मरा नहीं, अभी मैं जिंदा हूँ।
मरा नहीं, अभी मैं जिंदा हूँ।
अभी बस एक नादान परिंदा हूँ।
बनने वाला जरूर,कोई नुमाइन्दा हूँ।
पर वक्त का बनाया शर्मिंदा हूँ।
इस जीवन ने बहुत सिखाया।
इसलिए बर्फ के जैसा ठंडा हूँ।
मरा नहीं,अभी मैं जिंदा हूँ।
सबके लिए एक घरौंदा हूँ।
और खुद के लिए आशंका हूँ।
नींद की निंदा करने का गंदा हूँ।
इसलिए अपने सपनों के लिए अड़ंगा हूँ।
मरा नहीं,अभी मैं जिंदा हूँ।
अभी बस अलकनन्दा हूँ।
भागीरथी के इंतजार में।
बनने वाला जरूर गंगा हूँ।
क्योंकि उस भागीरथी का साथी पंथा हूँ।
वक्त से वक्त नहीं मिलता
लिखने में मैं अभी अंधा हूँ।
मरा नहीं,अभी मैं जिंदा हूँ।
धन-दौलत है पास, तो मैं सुगन्धा हूँ।
वरना यूँ तो मैं,खाली बैठा और बेढंगा हूँ।
अपने चरित्र को दर्पण की तरह अर्पण करू।
तो फिर सबको लगता मैं बड़ा प्रपंचा हूँ।
मरा नहीं,अभी मैं जिंदा हूँ।
सत्य के लिए जैसे मैं बड़ा संयुक्ता हूँ।
पर झूठ के लिये बड़ा मैं गुंडा हूँ।
बदलाव लाऊंगा, कर रहा अभी मीमांसा हूँ।
समय के लिखे निबन्ध से, अभी मैं बंधा हूँ।
मरा नहीं,अभी मैं जिंदा हूँ।