाया और खुद एक कप लेकर काँफी पीने लगी। सर्दी के मौसम का आगमन, दूसरे मालती देवी के हाथों की काँफी। काँफी पीने के दौरान मालती देवी दोनों को समझाती रही।

फिर तो सौम्या ने अपनी काँफी खतम की और उन लोगों से विदा लेकर चल पड़ी । स्वाभाविक था कि रोनित भी उनके पीछे चल पड़ा । जबकि अनिरुद्ध साहब पीछे से लैगेज लेकर लपके। बाहर आकर अनिरुद्ध साहब की इच्छा हुई कि बोले, इनोवा कार लेकर जाओ। लेकिन वे बोलते इससे पहले सौम्या ड्राइविंग शीट पर बैठ चुकी थी। रोनित के बैठते ही कार ने फर्राटे भरे और बिला के गेट से निकल गई। जबकि मालती देवी और अनिरुद्ध साहब कार को जाते हुए आशा भरी नजरों से देखते रहे, जब तक कार आँखों से ओझल नहीं हो गई।

इधर कार ने सड़क पर आते ही रफ्तार पकड़ लिया। सुबह की ताजी-ताजी ठंढी हवा आकर दोनों के चेहरे से टकरा रही थी। स्वाभाविक ही था कि दोनों ही अच्छा फील कर रहे थे। साथ ही सौम्या ने म्यूजिक प्लेयर आँन कर दिया। समय आगे की ओर बढता रहा और कार सड़क को रौंदती हुई आगे बढती रही। तभी रोनित ने सौम्या की आँखों में देखकर बोला।

वैसे मैडम! आप बतला सकती है कि इस वक्त हम लोग कहां जा रहे है। रोनित बोल कर चुप हुआ, तो सौम्या ने पलट कर देखा। वह स्पष्ट महसूस कर सकती थी कि रोनित की आँखों में ढेरों सवाल थे। उसके मनोभाव भाँप कर वह मुस्करा कर बोली।

मिस्टर रोनित! आपके लिये जानना जरूरी है क्या? वैसे हम लोग ऐसी जगह जाएंगे, जो बेमिसाल खूबसूरती लिये हो।

लेकिन मैडम! आप मुझे डेट पर लेकर जा रही हो। ऐसे में स्वाभाविक ही है, कि आप उस जगह के बारे में बतलाओ, जहां हम लोग जा रहे है। रोनित स्वाभाविक अंदाज में बोला। उसकी बातें सुनकर सौम्या मुस्कराई, उसने एक बार रोनित के चेहरे को देखा और मुसका कर बोली।

आपकी बातें बिल्कुल सही है, मिस्टर रोनित! वैसे आप मुझे मेरे नाम से ही बुलाएँ।

वो तो ठीक है, परन्तु आपने मेरी शंका का समाधान नहीं किया। रोनित ने उत्तर में तपाक से बोला और अपनी नजर सौम्या पर जमा दी।

गुलाबी शहर! सौम्या ने धीमे से बोला और कार के शीशे से बाहर देखने लगी। दिल्ली शहर के बाहरी ओर जाता हुआ सड़क-सड़क के दोनों ओर हरियाली का विस्तार। यमुना नदी की पानी पाकर यह इलाका हरा-भरा था। चारों ओर फैली हुई हरियाली, उसपर सुबह का समय। प्रकृति ने मानों अपना सोलह श्रृंगार किया हो। बाहर का नजारा देखने के बाद सौम्या फिर बोली। हम लोग गुलाबी शहर, महलों की नगरी जयपुर जा रहे है।

मिस सौम्या! लगता है आपको जयपुर से खास लगाव है। रोनित सहज अंदाज में बोला।

हां जरूर! क्योंकि वेकेशन मैं जयपुर में ही बिताना पसंद करती हूं। सहज ही बोली सौम्या, जबाव में रोनित बोला नहीं ,बस उसने अपनी नजर सौम्या पर जमा दी।

साथ ही उसके हृदय में विचार पनपा, क्या चाहती है सौम्या। आखिर वो उसके इतने करीब क्यों आना चाहती है। रोनित यह सोच ही रहा था कि कार रूकी। उसने देखा कि सौम्या ने कार सड़क के किनारे खड़ी की थी और अब बाहर निकल रही थी। उसे बाहर निकलता देखकर रोनित ने भी दरवाजा खोला और बाहर निकल आया। साथ ही उसने कलाईं घङी पर नजर डाली ,दिन के दस बज चुके थे। उसे घङी देखता पाकर सौम्या उससे मुखातिब होकर बोली।

मिस्टर रोनित! टेंशन की बात नहीं है। यहां से आगे थोरी दूर पर एक ढाबा है। वहां मजेदार पकौड़ी और कूल्हर की चाय मिलती है, चलो।

वो तो ठीक है, परन्तु कितना समय लगेगा जयपुर पहुंचने में। रोनित बोला। उसकी बात सुनकर सौम्या मुस्कराई और ऊँची आवाज में बोली।

मिस्टर रोनित! अभी तो चलकर नाश्ता करते है। फिर आगे की सफर होगी। वैसे टेंशन नक्को, दिन के दो बजे तक हम वहां पहुंच जाएंगे। सौम्या बोली फिर आगे बढ गई, उसे आगे बढता देखकर रोनित भी उसके पीछे हो लिया। तभी उसे सड़क किनारे बाबा दी ढाबा, नाम का ढाबा दिखा। साथ ही उसने महसूस किया कि सौम्या की चाल तेज हो गई है। फिर क्या था, वह उसके पीछे लपका।

वे दोनों ढाबा में पहुंचे, तो ढाबा चलाने बाला, जो कि बुढा था, स्वागत करके उन्हे बिठाया। फिर उनके सामने पकौड़ी की प्लेट और चाय की कूल्हर परोस दी। बस फिर क्या था, सौम्या ने शुरू करने का इशारा किया और दोनों नाश्ता पर टूट पड़े । साथ रहने के कारण दोनों अब तक आपस में खुल चुके थे। शायद दिल के करीब तो नहीं, लेकिन अच्छे दोस्त की तरह ।पकौड़े मुंह में रखते हुए सौम्या ने उससे पुछा।

मिस्टर रोनित! ढाबे में आकर आप कैसा फील कर रहे है। मेरा मतलब, मैं जान सकती हूं कि आपको यहां कैसा लगा।

अच्छा लगा! जायकेदार पकौड़े है यहां, वैसे मैं गलत नहीं बोल रहा, तो आप यहां से गुजरने पर यहां जरूर रुकती होगी। रोनित भी मुस्करा कर बोला। उसकी हाजिर जबावी पर सौम्या धीरे से बोली।

स्योर मिस्टर रोनित! मैं जब भी जयपुर जाती हूं, यहां पर अवश्य रुकती हूं। बोलने के बाद रोनित को देखा। रोनित इसके बाद जबाव ही नहीं दिया।

फिर वे लोग वहां से नाश्ता निपटा कर बाहर निकले और कार में आकर बैठ गये। इसके बाद कार फिर से सफर पर निकल पड़ी । समय आगे बढता रहा और कार अपने रफ्तार से आगे भागती रही। इस दरमियान उन लोगों में किसी प्रकार की बातचीत नहीं हुई। हां वे दोनों कार के शीशे से बाहर की दुनिया जरूर देख लेते थे। समय आगे भागता रहा और ठीक दिन के तीन बजे उनकी कार होटल भाग्य लक्ष्मी के ग्राऊण्ड में लग चुकी थी। सौम्या ने कार को पार्क किया और होटल के गेट की ओर बढे। भाग्य लक्ष्मी होटल, होटल कम राजा का राज प्रसाद सा प्रतीत हो रहा था।

उन दोनों ने जब हाँल में कदम रखा, वहां भीड़ ना के बराबर थी। उन दोनों की नजर जैसे हाँल के सजावट पर ठहर सी गई। लेकिन अगले ही पल वे रिसेप्सन की ओर बढे। वहां से रूम की चाबी ली और फिर रूम नंबर इलेवन की ओर बढ चले। सौम्या ने आने से पहले ही रूम बुक करवा लिया था, इसलिये उन्हें किसी प्रकार की परेशानी नहीं हुई। जब वे दोनों कमरे में पहुंचे, तब तक होटल स्टाफ ने उनका लैगेज उनके रूम में पहुंचा दिया। लेकिन रूम में पहुंचते ही रोनित थोरा बेचैन होकर बोला।

मिस सौम्या! हम लोग तो आ गये, लेकिन मुझे यह समझ नहीं आया कि हम दो और रूम एक? इसका मतलब समझा सकती हो।

हां क्यों नहीं! मिस्टर रोनित, आप परेशान मत हो। यह सिर्फ रूम नहीं, बल्कि अट्टैच फ्लैट है। इसमें दो रूम, लीविंग रूम, डायनिंग हाँल और स्टडी रूम है। बोलने के बाद सौम्या मुस्कराने लगी।

इसका मतलब हमें हाँल में जाने की जरूरत नहीं है। रोनित तपाक से बोला।

मिस्टर रोनित! आप अंदर जाकर फ्रेश हो लो। फिर हम शहर घूमने चलेंगे। सौम्या मुस्कराते हुए पूर्ववत बोली। उसकी बातें सुनकर रोनित मुस्कराया, फिर वाथरुम की ओर चला गया, जबकि सौम्या रूम में रखे सोफे पर बैठ गई।

*********

दोपहर हो चुकी थी, राजन रेस्टोरेंट में बैठ कर अपने आँडर सर्व होने का इंतजार कर रहा था। उसे मालूम था कि सौम्या और रोनित डेट के लिये जयपुर निकल चुके थे और शायद वहां पहुंचने बाले भी होंगे। वह जान बुझ कर उनको सी-आँफ करने नहीं गया था, क्योंकि उसे कई काम निपटाने थे। हां उसने मंजीत और अमोल का इंतजार किया था, परन्तु वे नहीं आए। तो वह अकेला ही निकल पड़ा, उस राज को पता करने, जो रोनित के हृदय में चुभा हुआ था।

राजन आगे कुछ भी सोचता, उससे पहले ही आँडर लेकर आ धमका। राजन चौंका, इसलिये नहीं कि वेटर आया था। उसने रेस्टोरेंट के शीशे से बाहर देखा, होटल के पोर्च में अमोल की कार रूकी थी । उसे अपने आँखों पर विश्वास नहीं हो रहा था,तभी कार से अमोल और मंजीत निकले। उन्होंने रेस्टोरेंट के गेट के अंदर प्रवेश किया और राजन की ओर बढे। राजन तुरन्त सचेत हुआ और वेटर को दो डिश और लाने को बोला।

वेटर के जाने के बाद अमोल और मंजीत उसके पास पहुंच चुका था। दोनों ने आते ही कुर्सी खींची और उसके सामने ही बैठ गया। तब राजन की नजर अमोल के चेहरे पर गई। उसकी आँख सूजी हुई और लाल -लाल थी, ऐसा लगता था कि वो रात भर रोया हो। मित्र था, स्वाभाविक ही था कि राजन को समझ में आ जाए कि उसके हृदय में कोई हूक चुभा है। लेकिन अभी इस हालात में वह उसके जख्मों को कुरेदना नहीं चाहता था। जबकि मंजीत ही उसकी ओर मुखातिब हो बोल पड़ा ।

अमा यार राजन! तुम जो इस तरह से इसके चेहरे को देख रहे हो। मैं ने भी सुबह ही देखा था, इसने बतलाया कि कपड़े से झटका लगा है। मुझे मालूम है कि यह झूठ बोल रहा है, लेकिन क्या करूं।

मंजीत! तुम अभी चुप नहीं रह सकते। राजन से आखिर रहा नहीं गया, तो बोल पड़ा ।

मंजीत ने राजन के बातों का आशय समझ लिया, इसलिये चुप्पी साध ली। तब तक वेटर आँडर सर्व कर चुका था, इसलिये वे लोग भोजन पर टूट पड़े । भोजन करने के बाद वे तीनों बाहर निकले। तब राजन ने कलाईं घङी पर नजर डाली, दिन के तीन बज चुके थे। ऐसे में राजन अमोल से मुखातिब हुआ।

यार अमोल! मेरे साथ मेरी कार में चलना है, या अपनी कार में चलोगे।

नहीं; तुम्हारे साथ ही चलता हूं, वापसी में यहां से कार पिकअप कर लूंगा। अमोल धीमे से बोला।

फिर क्या था, तीनों उधर बढे, जिधर राजन की कार लगी थी। वे लोग कार में बैठे और कार चल पड़ी। लेकिन आज ड्राइविंग शीट पर अमोल था, जबकि मंजीत और राजन पीछे बाली शीट पर बैठे थे। अमोल यह जानता था कि राजन गीत सुनने का शौकीन है। इसलिये उसने धीमी आवाज में म्यूजिक प्लेयर आँन कर दिया। कार सड़क का सीना रौंदते हुए तेजी से आगे बढने लगी। तभी राजन मंजीत से मुखातिब होकर बोला।

यार मंजीत! तुमको कल रात की बात याद है? तुम नशे में फूल्ली टुल्ली थे। लेकिन तुमने एक बात आत्मविश्वास के साथ जोर देकर कहा था।

अब छोड़ो भी न राजन! इस शराबी की बातों पर भरोसा करते हो। इसकी तो आदत है, नशा हो जाने पर ऊट-पटांग बोलने की। राजन की बाते सुनकर अमोल बीच में टपक पड़ा । जबकि उसकी बातें मंजीत को नागवार गुजरी, इस बात को राजन ने नोट कर लिया, इसलिये वह बीच में ही बोल पड़ा ।

यार अमोल! तुम दो पल के लिये चैन से रहो। मैं मंजीत से बात कर रहा हूं न, इसे बोलने दो। बोलकर राजन मंजीत से मुखातिब हुआ। हां तो बोला मंजीत, रात की बात याद है तुम्हें।

हां क्यों नहीं याद रहेगा, मैं इतना बड़ा शराबी भी नहीं कि अपनी ही बोली बात भूल जाऊँ। वैसे तुम्हें तो विश्वास है न मेरे सिक्स्थ सेंस पर। मंजीत ने बोलने के बाद अपनी नजर राजन के चेहरे पर जमा दी। उसकी बात सुनकर राजन मुस्कराया और बोला।

विश्वास है, तभी तो पुछ रहा हूं, क्या बोला था तुमने?

क्या बोला था से मतलब? मैं ने बोला था कि हम में से किसी की रेंकी हो रही है। कोई आश-पास है, जो हमारी रेंकी कर रहा है। लेकिन तुम लोगों को मेरी बात बकवास लगी थी, तुम लोगों ने ध्यान ही नहीं दिया। मंजीत अपने शब्दों पर जोर देकर बोला।

यार राजन! यह ऐसे ही बकता है। इसे भ्रम हुआ होगा, अन्यथा हमारी रेंकी कौन करेगा और किसलिये? फिर से अमोल बीच में बोला। उसकी बातें सुनकर राजन मुसकाया जबकि मंजीत तुनक कर बोला।

अबे साले अमोल! मैं बकवास नहीं करता, भले कितने ही नशे में रहूं। मैं ने जो बोला न, समझो पत्थर पर खींची लकीर के समान है।

तो क्या बता सकते हो, अब भी कोई हम लोगों की कोई रेंकी कर रहा है। उसकी बात सुनकर राजन तपाक से बोला। उसकी बातों का जबाव मंजीत ने मुसका कर दिया।

नहीं, अभी नहीं! मैं जब से तुम लोगों के साथ हूं। हमारे पीछे कोई नहीं है।

स्योर! राजन ने मंजीत की ओर देखकर बोला।

अमा यार राजन! तू तो जानता ही है कि मैं कभी झूठ नहीं बोलता। मंजीत भी तपाक से बोला। जबकि अमोल की इच्छा हुई कि बीच में बोले, तभी सतनाम बिल्डिंग आ गया था। अमोल ने कार का रूख बिल्डिंग की ओर किया और पोर्च में जाकर खड़ी कर दी।

कार खड़ी होते ही राजन नीचे उतरा और उन दोनों को इंतजार करने के लिये कह कर बिल्डिंग के अंदर चला गया। तब अमोल ने मंजीत को देखा और देखते ही तिलमिला गया, क्योंकि मंजीत मुस्करा रहा था। उसकी मुस्कान तो जैसे कील बनकर अमोल को चुभती जा रही थी। उसका जी कर रहा था कि एक जोरदार घूंसा मंजीत के चेहरे पर जमा दे। लेकिन अभी उसे अपनी भावनाओं पर ब्रेक लगाने पड़े । क्योंकि उनके साथ राजन था और राजन के रहते हुए वो ऐसी हरकत नहीं करना चाहता था। जो राजन को नागवार लगे। ऐसे में एक ही कार में एक साथ बैठना, अमोल के लिये असह सा प्रतीत हो रहा था।

उधर राजन थोरी देर बाद ही बाहर आ गया, इसके बाद उनकी कार फिर से सफर पर चल पड़ी । इसके बाद तो वे लोग अनेको जगह गये, लेकिन राजन के काम की जानकारी कहीं नहीं प्राप्त हो सकी। ऐसे में राजन निराश हो चुका था और राजन निराश हो, तो दोनों के चेहरे लटक जाए, स्वाभाविक ही था।

ऐसे में उनकी कार मांधाता बिला में प्रवेश की, इस समय शाम के छ: बज चुके थे। दिल्ली की सड़क फिर से बीजी हो चुकी थी। मांधाता बिला के पोर्च में कार खड़ी करवा कर राजन बंगले के अंदर चला गया। जबकि फिर से अमोल और मंजीत उसका इंतजार करने लगे। परन्तु मंजीत अपनी हरकतों से कहां बाज आने बाला था, वह बार-बार अमोल को देखकर मुसका देता था। उसकी ये हरकत अमोल के तन-बदन में आग लगा देती थी। वह मंजीत के हरकतों से बौखला गया था, तभी राजन वापस आया और आकर कार में बैठा। इसके बाद फिर सफर, कार दिल्ली के सड़क पर दौड़ने लगी। लक्ष्य था अनिरुद्ध बिला।

वे लोग करीब रात के आठ बजे अनिरुद्ध बिला पहुंचे। वहां पर अनिरुद्ध साहब उन लोगों का ही इंतजार कर रहे थे। वहां पहुंच कर वे लोग लीविंग रूम में अनिरुद्ध साहब के पास बैठ गये। राजन उनसे बातें करने लगा, जबकि मालती देवी काँफी बनाने के लिये किचन में चली गई। राजन अनिरुद्ध साहब को दिन भर के भाग दौर की रिपोर्ट बतला रहा था। जबकि वे सहमति में सिर को जूम्बीस दे रहे थे। जबकि अमोल और मंजीत को ज्यादातर बातें पल्ले ही नहीं पर रही थी। वे दोनों ध्यान से उनकी बातें सुन रहे थे और समझने की भरसक कोशिश कर रहे थे।

तभी मालती देवी किचन से काँफी का ट्रे लिये लौटी। उन्होंने ट्रे को सेंटर टेबुल पर रखा और उनके सामने बाले सोफे पर बैठ गई। फिर वे लोग काँफी पीने लगे, जबकि राकेश उधर डायनिंग रूम में डिनर की तैयारी करने लगा। इधर राजन अनिरुद्ध साहब को बतला रहा था कि उनकी आगे की रणनीति क्या होगी। राजन की बातें सुनकर अनिरुद्ध साहब को लगने लगा था कि उनके घर की खुशी जल्द ही वापस होगी। उनकी बातें सुनकर मालती देवी के चेहरे पर भी चमक आ गई थी।

तभी राजन के मोबाइल पर रिंग बजी, वो मोबाइल लेकर दूर चला गया। जबकि राकेश को आकर बतलाया कि डिनर टेबुल तैयार हो चुका है। फिर क्या था, वे लोग उठे और डायनिंग रूम की ओर बढे। तब तक राजन भी आ चुका था। उन लोगों ने वहां पहुंचने के बाद भोजन शुरू कर दिया।

*********

शाम होने बाली थी, रोनित फ्रेश होकर पहले ही तैयार हुआ बैठा था। जबकि सौम्या तैयार होने गई थी। इसके बाद उनको हवा महल देखने जाना था, वहीं से वे एम्बर पैलेस जाने बाले थे। रोनित हाँल में बैठा सौम्या का ही इंतजार कर रहा था,तभी सौम्या वाथरुम से निकली। इस समय वो ब्लू कलर की नेक सूट पहने थी, जिसमें वो बहुत ही फब रही थी। वाथरुम से निकलते ही उसने बार्डरोव के पास रखे फ्रीज को खोला और बोडका की बोतल और दो गिलास निकाल लिया। फिर उसके पास पहुंची और सोफे पर बैठ कर पैग बनाने लगी।

रोनित ने देखा कि वो लार्ज पैग बना रही है। उसका मन हुआ कि अभी मना कर दे, अभी वो ड्रिंकिंग करने के मूड में नहीं था। लेकिन सौम्या ने जब मासूमियत भरी नजरों से उसे देखा और पैग उसकी ओर बढाया, तो वो मना नहीं कर सका। फिर तो दोनों ने शराब की प्याली होंठों से लगा कर शराब हलक में उतार लिया। फिर वे दोनों रूम लाँक करके होटल से बाहर निकले और कार में बैठे। कार में बैठते ही सौम्या ने कार श्टार्ट की और होटल गेट से निकाल कर सड़क पर दौड़ा दिया। कार सड़क पर आते ही हवा से बात करने लगी।

एक तो शाम का समय, दूसरे गुलाबी शहर रोशनी में नहाया हुआ। सबकुछ तो स्वप्न सा प्रतीत हो रहा था। गुलाबी शहर की सुन्दरता देख रोनित मंत्रमुग्ध था, जबकि सौम्या कार भी चला रही थी और उसे जयपुर की खासियत, उसके प्रसिद्ध स्थलों के बारे में भी बतला रही थी। उसकी बातें सुनकर रोनित आश्चर्य चकित हो रहा था, उसने आज से पहले जयपुर देखा नहीं था। सुना तो बहुत था इस गुलाबी शहर के बारे में, परन्तु देखने का अवसर पहली बार प्राप्त हुआ था।

उनकी कार सबसे पहले हवा महल पहुंची। उस समय शाम के छ: बज चुके थे। ऐसे में सौम्या ने एक गाइड कर लिया और फिर वे दोनों किला घूमने लगे। हवा महल की भव्यता, विशालता एवं सुन्दरता रोनित के हृदय को लुभा रही थी। जबकि सौम्या तो यहां कितनी ही बार आ चुकी थी। करीब एक घंटा तक उन दोनों ने किले के अंदर चक्कर लगाए और जब बाहर निकले, तो रोनित बोला।

मिस सौम्या! अब किधर, होटल चलना है या और कहीं?

चलते है न एम्बर पैलेस! उसके बाद होटल चलेंगे। सौम्या अपने चिर-परिचित अंदाज में बोली।

इसके बाद कार में बैठते ही सौम्या ने कार आगे बढा दिया। आज रोनित बोलने के मूड में बिल्कुल भी नहीं था। वह तो जयपुर की सुन्दरता, उसकी भव्यता को अपने आँखों में कैद कर लेना चाहता था। रोशनी में नहाया हुआ जयपुर, सड़क के दोनों ओर भव्य और पुरानी बिल्डिंग। बाजार में उमड़े लोग और सड़क के किनारे की लाँरी-गल्ले बाले। सभी चीज वह अपने आँखों के कैमरे में उतार लेना चाहता था। तभी उनकी कार एम्बर पैलेस पहुंच गई।

फिर गाइड और उसके बाद किला घूमना। वे लोग जब किला से निकले, तो रात के नौ बज चुके थे। वहां से लौटकर वे दोनों सीधे होटल आ गये। रूम में पहुंचते ही रोनित बेड पर लेट गया, जबकि सौम्या ने रिसेप्सन पर फोन करके आँडर नोट करवाया, उसके बाद वाथरुम चली गई। इधर रोनित सोच रहा था कि आज का दिन यादगार था। सभी कुछ तो नवीन था, उसके लिये- उसके यादों के लिये। वह अपने बीते पल को सहेज ही रहा था कि सौम्या वाथरुम से लौटी। तबतक उनका आँडर भी सर्व हो चुका था।

फिर वे दोनों डायनिंग टेबुल के नजदीक रखे कुर्सियों पर बैठ गये। तब रोनित की नजर डायनिंग टेबुल पर गई। जिस पर बोडका की बोतल, काजू फ्राय, विदेशी प्याले, जो खास शराब के लिये ही बनाये जाते है। वो इन चीजों को देखकर आश्चर्य चकित हो रहा था। जबकि सौम्या पैग बनाने में जूट गई। इसके बाद तो एक पैग हलक में उतरने की देर थी, दोनों जम ही गये शराब पीने में। इस बीच सौम्या ने रोनित के निकट अपनी कुर्सी खिसका ली थी। इतने करीब की, दोनों की सांसे एक दूसरे से टकराने लगी।

इतना करीब होना, मतलब हलचल तो होना ही था। रोनित के तन-बदन में सनसनाहट दौड़ने लगी। उसने महसूस किया कि जैसे खुद पर से नियंत्रण खोता जा रहा हो। एक तो मादक शराब, दूसरे मादक जिस्म की गंध। जैसे रोनित को लग रहा था कि वह स्वप्न लोक में विचरण कर रहा हो। वह लाख कोशिश कर रहा था कि खुद पर नियंत्रण रखे, लेकिन नियंत्रण कर नहीं पा रहा था। यह तो स्वाभाविक ही था कि जब एकांत हो, नशा हो, तो जिस्म में आग भड़कने में देर नहीं लगती।

तभी सौम्या अपना गिलास उठाये उठी और रोनित के पीछे सट कर खड़ी हो गई। इस तरह से सटकर कि उसकी काली घनी जुल्फें रोनित के चेहरे पर फैल गया और रोनित अपने होश खो बैठा। अब संभव नहीं था कि वो खुद को नियंत्रित रख सके। उसके जिस्म का तापमान एकाएक बढने लगा था। उसे ऐसा लगने लगा था कि अब और जो अपने उपर नियंत्रण करने की कोशिश की, शायद उसकी नस फट जाएगी। तभी सौम्या ने अपने लवों को रोनित के कान के पास ले जाकर धीरे से उससे पुछा।

मिस्टर रोनित! ऐसी क्या बात है कि आप मधुशाला में रोज ही जाते हैं। सौम्या ने तो सहजता से पुछा था। लेकिन रोनित के चेहरे के भाव बदल गये, वो थोरा बेचैन हो गया और उसकी ओर पलट कर बोला।

मिस सौम्या! क्या आपके लिये जानना जरूरी ही है। रोनित बड़ी मुश्किल से ही अपने शब्दों को बोल पाया था। जबकि सौम्या मुसकाई, वो उसके और नजदीक हो गई और पुछा।

हां मिस्टर रोनित! आप शायद संकोच कर रहें है। लेकिन संकोच करने जैसी कोई बात नहीं, मैं आपकी अच्छी दोस्त हूं। आप भले ही किसी से शेयर मत कीजिए, परन्तु मुझे आप बतला सकते है। सौम्या धीरे से बोली फिर उसके और करीब हो गई। उसकी बातें सुनकर रोनित के चेहरे पर बेचैनी और भी बढ गई थी। वो बहुत ही मुश्किल से बोला कि आप पैग बनाइए, मैं बतलाता हूं।

सौम्या ने उसके हालात समझ लिये थे, वो रोनित के मनोभाव को अच्छी तरह से समझ सकती थी। इसलिये फिर से अपनी जगह पर आ गई और पैग बनाने लगी थी। जबकि रोनित खुद को तैयार कर रहा था सौम्या को बतलाने के लिये, वह बात जो उसके हृदय में दफन था। लेकिन वे नहीं जानते थे कि तीसरा भी कोई उनके आस-पास था, जो उनकी बातें सुन रहा था। हां वो राघवन था, जो दरवाजे से लग कर उनकी बातें सुन रहा था । उसकी बिल्लौरी आँखों में चमक थी और आखिर में जब उसने रोनित की बातें सुनी, उसके कान खड़े हो गए।

वो दरवाजे से हटा और अपने रूम की ओर बढा और रूम में पहुंचा। रूम में पहुंचते ही उसने मोबाइल निकाला और अननोन नंबर पर काँल लगा दिया। रींग जाने लगी और जब घंटी उठी, उधर से घड़घड़ा भरी आवाज उभड़ी। इसके बाद वो सारी बाते बतलाता चला गया। जबकि उधर से हां-हूं की आवाज आती रही और जब वह चुप हुआ, तो उधर से इन्ट्रक्सन देकर फोन काँल कट कर दिया गया। फिर क्या था, वापस वो उस रूम की ओर बढा जिधर सौम्या और रोनित थे।

रूम के पास पहुंच कर उसने फिर से प्रयास आरम्भ कर दिये कि अंदर का दिख जाए। आखिर कार उसे अपने प्रयास में सफलता भी मिली। उसने देखा कि रोनित कुर्सी पर बेसुध पड़ा है। जबकि सौम्या उसके चेहरे, उसके कपड़े को साफ कर रही है। इसके बाद उसने टेबुल पर पड़े समान को समेटा और रोनित को सहारा दे कर बेड के पास ले गई, उसे बेड पर सुला दिया। राघवन सोचने लगा, एक जवान लड़का, एक जवान लड़की। तनहा रात का आलम और दोनों अकेले। पक्का ही रूम में रात को गुल खिलेगा।

तभी देखने के चक्कर में उसका बैलेंस बिगड़ा और आवाज हुई। इतनी सी आवाज सौम्या को सचेत करने के लिए काफी था। आवाज सुनकर सौम्या गेट की ओर बढी। उसे गेट की ओर बढता पाकर राघवन तेजी से गेट पर से हटा और अपने रूम की ओर चल दिया। वैसे उसकी इच्छा थी कि रूम में चल रहे गरमागरम दृश्य को आँखों में कैद कर ले। लेकिन अब वो ऐसा नहीं कर सकता था, क्योंकि सौम्या जरूर सचेत हो चुकी होगी। उसने अपने मन को समझाया और मन मसोस कर अपने रूम में चला गया।

जबकि सौम्या गेट पर आई, उसने दरवाजा खोल कर आसपास देखा और किसी को न पाकर दरवाजा वापस बंद किया। फिर पलट कर अपने रूम में पहुंच गई। भले ही गेट पर नहीं मिला, लेकिन वो शंकित तो हो ही गई थी। उसने रिसेप्सन पर काँल लगा कर सारी बातें बतलाई, फिर सो गई।

**********

राजन सुबह के समय ही पन्ना काँफी शाँप में बैठा था। यूं तो उसे काँफी शाँप में बैठ कर काँफी पीने का शौक बिल्कुल भी नहीं था। परन्तु भार्गव नाम के लड़के से उसकी रात को बात हुई थी। भार्गव कुछ दिन पहले तक मधुशाला का कर्मचारी था और उसे अच्छी तरह से जानता था। उसने बतलाया था कि रोनित के बारे में बहुत कुछ जानता है और मिलने के लिये बुलाया था।

खबर अच्छी थी, इसलिये वह सुबह से ही इस काँफी शाँप में आ डटा था। लेकिन अब तक भार्गव का कहीं अता-पता नहीं था। ऐसे में स्वाभाविक ही था कि राजन विचारों के गुत्थी जाल से उलझ जाए। उसने कल जो अमोल की आँखें सूजी हुई देखी थी। उसने उसे अंदर तक हिला कर रख दिया था। भले ही अमोल बहाना बनाये, परन्तु वह जान चुका था कि वो पिछली रात जी भर कर रोया था।

लेकिन क्योंकर रोया था? यह गंभीर सवाल था। जिसका हल निकालना जरूरी था, लेकिन कैसे? यह भी तो सवाल ही था। वैसे उसने नोट किया था कि सौम्या का रोनित के करीब जाना अमोल को अच्छा नहीं लगा था। भले ही वो अपने मनोभाव छिपा गया हो, परन्तु राजन की पारखी नजर यह भांपने में कामयाब रही थी। तो क्या सौम्या को चाहता था और चाहता था तो कब से? उसने तो कभी जिक्र ही नहीं किया।

लेकिन सौम्या और रोनित का डेट पर जाना, शायद उसे तकलीफ पहुंचा था। परन्तु उस पागल को कौन बतलाये कि सौम्या किस कारण से रोनित को डेट पर ले गई थी। जहां तक उसे पता था, रोनित कभी भी सौम्या के करीब नहीं जा सकता था। राजन अपने दोस्त रोनित के स्वभाव से अच्छी तरह से परिचित था। परन्तु सवाल यह भी तो था कि अमोल क्या सौम्या को चाहता था? और सौम्या उसे भूलकर अमोल की हो पाएगी।

राजन! कहां खोये हो।

आवाज सुनकर उसकी तंद्रा टूटी, तो उसने देखा कि भार्गव उसके सामने खड़ा है। उसे देखते ही राजन के आँखों में आश्चर्य और हर्ष के मिश्रित भाव छलक उठे। जबकि भार्गव कुर्सी खींच कर बैठ गया। तब तक राजन ने वेटर को दो गरमागरम काँफी के आँडर दे दिये। वेटर के जाते ही राजन भार्गव की ओर पलटा और उससे मुखातिब होकर बोला।

अमा यार भार्गव! मुझे विश्वास न था कि हम लोग इस तरह से इतने दिनों बाद मिलेंगे।

अब विश्वास हो गया न कि हम लोग मिल चुके है। भार्गव भी मुस्करा कर बोला। जबाव में राजन कुछ क्षणों तक मौन रहा, फिर उसकी आँखों में देखकर बोला।

वैसे यार भार्गव! तुम कोई बात बतलाने बाले थे, रोनित के विषय में।

वो तो बताऊंगा ही, इसी के लिये तो आया हूं। बोलने के बाद भार्गव एक पल तक चुप रहा, मानो अपने शब्दों को सहेज रहा हो। फिर से बोलना शुरू किया। राजन! बात उन दिनों की है, शाल भर पहले, मधुशाला में एक बहुत ही सुन्दर लड़की आती थी। शायद रोनित साहब उसे चाहने लगे थे, लेकिन दोनों की बातें नहीं हो पाई थी। दोनों एक दूसरे को देखते थे और मुसकाते थे, लेकिन बात आगे बढे, उससे पहले ही एक घटना घट गई।

फिर भार्गव राजन को सारी घटनाएँ बतलाता चला गया, जैसे उसके आँखों के सामने घटित हो रहा हो। राजन आश्चर्य चकित होकर उसकी बातें सुन रहा था। तभी वेटर काँफी लेकर आ गया। उसके आते ही भार्गव एक पल के लिये चुप हुआ फिर वेटर के जाते ही शुरू हो गया। इस दरमियान दोनों काँफी भी पीने लगे। आखिर में भार्गव ने जो बात बतलाई, उसने तो राजन के अस्तित्व को ही हिला कर रख दिया। वह अपने आप ही कुर्सी पर उछल पड़ा । भय, भय की तो पतली रेखा उसके चेहरे पर फैल गई।

और जब भार्गव ने अपनी बात खतम की, तबतक तो राजन कुर्सी पर से उठ खड़ा हुआ था। भार्गव उसके मनोभाव को समझ सकता था। इसलिये गंभीरता भरे शब्द बोला। राजन! तुम कोई भी कदम उठाना, तो बहुत ही सोच-समझ कर उठाना। लेकिन राजन उसकी पूरी बात न सुन सका। उसने काउंटर पर जाकर काँफी के पैसे चुकाये और तेजी से अपनी कार की ओर बढा, कार में बैठा और कार सड़क पर दौड़ा दी।

कार को ड्राइव करते वक्त उसके दिमाग में तेजी से विचार बदल रहे थे। पहले तो उसने सोचा कि सौम्या या रोनित को आने बाले खतरे से आगाह कर दे। लेकिन नहीं, ऐसा करना खतरनाक भी हो सकता था। हत्यारा दूसरे तरीके से उनपर हमला कर सकता था। भार्गव की कही बातों का मतलब वह अच्छे से समझता था और इसलिये जो भी कदम उठाना चाहता था, सावधानी पूर्वक उठाना चाहता था। इसलिये उसने अपने कार का रूख अमोल के घर की ओर कर दिया था।

वह अच्छे से इस बात को जानता था कि वो जो करना चाहता है। उसके लिये अमोल और मंजीत की जरूरत पड़ेगी । इसलिये तो उसने कार की स्पीड बढा दी थी। कार फूल रफ्तार से सड़क पर भागी जा रही थी। तभी उसके मोबाइल ने वीप दी, काँल देखा तो सामने मंजीत था। उसने काँल रिसीव की और उसको अमोल के घर आने के लिये बोला। इसके बाद उसने काँल कट कर दिया और कलाईं घङी की ओर देखा। सुबह के आठ बज चुके थे, उसने सोचा कि अगर वो चाहे तो नौ बजे तक जयपुर के लिये निकला जा सकता है।

वह सोच ही रहा था कि उसकी कार अमोल के घर के सामने पहुंच गई। उसने तेजी से कार के ब्रेक लगाये और कार से उतर कर मेन गेट की ओर बढा। दरवाजे पर पहुंच कर उसने बेल रिंग के बटन पर अंगुली रख दिये । मधुर संगीत ध्वनि गूंज उठा और पलक झपकते ही दरवाजा खुला। सामने अमोल ही था, उसने जब सामने राजन को देखा, तो आश्चर्य चकित हो उठा। जबकि राजन उससे बात करने में समय न बर्बाद करके अंदर हाँल की ओर बढा।

अमोल भी तुरन्त ही पलटा, दूसरे ही पल हाँल में रखे सोफे पर दोनों आमने सामने बैठे थे। तब तक मंजीत ने भी हाँल में कदम रखा। वह भी आकर उन लोगों के सामने बैठ गया। जबकि राजन के चेहरे के भावों को देखकर अमोल समझ चुका था कि कोई बात जरूर है, अन्यथा राजन इतना गंभीर तो न होता। ऐसे में अमोल ने ही बात की शुरूआत की, वह राजन से मुखातिब होकर बोला।

क्या बात है राजन! परेशान से दिख रहे हो?

हां परेशानी तो है ही! राजन धीरे से बोला। फिर उनको बतलाने लगा कि कैसे वो भार्गव से आज मिला था और भार्गव ने उसे किस तरह की बात बतलाई थी। अक्षरशः उसने एक-एक शब्द दोनों को बतला दिए, जो उसको भार्गव ने बतलाया था। अमोल और मंजीत ध्यान लगा कर उसकी बातें सुन रहे थे और जब राजन चुप हुआ। तो उन दोनों के चेहरे पर भी भय की रेखा पसर गई।

तो आगे क्या सोचा है? राजन की बात खतम होते ही अमोल तपाक से बोला। जबकि उसकी बातें सुनकर मंजीत झट बोला।

अमा यार राजन! मेरे विचार से तो सबसे पहले रोनित या सौम्या को फोन करके आने बाले खतरे से अगाह कर दो। फिर आगे का प्लान करते है।

हां यार राजन! यही पहले कर लो। अमोल ने भी मंजीत के हां में हां मिलाई।

उसकी बातें सुनकर राजन ने मोबाइल निकाल कर पहले रोनित को काँल लगाया। लेकिन उसका मोबाइल आँफ था। तब उसने सौम्या को काँल लगाया, लेकिन वह भी आउट आँफ कबरेज थी। फिर तो राजन बौखला गया, बौखलाहट में उसने कितनी ही बार कोशिश की, लेकिन परिणाम नगण्य ही निकला। ऐसे मैं तीनों ही बौखला उठे, अंजान आशंका से उनका रोम-रोम कांप उठा। ऐसे में राजन ने अमोल की तरफ देखा, मानो पुछना चाहता हो कि अब क्या करना है।

चलते है फिर हम लोग जयपुर। अमोल तपाक से बोला, मानों राजन के मन का आशय समझ गया हो।

फिर वे लोग तेजी से उठे और बाहर की ओर लपके। इस बीच अमोल ने अपने पैरेंट्स को फोन करके सारी बातें बतला दिया। फिर वे तीनों कार में जाकर बैठ गये, कार श्टार्ट की और सड़क पर दौड़ा दिया। कार सड़क पर आते ही फूल रफ्तार में दौड़ने लगी। लेकिन उन तीनों के चेहरे पर बारह बज रहे थे। उन तीनों के चेहरे से प्रतीत हो रहा था कि अगर उनके पास पंख होते, तो झट जयपुर पहुंच जाते।

*********

सौम्या और रोनित फ्रेश होकर लंच लेने के लिये टेबुल पर बैठे थे। समय दिन के दो बज चुका था। सौम्या वहां एक दिन और रुकना चाहती थी, लेकिन रोनित इस के लिये तैयार नहीं था।

वैसे तो दोनों होटल से घूमने के लिये निकले, सो अब लौटे थे। सौम्या जिन-जिन फेमस जगहों के बारे में जानती थी, उन सारे जगहों पर दोनों गये थे, अपना समय बिताया था। रोनित के लिये यह टुर यादगार होने बाला था, इसलिये उसने जम कर खरीदारी भी की थी। उसे जयपुर की सुन्दरता इतनी भा गई थी कि उसने फिर से यहां आने का प्लान कर लिया था।

और अभी वे लोग घूमकर होटल लौटे थे, और अब फ्रेश होकर लंच के लिये टेबुल पर बैठे थे और अपने आँडर का इंतजार कर रहे थे। तभी सौम्या उसकी ओर देखते हुए बोली।

मिस्टर रोनित! आप ने बोला था कि आप अपने पास्ट के बारे में बतलाएंगे। लेकिन उसके बाद तो आप भूल ही गए। आपने बतलाया नहीं कि आपके साथ आखिरकार हुआ क्या था।

आपको लगता है मेरे बीते दिनों के बारे में ज्यादा दिलचस्पी है। तभी तो आप रात से ही इस बात के पीछे ही पर गई है। रोनित मुस्करा कर उसकी बातों के जबाव में बोला। उसकी बातें सुनकर सौम्या भी मुसकाई और तुरंत ही बोली।

मिस्टर रोनित! आपको भले ही जो भी लगे। यही सही, आप यही समझ कर बतलाइए। सौम्या बोलकर मुसकाई, फिर अपनी नजर रोनित के चेहरे पर टिका दी। उसकी बातों को सुनकर रोनित गंभीर हो गया। कुछ देर तक उसने अपनी नजर सौम्या के चेहरे पर टिकाये रखा, फिर गंभीर होकर बोला।

मिस सौम्या! आप जब सुनना ही चाहती हो, तो निश्चिंत रहे, हम वापसी में आपको सारी बातें बतला देंगे। बोलने के बाद रोनित ने चुप्पी साध ली।

फिर वे दोनों आँडर का इंतजार करने लगे। तभी वेटर उनका आँडर सर्व कर गया। फिर तो वे खाना खाने में जूट गये, इस बीच उन दोनों में किसी प्रकार की बात चीत नहीं हुई। फिर दोनों ने लंच से फ्री होकर अपना समान समेटा और होटल से चेक-आउट करके बाहर निकले और कार में बैठे। कार में बैठते ही सौम्या ने कार श्टार्ट की और होटल से निकाल कर सड़क पर दौड़ा दी।

कार सड़क पर आते ही सरपट दौड़ने लगी। तब सौम्या ने म्यूजिक प्लेयर धीमी आवाज में आँन कर दी। उसके बाद उसने रोनित की ओर देखा, मानो पुछना चाहती हो कि अब क्या करना है? कार तेजी से भागती हुई जयपुर से बाहर निकली। हाईवे पर आते ही सौम्या मुस्करा कर बोली।

मिस्टर रोनित! अब क्या इरादा है, आप बतलाएंगे या फिर नहीं?

बतलाऊंगा जरूर! उसकी बातें सुनकर रोनित धीरे से मुसकाया और फिर गंभीर होकर बोला। बात उन दिनों की है, मैं काँलेज में पढता था। राजन के चले जाने के बाद मेरे दोस्तों की लिश्ट बदल चुकी थी।

हम लोगों की रूटीन वही थी, जो पहले राजन के समय में थी। काँलेज के समय में क्लास और शाम के समय में मधुशाला । वहीं मधुशाला में कुछ दिनों से लड़की की एक ग्रुप आने लगी थी। उसमें एक लड़की थी, सुन्दरता की मूर्ति। हम दोनों की नजरें ऐसे में मिलने लगी और मैं दिल ही दिल में चाहने लगा। लेकिन उससे कभी बात-चीत नहीं हो पाई।

रोनित अपने बीते दिनों की बाते बतलाता जा रहा था। जबकि सौम्या ध्यान से उसकी बातें सुन रही थी और नजर ड्राइव पर लगाए हुए थे। कार ने जयपुर को कब का छोड़ दिया था और दिल्ली की ओर बढने लगी थी। उधर सूर्य देव भी धीरे-धीरे अस्ताचल की ओर बढ रहे थे। बड़ा ही मनोहारी दृश्य लग रहा था, मानों प्रकृति अपने पूरे रंग में सज चुकी हो। तभी सहसा सौम्या चौंकी, कारण एक हाइवा डंपर उनके कार की ओर बढ रहा था। पहले तो सौम्या को लगा कि शायद यह भ्रम हो। लेकिन वो दूसरे ही पल समझ गई कि हाइवा अपना संतुलन खो चुका था। या शायद उसके कार को कुचलने की योजना बना कर ही सड़क पर दौङ रहा था।

तेजी से खतरे की घंटी उसके दिमाग में बज उठी। उसने तीव्र गति से स्टेयरिंग को दौ और चाहा कि कार को हाईवे से नीचे खेत में उतार दे। लेकिन तब तक हाइवा उसकी कार से टकरा चुका था। इतनी तेज आवाज हुई कि पूरा का पूरा इलाका ही इस आवाज से दहल उठा।

धड़ाम।

कार हवा में कई फूट उछली और फिर सड़क के नीचे खेत में पलटती चली गई। लेकिन गनीमत ये रही कि कार खेत में जाकर अटक गई।

तभी वहां पर राजन एंड ग्रुप की भी गाड़ी वहां पहुंच चुकी थी। राजन ने दूर से ही कार को हवा में उछलते देख लिया था और आशंका से उसका दिल बैठने लगा था। वह अच्छी तरह से जानता था कि भार्गव द्वारा दी गई जानकारी गलत नहीं हो सकती। तो क्या, यह कार जो पलटी, सौम्या की ही थी। भगवान न करें कि ऐसा हो। ऐसा सोच कर उसने सड़क किनारे कार तेजी से खड़ी की। फिर वे तीनों उतर कर उधर लपके, जिधर खेत में सौम्या की कार पड़ी थी। वे तीनों लगभग दौङ ही गये उधर और सबसे पहले मंजीत वहां पहुंचा। वहां पहुंचते ही उसके मुख से तेज चीख निकली।

अमा यार राजन! जल्दी दौड़ो। इसमें तो सौम्या और रोनित है। मंजीत इतना ही बोल सका। इसके बाद लगा कि वो आवेशित हो गया हो। उसने पूरी ताकत लगाकर अकेले ही कार का दरवाजा खोल लिया। कार वैसे तो खेत में उलटी हुई थी, जैसे उलट कर रख दी गई हो।

तब तक राजन और अमोल भी वहां पहुंच चुके थे। उन तीनों के चेहरे पर बदहवासी के बादल मंडरा रहे थे। उन लोगों ने बहुत परेशानी के बाद दोनों को बाहर निकाला और तेजी से उठाकर अपनी कार की ओर बढे। वे लोग खेत से सड़क पर ही पहुंचे कि सौम्या की कार तेज आवाज के साथ विस्फोट की और धूं-धूं कर जलने लगी। लगा कि जैसे कोई विशाल बम फटा हो।

धड़ाम!

आवाज इतनी तेज थी कि तीनों को ही लगा कि उसके कान के पर्दे फट जाएंगे। लेकिन दूसरे ही पल उन्होंने अपने आप को संभाला और कार की ओर बढे।

कार के पास पहुंच कर उन्होंने रोनित और सौम्या को कार की पिछली शीट पर लिटाया। फिर राजन ने कार की ड्राइविंग शीट संभाली। अमोल ओर मंजीत भी आगे बाली शीट पर ही बैठ गया। फिर कार श्टार्ट हुई और सड़क पर भागने लगी। जबकि मंजीत ने मोबाइल निकाल कर मैप देखकर राजन को इंडिकेट करने लगा और राजन उसी के अनुसार कार ड्राइव कर रहा था। वे लोग जल्द से जल्द किसी हाँश्पीटल में पहुंचना चाहते थे। वैसे सौम्या तब तक होश में आ चुकी थी।

उसे ज्यादा चोट नहीं आई थी, जबकि रोनित को अंदरूनी चोट पहुंची थी। वो पूर्ण रूप से बेहोश था, इसलिये ही राजन जल्द से जल्द किसी भी हाँश्पीटल में पहुंचना चाहते थे। जहां उनको प्राथमिक उपचार मिल सके। कार फूल रफ्तार से भागी जा रही थी, बाहर अंधेरा घिर चुका था। ऐसे में अमोल ने फोन करके अनिरुद्ध साहब को ताजा हालात के बारे में सूचना दी।

तब तक मंजीत चिल्लाया, आगे आरोग्य निकेतन है, कार बाईं तरफ मोड़ो । राजन को सुनने भर की देर थी, उसने कार बाईं तरफ ले लिया। कार कुछ देर बाद आरोग्य निकेतन के प्रांगण में खड़ी थी। रोनित और सौम्या को प्राथमिक उपचार के लिये अंदर ले जाया गया था। इस समय राजन, मंजीत और अमोल के चेहरे पर इस वक्त हवाईयां उड़ रही थी।

समय जैसे-जैसे आगे बढता जा रहा था, उनके चेहरे पर परेशानी के लक्षण बढते जा रहे थे। वे लोग बेचैनी में हाँश्पीटल के हाँल में बैठे हुए डाक्टर का इंतजार कर रहे थे। समय बढते-बढते रात के दस बज गये, तभी इमरजेंसी रूम से डाक्टर निकले। उन्हें निकलता देख कर राजन उनकी ओर बढा और रोनित एवं सौम्या के बारे में पुछा।

तब डाक्टर ने गंभीर शब्दों में उनको बतलाया कि सौम्या खतरे से बाहर है और पूर्ण स्वस्थ है। जबकि रोनित की हालत क्रिटीकल है। उनकी बातों ने उन लोगों के चेहरे पर परेशानी बढी। लेकिन करीब रात ग्यारह बजे हेलिकॉप्टर लेकर अनिरुद्ध साहब वहां आ गये। उसके बाद उन लोगों को दिल्ली के लिये एयर लिफ्ट कर लिया गया।

*********

इसके बाद रोनित और सौम्या को एयर लिफ्ट करके यहां दिल्ली लाया गया और एम्स में भरती करवाया गया।

बोलने के बाद राजन थोरी देर के लिए रुका। वह इस समय एम्स हाँश्पीटल के वेटिंग रूम में एस. पी. स्वाति गर्ग के सामने बैठा हुआ था और उन्हें बीते दिनों की बातें बतला रहा था। अभी वहां पर मालती देवी, अनिरुद्ध साहब, मंजीत अमोल और सौम्या भी बैठे हुए थे। समय सुबह के नौ बजे थे। राजन के चुप होते ही मंजीत तपाक से बोला।

मैडम! वैसे आपकी जानकारी के लिये बतला दूं कि यहां पर रोनित पिछले पांच दिनों से कोमा में है और आज दीवाली है।

उसकी बातें सुनकर स्वाति गर्ग ने अपने झुके चेहरे को उपर उठाया। इस समय उसका सुन्दर चेहरा आंसुओं से सराबोर था। उसने अब तक जो कहानी सुनी थी, उसने उसके हृदय को हिला कर रख दिया था। स्वाति गर्ग वही सुन्दर लड़की, जिसे रोनित चाहता था। सुन्दरता की प्रतिमा, वह कोमलांगी थी। सुता हुआ नाक, कजरारे तीखे नैन और रेशमी बाल, रस से भरे अधर। सुराहीदार गर्दन और भरावदार शरीर।

वह इतनी सुन्दर थी कि स्वाभाविक ही था कि रोनित उसकी ओर आकर्षित हो। लेकिन इस समय वह पुलिस डिपार्ट में एस. पी. के पोस्ट पर थी। उसने अपने उभर आए आंसू रूमाल से पोंछे और राजन की ओर मुखातिब होकर बोली।

वैसे मिस्टर राजन! आप मुझ तक पहुंचे कैसे?

पहुंचने से मतलब? आपको तो मालूम ही है कि मंजीत हमारे ग्रुप का खोजी जासूस है। राजन इस बार गंभीर होकर बोला। फिर एक पल रुका, उसके बाद फिर से बोलने लगा। इसने रेंकी करने बाले की सुगंध ले-ली थी। फिर क्या था, हम लोग राघवन के पास। उसके बाद आप मौजूद है सामने। बोलने के बाद राजन ने लंबी सांस ली और सोफे पर पसर गया।

इधर स्वाति भी बहुत हद तक संभल चुकी थी। तभी अचानक से अनिरुद्ध साहब अपनी जगह से उठे और अचानक ही स्वाति के कदमों में आकर बैठ गए। इस वक्त उनके आँखों में आंसू और गला रूंधा हुआ था। ऐसे में वे बहुत मुश्किल से इतना ही बोल सके।

स्वाति बेटा! मेरे पास एक ही लाल है और वो कोमा में है। मुझे विश्वास है बेटा कि तुम अगर उसके पास गई न, सच वह कोमा से बाहर आ जाएगा।

उन्हें ऐसे करता देख झट स्वाति उठ खड़ी हुई। उसने अनिरुद्ध साहब को कंधा पकड़ कर उठाया और वही अपने बगल में सोफे पर बिठा दिया। फिर गंभीर होकर उनकी ओर देखने लगी। मानों कि बोलने के लिये शब्द ढूंढ रही हो। जबकि उसकी ओर हाँल में उपस्थित सभी की नजर टिकी हुई थी। सभी उत्सुक थे कि वो आगे क्या बोलती है। तभी स्वाति बोली।

आप निश्चिंत रहे अंकल! ऐसा तो बिल्कुल भी नहीं है कि सिर्फ रोनित ही मुझे चाहता था। चाहती तो मैं भी उसको थी। माना कि हम दोनों गलतफहमी के शिकार हो गये और प्रेम का इजहार नहीं हो पाया। लेकिन मैं हर संभव वह सभी कोशिशें करूंगी, जिससे रोनित फिर से हमारे बीच हो।

स्वाति की बातें सुनते ही वहां सभी ने राहत की सांस ली। जबकि स्वाति उठी और डाक्टर माथुर के केबिन की ओर बढ गई। उसे अंदर गये दो मिनट भी नहीं गुजरे थे कि वो डाक्टर माथुर को लेकर लौटी। वृद्ध हो चुके डाक्टर माथुर स्वाति को अपने बीच पाकर आत्म विश्वास से भर गये थे। उन्होंने आते ही अनिरुद्ध साहब के कंधे पर हाथ रखा। मानो अनुभूति करवाना चाहते हो कि सहाय, अब बेफिक्र हो जाओ।

इसके बाद वे लोग आई. सी. यु रूम की ओर बढे। वहां जाकर देखा, वेन्टिलेटर पर रोनित को लिटाया गया था। वे लोग जब वहां पहुंचे, स्वाति आगे बढी और रोनित के करीब पहुंची। स्वाति का रोनित के करीब पहुंचना और पलक भी न बीता होगा। रोनित के शरीर में हलचल होने लगी। फिर क्या था, डाक्टर माथुर ने तुरन्त ही डाक्टरों की टीम बुला ली और रोनित के इलाज में जूट गये। जबकि वे लोग बाहर वापस हाँल में आकर बैठ गये। हलांकि मालती देवी आई. सी. यु में रुकना चाहती थी, लेकिन डाक्टरों ने उन्हें वहां रुकने नहीं दिया।

हाँल में बैठ कर वे लोग इसी का इंतजार कर रहे थे कि कब माथुर साहब अंदर से निकलेंगे। ऐसे में एक-एक पल उन लोगों को एक युग के समान प्रतीत हो रहा था। दूसरा कोई और समय होता, तो शायद वे दूसरी बात भी करते, लेकिन यह समय बोझिल सा था। सभी इसी आशा में थे कि कब डाक्टर साहब बाहर निकले और कब उन्हें अच्छी खबर सुनाए। समय धीरे-धीरे आगे की ओर बढता जा रहा था और उसी रफ्तार में उन लोगों की बेचैनी भी बढती जा रही थी।

ऐसे में अचानक ही स्वाति राजन से मुखातिब होकर बोली। मिस्टर राजन! आप मुझे बतला सकते है कि इस समय राघवन कहां मिलेगा।

कहां मिलेगा से मतलब मैडम! बीच में ही मंजीत तपाक से बोल उठा। फिर आगे बोला। हम लोगों ने उसे राजन के बंगले पर बांध कर रखा हुआ है। मंजीत की फुर्ती देखकर सभी के चेहरे पर खुशी की हल्की रेखा रेंग गई। जबकि स्वाति धीरे से बोली।

मिस्टर राजन! डाक्टर साहब आ जाते है, उसके बाद आपके साथ चलती हूं। मुझे उससे मिलना है, तभी तो मधुशाला में आखिरकार हुआ क्या था, पता चल सकेगा।

स्वाति आगे भी बोलना चाहती थी, लेकिन दूसरे ही पल रूक गई। क्योंकि माथुर साहब आई. सी. यु से बाहर निकल कर उनकी ओर ही आ रहे थे। डाक्टर साहब ने आते ही उन लोगों को बतलाया कि रोनित की बाँडी पाँजीटीव रिस्पांस दे रहा है। ऐसे में ऐसा ही रिस्पांस देता रहा, तो आज रात तक या कल सुबह तक होश में आ जाएगा। डाक्टर साहब की बातें सुनते ही सभी के चेहरे पर खुशी की लहर दौङ गई।

तब स्वाति ने राजन को साथ चलने के लिये कहा। ऐसे में मंजीत और अमोल भी साथ चलने को तैयार हो गया, तब भला सौम्या कैसे पीछे रह सकती थी। वे लोग हाँश्पीटल के बाहर निकले और कंपाउंण्ड में खड़ी राजन के कार की ओर बढे। लेकिन कार में बैठते वक्त आज एक तबदीली आई। सौम्या अमोल के बगल में बैठी, जिसका मतलब राजन अच्छी तरह से समझता था। उसे खुशी थी कि आखिरकार दोनों एक दूसरे को समझने में कामयाब हो चुके थे।

फिर क्या था, राजन ने कार श्टार्ट की और सड़क पर दौड़ा दिया। साथ ही राजन ने धीमी आवाज में म्यूजिक प्लेयर आँन कर दिया। आज बहुत दिनों बाद कार में बैठे सभी लोगों के चेहरे पर खुशी की आभा थी। कार दिल्ली की सड़क को रौंदती हुई आगे बढती रही। इसी बीच स्वाति की नजर टी-स्टाँल पर गई, उसने राजन को इशारा किया। वैसे तो सभी को काँफी की तलब महसूस हो रही थी।

वहां काँफी पीने के बाद उन्होंने आगे की ओर कार बढाई। कार जिस गति से सड़क पर आगे बढ रही थी, उसी रफ्तार से राजन के दिमाग में विचार भी दौङ रहा था। भले ही उसने अब तक के घटना क्रम को स्वाति को बतला दिया हो। परन्तु उसे पूरी तरह समझ नहीं सका था। ऐसे में उसका राघवन से मिलना, आखिर वो चाहती क्या है। वैसे चाहता तो वह भी था कि मधुशाला के राज से पर्दा उठे। परन्तु कैसे? इसका हल क्या होगा और स्वाति आखिर क्या एक्सन लेगी। यह एक सवाल था, जो उसके दिमाग में गोल-गोल घूम रहा था।

आखिरकार उनकी कार अपने गंतव्य पर पहुंच गई। राजन ने कार को रोका और अहाते में खड़ी की। फिर वे लोग कार से उतरे, जबकि राजन ने उतरते ही बंगले का लाँक खोला। इसके बाद सभी हाँल में प्रवेश कर गये। हाँल में पहुंचते ही सभी की नजर कुर्सी से बंधे राघवन पर गई। राघवन का चेहरा इस समय बुरी तरह सुजा हुआ था और कपड़े पर जगह-जगह खून के धब्बे लगे हुए थे। उसकी परिस्थिति से लगता था कि उसकी जम कर कुटाई की गई हो।

जबकि राघवन की नजर जैसे ही स्वाति पर गई, उसका चेहरा भय से पीला हो गया। उसने सपने में भी नहीं सोचा होगा कि उसकी मुलाकात इस अवस्था में स्वाति से हो सकती है। ऐसे में वो हौसले कर के अपने आपको संभालने की कोशिश करने लगा। जबकि स्वाति उसकी ओर बढी।

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स्वाति जैसे ही राघवन के करीब पहुंची, राघवन के चेहरे पर एक अंजाने भय की रेखा तैरने लगी। लगा कि वो अभी भय के कारण चीख परेगा। उसकी ऐसी हालत को देख कर स्वाति को जैसे याद आया। वो उसके करीब पहुंच कर सर्द स्वर में बोली।

मिस्टर राघवन! तुम तो उस वीडियो में न्यूज ऐंकर थे। तो फिर यह क्या है? या तो वो सही है या यह सही। वैसे मैं तुम से मालूम कर के रहूंगी।

फिर वह वहां से पलटी और उन लोगों के पास आकर बैठ गई। स्वाति के बैठते ही सभी सोफे पर बैठ गये, जबकि राजन किचन की ओर बढा। इधर अमोल ने सौम्या को देखा, उसकी आँखों में देखा। आज वो समझ रहा कि बात कर ही लेना चाहिए, क्योंकि समय उपयुक्त है। फिर पता नहीं ऐसा समय मिलेगा, या नहीं। उसे किसी की भी चिन्ता बिल्कुल भी नहीं थी, इसलिये सब के सामने ही बोला।

मिस सौम्या! आप बुरा न मानों तो एक बात कहूं।

इसमें बुरा मानने बाली बात क्या है। आपको जो भी बोलना है, बोल सकते है। उसकी बातें सुनते ही सौम्या उसकी ओर देखकर बोली।

मिस सौम्या! यह जिन्दगी है, यहां सभी को इच्छित नहीं मिलता। माना कि मुझमें राजन जैसे हुनर नहीं है। मैं उसके जैसा स्मार्ट भी नहीं हूं, परन्तु इतना बुरा भी नहीं हूं। अच्छे परिवार से ताल्लुक रखता हूं और सबसे बरी बात, जीवन को सकारात्मक नजर से देखता हूं। उसकी इतनी तथ्य पूर्ण बातें सुनकर सौम्या मुसकाई। उसने बात तो सही बोला था, परन्तु वह चाहती थी कि अमोल अपने मुख से ही स्वीकार करें, इसलिये बोली।

मैं आपके बातों का मतलब समझ न सकी। आप स्पष्ट करें तो बेहतर होगा मिस्टर अमोल।

इसमें स्पष्ट करने बाली बात क्या है। इसने तो स्पष्ट स्वीकार कर लिया कि आपकी चाहत में पागल है। वो भी आज से नहीं बल्कि वर्षों से। अमोल के बोलने से पहले ही मंजीत तपाक से बोल उठा।

उसकी बातें सुनकर हाँल में सभी ठहाका लगा कर हंस पड़े । उसने बात ही इस अंदाज में बोला था कि सभी के चेहरे पर हंसी आना स्वाभाविक था। मंजीत बहुत ही बातूनी था, उसके इसी स्वभाव के कारण अमोल की उससे पटती नहीं थी। लेकिन अमोल को आज मंजीत से बड़ा हितैषी कोई दूसरा नजर नहीं आ रहा था। जो बात वह कहने में घबरा रहा था, मंजीत ने कितनी सहजता से कह दी थी। आज उसे लगने लगा था कि वास्तव में मंजीत का आई क्यू बहुत ही तेज है। अब बातें हो चुकी थी, तो अमोल ने अपनी नजर सौम्या के चेहरे पर टिका दी। उसे जानना था कि सौम्या मंजीत की बातें सुनकर कैसे रिएक्ट करती है।

जबकि सौम्या मंजीत की बातें सुन कर खिल सी गई थी। तभी राजन किचन से लौटा, उसके हाथ में काँफी की ट्रे थी। जिसे उसने सेंटर टेबुल पर रख दिया और उन लोगों के पास ही बैठ गया। तभी गेट की डोर बेल बजी। इस समय यहां कौन आया होगा? यह प्रश्न सभी के चेहरे पर चमका। जबकि राजन ने ऊँचे स्वर में बोला।

आप जो भी हो, अंदर आ जाओ, गेट खुला है।

आवाज देने भर की देर थी, गेट खोल कर श्रेया ने अंदर कदम रखा और वहां सभी को देख चौंकी। उससे ज्यादा वो स्वाति को देखकर चौंकी थी। स्वाति भी उसे देख कर चौंकी। स्वाति अपने जगह से उठ खड़ी हुई, जबकि श्रेया आगे बढी। फिर दोनों ऐसे गले मिले मानों बहुत दिनों बाद मिले हो। उसके बाद दोनों अलग हुए, तब स्वाति अपने जगह पर बैठ गई, जबकि श्रेया राजन के बगल में बैठी। उसके बाद उसने सभी को हैल्लो बोला। जबकि राजन सकते में था, उसे अंदाजा नहीं था कि श्रेया अचानक से आ जाएगी। यह उसके लिये सरप्राईज था, इसलिये श्रेया से मुखातिब होकर बोला।

श्रेया! अचानक से, आना ही था तो बतला देती। मैं तुम्हें लेने एयरपोर्ट पर तो आ जाता।

अमा यार राजन! भाभी न हो, तो भी परेशान। आ गई, तो भी परेशान। अब छोड़ो भी इन बातों को और काँफी ठंढी हो रही है, पीओ और पिलाओ।

मंजीत मजाक में बोला था, लेकिन श्रेया तुरन्त ही बोली। मेरे प्राणनाथ राजन! मुझे जैसे ही मालूम चला कि रोनित मुश्किल में है, मैं अपने आप को रोक न सकी और आ गई। वैसे तुम्हें सरप्राईज देना था, इसलिये बतलाई नहीं।

उसकी बातें सुनकर राजन मुसकाया, वैसे उसका मन भी श्रेया के बिना कहां लगता था। इसके बाद वे लोग काँफी पीने लगे। इस बीच श्रेया और स्वाति आपस में बातें करती रही। लेकिन उन बातों से किसी को कोई मतलब नहीं था। वे बातें उनके काँलेज के दिनों की थी। परन्तु इतना वे लोग तो समझ ही चुके थे कि दोनों की मित्रता काँलेज के दिनों से ही थी।

इधर स्वाति ने काँफी खतम होते ही कप टेबुल पर रखा और राजन से मुखातिब हुई। सबसे पहले उसने कलाईं घङी देखा। उसके बाद वो गंभीर होकर बोली। मिस्टर राजन! अब से राघवन की कस्टडी मैं खुद लेना चाहती हूं। उसकी बातें सुनकर सिर हिलाकर राजन ने मौन स्वीकृति दे-दी, बोला नहीं। तब स्वाति फिर से बोली। वैसे आप लोग भी चलिए मेरे साथ, क्योंकि मैं समझती हूं कि मधुशाला के रहस्य को आप लोगो को भी जानना चाहिए।

उसकी बातें सुनकर सभी ने सहमति में सिर को जूम्बीस दी। इसके बाद स्वाति ने राघवन के बंधन खोले और उसे लेकर बाहर निकली। जबकि सभी उसके पीछे हो लिये। तब श्रेया राजन से बोली कि वो रोनित को देखने जा रही है। फिर वो भी बाहर निकल गई। तब राजन ने बंगले को लाँक किया और स्वाति के पीछे लपका। तब तक पुलिस जिप्सी आ चुकी थी। स्वाति ने राघवन को पीछे बिठाया फिर आगे बढ गई। जबकि सौम्या, मंजीत और अमोल राजन की कार में बैठे।

इसके बाद उनका काफिला वहां से निकला और तेजी से पुलिस स्टेशन सेक्टर फाइव की ओर बढने लगा। वे लोग जब पुलिस स्टेशन पहुंचे, तो दिन के बारह बज चुके थे। पुलिस स्टेशन पहुंचते ही स्वाति राघवन को लेकर अंदर गई। जबकि वे लोग कार में ही बैठे रहे, उन्होंने स्वाति का बाहर इंतजार करना ही उचित समझा। समय धीरे-धीरे आगे की ओर बढ रहा था और ठीक पंद्रह मिनट बाद स्वाति लौटी। इस समय उसके साथ सिर्फ राघवन ही था और उसके हाथ में हथकड़ी लगी हुई थी। स्वाति ने राघवन को आगे बैठाया और ड्राइविंग शीट पर खुद बैठ गई।

इसके बाद उनका काफिला आगे बढा, आगे जाकर उन्हें रेस्टोरेंट मिला। वहां सभी ने लंच लिया, फिर आगे बढे। उनकी गाड़ी दिल्ली की सड़क पर भागी जा रही थी, शहर पीछे छूटता जा रहा था। लगभग दिन के तीन बजे वे लोग यमुना किनारे पहुंचे। तब स्वाति ने राघवन को उतारा और घनी झारी में ले गई। बाकी लोग भी उसके पीछे लपके। घनी झारी के बीच पहुंचने के बाद एकाएक सभी ने राघवन को घेर लिया। तब स्वाति उससे मुखातिब होकर बोली।

देखो राघवन! तुमने क्या किया, क्या नहीं किया से मुझे बिल्कुल भी मतलब नहीं। मैं तो सिर्फ इतना जानना चाहती हूं कि उस दिन मधुशाला में आखिर हुआ क्या था। अब फैसला तुम्हें करना है, सच बतलाओगे, तो बख्श दिए जाओगे। अन्यथा, इस घनी झारी में दफन हुआ ही समझो। स्वाति इतने सर्द लहजे में बोली कि राघवन के हौसले पस्त हो गये। वो उन लोगों के खतरनाक इरादे भांप गया और वो मरणा नहीं चाहता था। इसलिये घबराहट में तेजी से बोला।

मैडम! आप निश्चिंत रहो, मैं आपको सत्य ही बतलाऊंगा। आज से साल भर पहले, आपकी ओर रोनित साहब आकर्षित हो रहा था और आप उनकी ओर। ऐसे में एक दिन मुझे आँडर मिला कि रोनित की रेंकी करूं।

मैं ने बहुत मेहनत करके रोनित के बारे में सारी जानकारी इकट्ठी की और एक अननोन नंबर पर भेज दिया। बदले में मुझे बहुत सारे पैसे मिले और एक काम भी मिला। मुझे जो काम मिला था, वह बहुत ही भयावह था। लेकिन मुझसे जो काम करवा रहा था, उसने मुझे विश्वास दिलाया कि मुझे कुछ नहीं होगा। दूसरी बात मेरे अंदर लालच घर कर गई, इसलिये मैं वह काम करने के लिए तैयार हो गया। बोलते-बोलते राघवन बीते दिनों में चला गया। वहां मौजूद सभी उसकी बात ध्यान से सुन रहे थे और समझने की कोशिश कर रहे थे।

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जनवरी की सर्द रात, रात के आठ बजे थे। कोने में बैठा हुआ राघवन वैसे तो ड्रिंकिंग कर रहा था। लेकिन उसकी नजर हाँल में आमने-सामने बैठे हुए रोनित और स्वाति पर टिकी हुई थी। रोनित और स्वाति अपने-अपने ग्रुप में बैठे हुए ड्रिंकिंग के मजे ले रहे थे। लेकिन बीच-बीच में बार-बार दोनों की नजर मिलती और दोनों मुस्करा उठते थे, लेकिन कोई दूसरा समझ न पाता था।

सर्द रात में मधुशाला अपने पूरे रंग लिए हुए थी। अर्ध नग्न वार बाला का थिरकता जिस्म और छलकता हुआ जाम। हर कोई मदहोश था, पीने और पिलाने में। लेकिन राघवन को जैसे इससे कोई मतलब नहीं था। वह तो राह देख रहा था कि कब रोनित और स्वाति वार से निकले। वह व्हिस्की के पैग को होंठों से लगाए बस यही सोच रहा था। वह जानता था कि आज वो जो करने बाला है। बहुत ही रिश्की है और जरा सी भूल हुई, तो उसे पछताने का मौका नहीं मिलेगा।

इसी बीच दोस्तों के फरमाइश पर रोनित स्टेज पर चढ गया और वार बाला के साथ डांस करने लगा। उसका नाचना और हाँल में उत्तेजना फैल गई। हाँल में शोर मचने लगा था, वन्स मोर-वन्स मोर। शायद उसका डांस करना स्वाति को भी भा रहा था, वो अपलक उसे ही देखती जा रही थी। एक तो मादक माहौल, दूसरे रोनित का स्टेप में किया गया डांस। माहौल में जैसे मादकता घुलने लगी थी। लेकिन धीरे-धीरे वहां से भीड़ कम होने लगी। सर्दी की रात होने के कारण ज्यादातर अब घर को लौटने लगे थे।

राघवन ऐसे में सचेष्ट हो गया, उसे अब तैयार रहना था। क्योंकि कभी भी रोनित और स्वाति की कार निकल सकती थी। वह तेजी से उठा और बील पेय करने के बाद मधुशाला के गेट से निकल कर पार्किंग में आ गया। वहीं वह अपनी कार में बैठकर इंतजार करने लगा। समय धीरे-धीरे आगे की ओर बढता जा रहा था और उसी रफ्तार से उसकी बेचैनी बढती जा रही थी। आज वह जो करने जा रहा था, वह बहुत ही गलत था। लेकिन पैसे के लालच में वो करने को तैयार हो गया था। वह विचारों के भंवर जाल में उलझा था, तभी स्वाति मधुशाला के गेट से निकली।

वह सजग होकर बैठ गया, अब समय आ गया था कि वो हरकत में आए। उसने फिर से गेट पर नजर दौड़ाईं, तो देखा कि रोनित भी निकला। तब तक स्वाति कार में बैठ चुकी थी और कार श्टार्ट करके आगे बढा दी। उसके बाद रोनित भी कार में बैठा, कार श्टार्ट की और कार आगे बढा दी। राघवन ने देखा, तो उसके चेहरे पर मुस्कान छा गई। आज उसके लिए मौका था, दोनों ही कार में अकेले थे।

उन दोनों की कार आगे बढते ही उसने भी कार आगे बढा दी। लेकिन उसने इस बात का विशेष ध्यान रखा कि किसी को उसपर शक न हो। कार ड्राइव करते हुए उसने मोबाइल निकाली और कहीं फोन करके आगे के प्लान के बारे में समझाने लगा। इस समय राघवन बहुत ही चौकन्ना था, वह जानता था कि उसकी एक भूल उसके सारे प्लान को चौपट कर सकती है। वह बहुत ही सावधानी के साथ फुंक-फुंक कर कदम रखना चाहता था।

तभी वीराना मिला और रोनित एवं स्वाति के कार में अंतराल भी बढ गया। फिर क्या था, राघवन ने फोन काँल किया और ओके का निर्देश दिया। बस सड़क पर स्वाति के कार के जैसे ही कार चमकी। वो कार रोनित के कार के आगे दौड़ने लग गई और कुछ ही पल में वह कार आग में घिर गई। कार के आग में घिरते ही कार एक पल के लिए रूकी, उसमें से आग में लिपटी हुई लड़की निकली।

वह रोनित-रोनित करके चिल्ला रही थी। उसे इस हालत में देख कर रोनित बौखला गया था, उसने तेजी से कार रोकी और झटके से कार में से झटके से बाहर निकला और आगे की ओर दौड़ा। उसे आगे दौड़ता पाकर वह लड़की पीछे हटी, मुश्किल से कार में बैठी और कार को आगे दौड़ा दी। रोनित पागल की तरह दौङ रहा था, वह चाहता था कि कैसे भी कार के नजदीक पहुंच जाए। उसका तो दिल ही बैठा जा रहा था, हलक सुख रहा था। तभी आगे बढती कार एक धमाके साथ हवा में उछली और फिर धड़ाम से सड़क पर टकराई। बहुत तेज धमाका हुआ।

धड़ाम- धड़ाम।

आवाज से इलाका दहल उठा, लेकिन एक तो सर्द रात, दूसरा वीराना। एक पल में ही कार के पार्ट-पार्ट बिखर गये। जबकि रोनित जहां पहुंचा था, वहीं घुटनों के बल बैठ कर फूट-फूट कर रोने लगा। उसका करुण क्रंदन दिल को दहलाने बाला था। लेकिन उसका क्रंदन सुनने बाला वहां आसपास कोई भी नहीं था। जबकि राघवन अपने प्लान को सफल होते देख कर मुस्करा उठा। उसने इस पूरे घटना क्रम की पूरी वीडियो ग्राफी कर ली थी। अब उसे अपने अगले कदम को अंजाम देना था।

उसने कार को आगे बढाया और अपने वेयर हाउस की ओर बढा दिया। अभी उसके आँखों में सफलता के रंग थे। आँखों के आगे पच्चीस लाख नगद नाच रहे थे। उसने म्यूजिक प्लेयर आँन कर दिया और गाना पर झूमता हुआ कार ड्राइव करने लगा। कार बहुत तेजी के साथ सड़क पर भागती रही। करीब आधे घंटे बाद उसकी कार वेयर हाउस पहुंच चुकी थी। उसने कार कंपाउन्ड में खड़ी की और शटर खोल कर गोडाउन के अंदर चला गया।

अंदर पहुंच कर उसने अपने आँफिस में कदम रखा और लैपटाप पर वीडियो को एडिट करने लगा। तभी वहां पर बांके ने कदम रखा, उसके हाथ में काला रंग की ब्रीफकेस थी। बांके ने आँफिस में कदम रखते ही सूटकेस टेबुल पर रखा और पास रखे कुर्सी पर रखा। इसके बाद दोनों में इधर-उधर की बातें होती रही। तब तक राघवन ने वीडियो तैयार कर लिया था। उसने बांके को वीडियो दिया, बदले में सूटकेस ले लिया और मुस्करा उठा।

*******

उसके बाद मैं उस वाकया को भूल चुका था। राघवन वर्तमान में आते हुए स्वाति से बोला।

जबकि उसकी बातें सुनकर राजन, मंजीत, अमोल और सौम्या के चेहरे पर नफरत उमड़ कर आ रहा था। अगर उनका बस चलता, तो वे चारों राघवन को कच्चा ही चबा जाते। जबकि स्वाति राघवन के आँखों में देखकर सर्द लहजे में बोली।

मिस्टर राघवन! जिसे तुमने जलाया, वह स्वाति तो मैं तुम्हारे सामने ही हूं। फिर तुमने किसको जलाया, वह भी तो बतलाओ। उसकी बातें सुनकर राघवन पहले तो घबराया, फिर बोला।

स्वाति मैडम! वो क्या है न कि रोनित को यह विश्वास दिलाने के लिये कि आप मर गई। मैं ने बहुत रेंकी की, तो पता चला कि अंकिता नाम की लड़की चोरी-चोरी रोनित को चाहती थी। अंकिता वैसे ही अनाथ लड़की थी, मुझे आसान लगा अपने कार्य को अंजाम देने में। धोखे से उस लड़की को ड्रग्स का नशा देकर उस लड़की को कार में बिठा दिया और कार में बम सेट कर दिया।

राघवन जब बोलकर चुप हुआ, तो स्वाति के आँखों में ज्वाला जलने लगी। उसने अपना रिवाल्वर राघवन के घूँटने पर लगा कर ट्रिंगर दबा दी। हल्की सी पीट की आवाज हुई और राघवन के घुटने में गोली धंस गई। तेज चीख निकली राघवन के होंठों से, जिसे राजन ने हाथ से दबा दिया। राघवन दर्द से बिलबिला उठा। तब क्रूर शब्दों में बोली।

मिस्टर राघवन! तुम इंसान ही नहीं हो, जानवर हो जानवर। जिंदा इंसान को जला देना, कितना भयावह है। अब तुम्हारी भलाई इसी में है कि बांके के बारे में बतला दो।

उसकी बातें सुनकर राघवन दर्द से बिलबिलाया और इतना ही बतला सका कि बांके कहां रहता है, इसके बारे में जानकारी नहीं है। तब स्वाति ने रिवाल्वर उसके हृदय पर रखा और ट्रिंगर दबा दिया। गोली राघवन के हृदय में धंस गई। असह पीड़ा से राघवन बिलबिलाया, लेकिन चीख नहीं सका । क्योंकि राजन ने उसके मुंह को दबा रखा था। वह दर्द से छटपटा रहा था। तभी स्वाति सर्द लहजे में बोली।

मिस्टर राघवन! वैसे तो तुम्हें भी उस लड़की की तरह ही आग के हवाले कर देना चाहिए। परन्तु अभी समय नहीं था, इसलिये आसान मौत दे रही हूं।

जबकि राघवन दर्द से बिलबिला रहा था, असह वेदना से उसकी आँख उलट गई थी और थोरे ही पल में वह छटपटा कर शांत हो गया। तब पांचों ने मिलकर साक्ष्य मिटाये, इसके बाद सड़क पर आकर गाड़ी में बैठ गए और गाड़ी को श्टार्ट करके एम्स की और दौड़ा दी।

*********

यमुना किनारे से लौटते समय धीरे-धीरे शाम का धून्धलका घिरने लगा था। आगे-आगे पुलिस की जिप्सी और पीछे- पीछे राजन की कार। लौटते समय उन लोगों ने अपना काफिला एक चाय की टपली के पास रोका और चाय पी। फिर से कार और जिप्सी सड़क पर दौड़ने लगी।

शाम का ढलना और अंधेरा छाना, मानों दिल्ली की सड़क पर गाड़ियों की भीड़ उमड़ पड़ी हो। भागती दिल्ली, दिल के धड़कन की तरह धड़कती हुई दिल्ली। रोशनी में नहाई हुई दिल बालों की दिल्ली। उन लोगों का काफिला तेजी से सड़क पर दौड़ता हुआ भागा जा रहा था। जब वे लोग एम्स हाँश्पीटल के कंपाउन्ड में पहुंचे। रात के आठ बज चुके थे, लेकिन एम्स का कंपाउन्ड तो रोशनी से नहाया हुआ था, वहां दिन सा प्रतीत हो रहा था।

उन लोगों ने गाड़ियों को पार्किंग में खड़ी की और गेश्ट रूम की ओर बढे। गेश्ट रूम में अनिरुद्ध साहब और मालती देवी उन लोगों का ही इंतजार कर रहे थे। वहां पहुंचते ही वे सभी सोफे पर पसर गए, तब मालती देवी उन लोगों से मुस्करा कर बोली।

बेटा! लगता है, आप सभी काफी थक गए हो। मैं एक काम करती हूं कि आप लोगों के लिए काँफी बनवा कर लाती हूं। उनकी बातें सुनकर राजन धीरे से बोला।

नहीं आंटी! आपको तकलीफ उठाने की जरूरत नहीं। यह हाँश्पीटल है और यहां अनेको प्रकार की परेशानी है।

अमा यार राजन! तुम भी न, कभी-कभी बहक जाते हो। भला आंटी को क्या तकलीफ होगी। इनके पास नौकरों की फौज है, इशारा भर किया और समान हाजिर। राजन की बातें सुनकर मंजीत तपाक से बोला। उसकी बातें सुनते ही सभी के होंठों पर हंसी तैर गई। तब मालती देवी मुसका कर बोली।

हां मंजीत बेटा! तुमने सही बोला, चिन्ता की बात सही में नहीं है। क्योंकि मेरी वेनिटी वान पार्किंग में ही है और उसमें सारी सुविधा है। साथ में हमारा रसोइया राकेश। अभी ठहरो, काँफी और नाश्ता मंगवाती हूं।

बोलकर मालती देवी ने मोबाइल निकाला और फोन करने लगी। जबकि राजन मंजीत को ऐसे देखने लगा, जैसे उसे कच्चा ही चबा जाएगा। बाकी सभी चुप थे। तभी स्वाति मालती देवी से मुखातिब हुई। उसे रोनित के हाल-चाल जानने थे, इसलिये उनसे मुखातिब होकर बोली।

आंटी! अब रोनित कैसा है? आई मिन उसे होश आया कि नहीं।

हां बेटा! अब वह बिल्कुल ही स्वस्थ है, शाम को ही उसे होश आ गया था। लेकिन डाक्टरों ने उसे नींद की गोली दे- दी है। शायद वह कल सुबह से बिल्कुल बात करने लगेगा, और हो सकता है रिलीज भी हो जाए।

अनिरुद्ध साहब की बातें सुनते ही स्वाति ने राहत की सांस ली। वो भयभीत थी कि कहीं वह कोमा से बाहर नहीं निकला तो? यह सवाल था कि उसे परेशान किए हुए था। लेकिन अब वो अनिरुद्ध साहब की बाते सुनकर निश्चिंत हो चुकी थी। उनकी बातें सुनकर सभी के चेहरे खिल उठे थे। एक भयानक हादसा, एक काली रात अब गुजर जाने बाला था। उसके बाद मुस्कराता हुआ सवेरा। राजन के चेहरे की खुशी देखते ही बनती थी। उसने जितनी मेहनत की थी, काश रोनित और स्वाति की जिन्दगी रंगों से भर जाए। बस हर-हर गंगा, उसे लगेगा कि उसने सबकुछ पा लिया।

उधर स्वाति सोच रही थी, उसके मन में घमासान मचा हुआ था। आखिर वह कौन था, जिसे उसके और रोनित के करीब आने से तकलीफ थी अथवा है। कौन हो सकता है वो? कौन, कहीं उसके पापा तो नहीं? नहीं-नहीं ऐसा नहीं हो सकता। उसके पापा ऐसा नहीं कर सकते, तो फिर दूसरा कौन? दूसरा कोई और होता, तो अब तक सामने आ चुका होता। सोचते-सोचते स्वाति परेशान हो गई थी। लेकिन उसे सत्य तो जानना ही था। तभी तो उस अंजान लड़की को न्याय मिलता, जिसे अकारण ही जला दिया गया था।

स्वाति विचारों के भंवर में फंसी थी, तभी राकेश ने वहां कदम रखा। इस समय उसके हाथ में बड़ा सा ट्रे था, जिसमें से भाप निकल रही थी। साथ ही सोंधी खुशबू आ रही थी। उसने आते ही सेंटर टेबुल पर ट्रे को रखा। उसका ट्रे रखना और सभी की नजर ट्रे पर गई। ट्रे के अंदर रखी प्लेटों में करारे तले हुए पकौड़े और काँफी का कप। नाश्ता देखते ही मंजीत कहां रुकने बाला था, वह नाश्ता पर टूट पड़ा । फिर तो सभी ने नाश्ता किया और काँफी पी। उसके बाद स्वाति राजन से बोली।

मिस्टर राजन! आप अगर फ्री हो, तो हम लोग चलते है।

लेकिन कहां? राजन चौंक कर बोला, फिर एक पल के लिए रुका, उसके बाद बोला। स्वाति! कहां चलना है और तुमने सिर्फ मुझे ही बोला या फिर सभी।

नहीं मिस्टर राजन! सिर्फ आप, वैसे मैं बांके को ढूंढने जा रही हूं और आप मदद कर सकते है इसमें। इसलिये आपको बोला है। उसकी बातें सुनकर स्वाति गंभीर होकर बोली। उसकी बातें सुनकर राजन एक पल सोचता रहा, फिर बोला।

वैसे स्वाति! मुझे साथ चलने में कोई आपत्ति नहीं है। लेकिन मेरे विचार से आप मंजीत को भी साथ ले-लेती तो बेहतर होता।

कोई बात नहीं, मंजीत को भी साथ ले-लेते है । मैं ने तो इस कारण से बोला था कि आज दिन की भागदौड़ से इन लोगों को थकावट हो चुकी होगी। स्वाति धीरे से बोली।

मैडम! मुझे थकावट नहीं होती। मैं तो अपने दोस्तों की छायाचित्र हूं। आप तो बस इतना ही समझ लीजिए। स्वाति की बातें सुनकर मंजीत खीसें निपोड़ कर बोला।

उसकी बात खतम भी नहीं हुई थी कि स्वाति उठ खड़ी हुई और गेश्ट रूम से बाहर निकली। उसे चलता देख राजन और मंजीत भी उठे और उसके पीछे लपके। फिर वे लोग पार्किंग में आ गये, पार्किंग में आते ही राजन ने स्वाति की ओर देखा, मानो पुछ रहा हो कि आप जिप्सी में चलेगी या कार में। स्वाति उसके मनोभाव समझ गई। उसने कार की ओर इशारा किया और तीनों कार की ओर बढे। मंजीत और स्वाति पिछली शीट पर बैठे, जबकि राजन ने ड्राइविंग शीट संभाल ली। कार में बैठते ही राजन ने कार को पार्किंग से निकाला और सड़क पर दौड़ा दी।

कार सड़क पर आते ही फूल रफ्तार से दौड़ने लगी। साथ ही राजन ने धीमी आवाज में म्यूजिक प्लेयर आँन कर दिया। रात के नौ बज चुके थे, ऐसे में दिल्ली की सड़क कुछ खाली सी हुई थी, लेकिन अभी रफ्तार धीमी नहीं हुई थी। कार ड्राइव करते हुए राजन ने मिरर में स्वाति के चेहरे को देखा, फिर बोला।

स्वाति! एक बात बतलाओगी, पुछें?

जरूर! जानकारी हुई, तो जरूर बताऊँगी।

सही-सही बतलाना स्वाति, तुम्हारे पिता पुलिस कमिश्नर है न? स्वाति की बातें सुनकर राजन फिर से बोला। उसकी बातें सुनकर स्वाति एक पल मौन रही, फिर बोली।

हां है, अभिनव गर्ग, उनका नाम अभिनव गर्ग है और अभी वे हरियाना में कार्यरत है, डी.जी.पी के पोस्ट पर। लेकिन तुम किसलिये पुछ रहे हो? स्वाति ने बोलने के साथ ही राजन की ओर देखकर प्रश्न किया। उसकी बातें सुनकर राजन मुसकाया और फिर बात पलट गया।

नहीं स्वाति! मैं तो बस ऐसे ही पुछा था, खैर तुम इतना तो बतलाओ कि अपना यार रोनित तुम्हें पसंद है कि नहीं।

उसकी बातें सुनकर स्वाति शर्मा गई, उसने राजन के इस प्रश्न का जबाव नहीं दिया। जबकि उसके चेहरे पर छाई शर्माहट की लालिमा देखकर राजन सबकुछ समझ गया। जबकि स्वाति सोचने लगी, कहीं राजन को उसके पिता पर शक तो नहीं है, नहीं तो उनके बारे में क्योंकर पुछता। भले ही राजन ने अपने बात करने की धारा पलट दी थी, परन्तु स्वाति के लिये इतना ही समझाने के लिए काफी था।

जबकि मंजीत कुछ और ही सोच रहा था। अभी तक रोनित के केस में जितनी भी प्रगति हुई थी। उसमें राजन, अमोल और उसके खुद की मेहनत थी। कहीं ऐसा तो नहीं कि स्वाति अपने पिता से मिली हुई हो। आखिरकार उसका पिता है, वो अपने पिता को क्यों फंसाना चाहेगी। कहीं इसलिये उन लोगों को निपटाने का इरादा तो नहीं कर लिया है। कहीं ऐसा हुआ, तो आज राजन और वो खुद, बहुत बुरे फंसे। संभव है कि ऐसा ही हो, नहीं तो स्वाति ने सबूत राघवन को क्यों मिटा दिया।

उधर राजन कार को सड़क पर दौड़ाएँ जा रहा था। इसके बाद उन लोगों ने शहर के कई जगहों पर धावा बोला। लेकिन बांके का कहीं पता नहीं चला। जहां भी उनको शंका थी, वहां पहुंच गये। लेकिन बांके तो क्या, उसकी परछाईं भी नहीं मिली। रात का आलम धीरे- धीरे गहराता जा रहा था और उसी रफ्तार से उन लोगों के चेहरे पर परेशानी भी बढती जा रही थी।

*********

रात का आलम गहराता जा रहा था।

उनकी कार सड़क पर भागी जा रही थी।

गहराते हुए रात के साथ ही उन तीनों के चेहरे पर बेचैनी भी बढती जा रही थी। कार ड्राइव करते हुए राजन सोच रहा था कि आज ही तो श्रेया आई है और आज ही वह टुर पर है। जबकि आज उसे तो श्रेया के बांहों में होना चाहिए। बहुत दिन हो चुके थे श्रेया के बांहों में समाये हुए। उसने वैसे तो श्रेया को काँल करके बतला दिया था कि वह आज किसी काम से बाहर है, देर रात लौटेगा।

लेकिन कब लौटेगा? उसे खुद ही मालूम नहीं था। लेकिन वह क्या कर सकता था, आज वह जिस काम पर निकला था। उसका कोई अता-पता ही नहीं था। न जाने कब बांके मिलेगा? कमीना कहां जाकर छिप गया। उसे खोजना, मतलब सुई को भूसे के ढेर से निकालना। जबकि मंजीत अलग ही सोच रहा था।

रात की अधिकता बढने के साथ ही वह डरने लगा था। सोच रहा था कि कहीं बांके को ढूंढने के बहाने कहीं उसे निपटाने का प्लान तो नहीं बनाया है। ऐसा ही है, नहीं तो ऐसे ही इतनी रात तक शहर में घुमाए जा रही है। अगर ऐसा नहीं होता, तो बांके को कल दिन में ही ढूंढा जा सकता था। वह सोच ही रहा था कि राजन ने कार रोकी। कार रुकते ही मंजीत चौंका और चौंक कर देखा। कार चाय की टपली पर रूकी थी।

कार रुकते ही मंजीत ने कलाईं घङी की ओर देखा। रात के एक बज चुके थे, समय देख कर वो हांफी लेने लगा। तभी उसने देखा कि राजन और स्वाति कार से उतर रहे है। वह भी तेजी के साथ कार के बाहर निकला। फिर उन लोगों ने चाय की टपली पर जाकर चाय पी और फिर से कार में बैठ कर आगे चल पड़े । कार सड़क पर आगे की ओर भागी जा रही थी। उन लोगों के चेहरे से प्रतीत हो रहा था कि अब थकावट उन पर हावी हो रहा है। ऐसे में राजन को नींद न आ जाए, इस उद्देश्य से स्वाति उसके चेहरे को देखकर बोली।

मिस्टर राजन! अब क्या किया जाए? हम लोग शहर का कोना-कोना छान चुके है, लेकिन अब तक बांके की परछाईं भी नहीं दिखी।

मिलेगा जरूर स्वाति! अब तक भले ही वह नहीं मिला हो। लेकिन हम लोगों को हार नहीं माननी चाहिए। जब हम लोगों ने इतनी मेहनत की है,तो थोरा और सही। राजन उसकी बातें सुनकर सहज ही बोला। उसकी बातों से ऐसा प्रतीत हो रहा था कि वो हर हाल में बांके को ढूंढना चाहता है।

जबकि उसकी बातें सुनते ही मंजीत चिढ गया। क्या भला, स्वाति शायद लौटने के लिए ही बोलने बाली थी। लेकिन आखिर राजन को क्या सुझा, वह भी इंसान है क्या? उसको खुजली के कीड़े क्यों काटते है। चुप रह जाता, तो उसका क्या बिगड़ जाता। मंजीत सोच ही रहा था कि स्वाति ने राजन को कार बांके के घर की ओर लेने को बोला। मंजीत ने जैसे ही स्वाति की बात सुनी, उसका दिल बैठने लगा। शायद स्वाति ने उन दोनों को निपटाने के लिये जगह मुकर्रर कर लिया है।

वह सोच ही रहा था कि उनकी कार गलीच एरिया में प्रवेश कर गई। शहर की अपेक्षा वहां थोरा अंधेरा था। दूर तक जाती पतली सड़क, सड़क के किनारे दोनों तरफ पक्के मकान। उनकी कार पतली सड़क पर रेंगती हुई कच्चे मकान के सामने रूकी। कार रुकते ही तीनों बाहर निकले और वहीं पर खड़ा होकर मकान देखने लगे।

खपरैल मकान, हां दीवाल जरूर ईंट की थी, जिसपर चढा हुआ प्लास्टर कई जगहों से उखड़ा हुआ था। तीनों ने एक बार ध्यान पूर्वक उस मकान को, उसके आस-पास के एरिया को देखा और मकान की ओर बढे। दरवाजे के पास पहुंच कर जैसे ही राजन ने मकान के मुख्य द्वार को छूआ। दरवाजा हल्की आवाज के साथ खुल गया।

अंदर रूम में घना अँधेरा था, ऐसे में मंजीत ने प्रयास किया और टटोल कर स्वीच बोर्ड की सभी स्वीच आँन कर दी। पूरा कमरा प्रकाश से भर गया, लेकिन प्रकाश होते ही मंजीत चीख पड़ा । कारण फर्श पर बांके का खून से सना हुई लाश पड़ी थी। उसकी लाश देखकर मंजीत चीखा था। उसे चीखता पाकर राजन और स्वाति ने भी कमरे में कदम रखा। वहां का दृश्य वास्तव में भयावह था। बांके की लाश देखकर दोनों ही चौंके और एक दूसरे के चेहरे की ओर देखा।

हालात क्रिटीकल थे, ऐसे में स्वाति ने राजन एवं मंजीत को बाहर जाकर कार में बैठकर इंतजार करने को बोला और उन दोनों के जाते ही नजदीक के पुलिस स्टेशन को काँल किया और वहां के हालात समझाने लगी। इसके बाद फोन डिस्कनेक्ट होते ही कमरे की तलाशी लेने लगी। वह ताजा हालात को लेकर काफी परेशान थी। उसके पास एक ही तो सुबूत था बांके, जिसके द्वारा उसके शंका का समाधान हो सकता था। ऐसे में वह काफी प्रयास कर रही थी कि कोई तो सबूत मिले, जिसके बिना पर अपराधी तक पहुंचा जा सके।

आखिरकार वो अपने प्रयास में सफल भी हुई, खोजते-खोजते दराज से उसके हाथ पेन ड्राइव लगा। पेन ड्राइव देखते ही उसके होंठों पर मुस्कान छा गई। अब उसका वहां पर रुकना बेकार ही था, इसलिये वह कार की ओर बढी। उसे कार की ओर आता देख मंजीत और राजन चौके। राजन सोच रहा था कि पुलिस बाली है, पुलिस बालों के आने का इंतजार करेगी। जबकि मंजीत सोच रहा था। अजीब खूनी लड़की है, रास्ते के सभी सबूत मिटाती जा रही है। बांके निपट गया है, शायद अब उन लोगों की बारी है।

वे दोनों सोच ही रहे थे कि स्वाति कार की ओर बढी थी। ऐसे में उनके विचार को सहसा ब्रेक लगा था, इसलिये दोनों चौंके थे। जबकि स्वाति आगे बढी और कार के पास पहुंचते ही कार में बैठ गई और राजन से चलने के लिये कहा। उसकी बातें सुनकर राजन ने उसकी ओर देखा, मानों पुछना चाहता हो, किधर चलना है।

रात के दो बज चुके है, ऐसे में हम लोगों को हाँश्पीटल ही चलना चाहिए। स्वाति उसका मंतब्य समझ कर बोली।

लेकिन स्वाति! बांके की डेड बाँडी ऐसे ही छोड़ कर जाना हम लोगों के लिए उचित रहेगा। उसकी बात सुनकर राजन शंकित स्वर में बोला।

इसकी टेंशन करने की जरूरत नहीं है। मैं ने नजदीक के पुलिस स्टेशन को इत्तला कर दी है। वे लोग आते ही होंगे और आते ही परिस्थिति संभाल लेंगे। स्वाति बोलने के बाद एक पल रूकी, फिर बोली। वैसे हम लोगों का यहां पर आना बेकार नहीं गया। बांके के रूम में मुझे एक चीज हाथ लगी है।

क्या हाथ लगा है? बताओगी! राजन उत्तेजित होकर बोला।

उसकी बातें सुनकर स्वाति मुस्कराई, फिर उसने बताया कि उन लोगों के निकलने के बाद वह उस रूम में क्या कर रही थी। स्वाति अपनी बात बतलाती जा रही थी, जबकि राजन ने कार श्टार्ट किया और आगे बढा दिया। जबकि पिछली शीट पर बैठा मंजीत झोंकें खा रहा था। उसे जोर की नींद आ रही थी, लेकिन इस केस में हो रहे मर्डर से वो इतना डर गया था कि भरपूर प्रयास कर रहा था कि नींद नहीं आए।

रात के करीब तीन बजे उनकी कार एम्स के कंपाउन्ड में पहुंची। मंजीत ने भले ही प्रयास किया था जगने के लिये। लेकिन इस समय वह नींद के आगोश में समाया हुआ था। उसे सोया हुआ देख राजन ने उसे कार में ऐसे ही छोड़ दिया और कार से उतरा। तब तक स्वाति भी कार से निकल चुकी थी। फिर दोनों गेश्ट रूम की ओर बढे। वहां पहुंच कर देखा, तो अनिरुद्ध साहब और मालती देवी सोई हुई थी, जबकि सौम्या एवं अमोल बैठकर लैपटाप चला रहे थे।

उन दोनों के हाँल में कदम रखते ही सौम्या की नजर उनपर गई। वो चौंक उठी, उसे चौंकता देख राजन ने इशारे से समझाया कि शोर न करें। वह नहीं चाहता था कि अनिरुद्ध साहब की नींद खराब हो। इसलिये दोनों धीमी कदमों से आगे बढे और सोफे पर बैठ गए। तब अमोल राजन से धीमी आवाज में बातें करने लगा, जबकि स्वाति ने सौम्या से लैपटाप लिया और पेन ड्राइव लगाकर छेड़छाड़ करने लगी। शायद वह उसमें से काम की चीज ढूंढ रही थी।

********

सुबह के पौ फटने लगा था।

एम्स का गेश्ट रूम, राकेश ने काँफी की ट्रे ली और गेश्ट रूम की ओर बढा। उसे अच्छी तरह मालूम था कि अनिरुद्ध साहब को सब से पहले काँफी ही चाहिए, उसके बाद ही उनका सुबह होता है।

राकेश अपने स्वामी का परम भक्त था। उसे अपने स्वामी के हरेक जरूरतों का पता था, उसके पास उनके दैनिक कार्यों की लिश्ट थी। इसलिये पौ फटने से पहले ही वह काँफी बना कर गेश्ट रूम में पहुंच गया। लेकिन वहां पहुंचने पर उसने देखा कि सभी चैन की नींद सोए हुए है। जबकि उसके रूम में कदम रखते ही स्वाति की आँख खुल गई। हड़बड़ा कर वो तुरंत ही सजग होकर बैठ गई। तब उसने नजर घुमाया, देखा तो राजन अलग बेसुध था। अमोल और सौम्या एक दूसरे से टिके हुए सोए थे। जबकि अनिरुद्ध साहब एवं मालती देवी सोफे पर पसरे हुए थे।

जबकि उसने खुद को देखा, उसके गोद में रखा हुआ लैपटाप अभी तक आँन ही थी। उफ! शायद देर रात काम करते-करते कब नींद के आगोश में समा गई, उसे पता ही नहीं चला । तभी स्वाति की नजर राकेश पर गई, उसने उसे इशारे से समझाया कि काँफी की ट्रे टेबुल पर रख दे और जाए। राकेश ने वही किया, ट्रे को टेबुल पर टिकाया और उलटे पांव लौट गया। तब स्वाति अपने जगह से उठी और राजन के कंधे को पकड़ कर हिलाया।

राजन चिहुँक कर उठा और जैसे ही स्वाति पर नजर गई, संभल गया। इसके बाद उन दोनों ने बारी-बारी सभी को जगा दिया। नींद खुलने के साथ ही सामने काँफी का कप, सभी कप उठा कर पीने लगे। तभी रूम में बौखलाए हुए मंजीत ने कदम रखा। उसकी बौखलाहट किसी से छिपी नहीं रह सकी। जबकि वह सीधे आकर राजन के करीब बैठ गया और कप उठा ली। जबकि अनिरुद्ध साहब उसे देखकर बोले।

क्या बात है मंजीत बेटा! बाहर से आ रहे हो। कहीं गए हुए थे क्या? और चेहरे पर बौखलाहट कैसी?

अंकल! मैं क्या बताऊँ, यह तो आप राजन से पुछिए। उनकी बाते सुनकर मंजीत बोला, लेकिन बोलते-बोलते उसकी आवाज तल्ख हो गई। उसके आवाज की तल्खी राजन समझ चुका था। इसलिये उसे देखते हुए धीरे से बोला।

अमा यार मंजीत! तू भी न, बेवजह की बातों से नाराज हो रहा है। तू गहरी नींद में था, इसलिये छोड़ दिया। उसकी बातें सुनकर मंजीत कुछ भी बोला नहीं, जबकि तिरछी नजर से उसे देखता रहा।

तब तक उन लोगों की काँफी खतम हो चुकी थी और अब वे लोग रोनित से मिलने के लिए जा रहे थे। रोनित को आई. सी. यु से शिफ्ट करके साधारण रूम में डाल दिया गया था। वे लोग जब रूम में पहुंचे, रोनित तकिए का टेक लगाए बैठा था। जैसे ही उन लोगों ने वहां कदम रखा, रोनित के होंठों पर मुस्कान फैल गई। इसके बाद वे लोग बहुत देर तक बातें करते रहे। लेकिन रोनित की नजर छिप-छिप कर स्वाति पर चली जाती थी। चोरी- चोरी नजरें मिलती रही, समय बीतता रहा।

करीब सुबह के सात बजते ही राजन और स्वाति ने उन लोगों से विदा ली। जब राजन चलने लगा, तो मंजीत भी साथ हो गया। फिर वे लोग आकर कार में बैठे और कार आगे बढा दी। कार ने जैसे रफ्तार पकड़ी, स्वाति ने उसे बताया कि उसे किसी माँल में छोड़ दे। उसके बाद वो सोचने लगी, अब क्या करना है? सवाल है कि इस सारे प्रकरण से कैसे पर्दा उठाए।

तभी शॉपिंग माँल आ गया, शाँपिंग माँल आते ही स्वाति कार से उतर गई। कार फिर से आगे बढी, फिर राजन ने मंजीत को भी उसके घर पर ड्राँप किया। फिर अपने घर की ओर कार दौड़ाने लगा। आज उसके मन में शांति थी, उसने जो चाहा था। वह हो चुका था, अब तो बस रोनित और स्वाति की शादी हो जाए। बस गंगा नारायण, उसके बाद वह अमोल और सौम्या को भी एक कर देगा। सोच कर राजन होंठों ही होंठों में मुस्करा रहा था।

तभी कार उसके घर के सामने पहुंच गई, उसने कार अहाते में खड़ी की और मुख्य द्वार की ओर बढा। जब वो हाँल में पहुंचा, श्रेया उसके पास पहुंच गई। श्रेया को देखते ही उसके हृदय की भावना भड़क गई। सच पत्नी श्री के बिना जिन्दगी वीरान खण्डहर सी है, एक वही तो है, जिसके आने से जीवन गुलजार हो जाता है। वह आगे बढा और श्रेया को बांहों में भर कर गोद में उठा लिया और उसके कान में धीरे से बोला।

श्रीमति जी! एक आप और एक मैं। आपके बिना तो जीवन अधूरा -अधूरा सा लगता है।

ऐसी बात! मेरे प्राण नाथ, आप तो अभी कवि महाराज हो चुके है। मेरा मायका जाना, आपके उपर तो कमाल कर गया लगता है।

जी श्रीमति जी! आपका एक-एक शब्द अक्षरशः सही है। आपके वियोग ने तो सच में मुझे कवि ही बना दिया। श्रेया की बातें सुनकर राजन ने शरगोशी की। उसके बाद उसने अपने लव को श्रेया के लव पर टिका दिए।

एक अजीब सी प्यास जो कब से बढती जा रही थी, बढती जा रही थी। कब से दबी हुई थी, लवों के जुड़ने से भड़क उठी। ये जो इश्क की प्यास है न, अजीब है। जब भड़कती है, तो फिर बुझाए नहीं बुझती। यह इश्क ही तो है, जिसकी पूरी दुनिया दीवानी है। इश्क का शरमाया जिस पर होता है, उसका जीवन गुलजार हो जाता है और जिसके जीवन में प्रेम नहीं है। उसका जीवन अधूरा है, वीराना सा है।

ऐसे करीब दस मिनट तक रहा, उसके बाद श्रेया उससे अलग हुई और किचन में चली गई। जबकि राजन लीविंग रूम में ही सोफे पर बैठ गया और सोचने लगा। सच ही तो है, पत्नी मायके जाए, तो पति के लिए सांस लेना भी दूभर हो जाता है। जब तक श्रेया अपने मायके में रही, उसने कैसे-कैसे कर के दिन गुजारे है। एक उसका दिल जानता है, दूसरे भगवान जानते है। काश कि पत्नी जब भी अपने मायके जाए, अपने पति देव को भी साथ लेकर जाए।

राजन इन्हीं बातों को सोच रहा था कि श्रेया काँफी का कप लेकर आ गई। राजन ने उसके हाथों से कप लिया और पीने लगा। तब श्रेया ने उसे बोला कि वो जल्द जाकर वाथरुम में फ्रेश हो ले, वह उसके लिए नाश्ता तैयार कर रही है। पत्नी श्री का आदेश, राजन ने काँफी खतम किया और वाथरुम की ओर बढा। जबकि श्रेया किचन की ओर बढ गई। समय अपनी रफ्तार से आगे की ओर भागता रहा। करीब दस मिनट ही गुजरे होंगे कि डोर बेल बजी। डोर बेल की आवाज सुनकर श्रेया दौड़कर आई और दरवाजा खोला।

सामने अपने ससुर को देखकर शर्मा गई। उसने माथे पर पल्लू रख लिया और उनके चरण में झुक गई। जबकि कर्नल साहब ने उसे आशीर्वाद दिया और तेजी से आगे बढे। वे जैसे ही लीविंग रूम में पहुंचे, राजन को पुकारने लगे। अपने पिता की आवाज सुनकर राजन की तो सीट्टी- पीट्टी गुम हो गई। वह तौलिया लपेटे ही वाथरुम से निकला और पिता के चरणों में झुक गया। जबकि कर्नल साहब ने उसके कान पकड़ लिए और उठाया और चेहरा सामने आते ही बोले।

छोरा जवान हो गया है के! अब तो कमाने भी लगा है। सरकारी नौकरी लग गई है छोकरे की, माता-पिता को भूल ही जाएगा न। उनकी बातें सुनकर राजन के आँखों में आँसू छलक पड़े । उसने अपने कान छुड़ाने की असफल कोशिश करता हुआ बोला।

छोड़िए न बाऊजी! बहुत ही दर्द हो रहा है।

दरद होवे है तो का करें? उनकी बातें सुनकर कर्नल साहब मुस्करा कर बोले और उसके कान छोड़ कर हृदय से लगा लिया।

इसके बाद राजन ने उन्हें सोफे पर बिठाया और उनके कदम के पास जमीन पर बैठ कर ही उनके पांव दबाने लगा। साथ ही उनको बतलाने लगा कि किस कारण से वो नौकरी पर से आने के बावजूद घर नहीं आ सका। उसने बतलाया कि इन बीस दिनों के अंदर दिल्ली में क्या-क्या घटित हुआ। राजन को अपने पिता की सेवा में लगा देख श्रेया किचन की ओर लपकी। उसे मालूम था कि बाऊजी को काँफी की तलब लगी होगी। जबकि राजन उनके पांव दबाता रहा, अनवरत।

*********

स्वाति शाँपिंग माँल में अपने जरूरत के समान ले रही थी। उसने फैसला कर लिया था कि वह दिल्ली के बंगले पर ही फिलहाल कुछ दिनों तक रहेगी और संभव हुआ तो तबादला भी दिल्ली में ही करवा लेगी। रोनित को उसने खोने के बाद पाया था और फिर से उसे खोना नहीं चाहती थी। इसलिये अपने दैनिक जरूरतों के चीजों को उसने खरीदना जरूरी समझा था। इसलिये ही तो वो शाँपिंग करने आई थी।

लेकिन एक सवाल था, जो उसके दिमाग में घूम रहा था कि आगे क्या? मधुशाला” मामले को वो बहुत हद तक समझ चुकी थी। परन्तु वह क्या करें? बात सिर्फ रोनित को परेशान करने की होती, कोई बात नहीं। परन्तु उसे जान से मारने की कोशिश की गई थी। फिर उस अनाथ लड़की का क्या कसूर था कि उसे जिंदा ही आग में जला दिया गया था? अपने अहं को संतुष्ट करने के लिये कोई ऐसा करता है क्या? यह तो पशुवत् व्यवहार है और ऐसे व्यवहार का आचरण करने बाले को छोड़ना भी तो अपराध है। लेकिन कैसे? वह कैसे कठोर कदम उठाए। धर्म संकट उसके सामने आकर खड़ा था, बल्कि विकट रूप ले चुका था।

वह इतना तो समझ चुकी थी कि उसके लिए आगे की राह इतना आसान नहीं है। ऐसे समय में उसे गीता में श्री कृष्ण द्वारा कहे शब्द याद आ रहे थे कि मानव को सिर्फ कर्म करना चाहिए, जो उसके लिए निर्धारित हो चुका है। चाहे परिणाम जैसा हो, इंसान को अपने कर्म से विमुख नहीं होना चाहिए। लेकिन ज्ञान की बातें कितनी भी सही क्यों न हो, हकीकत के धरातल पर निभाना अत्यंत ही दुष्कर होता है। भले ही दुष्कर हो, परन्तु उसे कदम आगे तो बढाने ही होंगे।

स्वाति समान रैक से उठा कर टोकरी में रख तो रही थी। लेकिन उसका मन कहीं और खोया हुआ था। वो अंतर्द्वंद्व के भंवर जाल में उलझी थी। तभी हल्का सा शोर हुआ और वो चौंक उठी। उफ! यह विचार भी न, इंसान को चैन से जीने नहीं देता। सोच कर स्वाति ने समान की कैरी टोकरी को खींचा और बील काऊंटर की ओर बढ गई। काऊंटर से बील बनवाया और काऊंटर पर ही बतला दिया कि समान उसके कार में पहुंचा दिया जाए। फिर वो शाँपिंग माँल से बाहर निकली।

तब तक उसके ड्राइवर ने कार लाकर उसके सामने खड़ा कर दिया। वह कार में बैठी, तब तक शाँपिंग माँल का डिलीवरी ब्वाय उसके समान की थैली लाकर उसके कार में रख दिया था। फिर कार चल पड़ी और कार चलने के साथ ही स्वाति के विचार भी गति करने लगे। वह अपने आप को तैयार कर रही थी, अपने हृदय को कठोर कर रही थी। उसे जो कार्य करना था, वह अत्यंत ही कठिन था। इसलिये उसे अपने हृदय को आघात सहने के लिए तैयार करना था।

वह विचारो में खोई थी और कार दिल्ली की सड़क को रौंदते हुए आगे भागी जा रही थी। दिल्ली शहर, अपने आप में भागता हुआ । उसकी कार सफर कर के जब उसके बंगले पर पहुंची, दिन के दो बज चुके थे। कार उसके बंगले राधा अपार्ट मेंट के सामने खड़ी हो चुकी थी। ऐसे में स्वाति कार से बाहर निकली और देखा, उसके बंगले का मेन गेट खुला था। वह पहले तो चौंकी, फिर समझ गई कि उसके पिता पहुंच चुके है।

वह आगे बढी और जब हाँल में पहुंची, चौंक उठी। उसके पिता पुरुषोत्तम गर्ग हाँल में सोफे पर बैठे शराब की चुस्की ले रहे थे। उनके सामने टेबुल पर शराब की बोतल, भुनी काजू की प्लेट और शिगरेट की पैकेट रखी हुई थी। इस समय वे आराम से शराब की चुस्की ले रहे थे। स्वाति उनके पास पहुंची, लेकिन वे अपने कार्य में लगे रहे । उनके व्यवहार से ऐसा ही प्रतीत हो रहा था कि वे जान बुझ कर उसके आने को इग्नोर कर रहे थे और शराब पीने में व्यस्त थे।

पुरुषोत्तम गर्ग, अट्ठावन वर्ष के करीब, गठा हुआ शरीर। घने सफेद बाल, नीली आँख और गोल चेहरा। उसपर गौर वर्ण, सुन्दर और आकर्षक व्यक्तित्व था। ऐसे में शराब का नशा, हल्का-हल्का असर उनपर होता जा रहा था। उन्हें इस तरह से अंजान बैठा देख स्वाति उनके और समीप पहुंच गई और उनसे सट कर सोफे पर बैठ गई। जब वो उनके समीप बैठी, वे पलटे और उनकी आँखों में देखा और मुस्करा कर बोले।

बेटा! तुमने जो अपने मन की करनी थी, करके आ गई न।

हां पापा! मैं तो अपने मन की कर आई। परन्तु आपने भी छोड़ा कहां। आपने भी तो जो करनी थी, अपने मन की कर ही ली न। स्वाति उनकी बातें सुनकर उनकी आँखों में देख कर धीरे से बोली।

इसका मतलब कि तू सारी बातें जान चुकी है। पुरुषोत्तम साहब बोले। फिर गिलास की बाकी शराब हलक में गटक ली। फिर अपने लिए पैग तैयार करने लगे और पैग तैयार होने के बाद शिगरेट निकाल कर होंठों से लगाया। एक लंबी कश खींची और धुआँ का गुबार छोड़ कर उसकी आँखों में देखने लगे। उन्हें ऐसे देखते पाकर स्वाति ने अपनी नजर झुका ली और बोली।

पापा! आपने किसलिये ऐसा कदम उठाया। आपने ऐसा क्यों किया पापा! बोलिये न पापा, आपने ऐसा किसलिये किया। प्रश्न अति गंभीर था, जो स्वाति पुछ रही थी। परन्तु यह जो सवाल उभर कर आया था, उसके जबाव भी तो देना जरूरी थी।

बेटा स्वाति! तू इकलौती संतान थी मेरे लिये और मैं नहीं चाहता था कि तू परिवार में उलझ कर अपनी जिन्दगी बर्बाद करें बेटा। स्वाति की बातें सुनकर पुरुषोत्तम साहब बहुत कठिनता से अपने शब्दों को बोल सके। उनकी बातें सुनकर स्वाति उनके आँखों में एक पल तक देखती रही, फिर बोली।

पापा! लेकिन रोनित में ऐसी क्या कमी थी कि आपने उसे मेरे उपयुक्त नहीं समझा और अलग करने के लिए षड्यंत्र रच डाला। मुझे समझ नहीं आता कि आप उसके खून के प्यासे क्यों हो गए।

बस स्वाति बेटा! तुम इसे एक पिता का स्वार्थ कहो, या अपने संतान के प्रति चिन्ता। बस जो समझ में आया, उस कार्य को अंजाम दे-दिया। पुरुषोत्तम साहब ज्यादा देर तक स्वाति से नजर नहीं मिला सके, इसलिये नजर को झुकाकर बोले। उनकी बातें मानों स्वाति को चुभ रही थी। हिम्मत जबाव दे रहा था, लेकिन अभी प्रश्न तो बाकी ही थे, जिसका जबाव वो जानना चाहती थी। इसलिये मुश्किल से अपने शब्द तौल-तौल कर बोली।

लेकिन पापा! उस अनाथ लड़की अंकिता की गलती क्या थी? क्या वो अनाथ थी, इसलिये आपने उसे जिंदा ही जलवा दिया। शायद वो अनाथ थी और कोई खोज- खबर भी नहीं लेने बाला था। इसलिये आराम से सबूत भी मिटा दिया आपने। स्वाति बोलने को तो बोल गई, लेकिन उनके गोद में सिर रख लिया और सोफे पर लुढ़क कर रोने लगी। उसका करुण क्रंदन, मानो पुरुषोत्तम साहब के सब्र का बांध टूट गया। वे स्वाति के बालों में अपनी अंगुली फेरते हुए कठोर शब्दों में बोले।

स्वाति बेटा! तुम्हारे इस सवाल का जबाव शायद मेरे पास नहीं है। परन्तु बेटा! गलती तो हुई है और गलती भी ऐसी कि माफी करने योग्य नहीं है। बेटा! मैं ने अपने स्वार्थ की खातिर अंकिता जैसी भोली लड़की की क्रूर हत्या की है और इसके लिए जितनी भी सजा दी जाए, कम ही होगा। अब बेटा! तुम्हारे सामने बोलने लायक भी तो नहीं रहा। अंतिम के शब्द पुरुषोत्तम साहब बहुत ही कठिनता से बोले। उसके बाद मौन हो गए।

पापा! आपको मुझे रोनित से दूर ही रखना था, तो एक बार मुझे तो बतलाया तो होता। मैं रोनित के परछाईं से भी दूर हो जाती। आपको अपराध करने की जरूरत क्या थी। स्वाति उनकी बातें सुनकर सुबकते हुए बोली। उनकी बातें सुनकर पुरुषोत्तम साहब बोले।

बेटा! मैं जानता हूं कि तू मुझे गिरफ्तार करने आई है। लेकिन इससे पहले अपने हाथों की काँफी तो पिला दे।

इस बार पुरुषोत्तम साहब ने धीरे से कहा। उनकी बातें सुनकर स्वाति उठ खड़ी हुई। उसने अपने आँसू पोंछे और किचन की ओर बढ गई। जबकि पुरुषोत्तम साहब मौन होकर उसका इंतजार करने लगे। इस समय उनकी आँखें शून्य में टिकी थी। करीब दस मिनट बाद स्वाति काँफी बनाकर ले आई। स्वाति के आते ही पुरुषोत्तम साहब ने कप थाम लिया और काँफी गटकने लगे। स्वाति खड़ी होकर देखने लगी, लेकिन यह क्या, पुरुषोत्तम साहब का शरीर कांपने लगा। होंठों से झाग निकलने लगा और स्वाति जब तक समझती, वे सोफे पर लुढ़क गए।

उनका होंठ नीला पड़ चुका था, शायद उन्होंने जहर खा ली थी और अब जहर ने असर दिखा दिया था। एक पल तो स्वाति समझ ही न सकी और समझी तो बौखला गई। लेकिन तब तक बहुत देर हो चुका था। स्वाति पुरुषोत्तम साहब से लिपट कर रोने लगी। उसके सब्र का बांध टूट गया, नयनों से गंगा-जमुना बहने लगे। तभी गेट से मंजीत और राजन ने प्रवेश किया। उन दोनों ने वहां का वार्तालाप सुन लिया था और अब स्वाति को संभालने की कोशिश कर रहे थे।

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दोपहर के तीन बज चुके थे।

स्वाति पर तो जैसे दुःख का पहाड़ टूट पड़ा था।

उसने जिस चीज की कल्पना भी नहीं की थी, उसके साथ घटित हो चुका था। वह तो ऐसा बिल्कुल भी नहीं चाहती थी। वह तो चाहती थी कि उसके पिता अपना अपराध स्वीकार कर लें और विधि सम्मत दंड का वहन करें। उसने ऐसी तो कल्पना भी नहीं की थी कि उसके पिता इतने कमजोर निकलेंगे कि परिस्थिति से संघर्ष करने की बजाए कायरता भरा रास्ता चुन लेंगे।

लेकिन विधाता को शायद कुछ और ही मंजूर था। आज पूरा शहर दीवाली की खुशियां मना रहा था। मिठाई बांटे जा रहे थे, रंगोली बनाई जा रही थी। शाम को शहर दीप माला में सजकर जगमगा उठेगा। आनंद का माहौल होगा। लक्ष्मी माता की लोग पुजा करेंगे, लेकिन वह क्या करें? उस पर तो जैसे गम के बादल बरस चुके थे। आज वह अनाथ हो गई थी, उसके सिर से उसके पिता का साया छिन गया था।

वह अपने आँसू रोकने की लाख कोशिश कर रही थी। परन्तु आँसू थे कि नदी के धारा की तरह होकर वेगवान हो रहे थे, रुकने का नाम ही नहीं ले रहे थे। जबकि राजन और मंजीत सोफे पर बैठे हुए थे। इस समय उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि क्या करें? हलांकि स्वाति ने पुलिस स्टेशन फोन लगाकर इसकी जानकारी दे-दी थी। मामला हाई-प्रोफाईल था, ऐसे में किसी प्रकार का चुक करना गलत साबित हो सकता था। स्वाति जानती थी कि पुलिस किसी वक्त भी आ सकती है, इसलिये वह पुरुषोत्तम साहब के पास ही जमीन पर बैठी हुई थी।

वह सोच ही रही थी कि पुलिस के अधिकारियों ने हाँल में कदम रखा। मामला शीशे की मानिंद साफ था। पुरुषोत्तम साहब ने सुसाइड करने से पहले ही गृह मंत्रालय को सुसाइड नोट मेल कर दिया था। ऐसे में ज्यादा कुछ भी बचा नहीं था, बस खाना पूर्ति करना था और पुलिस बाले वही कर रहे थे। यह मामला आला अधिकारी से जुड़ा था, इसलिये पुलिस अधिकारी सावधानी पूर्वक कार्रवाई को अंजाम दे रहे थे।

तभी बंगले के पोर्च में मर्सिडीज आकर रूकी। कार रुकते ही उसमें से अनिरुद्ध साहब और मालती देवी उतरे और तेजी से आगे बढे। स्वाति उन्हें आते हुए देख रही थी, परन्तु इतनी हिम्मत न कर सकी कि आगे बढ कर उनका स्वागत कर सके। जबकि अनिरुद्ध साहब और मालती देवी आगे बढ कर स्वाति के पास पहुंचे और उसे कंधा पकड़ कर उठाया। फिर आगे बढे, स्वाति को सोफे पर बिठाया और उसके अगल-बगल बैठ गए। इसके बाद उसे दिलाशा देने लगे।

समय आगे की ओर बढता जा रहा था, पुलिस बाले तेजी से कानूनी प्रक्रिया को अंजाम दे रहे थे। इधर अनिरुद्ध साहब स्वाति को समझा रहे थे, ज्ञान की बात बतला रहे थे। फिर ऐसा भी समय आया कि पुलिस ने लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया। इसके बाद पुलिस बल वहां से चली गई। पुलिस बल के जाते ही राजन ने स्वाति को संबोधित करके बोला।

स्वाति! मेरे विचार से अभी तुमको अनिरुद्ध बिला चले जाना चाहिए। यहां पर रुकोगी, तो तकलीफ ज्यादा होगी, मेरी बात समझ रही हो न।

हां स्वाति! मेरा भी विचार यही है कि तुम्हें वहीं चले जाना चाहिए। मंजीत ने राजन के सूर में सूर मिलाया। जिसके जबाव में स्वाति ने सहमति में सिर हिलाया, जबाव में बोली नहीं। तभी अनिरुद्ध साहब बोले।

राजन बेटा! अकेली स्वाति ही क्यों तुम लोग भी चलो अनिरुद्ध बिला और हां सौम्या और अमोल को भी सुचित कर दो। साथ ही मुझे ज्ञात हुआ है कि तुम्हारे पिता जी भी आए हुए है। उनको भी वहीं पर बुला लो।

लेकिन अंकल! आज दीवाली है, ऐसे में घर पर पुजा होगी। ऐसे में मैं वहां पर नहीं रहा, तो समझते है न। मामला होम मिनिस्ट्री का है। अनिरुद्ध साहब की बातें सुनकर राजन ने जबाव दिया और लास्ट में ऐसे बोला, कि सभी के चेहरे पर मुस्कान आए बिना नहीं रह सके। उसकी बातें सुनकर अनिरुद्ध साहब गंभीर होकर बोले।

तो ठीक है राजन बेटा! तुम घर से होकर आ जाओ। लेकिन आना जरूर और साथ ही परिवार को लेकर आना न भूलना। जानते हो न, आज रोनित हाँस्पिटल से घर आने बाला है।

अनिरुद्ध साहब ने अपनी बात खतम की, तो राजन ने सहमति में सिर को जूम्बीस दी, उसके बाद वे लोग उठे और बाहर की ओर निकले। बाहर आकर स्वाति ने बंगले को लाँक किया। उसके बाद स्वाति अनिरुद्ध साहब के साथ उनके कार में बैठ गई। जबकि राजन और मंजीत अपने कार की ओर बढे। इसके बाद दोनों कार श्टार्ट हुई और मेन सड़क की ओर बढी और सड़क पर आते ही रफ्तार पकड़ लिया।

रास्ते में राजन की कार दूसरी तरफ चली गई। जबकि उनकी कार दिल्ली के सड़क को रौंदते हुए आगे बढ रही थी और जब अनिरुद्ध बिला पहुंची, शाम के पांच बज चुका था। जब वे लोग हाँल में पहुंचे, तो ज्ञात हुआ कि रोनित हाँस्पिटल से घर आ चुका है। वे लोग सोफे पर बैठे ही थे कि रोनित सीढ़ियां उतर कर हाँल में आने लगा। आज अनिरुद्ध साहब बहुत ही खुश थे कि उनका लाडला घर आ चुका था।

जबकि रोनित की नजर जैसे ही स्वाति पर गई, उसके आँखों में चमक उभड़ी। आज उसे सबकुछ तो रंगीन लग रहा था, क्योंकि उसके सपनों में पंख लगने बाले थे। आज उसका सपना सकार हो रहा था। आज उसे अपना मुहब्बत मिलने बाला था, उसका अपना होने बाला था। जबकि अनिरुद्ध साहब ने हाँल में एक बार नजर घुमाया। देखा कि घर के नौकर हाँल की सजावट में लगे हुए थे।

अनिरुद्ध साहब ने रोनित के स्वस्थ घर लौटने पर एक छोटी सी पार्टी का आयोजन रखा हुआ था। उन्हें इसकी चिन्ता थी कि उन्होंने पार्टी का आयोजन ऐसे ही एकाएक रख दिया था। लेकिन उन्हें विश्वास था अपने राकेश पर। राकेश! अनिरुद्ध बिला का वफादार, हरेक जिम्मेदारी को बखूबी निभाना जानता था। अनिरुद्ध साहब ने बेल बजाई, सुमधुर संगीत से पूरा हाँल गूंज उठा, तभी राकेश जादू के छड़ी की भांति उनके सामने प्रगट हुआ और उनके सामने खड़ा हो गया।

राकेश! पार्टी की तैयारी पूरी हो चुकी है? उसे सामने देखते ही अनिरुद्ध साहब ने उससे पुछा।

मालिक! आप इस बात का टेंशन बिल्कुल भी नहीं ले। सारी तैयारी हो चुकी है, बस सजावट का फाइनल टच देना बाकी है। पूरी तत्परता से बोला राकेश। उसकी बातें सुनकर अनिरुद्ध साहब ने राहत की सांस ली फिर उससे बोले।

राकेश! हम लोग एक कप काँफी पीना चाहते है, मिलेगी क्या?

क्यों नहीं मालिक! अभी लेकर आया। ऐसे भी हमारी बहु रानी पहले-पहल घर आई है। राकेश उनकी बात पूरा होने से पहले ही बोला।

इसके बाद राकेश किचन की ओर बढा और जब वापस लौटा। उसके हाथ में काँफी की ट्रे थी। इसके बाद उन लोगों ने काँफी पी, तब तक हाँल के सजावट को आखिरी टच दिया जा चुका था। इसके बाद शाम ढला और शाम ढलते ही अनिरुद्ध बिला रोशनी से जगमगा उठा। इसके साथ ही मेहमानों के आने का सिलसिला चालू हो गया। अनिरुद्ध साहब द्वार पर खड़े होकर मेहमानों का स्वागत कर रहे थे।

शाम के ठीक छ: बजे बिला के कंपाउन्ड में राजन और अमोल की कार आकर रूकी। कार रुकते ही अमोल, सौम्या, राजन, मंजीत, श्रेया और कर्नल साहब नीचे उतरे और हाँल की ओर बढे। द्वार पर पहुंचते ही कर्नल साहब ने अनिरुद्ध साहब को गले लगा लिया। उनका गले लगना राजन समझ नहीं पा रहा था । तब अनिरुद्ध साहब ने राजन को बतलाया कि कर्नल साहब और वो पहले के मित्र है। कर्नल साहब गेट के पास ही रूक गए। जबकि बाकी लोग आगे बढे और रोनित के पास पहुंचे।

रोनित ने उन लोगों को देखा, तो उसके आँखों से हर्ष के आँसू छलक उठे। उनका ये दोस्त मंडली अनमोल था। उसके खुशी को वापिस लाने के लिए जान की बाजी लगाने को भी तैयार। वह अपने आँसू पोंछ ही रहा था कि राजन आगे बढा और उसके कान में धीरे से बोला।

अमा यार रोनित! अब फिर कभी भी किसी को दोस्ती के रंग पर विश्वास नहीं करना, ऐसे शब्द मत बोलना। राजन ने बात तो धीरे से कही थी, लेकिन बात धमाके से कम नहीं था। रोनित चाहकर भी अपने शब्द नहीं बोल पा रहा था, उसके आँखों से आँसू छलकने को बेताब थे। ऐसे में मंजीत ने माहौल को हल्का करने के लिये रोनित के कंधे को पकड़ लिया और बोला।

अमा यार रोनित! चलो न, मधुशाला चलते है।

लेकिन क्यों? इस बार अमोल चौंक कर बोला। उसकी बातें सुनकर मंजीत ने बुरा सा मुंह बनाया और तनिक जोर से बोला।

अब्बे! तुम लोगों ने तो मधुशाला जाकर जीवन संगिनी ढूंढ ली। लेकिन मैं अभी तक कुंआरा हूं बे। चलो मधुशाला चलते है, वहां जाकर मैं भी एक से दो हो जाऊँ। मंजीत ने अपनी बात इस तरह से और इतने ऊँचे आवाज में कहा कि पूरे हाँल में ठहाका गूंज उठा।

The end

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मदन मोहन'मैत्रेय'