चुनावी बिगुल है, हर पांच साल पर बस फूंक दिये जाते हैं..! - ZorbaBooks

चुनावी बिगुल है, हर पांच साल पर बस फूंक दिये जाते हैं..!

ये चुनावी बिगुल है भईया ! हर
पांच साल पर  बस फूंक दिये जाते है ..!

हो कोई चुनावी केम्पेन तो
शोषित, वंचित, पिछड़ा

अति पिछड़ा के नाम, न जाने       
कितनी ही बार बस दुहरा दिये जाते हैं..!

ये चुनावी बिगुल है दोस्तों! हर पांच साल पर
बस फूंक दिये जाते हैं ..!

लंबे – लंबे वादे , हर वर्ग के लिए सौगाते
यूं ही भीड़ में सुना दिये जाते हैं..!

ये चुनावी बिगुल है भईया! हर पांच
साल पर बस फूंक दिये जाते हैं..!

अच्छे घर, स्वच्छ जल नदी, के वादे
किये तो जाते हैं, मगर पूरी न कर पाते हैं..!

ये चुनावी बिगुल हैं साथियों ..!
हर पांच साल पर बस फूंक दिये जाते हैं..!

हर घर बिजली और अच्छे दिन के वादे
किये तो जाते हैं, पर पूरे थोड़ी न हो पाते हैं..!

ये चुनावी बिगुल है भईया!
हर पांच साल पर बस फूंक दिये जाते हैं..!

बड़ी- बड़ी राहत पैकेज और तमाम तरह की
वादे बस भीड़ में ही सुना दिये जाते हैं..!

ये चुनावी बिगुल हैं हर पांच साल पर
बस फूंक दिए जाते हैं..!

करोड़ों रोजगार और
अच्छी स्वास्थ्य , शिक्षा के वादे ,
ये वादे ही तो हैं बस कर लिये जाते हैं

ये निभा थोड़ी न पाते हैं..!

ये चुनावी बिगुल ही तो हैं
हर पांच साल पर बस फूंक दिये जाते हैं ..!

अब नेताओ के बड़बोलेपन को जान
गई है जनता ये सब हैं , चुनावी जुमले हैं
और कुछ नहीं…!

चुनाव एक जंग है
इसे जीतने के लिए अपने
सारे पैतरें आजमां लिए जाते हैं ..!

चुनावी बिगुल ही तो हैं
हर पांच साल पर बस फूंक  दिये जाते हैं..!

बहुत बजा लिया चुनावी बिगुल.!
कुछ तो शर्म करो
अब हाहाकार कर  रही  जनता ..!

सारे भेद खुल रहे तुम्हारे
त्राहिमाम कर रही जनता..!

लेखक – राहुल किरण
          (बेगूसराय)
 

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Rahul kiran
Bihar