दिमागी कमज़ोरी
कहने और करने को तो कुछ भी नामुमकिन नहीं,,
पर क्या करें इंसान अपने को ख़ुद ही सीमित कर चुका है,,
चाहे वो किसी भी अवस्था और आयु में हो,,
मानसिक और शारीरिक रूप से हार मान जाना हम इंसानों की आदत हो चुकी है,,
कहने और करने को तो कुछ भी नामुमकिन नहीं,,
पर क्या करें इंसान अपने को ख़ुद ही सीमित कर चुका है,,
चाहे वो किसी भी अवस्था और आयु में हो,,
मानसिक और शारीरिक रूप से हार मान जाना हम इंसानों की आदत हो चुकी है,,