हिचकोला।
राजीव और शिखा का दांपत्य जीवन प्रारम्भ से ही हिचकोलों भरा रहा। इन्हीं हिचकोलों में कभी प्रेम के झूले झूलने का आनंद मिला और कभी सर चकराता रहा।
राजीव की उम्र 25 वर्ष पार कर गयी थी । घर में सबको उसके विवाह की चिंता थी और वो एक आध साल और शादी को टालना चाहता था ।
एक दिन दादी ने राजीव को बुलाकर अपने पास बैठा लिया। राजीव दादी का बहुत लाड़ला था ।
दादी ने राजीव से पूछा, “तू शादी करेगा या कुँवारा ही रहेगा? बस मुझे साफ साफ बता दे ।”
राजीव बोला, “जब मैंने शादी करनी चाही थी तब तो तू ने कुछ किया नहीं।”
दादी को हंसी आ गयी और वह हँसते हुए बोली, “तब तेरी शादी करवाती तो बाल विवाह करवाने के जुर्म में मैं जेल की हवा न खाती। तू कक्षा तीन में पढ़ता था और वो लड़की कक्षा एक में। पागल !”
“दादी तभी तो तुमसे कहता था । अब तो मैं खुद ही अपनी शादी कर सकता हूँ,” राजीव ने कहा।
“कोई है तेरी नज़र में तो बता दे वरना मैं सुमन और भगवान से कह कर कहीं बात चलवाऊँ,” दादी ने राजीव की माँ और पिता का नाम लेकर कहा ।
राजीव कुछ खास अच्छे मूड में था । वह दादी से बोला, “जैसा तुम चाहो दादी । मेरा स्कूल जाने का समय हो गया है । शाम को लौटके मिलते हैं। ” राजीव शहर के केंद्रीय विद्यालय में अध्यापक था ।
शाम को जब राजीव ऑफिस से लौटा तो एक सज्जन बैठक में बैठे पापा से बात कर रहे थे । पापा ने उसे आया देख वहीं रोक लिया, “राजीव, दो मिनट बैठो यहाँ । शर्माजी से मिल लो कानपुर से आये हैं। एक्जीक्यूटिव इंजीनियर हैं ।”
राजीव उन सज्जन के सामने वाली कुर्सी पर बैठ गया।
“शर्माजी ये मेरा लड़का है राजीव केंद्रीय विद्यालय में अध्यापक है।” पापा ने राजेश का परिचय कराया ।
शर्माजी राजीव की तरफ देख कर सर हिला कर मुस्कराये और उससे प्रश्न किया, “आप क्या पढ़ाते हैं?”
राजीव ने कहा, “9वीं व 10वीं क्लास् को साइंस और मैथ पढ़ाता हूँ।”
इतना भर पूछ कर वे सज्जन संतुष्ट लगे । वे पुनः पापा से बात चीत में व्यस्त हो गये। अपनी तरफ किसी का ध्यान न देख कर राजीव चुपचाप उठ कर घर के अंदर चला गया। बाद में पता चला वे उसके लिये अपनी बेटी का रिश्ता लेकर आये थे । लड़की का फोटो भी दे गये थे । फोटो में लड़की अच्छी दिख रही थी । माँ ने बताया लड़की का नाम शिखा हैं और बी बी ए किया है ।
इधर राजीव और शिखा की शादी की बातचीत प्रारम्भ हुई और उधर राजीव का स्थानांतरण नैनीताल हो गया। राजीव के पापा भगवान दास सेवानिवृत पुलिस अधिकारी थे। स्थानांतरण उनके लिये कोई बहुत मुश्किल घटना नहीं थी किन्तु इस समय राजीव का स्थानांतरण उन्हें खला। वो राजीव की शादी करना चाहते थे । राजीव की नौकरी लगे चार साल हो गये थे और उसकी उम्र 25वर्ष हो चुकी थी । उन्हें अपनी और सुमन की ढलती उम्र का एहसास था अतः और थकित होने से पूर्व वे अपनी जिम्मेवारी पूरी करना चाहते थे । राजीव की बड़ी बहन सरला का विवाह उन्होंने दो वर्ष पूर्व कर दिया था । उन्होंने राजीव से दो महीने के लिये नैनीताल जाना स्थगित करने को कहा । राजीव ने पापा की आज्ञा का पालन किया । भगवान दास जी राजीव के विवाह अभियान में जुट गये । सप्ताह के अंदर राजीव को तीन जगह तीन लड़कियाँ दिखायीं और इसके बाद दो दिन सोचने समझने का समय देकर तीसरे दिन फ़ाइनल रिपोर्ट देने को कह दिया । इन तीनों में शिखा भी थी । राजीव और परिवार के अन्य सदस्यों को शिखा पसंद आयी । राजीव की स्वीकृति मिलते ही पापा ने शिखा के पिता से बात की और दोनों ने युद्ध स्तर पर विवाह की तैयारियां प्रारम्भ कर दीं । पंडितजी से अगले महीने का विवाह का शुभ मुहूर्त पूछा गया । तीन दिनों में निमंत्रण पत्र छपवा कर डाक में डाल दिये गये । स्थानीय मित्रों और रिश्तेदारों को निमंत्रण पत्र देने के लिये पापा ने राजीव को अपना सारथी बनाया और उसके दुपहिया रथ बज़ाज़ स्कूटर पर पीछे सवार होकर शहर भर में बाँट दिये। दस दिन बाद शर्माजी तिलक ले आये । एक महीने बाद राजीव की बारात कानपुर पहुंची और राजीव और शिखा का ब्याह सम्पन्न हो गया। इतनी जल्दी की क्या आवश्यकता थी राजीव या किसी को भी पता नहीं था ।
थोड़े दिनों बाद राजीव और शिखा हिमाचल सुपर फास्ट ट्रेन के ए सी डिब्बे में बैठ कर आगरा से दिल्ली जा रहे थे जहां से वे नैनीताल जाने वाले थे,तब राजीव को सोचने का मौका मिला। शादी की सभी यादें फास्ट फॉरवर्ड फिल्म की तरह ही सामने आ रहीं थीं ।
ऐसा ही कुछ हाल शिखा का था । उसे लगा पिछले कुछ दिनों के लिये वह रोबोट बन गयी थी । लोग उसे जैसे बताते रहे वह करती रहीं और उसकी राजीव से शादी हो गयी । राजीव दिखने और बात व्यवहार में ठीक लगा था । लेकिन सबकुछ तो उसके बारे में नहीं जानती थी।
कुछ अनोखा ये भी घट रहा था कि सह यात्री उन दोनों से ज्यादा बातें कर रहे थे और वे आपस में कम ।
लगभग 12 बजे राजीव ने शिखा से कहा, “दिल्ली पहुँचने के पहले हम लोग खाना खा लेते हैं ।”
वे सुबह साड़े आठ बजे के करीब घर से चले थे । माँ ने यात्रा में खाने के लिये पूड़ीयां और आलू की सूखी सब्जी बांध कर दी थी । शिखा ने बैग में से खाने का पैकेट निकाला । बैग में कुछ कागज की प्लेटें भी थीं । शिखा ने एक प्लेट में पूड़ी सब्जी रख कर राजीव को दे दी और एक प्लेट में अपने लिये लेकर खाने लगी। एक दो ग्रास ही तोड़ कर खाये होंगे कि शिखा बचपन की यादों में खो गयी। बचपन में जब वह अपने मम्मी पापा के संग रेलगाड़ी से यात्रा करती थी उसे दो कार्य बहुत पसंद थे खिड़की के पास बैठ कर बाहर के दृश्य देखना और पूड़ी सब्जी खाना । मम्मी पापा की याद ने उसे भावुक कर दिया । उसकी आँखों से दो आंसुओं की बूंदें उसकी प्लेट पर गिरीं । उसने जल्दी से आँसू पोंछ लिये । राजीव खाना खा चुका था और अपनी प्लेट कूड़ेदान में डालने और हाथ धोने के लिये वाशबेसिन की ओर चला गया था । जब राजीव लौट आया तो वह भी अपनी प्लेट कूड़ेदान में डालकर हाथ धोकर आ गयी । पानी की बोतल भी साथ थी । दोनों ने बोतल से पानी पिया और दिल्ली की प्रतीक्षा करने लगे ।
थोड़ी देर में वे दिल्ली पहुँच गये । राजीव ने अपनी कलाई घड़ी देखी, दोपहर के डेढ़ बजे थे राजीव ने कुली की मदद से सामान उतारा । सामान में एक बड़ी अटैची और एक बड़ा बैग था । अक्तूबर का महिना था लेकिन धूप तेज थी और मौसम गरम ।
राजीव ने कुली को इशारा किया उसने अटैची अपने सर पर रख ली और राजीव से बैग उठाकर उसके ऊपर रखने को कहा । राजीव ने बैग उठा कर उसके सर पर रखी अटैची के ऊपर रख दिया और उससे वेटिंग रूम चलने को कहा फिर कुली आगे और वे दोनों उसके पीछे चलते चलते वेटिंग रूम आ गये। उन्हें अब चार बजे संपर्क क्रांति ट्रेन से काठगोदाम जाना था फिर वहाँ से नैनीताल जाना था । वे करीब रात 11बजे काठगोदाम पहुंचे और वहाँ से टॅक्सी द्वारा लगभग 12 बजे नैनीताल में मदन के घर पहुँच गये । मदन राजीव का सहकर्मी और खास दोस्त था जो पहले से वहाँ था । उसकी पत्नी थोड़े दिन के लिये अपने मायके गयी हुई थी अतः वह अकेला ही था किन्तु उसने इन दोनों के स्वागत सत्कार में कोई कमी नहीं छोड़ी । उसने उस रात इन लोगों के खाने और रहने ही व्यवस्था अपने निवास स्थान में ही कर दी ।
सुबह सबसे पहले शिखा जाग गयी। दोनों आदमी सोते रहे शिखा नित्यकर्म निबटा कर नहा धोकर तैयार हो गयी । वो रसोई में गयी । रसोई अच्छी और व्यवस्थित थी । उसने चाय बनाने की सामग्री खोजी तो आसानी से मिल गयी । उसने तीन कप चाय बनाई और राजीव को जगा दिया । राजीव ने मदन को जगाया । फिर तीनों ने डाइनिंग टेबल के पास कुर्सियों पे बैठ कर चाय पी ।
मदन चाय पीने के बाद शिखा से बोला, “भाभी जी, आपने चाय बहुत बढ़िया बनायी।”
शिखा ने कहा, “शुक्रिया भाईसाब।”
फिर मदन ने राजीव से पूछा, “ आज का क्या प्रोग्राम है।”
राजीव बोला, “ सोचता हूँ सबसे पहले स्कूल चलकर प्रधानाचार्य जी से मिल लूँ ।सरकारी आवास के विषय में भी बात कर लूँ।”
मदन ने कहा, “ठीक है तैयार हो जाओ फिर दोनों साथ चलेंगे ।”
“नाश्ता करके जाना,” शिखा ने किचिन से आवाज दी ।”
शिखा ने उन लोगों को गरमागरम पोहे का नाश्ता कराया । नाश्ता करके और तैयार होके दोनों लोग मदन की मोटर साइकिल से स्कूल के लिए चल दिये ।
प्रिंसिपल से मुलाक़ात अच्छी रही । आवास भी मिल गया और आवास में जरूरी इंतजाम करने के लिए एक दिन की छुट्टी ।
पास के बाज़ार से राजीव ने एक पलंग,कुछ कुर्सियाँ खरीदीं, वह अपनी नई नवेली दुल्हन को जमीन पे नहीं सुलाना चाहता था । खाना बनाने के लिए बिजली का हीटर और कुछ राशन और सब्जियाँ भी खरीदीं । ये सब सामान उसने नये आवास में रखवा दिया । मदन साथ ही था उसने भी सामान को व्यवस्थित करने में मदद की । शिखा को इस के विषय में अभी कुछ मालूम नहीं था ।
इस सब के बाद राजीव शिखा को वहाँ लेकर आया । शिखा के लिए ये एक सुखद आश्चर्य था । उसने सोचा नहीं था कि राजीव इतनी जल्दी इतनी व्यवस्थाएं कर लेगा । उसने राजीव को प्रशंसा भरी नज़रों से देखा और कहा, “थैंक यू ।”
राजीव ने मुस्कराते हुए बाहें फैला कर कहा, “वेलकम मैडम ।”
शिखा थोड़ा शर्मायी किन्तु राजीव को उसने निराश नहीं किया और उसकी बाहों में आ गयी ।
थोड़े दिनों में ही शिखा की गृहस्थी जम गयी। राजीव के स्कूल का समय सुबह 8 बजे से दो बजे था। राजीव साढे सात बजे निकल जाते और ढाई बजे के लगभग लौटते। शाम दोनों टहलने निकल जाते । नयी जगह थी । मौसम अच्छा था । रविवार को दोनों किसी दर्शनीय स्थल देखने चले जाते थे । उदाहरण के लिए कभी नैनीताल झील, कभी नैना देवी मंदिर, कभी स्नो व्यू पॉइंट , और कभी चिड़ियाघर ।
इसप्रकार पाँच छः महिने अच्छे से निकल गये । शिखा का घूमने से जी भर गया । साथ ही राजीव के स्कूल चले जाने के बाद वह बोरियत महसूस करती थी । तरह तरह के खयाल उसके दिमाग में उठते । एक दिन बैठे बैठे न जाने कहाँ से उसे ये खयाल आया कि राजीव की नौकरी चार साल पहले लग गयी थी । वह देखने में भी अच्छा था। यानी विवाह योग्य तो चार साल पहले हो गया था । इस बीच उसके स्थानांतरण भी हुए जहां वह अकेला और आज़ाद रहा । क्या इसको कोई लड़की न पसंद आयी होगी या किसी लड़की को इसके प्रति आकर्षण न हुआ होगा ।
और उसके दिमाग में बिजली सा एक सवाल कौंधा , “कहीं राजेश का विवाह पूर्व कोई अफेयर तो नहीं था? कहीं आज भी वो जारी तो नहीं ।”
राजेश शादी के पहले किन्ही पति पत्नी को झगड़ते देखता था तो सोचता था जिन्हें प्रेम से रहना चाहिये वो न जाने क्यों झगड़ते हैं।
राजीव ने कल्पना नहीं की थी । काल्पनिक सौत को लेकर शिखा उससे एक घंटे लड़ी । फिर रूठी रही । राजीव को उसे मानना पड़ा और विश्वास दिलाना पड़ा कि उसका कोई अफेयर नहीं थ
ा न है । ये पहला हिचकोला था ।