हम मजदूर हैं, इसलिए मजबूर हैं..! - ZorbaBooks

हम मजदूर हैं, इसलिए मजबूर हैं..!

हम मजदूर हैं.! इसलिए मजबूर हैं
हर बार हमें सपने बड़े बस दिखा दिये जाते हैं..!

आमद दुगुनी, फ्री का घर बड़े-बड़े
वादे बस कर दिये जाते हैं ..!

इन सपनों को साकार करन हर
आॅफिस चक्कर काट- काट

अपना चप्पल ही घिसबा लेते हैं
हम मजदूर हैं इसलिए मजबूर हैं..!

बात जब की जाय  सीधी , तो उसको खुद जुमला तक बतला देते हैं ..!

बात जब हो असल मुद्दे की तो
राई का पहाड़ बना देते हैं ..!

अगर इन नेताओं की किसी ने, भी खिल्ली उड़ाने की कोशिश की हर न्यूज़ चैनल और समाचार पत्र  में उसके नाम पर्चा फड़वा देते  हैं..!

भला कौन करे इतनी गुस्ताखी..!
हम तो मजदूर हैं भईया!

उन महानुभाव को
थोड़ी न समझा पाएंगें..!

दो जून   की रोटी से हमें  फुरसत कहाँ जो उन वादो, फरियादों को हम उन्हें याद दिला पाएंगे..!

हम मजदूर हैं भईया!
इसलिए ही हम मजबूर हैं ..!

जब भी किसी काम की बात हो  कपड़े- कूड़े बीनने की बात हो या फिर  सिर , बोझ रखने की बात हो..

हम याद उस समय आते हैं ..!
क्योंकि हम मजदूर हैं इसलिए
मजबूरी के समय ही तो याद आते हैं..!

ये नेता लोग भी न क्या खूब हमारी गरीबी का तमाशा किया करते हैं..!

इनसे कुछ हो जाए गलतियां तो माफीनामा तक न किया करते हैं क्योंकि ये सरकार में हैं ..?

हमसे हो जाय थोड़ी सी गुस्ताखियां
तो मार डंडे से थाने तक पहुँचा देते हैं ..!

क्योंकि ये मजदूर हैं इसलिए मजबूर हैं ..!

अच्छे दिन के वादे सुन बस,
अपना मन बहला लेते हैं.. ;

हम मजदूर हैं भईया! इसलिए मजबूर हैं..!

बात जब हो थोड़ी  राहत देने की
बस  राहत पैकेज  की खबर सुना देते हैं

हम मजदूर हैं उनको कहाँ समझा पाते हैं

कहते हैं पेट जब भरी होती है
कौन, कहाँ? किसी की खबर रहती है!

चाहे सत्ता पक्ष हो या विपक्ष
बस अपने-अपने सत्ता की रोटी

इनके ऊपर ही सेक लेते हैं
हम मजदूर हैं भइया! हम अपनी पीड़ा
उन्हें कहाँ समझा पाते हैं..!

दो चार किलो के फूड पैकेट को
हाथों में रख !
पेट की ज्वाला शांत रखने को हम
शर्म से ही, फोटो  खिंचवा लेते हैं..!

हम मजबूर हैं इन हालातों के
इसलिए अपने हाथ अपना ही उपहास करवा लेते हैं.!

अच्छे दिन की आस में वादों की इस
बरसात को सुन अपना भी मूड बना लेते हैं ..!

हम मजदूर हैं भईया! इसलिए मजबूर हैं…!

पर याद रहे हर आदमी की होती है एक सहन सीमा
जिस दिन वो टूट जाएगी फिर ..

न धड़  होगा , न होगी ही धरा ..!

लेखक – राहुल किरण

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Rahul kiran
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