मैं शांत हूं
मैं शांत हूं
पता नहीं क्यों पर मैं शांत हूं
भरे लोगों के बीच में, वाह वही के बीच में मैं अकेला खड़ा शांत हूं
शहरो की चांदनी हमें नहीं लुभाती बंद कमरे की मेहनत किसी को नजर नहीं आती, अपनी जान लगाकर लक्ष्य को पाने की तमन्ना अब सीधी नजर है आती , ठंड की इन रातों में नींद ना आती न खुल पाती अब तो मानो मेहनत भी कहना चाहती है कि मैं भी एकांत हूं मैं शांत हूं
जब मैं शहर से दूर था माना गांव में धूप था चार लोगों का बीच था अपनेपन का एहसास था वह गांव के झूले लहराते खेतों में लगे धान के बीज पर अब मानो मेरा कमरा सिमट के रह गया मानो कहना चाहता हूं कि मैं एकांत हूं मैं शांत हूं
रोज सुबह उठना पढ़ाई करने जाना बड़ा प्यारा काम हमें लगता है पर लौट के आने का दिल नहीं करता है चार लोगों से बात करके मनोबल का बढ़ना तो कभी घाट जाना बंद कमरे में आकर कलम से अपनी जीवन बनाना कभी रास आना तो कभी नहीं आना मानो जीवन भी कहना चाहता है मैं एकांत हूं मैं शांत हूं
प्रियांशु सिंह