कब तक कलियाँ मसली जाएगी..!
आज कलम न हंसी ठिठोली,
और व्यंग्य के गीत लिखेगी !
न ही पिया मिलन का वर्णन,
न प्रियतम की प्रीत लिखेगी !
न ही दास बनकर त्यागी ,
जयजयकार मनाएगा !
आज कहेगा पीड़ा हृदय की,
हाहाकार मचाएगा !!
कोई तो बतलाए कब तक ,
कलियाँ मसली जाएगी ?
नन्ही किलकारी दानव पद –
तल से कुचली जाएगी ?
कब तक जलती काया पर ,
श्रद्धांजलि द्वीप जलाएंगे ?
कब तक जन्तर मन्तर पर ,
श्रृंगाली रुदल मनाएंगे ?
कब तक संसद के सम्मुख हम ,
यूँ न्याय – न्याय चिल्लाएंगे ?
क्या बेटी की रक्षा केवल ,
भाषण जुमलेबाजी है ?
ऐसी घटनाओं पर क्या ये ,
सत्ता कम अपराधी हैं?
नन्ही बुलबुल कब से शंकित,
शोषित घातों से है !
बोलो- बोलो कैसे कह दूँ ,
देश सुरक्षित हाथों में है ?
जो नरभक्षी अपनी ही बेटी
का भक्षण करता है,
उसे भी ये माफी देकर ,
उसका संरक्षण करता है
क्यों ये मौन रहता है उस
मासूम हृदय के खून पर !
सौ – सौ बार थूकता हूँ ऐसे
कायर कानून पर !
कब तक ऐसे ही तिलक, दिनकर को
झूठी श्रद्धांजलि दी जाऐगी !
अगर हृदय में थोड़ी सी ही ,
शर्म कहीं पर बाकी हो
बडी़ – बड़ी बातों से बढकर
कर्म कहीं पर बाकी हो !
कब तक यूँ ही चाटुकारिता को
और अधिक निर्वाह करोगे
शासक के कर्तव्यों का ,
अब तो समुचित निर्वाह करो !
वोट बैंक की बाधाओं की
तनिक नहीं परवाह करो !
तनिक अगर तुम,गांधी भगत की आगत
– स्वागत करते हो छोड़ कायरता
मानवता की राह को स्वीकार कर
मौन छोड़ हुंकार भरो,
तड़पी बेटी की आहों पर !
बेटी के हत्यारों को अब,
फांसी दो चौराहों पर ||