वक्त - ZorbaBooks

वक्त

आदर्शवादी होने के बावजूद बीरबल अपने दोनों बेटों से बहुत दुखी रहता था, क्योंकि उसका बड़ा बेटा राम जी लाल हद से ज्यादा कंजूस था और छोटा बेटा महेंद्र आलसी कामचोर।

उनके इस अवगुण से ज्यादा बीरबल उनके इस अवगुण से दुखी रहता था कि वह समय की कीमत नहीं समझते थे।

राम जी लाल तीन बेटियों का पिता था महेंद्र चार बेटों का पिता था महेंद्र ने जल्दी-जल्दी बच्चे इसलिए पैदा किए थे कि वह सोचता था कि बच्चे जल्दी पैदा होंगे तो जल्दी जवान भी हो जाएंगे और ₹100 एक बेटा कमाकर लाएगे तो घर में₹400 आएंगे फिर मेरा पूरा जीवन आराम से कटेगा और राम जी लाल बेटियों के जन्म के बाद पहले से भी ज्यादा कंजूस हो गया था, उसे रात दिन यह चिंता सताती रहती थी कि चार बेटियों की शादियों में इतना धन खर्च हो जाएगा कि मैं और मेरी पत्नी बुढ़ापे में दूसरों के मोहताज हो जाएंगे, इसलिए राम जी लाल एक भी रुपया खर्च नहीं करना चाहता था वह अपनी परचून की दुकान और अन्य कहीं भी जाता था तो पैदल ही आता जाता था। उसने दुकान में नौकर भी नहीं रख रखा था क्योंकि नौकर को उसे हर महीने तनख्वाह देनी पड़ती।

बीरबल की नजरों में समय कि बहुत कीमत थी उसके दोनों बेटों की नजरों में समय की कोई कीमत नहीं थी, एक पैदल चलने में अपना सारा समय बर्बाद कर देता था एक दिन रात आराम करके।

बीरबल दोनों बेटों को समय की कीमत समझ समझ कर थक चुका था, इसलिए अपने दोनों बेटे को समय की कीमत समझने की बीरबल अपनी पत्नी के साथ मिलकर योजना बनाता है।

और दोनों बेटे को बुलाकर कहता है “तुम दोनों को मैंने आज तक नहीं बताया था कि तुम्हारी मां के पास हमारे पूर्वजों का दिया हुआ नौलाखा हार है, जब तुम्हारी मां और मेरी समझ में यह नहीं आया कि नौलखा हार बड़े बेटे की बहू को दें या छोटे बेटे की बहू को तो इसलिए हम दोनों पति-पत्नी ने मिलकर इस समस्या का एक हल निकाला है।

“कि छ महीने महेंद्र राम जी लाल की परचून की दुकान को संभालेगा और उस दुकान से जो भी आमदनी होगी वह सारे रुपए अपने पास रखेगा और महेंद्र के चारों बेटे फसल बेचकर जो कमाएंगे वह राम जी लाल को देंगे।

“और दोनों में से जिसने भी हमारा कहना नहीं माना हम उसकी पत्नी को नौलखा हार नहीं देंगे।”

अपने माता-पिता की यह शर्त दोनों बेटों को बेतूकी लगती है लेकिन वह नौलखे हार के लालच में इस शर्त को पूरी ईमानदारी के साथ निभाने के लिए तैयार हो जाते हैं।

महेंद्र आलसी था, इसलिए वह परचून की दुकान पर पैदल जाने की जगह गांव के रोड से बस टेंपो रिक्शा आदि में बैठकर जाता था और दुकान पर समय पर पहुंचने की वजह से वह समय से दुकान खोल देता था और समय पर दुकान बंद करता था समय पर दुकान खोलने बंद होने की वजह से दुकान की आमदनी बढ़ जाती है।

और अपने आलसीपन की वजह से जब वह ग्राहकों की भीड़ को संभाल नहीं पता तो दुकान में एक नौकर रख लेता है।

नौकर रखने से उसे दूसरे तीसरे दिन दुकान बंद करके दूर थोक बाजार दुकान का सामान लाने का कष्ट भी नही उठना पड़ता और दुकान बंद ना करने से दुकान कि आमदनी भी बढ़ जाती है, अब दुकान में सामान न होने की वजह से कोई ग्राहक लौटकर वापस भी नहीं जाता था।

दूसरी तरफ राम जी लाल का घर पड़े पड़े समय नहीं कटता था क्योंकि वह कंजूस जरूर था, लेकिन था वह मेहनती था और पैदल चल-चल कर वह और ज्यादा मेहनती हो गया था, इसलिए वह अपने चारों भतीजो के साथ खेत पर जाकर उनके साथ मेहनत करने लगता है क्योंकि उसे यह भी अच्छी तरह पता था कि फसल अच्छी होगी तो पैसे तो मेरी जेब में ही आएंगे।

और चार की जगह पांच लोगों के एक साथ खेत में मेहनत करने की वजह से फसल बहुत अच्छी होती है, क्योंकि उसके चारों भतीजा भी पहले से ज्यादा मेहनत करते हैं कि पिता जी तो हमें अपनी आमदनी का जरिया समझते थे, लेकिन ताऊ जी हमारे साथ अच्छी फसल के लिए बराबर की मेहनत कर रहे हैं।

और छ महीने के बाद बीरबल अपनी पत्नी के साथ बैठकर दोनों बेटों के साथ उनके बीवी बच्चों को बुलाकर उनकी छ महीने की कमाई देखकर कहता है “आलसी महेंद्र ने छ महीने में इतना कमाया जितना शायद राम जी लाल एक साल में भी नहीं कमा पाता होगा यह इसलिए हुआ क्योंकि महेंद्र दुकान समय खोलता था बंद करता था, क्योंकि उसके अंदर राम जी लाल जैसे पैदल देर से घर पहुंचने का डर नहीं था और दूसरे तीसरे दिन दुकान बंद करके थोक बाजार जाने की वजह से दुकान कि आमदनी को जो नुकसान होता था वह नौकर रखने से खत्म हो गया था, दुकान में सामान न होने की वजह से कोई ग्राहक दुकान से लौटकर वापस भी नहीं जाने लगा था इससे भी दुकान की आमदनी पड़ी यह सब इसलिए हुआ क्योंकि इसने अनजाने में समय का सदुपयोग किया।

“और राम जी लाल ने फसल बेचकर इतनी अच्छी कमाई इसलिए की क्योंकि खेत में अब चार नहीं पांच लोग मेहनत कर रहे थे, इससे यह फायदा हुआ चार लोग जिस काम को करने में जितना समय लगाते थे, वह समय पांच लोगों की वजह से बचने लगा और महेंद्र के चारों बेटे अपने को प्यारी संतान नहीं मां-बाप की आमदनी का जरिया समझते थे वह अपने ताऊ राम जी लाल की वजह से अपने को घर के बेटे समझने लगे थे और बूढे राम जी लाल से ज्यादा चारों जवान लड़के खेत में ज्यादा मेहनत करने लगे थे।

“अब तक अगर तुम्हें मेरी बात समझ नहीं आई होगी अब मैं तुम सब को समझता हूं, मैंने तूम सबको नौलखे हार से भी बहुमूल्य समय के सदुपयोग का ज्ञान दिया है।

अपने पिता का दिया ज्ञान पाकर दोनों बेटे और उनके बीवी बच्चों के जीवन में खुशियां आ जाती हैं।

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Rakesh
Delhi