सौतेली माँ - ZorbaBooks

सौतेली माँ

उन दिनों हमारे यहाँ एक उम्र के बाद माता पिता को बच्चों का स्पर्श अपने पैरों पर और बच्चों को माता पिता का स्पर्श अपने सर पर ही मिलता था । बच्चे माता पिता के पैर छूते थे तो माता पिता उनके सर पर हाथ रख कर आशिर्वाद देते । लाड़ प्यार सब मन में रहता था । गले लगने लगाने का भी चलन नहीं था । प्रेम और स्नेह का सार्वजनिक प्रदर्शन अच्छा नहीं माना जाता था । जब कभी बच्चे माँ बाप से लाड़ में लिपटते तो थप्पड़ खा जाते थे और ठीक से बैठने उठने की नसीहत मिल जाती थी ।

जो प्रेम का सार्वजनिक प्रदर्शन करते उन्हें बेशर्म या अति आधुनिक समझा जाता था । ये ब्लैक एंड व्हाइट टी वी के आने से भी पहले की बातें हैं ।

फिर टी वी आ गया और जमाने भर पे छा गया । हमारी बस्ती में भी हर घर में टी वी लग गया । टी वी पर दिखाये जाने वाले कार्यक्रमों में सबसे अधिक लोकप्रिय थे चित्रहार और सिनेमा । फिल्म में तरह तरह की कहानियाँ और दृश्य दिखाये जाते।

मोहल्ले में एक लड़का रहता था जिसका नाम गुड्डू था और उमर लगभग दस वर्ष । मेरी भी उम्र इतनी ही थी । गुड्डू के घर में उससे 2वर्ष बड़ा भाई टुक्कू और 3 वर्ष छोटी बहन टीना थी । उसके बगल के मकान में एक नये पड़ोसी आये थे । ये पड़ोसी थे सक्सेनाजी उनकी पत्नी नीलू आंटी और उनकी छह वर्ष की बेटी मिनी और चार वर्ष का बेटा मुन्नू।

एक दिन नीलू आंटी ने अपनी छत से अपने घर के नीचे कूड़ा फेंका तो कुछ कूड़ा हवा से उड़ कर गुड्डू के मकान के सामने जा गिरा। इस बात पर गुड्डू की मम्मी शांति की नीलू आंटी से कहा सुनी हो गयी।

उन दिनों व्यवसायिक फिल्मों के फोर्मूलों में दो प्रचलित फोर्मूले थे कुम्भ के मेले में भाइयों के बिछड़ने का और सौतेली अत्याचारी माँ का जो अपने बच्चों को प्यार करती थी और सौतेले बच्चे का तिरस्कार ।

एक दिन ऐसी ही कोई सौतेली माँ की पिक्चर टी वी पर दिखायी गयी थी । गुड्डू ने भी ये पिक्चर देखी थी ।

उसके अगले ही दिन जब गुड्डू अपने घर के सामने अकेले बैठा था । नीलू आंटी ने अपनी छत से धीमी आवाज में उसे पुकारा। जब उसने ऊपर देखा तो इशारे से अपने घर आने को कहा । बगल के मकान में ही जाना था । गुड्डू नीलू आंटी के दरवाजे पर पहुँच गया ।

 नीलू ने दरवाजा खोला और गुड्डू को कहा, “ आओ अंदर आ जाओ बेटा।“

गुड्डू थोड़ा शर्माता, झिझकता अंदर चला गया ।

नीलू आंटी ने गुड्डू के सर पर हाथ फेरा, “तुम्हारा नाम गुड्डू है न ?”

गुड्डू ने उत्तर दिया, “ हाँ। ”  

आंटी ने एक कुर्सी की ओर इशारा कर कहा, “उधर बैठो , मैं अभी आती हूँ ।

नीलू आंटी अंदर गयीं और कुछ देर में एक ग्लास में रूह आफजा शर्बत और एक प्लेट काजू लेकर लौटी। खाने पीने का सामान गुड्डू के सामने टेबल पर रखकर नीलू सामने वाली कुर्सी पर बैठ गयी ।

“ खाओ पियो, शरमाना नहीं,” नीलू ने जोर देकर कहा । गुड्डू धीरे धीरे शर्बत पीने और काजू खाने लगा।

नीलू ने पूछा, “तुम किस क्लास में पढ़ते हो?”

गुड्डू ने कहा, “मैं चौथी क्लास में पढ़ता हूँ।”

नीलू बोली, “आज स्कूल की छुट्टी है न इसलिये मेरे बच्चे अपने पापा के साथ अपने बुआ से मिलने गये हैं । कभी आकर उनसे मिलना और दोस्ती करना ।”

फिर नीलू आंटी ने पूछा, “तुम्हारी मम्मी घर पर नहीं हैं क्या?”

गुड्डू ने कहा, “आंटी। मम्मी घर पर ही हैं।”

नीलू आंटी बोलीं, “फिर तुम अकेले उदास से बाहर क्यों बैठे थे ? मेरे बच्चे तो छुट्टी के दिन मुझे एक मिनट भी नहीं छोडते । हर वक्त मुझसे लिपटे रहते हैं । तुम्हारी माँ क्या तुमसे प्यार नहीं करती?”

गुड्डू को कोई जवाब नहीं सूझा । वह चुप रहा ।

तभी नीलू आंटी ने कहा, “अच्छा गुड्डू अब तुम घर जाओ । मम्मी चिंता करेगी ।”

गुड्डू आंटी को नमस्ते करके अपने घर चला आया ।

गुड्डू के दिमाग में देर तक ये वाक्य घूमता रहा ‘क्या तुम्हारी मम्मी तुम्हें प्यार नहीं करती ?’

प्यार का बाहरी प्रत्यक्ष प्रमाण उसके पास था नहीं। उसकी माँ उसे गले लगाती नहीं थी। सर पर हाथ फेर कर या माथा चूम कर लाड़ करती नहीं थी जैसा पिक्चर में दिखाते थे या नीलू आंटी करती थीं । उसे अपने सर पर नीलू आंटी के हाथ का स्पर्श याद आया। उसे लगने लगा यही सच है कि माँ उसे प्यार नहीं करती । फिर उसने विचार किया “किन्तु प्यार न करने की वजह क्या हो सकती है और उसे एक झटका सा लगा । उसके दिमाग में विचार आया, “कहीं मैं सौतेला तो नहीं । कहीं मेरी माँ सौतेली माँ तो नहीं ।”

फिर उसने स्वयं से तर्क किया , “ ऐसे तो वो टुक्कू और टीना से भी प्यार नहीं करती। क्या वे भी सौतेले हैं?”

उसने माँ के व्यवहार के बारे में और गहराई से सोचा । उसे ध्यान आया, ‘टीना कभी कभी माँ से लिपटती है तो माँ हंसकर उसे अलग करती हैं ।’

और उसे याद आया, ‘ माँ टुक्कू को पढ़ाई के लिए कभी नहीं डांटतीं , उसे अक्सर डांटतीं हैं।’

आवेश में उसने इस बात पर ध्यान नहीं दिया कि टुक्कू अपने आप ही अच्छे से पढ़ता था जबकि वो खेलता ज्यादा था ।

गुड्डू ने निष्कर्ष निकाल लिया कि वह ही सौतेला है और माँ सौतेली माँ है । फिर वो ये सोच के परेशान हो गया कि उसकी असली माँ कौन है और कहाँ है ।

सोच सोच कर उसका सर चकराने लगा । वो घर में सीधा जाकर माँ के सामने खड़ा हो गया । उसका चेहरा उस समय गुस्से और दुख से लाल हो रहा था । आँखों में आँसू भरे थे और बदन काँप रहा था ।

माँ ने उसे देखते ही पूछा, “गुड्डू क्या हुआ ?तुम्हारी तबीयत ठीक नहीं ?”

गुड्डू ने सीधा सवाल पूछा, “मेरी माँ कहाँ है ?”

माँ चौंक गयी और बोली, “ये कैसा सवाल है ?मैं कौन हूँ ?”

 गुड्डू ने उत्तर दिया, “तुम तो मेरी सौतेली माँ हो ।”

“हे भगवान ।” कह कर माँ जमीन पर बैठ गयीं।

ये जो समस्या पैदा हुई थी इसका समाधान गुड्डू की काउन्सलिन्ग करने के बाद एक सप्ताह में पूरा हो सका था। थोड़ी कौंस्लिंग की आवश्यकता माँ को भी पड़ी थी ।

भगवान जाने ये नीलू आंटी का बदला था या कुछ और …

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Ravi Ranjan Goswami