हमारी बेवकूफी थी ।।।।।।
हमारी बेवकूफी थी जो उन से दिल लगाया था।
जमाने से गिरायी थी , उन्हें अपना बनाया था ।
मैं उन को हार समझा था, गला अपना सजाने को ।
वो काला नाग बन बैठे , हमीं को काट खाने को।
मैं हूं गमों का मारा ना , उड़ा मज़ाक तू मेरी ।
तेरी बेरुखी से ज्यादा , मेरी सजा नहीं है ।
वो हमारी बेवकूफी थी, जो उन से दिल लगाया था ।
कवि – शेखर सिंह