मंजिल - ZorbaBooks

मंजिल

राहें तो हजार हैं यहां..
पर मंजिल से हम वाकिफ कहा…
बस  आसमां आौर ज़मीन के बीच
चलते हमारे ये पांव हैं…
जिंदगी तो जी रहे हैं हम….
पर  आज भी साथ अंनदिखे..
वों घुटन और बंदगी के घांव हैं ।2।

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Shravani Prakash Lingade