मेरे रूह के अंदर से वो लड़की नहीं निकलती!
इस मकान से अब कोई खिड़की नही निकलती,
मेरे रूह के अंदर से वो लड़की नहीं निकलती ।।
मेरी आदत है रोज तेरे नाम खत लिखने की ,
क्या तेरी डाकखाने से कोई चिट्ठी नहीं निकलती।।
मैं इंतजार में रहता हूँ कि कब तू मुझे याद करे,
दिनों दिन तक अब मुझे हिचकी नहीं निकलती ।।
अब हम तुम पहुँच गये हैं उम्र के उस मोड़ पर ,
कि एक दूसरे को छूने से बिजली नहीं निकलती ।।
ये मानता हूँ अब तुझे मैं आग उगलता हूँ पर ,
तेरे भी तो ओठ से अब मिसरी नहीं निकलती ।।