खामोशी के शोर - ZorbaBooks

खामोशी के शोर

रूही जैसे ही कोचिंग के लिए घर से निकली, चौराहे पर बैठे चार लोग ताने मारने शुरू कर दिए। उनमें से एक ने कहा- क्लास तो एक बहाना है, जाती होगी किसी यार से मिलने। रूही के कदम एकदम से थम गए, पर फिर वो कुछ सोचकर आगे बढ़ गई, क्योंकि उसे पता था कि अभी इनलोगों के मुंह लगकर कोई फायदा नहीं है। प्रतिदिन यही सिलसिला चलता रहा, लेकिन रूही बिना कुछ जवाब दिए अपने लक्ष्य के लिए दिन-रात मेहनत करती रही। कुछ दिन बाद रूही गांव से बाहर चली गई, इस बार भी लोगों ने यही सोचा कि भाग गई होगी किसी के साथ।

लेकिन कुछ महीनों बाद जब रूही गांव आई, तो सबलोग फूल-माला ले उसके घर के आगे खड़े थे, क्योंकि इस बार रूही कलेक्टर बनकर आई थी। गांववाले फूल और आशीर्वादों की बरसात कर रहे थे। सबलोग उसका एक झलक पाने को आतुर थे। रूही आश्चर्यचकित थी, क्योंकि उनमें सबसे आगे वो लोग खड़े थे, जिसने कभी उसके चरित्र पर सवाल उठाया था और आज गर्व से बोल रहे थे कि मुझे तो पता था कि एक दिन ये जरूर अफसर बनेगी, हमारा नाम रौशन करेगी। रूही सोच में पड़ गई कि क्या यही इस समाज का दस्तूर है? क्या यही रिश्ते का मोल है? आज उसे अपनी खामोशी के शोर स्पष्ट सुनाई दे रही थी।

सृष्टि मिश्रा ✍️

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Sristi Mishra
Bihar