हर ज़र्रे को इत्तेलाह कर दी है
हर ज़र्रे को इत्तेलाह कर दी है
कि अब दस्त-ए-शफक़त मंज़िल की होगी,
बा दस्तूर मोहब्बत तो कर ली,
अब हसरत-ए-तामीर भी चोट-ए-मुस्तक़बिल की होगी।।
हर ज़र्रे को इत्तेलाह कर दी है
कि अब दस्त-ए-शफक़त मंज़िल की होगी,
बा दस्तूर मोहब्बत तो कर ली,
अब हसरत-ए-तामीर भी चोट-ए-मुस्तक़बिल की होगी।।