फौजन का बलिदान - ZorbaBooks

फौजन का बलिदान

शबनम की खून की और बाकी जांच की रिपोर्ट देखकर डॉक्टर कहता है कि “आप अपने पति को अपने साथ लेकर आए मुझे आपकी बीमारी के विषय में पहले उनसे कुछ चर्चा करनी पड़ेगी।”

शबनम बहुत समझदार और सुलझी हुई महिला थी, इसलिए वह डॉक्टर की बातों से समझ जाती है, कि उसे कोई बड़ी बीमारी हो गई है, इसलिए वह डॉक्टर से कहती है कि “मेरे पति फौजी है और इस समय वह सरहद की रक्षा कर रहे हैं, घर पर वृद्ध सास ससुर और मेरी सात साल की बेटी है, इसलिए मुझे कोई भी बड़ी से बड़ी बीमारी हो गई हो तो भी आप मुझे बता सकते हैं, मुझ में बड़े से बड़ा दुख बर्दाश्त करने की हिम्मत है, क्योंकि मैं फौजी की फौजन हूं।”

डॉक्टर साहब शबनम की हिम्मत से प्रभावित होकर शबनम को बताते हैं कि “आपको कैंसर है और इस समय आपकी बीमारी लास्ट स्टेज पर है।”

शबनम अपनी कैंसर की बीमारी की सुनने के बाद कुछ देर चुपचाप शांत बैठी रहती है और कुछ सोच समझ फिर कहती है कि “डॉक्टर साहब में कितने दिनों तक जिंदा रहूंगी।”

डॉक्टर कहता है “अगर आज से ही ईलाज शुरू हो जाए, तो छ महीने आपको कोई तकलीफ नहीं होगी।”

जिस समय शबनम डॉक्टर से बात कर रही थी, तो उसी समय उसके फौजी पति फिरोज का फोन उसके पास आ जाता है। फिरोज फोन पर शबनम को खुशी से यह खुशखबरी देता है कि “वह दो महीने की फौज से छुट्टी लेकर घर आ रहा है।”

शबनम अपने मन में सोचती है कि चलो जीवन के आखिरी दिनों में दो महीने तो कम से कम अपने शौहर के साथ जीने के लिए मुझे मिल जाएंगे।

और शबनम अपनी बीमारी का राज अपने मन में दफन कर लेती है। लेकिन फिरोज जब दो महीने की छुट्टी लेकर घर आता है, और शबनम कि बहुत अधिक बीमार जैसी हालत देखकर फिरोज की घर आने की खुशी थोड़ी कम हो जाती है, और उसे शबनम की बहुत चिंता होने लगती है।

फिरोज और शबनम दोनों बचपन के दोस्त थे, दोनों की दोस्ती और मोहब्बत के किस्से पूरे गांव में मशहूर थे।

एक ऐसा ही किस्सा था, जब शबनम फिरोज एक विद्यालय में पढ़ते थे, तो विद्यालय की सीढ़ियों से पैर फिसलने से शबनम का हाथ टूट गया था, तो फिरोज ने भी उन्ही सीढ़ियों से गिरकर अपना हाथ तोड़ लिया था।

एक रात फिरोज की आंख खुलती है, तो शबनम बाथरुम में खून की उल्टियां कर रही थी और उसे तेज बुखार भी था।

यह सब देखकर फिरोज बहुत घबरा जाता है और शबनम से कहता है कि “कल सुबह किसी भी हालत में मेरे साथ डॉक्टर के पास चलना।”

शबनम कहती है कि “मैंने डॉक्टर से से चेकअप करवाया था, डॉक्टर ने मुझे बताया है कि गले में बस थोड़ा सा इंफेक्शन है और इस वजह से कभी-कभी बुखार भी आ जाता है।”

दूसरे दिन सुबह फिरोज शबनम को जबरदस्ती डॉक्टर के पास लेकर जाता है तो शबनम के मना करने के बावजूद डॉक्टर फिरोज को शबनम की बीमारी की सच्चाई बता देते हैं कि “शबनम को कैंसर है, और शबनम का कैंसर लास्ट स्टेज पर है।”

यह दुख की खबर सुनने के बाद फिरोज की आंखों से आंसू बहने लगते हैं।

उसी दिन चारों तरफ चर्चा होने लगती है कि पड़ोसी देश ने हमारे देश भारत पर हमला कर दिया है।

और यह खबर सुनने के बाद शबनम को ऐसा लगता है, जैसे अपने शौहर के साथ जीवन के अंतिम दिन जीने की ख्वाहिश उसकी अधूरी रह गई, लेकिन जब फिरोज इस दुविधा में फंस जाता है कि पत्नी को जीवन के अंतिम दिनों में अकेला छोड़कर देश की रक्षा करने कैसे जाऊं।

तो शबनम यह बात कह कर फिरोज की दुविधा खत्म कर देती है, कि “मैं यह दुख लेकर अपनी प्यारी दुनिया को छोड़कर नहीं जाना चाहती हूं, कि लोग मेरे शौहर से कहें कि जब देश को उसकी जरूरत थी तो बुजदिल फिरोज अपनी पत्नी के पल्लू में छुप कर बैठ गया था।”

और दूसरे दिन फिरोज सरहद की रक्षा करने चला जाता है पति के बिना शबनम को मौत और भयानक लगती है, लेकिन उसके चेहरे पर संतुष्टि थी, कि उसने फौजी की फौजन होने का फर्ज पूरा किया है।

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Rakesh
Delhi