स्त्री - ZorbaBooks

स्त्री

स्त्री.. 

तुम, मुझे, हाँ तुम

घूरते हो तुम 

क्यों मुझे 

तुम, अपनी विकृत मानसिकता में गुम

आँखों से अपनी, चीरते हो क्यों मुझे 

 

तुम, मुझे हाँ तुम 

  घूरते हो तुम 

क्यों मुझे 

   

फ़ितरत कहूं या कहूँ सनक तुम्हारी 

जो करते हो घर पर 

बीवी, बेटी, बहन 

की पहरेदारी 

 

बाहर होते ही घर से 

अपनी बहकी आंखों से 

कभी टीवी, कभी fb 

कभी फ़िल्मों 

तो कभी सड़कों पर 

बेशर्मी से टूकते हो क्यों मुझे 

       

तुम, मुझे हाँ तुम 

घूरते हो क्यों मुझे 

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