खुद्दारी एक कथा
*खुद्दारी एक कथा*
मुहल्ले में बच्चों को पढ़ाने वाले सन्तोष अंकल के घर आटा और सब्जी नहीं है मगर वह एक खुद्दार मध्यमवर्गीय इंसान है बाहर आकर मुफ़्त राशन वाली लाइन में लगने से घबरा रहे हैं।
फ्री राशन वितरण करने वाले युवाओं को जैसे ही यह बात पता चली उन्होंने जरूरतमंदों में फ्री आटा व सब्जी बांटना रोक दिया। पढ़े लिखे युवा थे आपस में राय व मशवरा करने लगे बातचीत में तय हुआ कि न जाने कितने मध्यवर्ग के लोग अपनी आंखों में ज़रूरत का प्याला लिए फ़्री राशन की लाइन को देखते हैं पर अपने आत्मसम्मान के कारण करीब नहीं आते।
राय व मशवरा के बाद उन्होंने फ़्री राशन वितरण का बोर्ड बदल दिया और दूसरा बोर्ड लगा दिया-
जिस में लिखा था कि
*स्पेशल ऑफ़र:-*
यहां पर आए और कुछ आसान से सवालों के जवाब देकर
हर प्रकार की सब्जी 10 रूपए किलो, मसाले फ़्री, आटा- चावल-दाल 15 रूपए किलो लेकर जाएं।।
ऐलान देख कर फ्री वाले लोगों की की भीड़ छंट गई और मध्यवर्गीय परिवारों के मजबूर लोग हाथ में दस बीस पचास रूपए पकड़े ख़रीदारी की लाईन में लग गए, अब उन्हें इत्मीनान था कि उनके आत्मसम्मान को ठेस लगने वाली बात नहीं थी।
इसी लाइन में संतोष अंकल भी अपने हाथ में मामूली रकम लेकर पर्दे के साथ खड़े थे उनकी आंखें भीगी हुई थी पर घबराहट ना थी। उनकी बारी आई उन्होंने भी कुछ सवालों के जवाब दिए सामान लिया पैसे दिए और इत्मीनान के साथ घर वापस चले गए , सामान खोला देखा कि जो पैसे उन्होंने ख़रीदारी के लिए दिए थे वह पूरे के पूरे उनके सामान में मौजूद हैं।
नौजवानों ने उनका पैसा वापस उस समान के थैले में डाल दिए थे!!
"युवक हर ख़रीदारी के साथ यही कर रहे थे, यह सच है कि इल्म व सलीका जहालत पर भारी है।
मदद कीजिए पर किसी के आत्मसम्मान को ठेस न पहुंचाइए ज़रूरतमंद सफ़ेद कालर वालों का ख़्याल रखिए इज़्ज़तदार मजबूरों का आदर कीजिए।
*और यकीन रखिए कि ईश्वर भी आपके कुछ आसान से जवाबों का इंतजार कर रहा है आप पर उसकी नजर है।*
*मीनाक्षी सक्सैना*