जोखिम की जद से - ZorbaBooks

जोखिम की जद से

 

रणबांकुर में  होड़ लगी थी
तेरा  चेहरा  पढ़ते    देखा।
             
उसकी  सोच में पर्देदारी…
 फिर भी राज  को  खुलते देखा।
             
सच की सूरतें मिटती  देखी
झूठों को ही बढ़ते देखा।
              
जोखिम की ज़द में आते ही
एक आईना चटका  देखा।
              
तेवर   बदल-बदला   देखा
अपना घर भी बदला देखा।
             
एक जाम पर लड़ते   देखा
साकी-साकी  करते  देखा।
              
दरिया  हमसे ये पूछे है
स्वाधीनता छीनते  देखा?
              
डालें, टहनियाँ कांप रही  थी
जब आंधी को चलते देखा।
              
अपनों के रहबर भी कहाँ दिखते हैं
पथ भ्रष्ट जब होते देखा
  
दाग आखिर तक कहाँ छिपते हैं
हर दीवार पर लिक्खा देखा      

लेखक- राहुल किरण 

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Rahul kiran
Bihar